हमारे देश में लगभग दुनिया के सभी धर्मों के लोगों का रहना हजारों सालों से है. और उन सभी धर्मों के विभिन्न त्योहार जो कभी आनंद मनाने के लिए मनाएं जाते रहे हैं . लेकिन आजकल विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीतिक वासना के लिए उन्हें सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के हथकंडो के रूप में मनाने की शुरुआत की है. कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर दहीहंडी को स्पॉन्सर करने की होड़ लग गई है . वैसे ही रामनवमी के दौरान बंगाल में पिछले साल छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में त्रिशूल और तलवार देकर जुलूसों को देख कर ही . इस साल आने वाले रामनवमी के दौरान लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान की बंगाल की नेत्री मनिषा बैनर्जीने सोशल मीडिया पर बंगाल के लोगों को एक निवेदन किया है कि “एक हफ्ते के बाद आने वाली रामनवमी के दिन शांतिपूर्ण तरीके से मनाई जाए.”


वैसे ही दो हफ्ते पहले उत्तर प्रदेश में संपन्न होली के दौरान पुलिस के द्वारा मस्जिदों को ढकना, और मुस्लिम समुदाय के लोगों को आगाह करना की होली के दौरान वह अपने घर में ही रहे. और सबसे हैरानी की बात दुकानदारों को अपना नाम दुकान के सामने लिखने के लिए कहना. कौन से कानून मे आता है ? महाशिवरात्रि के दौरान कावड लेकर चलने वाले भक्तो के लिए पुलिस – प्रशासन जिस चुस्ती के साथ उत्साहित हो कर काम कर रहे थे काश वैसा ही उत्साहित होकर अन्य धर्मों के त्योहारों में भी करेंगे तो कितना अच्छा होगा ? वैसे ही फरवरी में संपन्न हुआ कुंभ मेले को वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा ने हथिया कर, उसे अपने दल का कार्यक्रम जैसा बना लिया था. और लगातार विरोधी दलों को कुंभ विरोधी बोलते रहना, जब की इसी कुंभ के लिए दिल्ली स्टेशन की भगदड़ हो या प्रयागराज मे हुई भगदड़ मे मारे गए लोगों के बारे में बोलना गुनाह हो गया था . हालांकि मरने वाले सभी लोग हिंदू धर्म के ही थे. लेकिन उनके मरने के बारे में बात करना हिन्दू विरोधी, यह कौन सा हिंदुत्व है ?


इतने वर्षों में विभिन्न प्रदेशों में अलग – अलग दलों की सरकार सत्ता में रही हैं ! लेकिन पुलिस के रवैये को लेकर किसी भी सरकार ने पुलिस की ट्रेनिंग में ऐसा कौन तत्व या खामी है ? जो कि सताए जाने वाले समुदाय को लेकर पुलिस इतनी असंवेदनशील कैसे है ? आज ही एक और विडियो देखा हूँ. जिसमें यूपी के किसी रेल्वे स्थानक के प्लॅटफॉर्म पर शायद अपनी गाड़ी के इंतजार में रातमे कोई प्रवासी चादर ओढकर सोया हुआ है. और गणवेश में एक पुलिस कर्मी उस सोये हुए प्रवासी के पैर पर जुते से रगडकर उठा रहा है. यह जो अमानवीयता है, यह क्या शरिरपर गणवेश परिधान करने के बाद आती है ? या उसी प्रकार के पुलिस ट्रेनिंग दी जाती है ?
अंग्रेजो के जमाने में अंग्रेज अधिकारी के नेतृत्व में काम करना पड़ता था, तो हो सकता है, अंग्रेजो ने विशेष तौर पर कहा होगा “कि देशी लोगों को डरा कर रखों. लेकिन आज अंग्रेजो को इस देश को छोड़कर 78 साल से भी अधिक समय हो गया है. और उसके बाद कांग्रेस, संविद, जनता पार्टी, बीएसपी, सोशलिस्ट और अब बीजेपी इनमे से एक को भी ऐसा नहीं लगा “कि पुलिसकर्मियों को, जो कि उसी प्रदेश के विभिन्न जातियों और संप्रदाय से आने वाले होने के बावजूद, यह इतने आम जनता के विरोध में क्यों होते हैं ? मथुरा कांड सत्तर के दशक में उत्तर प्रदेश की पुलिसकर्मियों के द्वारा पुलिस स्टेशन के भीतर मथुरा नाम की महिला के साथ किए गए जधन्य कांड आज पचास वर्षों बाद भी मुझे याद आ रहा है. अभी हाल ही में हाथरस (वुलगढी), बलरामपुर तथा विभिन्न जगहों के महिलाओं के उपर किए गए अत्याचार के बाद पुलिस की भूमिका काफी संदेहास्पद रही है.


