इस विधि विधान को कौन मानता है कि विधाता का रचा ही अंतिम सत्य है। डा. राम मनोहर लोहिया जानते हुए भी नहीं जानते थे जो यह मानते थे कि ‘जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं’ और दुष्यंत कुमार, जो अपनी गजलों से आज भी उसी ताजगी के साथ याद किये जाते हैं। लेकिन लोहिया की कल्पना से यह दूर रहा होगा कि आने वाले वर्षों में ऐसी सत्ता और ऐसा शासक भी आएगा जो धतकरम से लोकतंत्र की आत्मा में छेद करके उसकी कमजोरियों का भरपूर आनंद लूटेगा। डा. लोहिया काश ऐसी कल्पनाएं कर पाते और उसका निदान भी बता पाते। ऐसे शासक की मार या कहें लोकतंत्र के घोल में मिला कर पिलाया नशा आधे देश को अपनी गिरफ्त में तो ले ही चुका है। लेकिन आप देखिए कि पहली बार इस देश में यह भी हुआ है कि राजनीति अपने ही चरित्र से डरी है। सारे राजनीतिक दल उन सांपों की भांति हो चले हैं जो कितनी ही बीन बजे, पिटारे से नहीं निकलते। सबसे बुरी मार पड़ी है कांग्रेस पर। कांग्रेस आज एक न समझ आने वाली पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व ऐसे रास्तों में लौट लौट कर उठ बैठ रहा है जो अपने ही अंतर्विरोधों का शिकार बनता जा रहा है। जैसे नौसीखियों के हाथों में लगाम हो।
डा. लोहिया भारतीय राजनीति के कितने ही धुरंधर रहे हों लेकिन भविष्य की जो बात (कांग्रेस के संदर्भ में) हरिशंकर परसाई कह गये उसका लेखा तो आज शिला पर हम देख ही सकते हैं। परसाई जी लिखते हैं, ‘कांग्रेसियों से आप उम्मीद मत कीजिए। यह नस्ल अब खत्म हो रही है। आगे गड़ाये जाने वाले कालपत्र में एक नमूना कांग्रेस का भी रखा जाएगा, जिससे आने वाले यह जान सकें कि पृथ्वी पर एक प्राणी ऐसा भी था। गैण्डा तो अपना अस्तित्व कायम रखे है, लेकिन कांग्रेसी नहीं रख सका।’ अब इसके बाद भी, किसे संदेह रह जाना चाहिए। परसाई जी का समय क्या था। वे कब गये यह जानने वाले जानते हैं। मुझे लगता है उनकी यह सटीक भविष्यवाणी तो अब किसी के लिए भी चुनौती जैसी नहीं रह गयी। एक राष्ट्रीय पार्टी जो न म.गांधी के मकसद को पूरा कर पायी (गांव गांव जाकर लोकसेवक के रूप में), जो न लोहिया के सपनों को साकार कर पायी (जिंदा कौम के रूप में) और न सामान्य जन की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने लायक बची। यह भी सत्य है कि मोदी की चालें जानता ही कौन था। मनमोहन सिंह ने मोदी के लिए महज़ एक शब्द रचा – ‘डिज़ास्टर’। एकदम सटीक लगा निशाने पर। लेकिन उन्हें भी क्या पता रहा होगा कि कांग्रेस के चरित्र पर मोदी लगातार हथौड़ों की ऐसी चोट करेंगे जो गरीब हिंदुस्तान, जैसे सदियों तक के लिए ‘गुनाहगार कांग्रेस’ (?)से बचता फिरेगा। ये गरीब हिंदुस्तान नहीं जानता कि राजनीति को दलदल तक पहुंचाने का काम और किसने केवल मोदी ने ही किया है। लेकिन बाजारीकरण में पकी आज की कौम ही इतनी स्वार्थी हो चुकी है कि राजनीति का बदलता चरित्र पढ़ने की न तो उसे फुरसत है और न वह चाहती है।
