जब 1977 में इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं, तो उन्होंने हार का दोष किसी और पर नहीं मढ़ा था. उसके बाद वह देश भर में घूमीं और उन्होंने लोगों से आपातकाल लगाने के लिए माफी मांगी. साथ ही यह वचन भी दिया कि ऐसा दोबारा नहीं होगा. इसका परिणाम यह हुआ कि 1980 में वह दोबारा चुनी गईं. अब सोनिया गांधी को पूरे देश का दौरा करना चाहिए, उनकी सरकार में हुए घोटालों के लिए माफी मांगनी चाहिए और लोगों को यह वचन देना चाहिए कि जो गलत है, उसे सजा मिलेगी और जब अगली बार उनकी सरकार बनेगी, तो ऐसी चीजें दोबारा नहीं होंगी.
नई सरकार का काम करने का अंदाज़ निराला है. यहां न तो सरकार की ओर से बहुत घोषणाएं हो रही हैं और न प्रधानमंत्री के अलावा अन्य मंत्री कोई बयान दे रहे हैं. इस वजह से यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है कि सरकार की सोच क्या है और आख़िरकार सरकार के अंदर हो क्या रहा है. हालांकि सरकार का रोजमर्रा का काम हमेशा की तरह चल रहा है, जो वास्तव में आम आदमी की मानसिकता पर कोई प्रभाव नहीं डाल रहा है. हम देख रहे हैं कि मानसून के दौरान सामान्य रूप से सब्जियों के दामों के अलावा महंगाई कम होने के और कोई संकेत दिखाई नहीं पड़े हैं.
प्रधानमंत्री एक बड़े प्रतिनिधि मंडल के साथ चार दिनों की यात्रा पर जापान जा रहे हैं. उनके साथ इस यात्रा में व्यवसायिक घरानों के लोग भी होंगे. जापान भारत का अच्छा व्यापारिक सहयोगी रहा है और वह भारत में बड़ा निवेश करने का इच्छुक है. प्रधानमंत्री के जापान के साथ अच्छे संबंध हैं. वह उसे कितना, कहां और किस तरह निवेश करने की अनुमति देंगे, यह देखने वाली बात होगी. उदाहरण के लिए जापान दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे में निवेश के लिए इच्छुक था. वह इस शर्त पर 4 से 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करने के लिए तैयार था कि पूरे रूट के निर्माण का ठेका जापानी कंपनियों को दिया जाए, लेकिन यह शर्त भारत सरकार को मंजूर नहीं थी.
प्रधानमंत्री एक बड़े प्रतिनिधि मंडल के साथ चार दिनों की यात्रा पर जापान जा रहे हैं. उनके साथ इस यात्रा में व्यवसायिक घरानों के लोग भी होंगे. जापान भारत का अच्छा व्यापारिक सहयोगी रहा है और वह भारत में बड़ा निवेश करने का इच्छुक है. प्रधानमंत्री के जापान के साथ अच्छे संबंध हैं. वह उसे कितना, कहां और किस तरह निवेश करने की अनुमति देंगे, यह देखने वाली बात होगी.
क्या अब इस नीति में कोई बदलाव होगा, हमें नहीं मालूम. टोक्यो में क्या होगा, हमें नहीं मालूम. सबसे विवादास्पद सवाल यह है कि निवेश भारत में होने की प्रतीक्षा हो रही है, लेकिन किन शर्तों और किस क़ीमत पर, इसका आकलन किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री के सलाहकार के रूप में एक कुशल अर्थशास्त्री का होना ज़रूरी है, जो उन्हें बता सके कि किस तरह का निवेश या सहयोग देश के लिए फ़ायदेमंद है और कौन-सा नहीं. निवेश की तरह दिखने वाले उस विदेशी पैसे का कोई मतलब नहीं है, जिस पर कोई ब्याज न देना हो. लेकिन बाद में लाभांश की स्वदेश वापसी इतनी बड़ी है कि पैसा ब्याज पर लेना ही बेहतर है. यह गणना कुछ प्रबुद्ध अर्थशास्त्री ही कर सकते हैं. मुझे नहीं मालूम है कि वर्तमान में प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार कौन है, लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री के साथ जापान दौरे पर मार्गदर्शन के लिए जाना चाहिए.
दूसरी तरफ़ विपक्ष ने लड़ाई शुरू होने के पहले ही हथियार डाल दिए. कोई नहीं समझ पा रहा है कि कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है? यह एक तथ्य है कि सोनिया गांधी की कांग्रेेस पार्टी पर बहुत मजबूत पकड़ है. ऐसी पकड़ अब तक किसी कांग्रेस अध्यक्ष की नहीं रही है. वह तक़रीबन 15 सालों से कांग्रेस की अध्यक्ष हैं, जो कि इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल से कहीं ज़्यादा है. लेकिन, अब उनकी पार्टी पर पकड़ बिना किसी आहट के कमजोर हो रही है. भारत की कार्य संस्कृति और परिस्थितियों से रूबरू हुए बगैर उन्होंने कांग्रेस की कमान थामी और जिस तरह पार्टी को चलाया, वह सराहनीय है. लेकिन, चुनाव में हार के बाद समीक्षा के लिए एंटनी कमेटी का गठन किया जाना और उसके बाद हार का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ना अच्छे नेतृत्व के लक्षण नहीं हैं.
जब 1977 में इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं, तो उन्होंने हार का दोष किसी और पर नहीं मढ़ा था. उसके बाद वह देश भर में घूमीं और उन्होंने लोगों से आपातकाल लगाने के लिए माफी मांगी. साथ ही यह वचन भी दिया कि ऐसा दोबारा नहीं होगा. इसका परिणाम यह हुआ कि 1980 में वह दोबारा चुनी गईं. अब सोनिया गांधी को पूरे देश का दौरा करना चाहिए, उनकी सरकार में हुए घोटालों के लिए माफी मांगनी चाहिए और लोगों को यह वचन देना चाहिए कि जो गलत है, उसे सजा मिलेगी और जब अगली बार उनकी सरकार बनेगी, तो ऐसी चीजें दोबारा नहीं होंगी. लोगों के पैसों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त क़दम उठाए जाएंगे. यही लोगों का विश्वास जीतने का एकमात्र रास्ता है. मनमोहन सिंह की अक्षमता या राज्य के नेताओं के बीच लड़ाई या निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं द्वारा पुरजोर कोशिश न करने आदि को हार का कारण बताना समस्या से भागना है.
यदि कांग्रेस पार्टी अभी भी गंभीर है और मुझे लगता है कि वह गंभीर है, इसलिए उसे अपना घर सही रखना होगा. देश को दो पार्टियों की आवश्यकता है. सरकार को सही तरीके से चलाने के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना ज़रूरी है. यदि कांग्रेस का रवैया सोनिया गांधी के व्यक्तित्व की रक्षा के लिए दूसरे पर दोष म़ढ़ने वाला है, तो वह परेशानी को पूरी तरह समझ नहीं पा रही है. यह पार्टी के लिए ठीक नहीं है. जितनी जल्दी कांग्रेस इस बात को समझेगी, वह उसके और देश, दोनों के लिए बेहतर होगा.