प्रियंका गांधी से उनकी दोस्त ने कहा कि राहुल को आदमियों की पहचान नहीं है. इस पर प्रियंका ने कहा कि यह ग़लत है. राहुल को आदमियों की पहचान है, पर उनकी कमजोरी यह है कि वह जिसे पसंद नहीं करते, उसके मुंह पर कह देते हैं, जबकि मैं कहती नहीं हूं. प्रियंका का मानना है कि राहुल टैक्टफुल नहीं हैं. प्रियंका के इस मित्र का यह भी कहना है कि प्रियंका मां एवं भाई की समस्या और अंतर्विरोध समझती हैं. कांग्रेस का हर कार्यकर्ता कह रहा है कि राहुल फेल हो गए हैं. प्रियंका से तो लोगों ने यहां तक कहा कि बीमार को तो आप बचा सकती हैं, पर मुर्दों को कैसे बचाएंगी? प्रियंका लोगों की चिंताएं सुनती हैं. उनकी अपनी स्थिति भी पिछले कुछ दिनों में बदली है. पहले वह कहती थीं कि राजनीति में नहीं आएंगी, पर अब वह आएंगी.
राहुल की बहन प्रियंका गांधी, जो अब तक लगातार कहती रही हैं कि वह राजनीति में कभी नहीं आएंगी. दरअसल, राहुल गांधी के साथ प्रियंका का रिश्ता भी अजीब है. सारे कार्यकर्ता चाहते हैं कि प्रियंका आएं, पर प्रियंका का मानना है कि अगर वह बिना राहुल को सफलता मिले राजनीति में आती हैं, तो लोग मानेंगे कि उन्होंने राजनीति से राहुल गांधी को बाहर कर दिया और यह स्वयं प्रियंका का भी मानना है. उन्होंने अपने एक अंतरंग मित्र से कहा, मैं अगर अभी आती हूं, अगर राहुल को सफलता न मिले, तो इसे राहुल को डिस्लाज करना माना जाएगा. प्रियंका यह जानती और मानती हैं कि जिस दिन वह कांग्रेस में आ गईं, एक भी आदमी राहुल के पास नहीं जाएगा. उस दिन राहुल प्रियंका की जगह होंगे और आइसोलेट हो जाएंगे. प्रियंका ने अपने नज़दीकी लोगों से कहा कि यह ग़लत है कि राहुल उनके राजनीति में आने के ख़िलाफ़ हैं. दरअसल, राहुल ने उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा था और यह भी कहा कि वह केंद्र में महामंत्री बन जाएं और उनके साथ घूमें. सोनिया गांधी को भी इस पर कोई ऐतराज नहीं है. पर मजे की बात यह है कि सोनिया गांधी हां भी नहीं कह रही हैं. शायद वह भी इस स्थिति को समझ रही हैं कि अगर प्रियंका राजनीति में आएंगी, तो राहुल गांधी को कोई नहीं पूछेगा. सोनिया गांधी भी अंतत: रिटायरमेंट लेना चाहती हैं. इसलिए वह सितंबर में अध्यक्ष पद छोड़ रही हैं. इसकी शुरुआत भी उन्होंने कर दी है. पिछले छह महीने से उन्होंने सारे अधिकार राहुल गांधी को दे दिए हैं. राहुल अपने साथियों से कहते हैं कि उनके पास अधिकार ही नहीं हैं. शायद वह मां के पूर्ण रिटायरमेंट के बाद ही खुद को अधिकार संपन्न मान पाएंगे, ऐसा उनके दोस्तों का कहना है. राहुल अक्सर कहते हैं कि मम्मी के लोग उन्हें कुछ करने ही नहीं देते. मम्मी के लोगों से सीधा मतलब अहमद पटेल, जनार्दन द्विवेदी और मोती लाल बोरा से है.