तो ऐसे में राहुल गांधी क्या करेंगे। वे राजनीति के ‘डिजीटलीकरण’ की औलाद हैं। उन्होंने सड़कों की राजनीति केवल तस्वीरों में देखी सुनी है। दुर्भाग्य यह है कि आज कांग्रेस में कोई ऐसा नहीं जो मरघट में बैसाखी पर बैठी कांग्रेस में जान फूंक सके। कोरोना के इस भयावह दौर में मोदी सरकार चारों खाने चित्त है। पर है कोई माई का लाल विरोधी नेता या राजनीतिक दल जो अपनी रीढ़ दिखा सके। कोई नहीं है क्योंकि मोदी ने सबकी रीढ़ पर सबसे पहले हमले किए हैं। राहुल गांधी को प्रासंगिक बनाने पर आज हर कोई तुला है। हमारे कुछ बुद्धिजीवी, कुछ मीडियापर्सन, कुछ चैनल और कुछेक वेबसाइट्स। लेकिन दुखद और चिंता की बात यह है कि इनकी कोई पहुंच वहां तक नहीं है जिसे हम गांधी का समाज कहते हैं। बिना यह जाने कि राहुल गांधी को राजनीति की समझ कितनी गहरी है। हमारे पत्रकार राहुल की इमेज को सुधारना चाहते हैं। वे बार बार कहते हैं कि राहुल गांधी ने पहले बता दिया था, या सुझा दिया था। क्या राहुल इतने परिपक्व हो गये हैं। अगर हो ही गये हैं तो उनका आत्मविश्वास कहां गोल है। कांग्रेस इतने सालों में भी अभी तक क्यों ढुल मुल है। जो पार्टी मोदी शासन में अपने पैरों पर स्वयं नहीं खड़ी हो सकी उसके लिए दूसरे पैरवी क्यों कर रहे हैं। बेबाक प्रश्न है। सच यह है कि कोई किसी को खड़ा नहीं कर सकता। धीरे धीरे कांग्रेस कालपात्र में गड़ाई जाने वाली पार्टी स्वयं बनती दिख रही है।कोई चमत्कार न हुआ तो यही सत्य होगा। यों यह कह देना मुफीद है कि आज का वक्त वह वक्त है जहां मोदी सबसे कमजोर हैं और उनका पूरा मंत्रिमंडल बचाव की मुद्रा में है। देशभक्त और सच्चा राजनीतिज्ञ ऐसे विपदा के समय ही स्वयं को खड़ा करता है। पर यहां तो पूरी बिछी बिसात का ही रंग उतर रहा है।
पिछले रविवार को राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे ने ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर कांग्रेस के विषय में संतोष भारतीय के साथ बातचीत की। मौजूदा कांग्रेस की दुविधाओं और परिदृश्य पर अभय जी ने बहुत बढ़िया आकलन किया। उन्होंने कहा सारी समस्या शीर्ष नेतृत्व में है। संतोष जी ने हमें बताया कि यूट्यूब ने उन्हें पंद्रह दिनों के लिए बैन कर दिया है। आरोप यह है कि उनके द्वारा ‘unscientific’ मसाला परोसा जा रहा है। बहुत हैरतअंगेज आरोप है, जनाब यह तो। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले बरस जो दुनिया भर के 144 पत्रकारों की जासूसी फेसबुक इत्यादि द्वारा की गयी थी उसमें हिंदुस्तान से केवल उनका और छत्तीसगढ़ के किसी स्ट्रिंगर का नाम था। यह भी आश्चर्यजनक है। पर स्वयं संतोष जी ने फोन पर बताया तो सत्य ही है। बहरहाल, अभय जी से यह बातचीत संतोष जी ने फेसबुक लाइव पर की। अगले रविवार को भी सम्भवतः फेसबुक लाइव पर ही हो।
कोरोना पर एक खास बातचीत अमरीका के एक नामी गिरामी डाक्टर फहीम युसुफ से ‘वायर’ के लिए आरफा खानम शेरवानी ने की। खास इसलिए कि बहुत ही उपयोगी और जानकारीपूर्ण उनके जवाब थे। कुछ नयी रोचक बातें।हर किसी को सुनना चाहिए। रवीश कुमार बीमार हैं। उन्होंने स्वयं बताया। लेकिन अब तो काफी दिन हो चले हैं। उनके प्रशंसक बेताब हैं। प्राइम टाइम भी बे-रस हो चला है। इस महामारी ने जो दृश्य दिखाएं हैं, वह भयावह हैं। सच जो सामने आया है वह यह कि पूरी दुनिया में हम सबसे बड़ा मुल्क होते हुए भी सबसे अधिक पिछड़े हैं। आज गांधी की वह बात हर किसी को अपनी स्मृति से बाहर लानी चाहिए कि यदि इस मुल्क को गावों से चलाया गया होता तो कहानी कुछ और होती। आज हमारे पास रोने के सिवा बचा ही क्या है। देखना है कि यह महामारी क्या संदेश देकर जाती है और राजनीति का परिदृश्य कितना बदलता है !
बसंत पांडे