आम आदमी गुजरात में मुद्रास्फीति कम होते हुए देखना चाहता है, कम क़ीमत पर सब्जियां मिलें, यह चाहता है. ठीक है, यह सब आपके हाथ में नहीं है, लेकिन कम से कम सरकार तो आपके हाथ में है. क्या आपने नौकरशाही का आकार छोटा कर दिया है? कम से कम उन निचली जगहों पर, जहां से रोज-रोज जनता का वास्ता पड़ता है. मोदी के पास रिकॉर्ड पर दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है. उनका गुडलक है कि विभिन्न घोटालों की वजह से आज, आज़ादी के बाद से, पहली बार कांग्रेस अपनी सबसे खराब स्थिति में है. कांग्रेस पार्टी के लिए यह एक दु:खद बात है. लेकिन, एक ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए, जहां वास्तव में कांग्रेस पार्टी गायब हो जाती है.
चुनाव ख़त्म होने के क़रीब है. नतीजे 16 मई को आ जाएंगे. नतीजे हमेशा अप्रत्याशित होते हैं. कौन जीतता है, कौन हारता है और कौन सत्ता में आता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह मतदाताओं का निर्णय होता है और सभी को उसका सम्मान करना चाहिए. हालांकि, निराशाजनक तथ्य यह है कि जो सत्ता में आने को इच्छुक हैं, उनका स्वयं का व्यवहार, आचरण और भाषा वह नहीं है, जिसकी अपेक्षा की जाती है. ये लोग प्रेरणादायक नहीं हो सकते. पहले नरेंद्र मोदी की बात करें. उन्होंने खुले तौर पर इस चुनाव को एक व्यक्तित्व युद्ध में बदल दिया है. वह अपने भाषणों में खुद के लिए वोट मांगते हैं, न कि भाजपा और उसके मूल्यों के लिए. वह कहते हैं, मुझे वोट दें और मैं आपको शासन दूंगा. ठीक है, स्वीकार किया, लेकिन आप करते क्या हैं? वह कहते हैं, मैं आपको एक कांग्रेस मुक्त भारत दूंगा. उन्हें पता है कि वह क्या बोल रहे हैं? यह कांग्रेस मुक्त भारत क्या है? क्या वह सत्ता में आने के बाद सारे कांग्रेसियों को मार देंगे? वह क्या करने जा रहे हैं? वह यह बोल सकते हैं कि मैं कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दूंगा. चुनाव का मतलब भी यही होता है.
कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब क्या? और, विडंबना यह है कि वह वाराणसी में अपना नामांकन भरने से पहले मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा को माला पहनाते हैं. कौन थे मालवीय जी? वह आज़ादी की लड़ाई के दौरान एक कांग्रेसी थे. मैं समझता हूं कि नरेंद्र मोदी जैसे लोग अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि भारतीय लोकतंत्र का अर्थ क्या है? वह पिछले 13 वर्षों से गुजरात चला रहे हैं. वह कहते हैं, मैं कम से कम सरकार और अधिकतम शासन में विश्वास करता हूं. ठीक है, लेकिन बताइए कि गुजरात में आपने कौन सी सरकार का आकार कम कर दिया है? क्या वहां एक राशनकार्ड तीन दिनों में जारी किया जा सकता है? मैं अहमदाबाद जाता हूं, वहां रहने के लिए क्या एक दिन में अपना ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर सकता हूं? पश्चिमी देशों में ऐसा होता है और यहां भी होना चाहिए. लेकिन, यह स़िर्फ कहने की बातें हैं. गुजरात में भी ऐसा नहीं होता, क्योंकि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की वजह से यह संभव नहीं है. नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मैंने टाटा की नैनो कार के लिए चीजों को आसान बनाया, लेकिन आम आदमी को इससे कैसे मदद मिलती है?