प्रियंका गांधी से उनकी दोस्त ने कहा कि राहुल को आदमियों की पहचान नहीं है. इस पर प्रियंका ने कहा कि यह ग़लत है. राहुल को आदमियों की पहचान है, पर उनकी कमजोरी यह है कि वह जिसे पसंद नहीं करते, उसके मुंह पर कह देते हैं, जबकि मैं कहती नहीं हूं. प्रियंका का मानना है कि राहुल टैक्टफुल नहीं हैं. प्रियंका के इस मित्र का यह भी कहना है कि प्रियंका मां एवं भाई की समस्या और अंतर्विरोध समझती हैं. कांग्रेस का हर कार्यकर्ता कह रहा है कि राहुल फेल हो गए हैं. प्रियंका से तो लोगों ने यहां तक कहा कि बीमार को तो आप बचा सकती हैं, पर मुर्दों को कैसे बचाएंगी? प्रियंका लोगों की चिंताएं सुनती हैं. उनकी अपनी स्थिति भी पिछले कुछ दिनों में बदली है. पहले वह कहती थीं कि राजनीति में नहीं आएंगी, पर अब वह आएंगी. कब आएंगी, यही फैसला प्रियंका गांधी को करना है और कांग्रेस के कार्यकर्ता इसका इंतज़ार कर रहे हैं. राहुल गांधी कहते हैं कि प्रियंका को उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनने के बाद केंद्र में आना चाहिए. पर प्रियंका को लगता है कि जिसने भी राहुल को यह सुझाव दिया है, वह उन्हें (प्रियंका) राजनीति में असफल करना चाहता है. प्रियंका को लोग सलाह दे रहे हैं कि उन्हें महामंत्री-संगठन प्रभारी बनकर राजनीति में आना चाहिए. अंदाज़ा यह है कि मधुसूदन मिस्त्री जैसों ने राहुल के दिमाग में प्रियंका को उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाने का आइडिया डाला है.
सोनिया यह मानती हैं कि नरेंद्र मोदी को न नीतीश रोक पाएंगे और न मुलायम सिंह. स़िर्फ राहुल गांधी रोक पाएंगे. बाकी कांग्रेस नेताओं का मानना है कि उन्हें केवल प्रियंका रोक सकती हैं. राहुल तो पहले दौर में उन्हें 2025 तक प्रधानमंत्री बने रहने का रास्ता दे रहे हैं. कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि अब अकेले प्रियंका भी नहीं रोक सकतीं, क्योंकि आज की राजनीतिक सच्चाइयां बदल गई हैं. उन्हें क्षेत्रीय ताकतों से गठजोड़ या समझौता करना पड़ेगा, तभी नरेंद्र मोदी का रास्ता रोकने का उपाय किया जा सकता है. इसके लिए वे राहुल से ज़्यादा प्रियंका गांधी को उपयुक्त मानते हैं. एक बड़े नेता का कहना है कि अरविंद केजरीवाल, मुलायम सिंह, नीतीश कुमार, लालू यादव, ओम प्रकाश चौटाला आदि से गठबंधन करना अब आवश्यक हो गया है. साथ ही जगन मोहन रेड्डी और ममता बनर्जी से भी संबंध दोबारा बनाने पड़ेंगे. इस नेता का कहना है कि 1991 की भाजपा को कांग्रेस नहीं हटा पाई या नहीं रिप्लेस कर पाई, 1993 की सपा एवं बसपा को रिप्लेस नहीं कर पाई, बल्कि कांग्रेस सिकुड़ती और हारती चली गई. तब यह कैसे माना जाए कि कांग्रेस अकेले नरेंद्र मोदी का मुक़ाबला कर लेगी. उन्हें लगता है कि इन सब लोगों को साथ लेकर ही नरेंद्र मोदी का म़ुकाबला किया जा सकता है.
