अगर पार्टी इस युक्ति के साथ चलती है कि ईमानदार लोगों पर सवाल उठाकर ख़ुद की छवि को पाक़-साफ़ साबित किया जाए, तो इससे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. यह कांग्रेस की विश्वसनीयता को कमज़ोर करने और मोदी की विश्वसनीयता में इज़ाफ़ा करने वाला क़दम साबित होगा.
भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद नरेंद्र मोदी की पहली रैली, जो कि पूर्व सैनिकों के लिए आयोजित थी, उसमें पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह भी मंच पर मोदी के साथ दिखाई दिए. जनरल वी. के. सिंह के सेना प्रमुख के कार्यकाल के दौरान ही उनकी उम्र से जुड़ा मामला प्रकाश में आया था और दुर्भाग्य से इस मामले में उन्हें न्याय नहीं मिल पाया. या तो सरकार की तरफ से या फिर माननीय न्यायालय की ओर से. बहरहाल, जनरल वी. के. सिंह गौरवपूरर्ण तरी़के से सेना से सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के बाद भी एक ईमानदार छवि होने के नाते उन पर किसी तरह का सवालिया निशान लगाना संभव नहीं है. यहां तक कि सेना के भीतर मौजूद उनके विरोधी भी पूर्व सेनाध्यक्ष पर उंगली नहीं उठा सकते. वी. के. सिंह उसी जज़्बे को बरक़रार रखते हुए देश के लिए कुछ करना चाह रहे हैं, किसानों से जुड़ी समस्याओं का हल चाह रहे हैं, भूमिहीनों की सहायता करना चाह रहे हैं और जिनकी ज़मीन छीन ली गई है, उनकी बेहतरी की दिशा में काम कर रहे हैं. और भी बहुत कुछ. इसी क्रम में वे पूर्व सैनिकों के लिए आयोजित नरेंद्र मोदी की रैली में शामिल हुए थे, लेकिन कांग्रेस पार्टी तो जैसे किसी उन्माद के रोग से ग्रसित हो गई है. जब पार्टी ने देखा कि जनरल वी. के. सिंह नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा कर रहे हैं, तो सरकार के भीतर खलबली-सी मच गई. कांग्रेस ने जनरल वी. के. सिंह पर झूठे आरोपों की झड़ी लगा दी. जनरल वी. के. सिंह पर जम्मू-कश्मीर में त़ख्ता पलट का आरोप लगाया गया. विधायकों को पैसे देकर दल-बदलने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया.
जम्मू-कश्मीर में तकरीबन सभी मंत्री गैर सरकारी संगठन चलाते हैं. वहां के सिस्टम में है कि शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सेना के फंड से इन गैर सरकारी संगठनों को पैसे दिए जाते हैं. यह बैक चैनल डिप्लोमेसी का एक तरीक़ा है. मुझे समझ में नहीं आता है कि इस तरह की कूटनीति को साज़िश का नाम क्यों दिया जा रहा है? एकाएक सरकार पूर्व सेनाध्यक्ष पर आरोप लगाने लगती है कि आप सरकार गिराना चाहते थे. यह आरोप समझ से परे है. भला जनरल वी. के. सिंह को जम्मू-कश्मीर सरकार को गिराकर क्या हासिल होगा? वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री तो बन नहीं सकते और उससे भी हास्यास्पद तो यह है कि उन पर आरोप लगा कि उन्होंने एक मंत्री को 1.09 करोड़ की राशि दल बदलने के लिए दी. कांग्रेस पार्टी को यह समझना चाहिए कि आज के दौर में तो इतनी राशि लेकर एक म्युनिसिपल कॉरपोरेटर भी दल नहीं बदलेगा. वास्तव में कांग्रेस पार्टी आंकड़ों के मामले में बहुत पीछे चल रही है.
अब चूंकि उन्हें कुछ न कुछ तो कहना ही है, तो पार्टी ने एक साफ और ईमानदार छवि के व्यक्ति को ही आरोपों की ज़द में लेना शुरू कर दिया. कांग्रेस यह भूल रही है कि देश की जनता को इस तरह की छद्म चालबाज़ियों से बहकाया नहीं जा सकता. जनता इस पूरे खेल को समझ रही है. कांग्रेस पार्टी ख़ुद तो पूरी तरह से धोटालों व भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है और अब वह एक स्वच्छ छवि के व्यक्ति पर आरोप लगा रही है. कांग्रेस वास्तव में उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है. जनरल वी. के. सिंह कि छवि बेदाग है और उन पर कोई सवालिया निशान भी नहीं है. ऐसे व्यक्ति पर उंगली उठाने का मतलब है कि आपने या तो अपनी नज़रें बंद कर ली हैं या फिर आप किसी के द्वारा प्रेरित हैं या फिर आप समझते हैं कि जनता बेवकूफ़ है और वह सरकार की हर बात पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेगी.
वास्तव में मुझे लगता है कि कांग्रेस पार्टी को यथार्थ के धरातल पर उतर आना चाहिए. प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार को चाहिए कि वह पीएम को यह सलाह दें कि इस तरह के दांव-पेंच से जनता का भरोसा नहीं जीता जा सकता. उन्हें विचारधारा पर बात करनी चाहिए. मेरे विचार में यह कांग्रेस के लिए फ़ायदे का सौदा है कि बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदावार घोषित किया है. कांग्रेस को चाहिए कि वह हर मामले पर इस तरह से प्रतिक्रिया न दे, बल्कि सही मुद्दों को आधार बनाए. अगर आप ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुनते हैं, तो देश ख़तरे में प़ड जाएगा. नरेंद्र मोदी एक तानाशाह हैं. वे सांप्रदायिक मानसिकता के हैं. अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो अल्पसंख्यकों की मुश्किलें बढ़ेंगी. ये सभी मुद्दे कांग्रेस पार्टी को फिर से चुनाव जिताने के लिए काफ़ी हैं. हां, हो सकता है कि कांग्रेस को आगामी चुनावों में बहुमत न मिले, लेकिन वह गठबंधन सरकार तो बना ही सकती है, लेकिन अगर पार्टी इस युक्ति के साथ चलती है कि ईमानदार लोगों पर सवाल उठाकर ख़ुद की छवि को पाक़-साफ़ साबित किया जाए, तो इससे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. यह कांग्रेस की विश्वसनीयता को कमज़ोर करने और मोदी की विश्वसनीयता में इज़ाफ़ा करने वाला क़दम साबित होगा.
निश्चित रूप से हम इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते कि जनरल वी. के. सिंह को नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर बैठना चाहिए था, लेकिन यह उनकी अपनी व्यक्तिगत सोच है. कांग्रेस पार्टी को और परिपक्वता दिखाने की ज़रूरत है. मैं नहीं जानता की पार्टी के बड़े नेता इस दिशा में क्या कर रहे हैं, पार्टी प्रवक्ता क्या कर रहे हैं, लेकिन इस तरह की छद्म कोशिशों को तुरंत बंद करना चाहिए.