आम आदमी गुजरात में मुद्रास्फीति कम होते हुए देखना चाहता है, कम क़ीमत पर सब्जियां मिलें, यह चाहता है. ठीक है, यह सब आपके हाथ में नहीं है, लेकिन कम से कम सरकार तो आपके हाथ में है. क्या आपने नौकरशाही का आकार छोटा कर दिया है? कम से कम उन निचली जगहों पर, जहां से रोज-रोज जनता का वास्ता पड़ता है. मोदी के पास रिकॉर्ड पर दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है. उनका गुडलक है कि विभिन्न घोटालों की वजह से आज, आज़ादी के बाद से, पहली बार कांग्रेस अपनी सबसे खराब स्थिति में है. कांग्रेस पार्टी के लिए यह एक दु:खद बात है. लेकिन, एक ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए, जहां वास्तव में कांग्रेस पार्टी गायब हो जाती है. अगर ऐसा होता है, तो यह देश के लिए एक दु:खद बात होगी. यह देश की ज़रूरत है कि यहां कम से कम दो से तीन मजबूत पार्टियां हों, जो अन्य पार्टियों पर चेक एंड बैलेंस रख सकें. एक-एक पार्टी का शासन, चाहे वह कांग्रेस का हो या भाजपा का विनाशकारी है. और, एक व्यक्ति का शासन तो और भी ज़्यादा विनाशकारी है.
इंदिरा गांधी आज भी, बांग्लादेश की जीत के बावजूद, अपने तानाशाही तौर-तरीकों और भ्रष्टाचार के लिए जानी जाती हैं. क्यों? लोग व्यक्तिवाद को पसंद नहीं करते हैं. हालांकि, इंदिरा गांधी निश्चित रूप से इस देश की एक बहुत सक्षम एवं योग्य प्रधानमंत्री थीं. नरेंद्र मोदी उनका नाम नहीं ले सकते, लेकिन खुद के लिए इंदिरा गांधी की शैली अपनाने की कोशिश कर रहे हैं और इसी के साथ वह कांग्रेस मुक्त भारत भी चाहते हैं. वह पटना जाकर अलेक्जेंडर और तक्षशिला की बात करते हैं. जाहिर है, उन्होंने इतिहास या भूगोल का अध्ययन नहीं किया था. एक व्यक्ति, जो भारत पर राज करना चाहता है यानी दुनिया की आबादी के सातवें हिस्से पर, के पास बेहतर तथ्य होने चाहिए. एक चीज, जो बदल सकती है, उन्हें उसी के बारे में बोलना चाहिए. उन्हें बोलना चाहिए कि वह एक भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देंगे. अगर वह ऐसा कर पाते हैं, तो यह एक बड़ी बात होगी, लेकिन वह कांग्रेस मुक्त भारत देना चाहते हैं. मुझे नहीं लगता कि उन्हें सही तथ्य मिल पाते हैं. हम केवल आशा कर सकते हैं कि अगर भाजपा या मोदी के नेतृत्व में सरकार आती है, तो एक अच्छा माहौल बनेगा और वे रचनात्मक कामों में व्यस्त हो जाएंगे.
पहले मोदी कहते थे कि वाड्रा मामले में क़ानून अपना काम करेगा, लेकिन अब वह बदले की बात कर रहे हैं. मुझे नहीं लगता है कि उन्होंने अब तक जो किया है, वह सही है. अभी तक उनके पास जो ग्राउंड फीडबैक आ रहे हैं, वे अच्छे नहीं हैं. इसलिए चिड़चिड़ापन दिख रहा है. यही कारण है कि प्रियंका गांधी एक बयान देती हैं और पूरी की पूरी भाजपा उन पर बयानबाजी शुरू कर देती है. मैं यह सब समझ नहीं पा रहा हूं और यह भारत जैसे परिपक्व लोकतंत्र में नहीं होना चाहिए. 1952 से अब तक 62 साल हो गए, चुनाव होते हुए. मैं सोचता हूं कि हमें परिपक्व होना पड़ेगा. चुनाव लगभग ख़त्म हो गया है. अगले चुनाव से पहले हमारे पास सभ्य तरीके से चुनाव का संचालन करने के लिए नियम होने चाहिए. किसी भी टेनिस मैच या चुनाव में एक जीतता है और एक हारता है. इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए. जो सत्ता में नहीं आता, वह भी विपक्ष में बैठता है. अब भी यही होगा. मैं कामना करता हूं कि देश को नेतृत्व देने के आकांक्षी लोग भविष्य के चुनावों में अपने मुद्दे और विकसित करेंगे तथा बेहतर भाषा का उपयोग करेंगे.
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