भारत के आजादी के आंदोलन में संघ परिवार एक स्टेटेजी के तहत शामिल नहीं रहने के बावजूद. हिंदूत्ववादी तत्व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश आजादी के पहले से ही करते रहे हैं . और आजादी के बाद भी आज बदस्तूर जारी है. यह संघठन सौ वर्ष पुराना है. और इन सौ वर्ष में दलित,पिछडीजातिया, आदिवासी और महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं करते हुए आज वह भारत के इन सब क्षेत्रों में अपना प्रभाव बनाने में कामयाब हुए है. और 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय हो या उसके तीन साल पहले भागलपुर ( 24 अक्तुबर 1989 ) दंगे के दौरान और तेरह साल बाद गुजरात (27 फरवरी 2002) और इसके पहले मुरादाबाद, मेरठ तथा 2013 मुजफ्फरनगर, दंगों की शुरुआत किसने की ? यह सवाल आजादी के बाद लगातार उठाया जाता है.

उन दंगों का राजनीतिक लाभ किसे मिला है ? वर्तमान समय में भारत के केंद्र में और कुछ राज्यों में राज कर रही भारतीय जनता पार्टी पचहत्तर साल के ध्रुवीकरण की राजनीति से सबसे लाभान्वित पार्टी हैं. वैसे इस पार्टी का स्थापना दिवस छ अप्रैल को मनाया जा रहा है . मेरी इनके कार्यकर्ताओं और नेताओं को विनम्र प्रार्थना है कि थोड़ा आत्ममंथन करेंगे तो पता चल जाएगा कि आपकी पार्टी की 44 साल की कूल राजनीतिक गतिविधियाँ गरिब – गुर्बा, दलित – आदिवासीयो तथा महिलाओं के लिए ऐसा कौन-से काम या उनके प्रतिनिधियों को सुधारने के लिए कोई विशेष उपलब्धि गिना सकते ? सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने के अलावा और क्या योगदान है ?
2014 मे सत्ता में आने के बाद दिन-प्रतिदिन सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए हिजाब, गोहत्याबंदी , ऐतिहासिक जगहों पर विवाद खड़े करना, फिर चुनाव प्रचार में मंगलसूत्रो से लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ उनके कपडों से लेकर रहन-सहन तथा खाने – पीने को लेकर गलतबयानी करना कौनसा राष्ट्रीय एकात्मता का संदेश दे रहे हैं ? और इसी तरह की मानसिकता रेलसुरक्षा के लिए तैनात एक पुलिसवाले ने जब अलग तरह के पहनावे के चार लोगों को चलतीं हुई रेल मे अपने सर्विस पिस्तौल से मार दिया . देश के प्रमुख पदाधिकारी के द्वारा इस तरह की बयानबाजी की जाती हो ? तो अन्य लोगों से कैसी उम्मीद कर सकते ?

क्योंकि लोग तो अपने नेताओं को देख कर ही अपना आचरण करते हैं . यह जो नफरत दिन-प्रतिदिन बढते हुए देख रहा हूँ . आज ईद की नमाज को लेकर कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं को ईद की नमाज रस्तों पर नहीं होगी जैसे बयानबाजी करते हुए, देखकर लगा कि अगर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ बोलने से बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की सहानुभूति बटोरने के सिवा और कोई बात नहीं है . अब बहुसंख्यक समुदाय के लोगों ने ही सोचना है कि हमें भड़काने वाले का उद्देश्य क्या है ? अगर वह शुध्द धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए बोल रहे हैं तो उसके बहकावे में हमे क्यो आना चाहिए ? क्योंकि उसे तो सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए लोगों को उकसाकर लाभ लेना है. तो ऐसे लोगों को उनकी जगह दिखाने का समय आ गया है . कबतक इनके बहकावे में आकर हम अपनी जिंदगी दाव पर लगाएंगे ?

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