बिहार में एक अजीब स्थिति है. नीतीश कुमार कांग्रेस के समर्थक हैं, वहीं लालू यादव कांग्रेस के विरोधी हो गए हैं. सवाल यह है कि अगले पांच सालों में राहुल क्या करेंगे? अगर प्रियंका साथ आईं, तो कांग्रेस के नेताओं को कुछ आशा है. इसमें अंतर्विरोध किस तरह के विकसित होंगे, इस पर भी कांग्रेस नेताओं को डर है. वैसे कांग्रेस नेताओं का मानना है कि बहन यानी प्रियंका गांधी इस राजनीति, जिसमें नरेंद्र मोदी का तूफान चल रहा है, को रोकने में ज़्यादा असरदार साबित होंगी. कांग्रेस में आशा है कि प्रियंका गांधी के आने से कार्यकर्ताओं में उत्साह आ जाएगा. दूसरा, उन्हें अच्छी राजनीतिक सलाह दी जा सकती है, जो राहुल गांधी को नहीं दी जा सकती, क्योंकि राहुल सुनते ही नहीं हैं. जैसे बिहार में किसके साथ जाना चाहिए, जगन को वापस लाना चाहिए. अब एक नई जानकारी मिली है कि प्रियंका गांधी पिछले चुनाव में चाहती थीं कि राहुल गांधी अखिलेश यादव से मिलने लखनऊ जाएं और साथ में चाय पीकर आ जाएं. वह खुद मायावती से मिलने खामोशी से ऑटो रिक्शा में बैठकर जाना चाहती थीं, पर राहुल गांधी की नाराज़गी की वजह से नहीं गईं. उनके बारे में मानना है कि वह पॉलिटिकल एलायंस के लिए खुली हैं. शरद पवार की बेटी से उनकी दोस्ती हो सकती है. कांग्रेस के लोगों का मानना है कि प्रियंका राजनीति में नाक आगे करके नहीं चलेंगी, जबकि राहुल आज ऐसा ही कर रहे हैं. कांग्रेस को दोबारा सत्ता में आने के लिए एक बड़ा कोलेशन बनाने की ज़रूरत है, जिसे कांग्रेस नेताओं की राय में स़िर्फ प्रियंका बना सकती हैं.
कांग्रेस के कुछ नेताओं का यह भी मानना है कि कुछ प्रदेश वहां के नेताओं के लिए छोड़ देने चाहिए, जैसे ममता बनर्जी के लिए बंगाल छोड़ दें, जगन रेड्डी के लिए आंध्र छोड़ दें, शरद पवार के लिए महाराष्ट्र छोड़ दें और इनकी पार्टियों को कांग्रेस में मर्ज कर लें. पर इन नेताओं का मानना है कि इस स्थिति को स़िर्फ प्रियंका संभव कर सकती हैं, राहुल गांधी संभव नहीं कर सकते. बहुत सारी चीजों को दोबारा परिभाषित करने की ज़रूरत है, जिससे कांग्रेस की रणनीति सामने आएगी. कांग्रेस की नाक के नीचे से ब्राह्मण एवं दलित वर्ग भारतीय जनता पार्टी और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नेताओं के पास चला गया. इन वर्गों को वापस लाने में स़िर्फ और स़िर्फ प्रियंका गांधी सफल हो सकती हैं. पर यह कांग्रेस के नेताओं का जंगल विलाप है. वे रो रहे हैं, वे चीख रहे हैं, वे हाथ जोड़ रहे हैं, दोबारा राजनीति में ख़ड़े होना चाहते हैं. पर किसी भी तरह उनकी बात न सोनिया गांधी सुन रही हैं, न राहुल गांधी सुन रहे हैं और प्रियंका गांधी अनमने मन से सुन रही हैं. इस कांग्रेस का बिखरना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है, ऐसा खुद कांग्रेस के नेताओं का कहना है. पर जंगल में रोना हो रहा है. अरण्य रुदन हो रहा है. न कोई सुन रहा है, न कोई आंसुओं को देख रहा है.