कौन नहीं चाहता कि राज्य फले-फूले, विकास हो, रोजगार बढ़े और समृद्धि आए, लेकिन यह भी सोचना ही पड़ेगा कि किस कीमत पर ऐसा किया जाना चाहिए. मध्यप्रदेश सरकार एक तरफ जहां जनभागीदारी के साथ नमामि देवी नर्मदे यात्रा कर रही है, वहीं ठीक इसके उलट जनता के हिस्से के पानी को बहुराष्ट्रीय कंपनी के हवाले किया जा रहा है.
होशंगाबाद जिले के बाबई के मोहासा औद्योगिक क्षेत्र में कोकाकोला कंपनी के मेगा प्लांट की आधारशिला रखने का काम शिवराज सरकार के उद्योग मंत्री राजेन्द्र शुक्ला के द्वारा किया गया. साथ ही यह दावा किया गया कि इस प्लांट के लगने से क्षेत्र के 500 लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मिलेगा और इसके पांच गुना लोग अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार से जुड़ेंगे. इस प्लांट की लागत 750 करो़ड है.
होशंगाबाद जिले के बाबई में और खासकर नर्मदा के समीप इस प्लांट के स्थापित होने से स्थानीय लोग नर्मदा के संभावित प्रदूषण और जीवन जीने के आधार जल, जंगल और जमीन के साथ-साथ खेती-किसानी के खत्म होने को लेकर भयभीत हैं. लिहाजा इसका विरोध आरंभ हो गया है. कारण यह कि नर्मदा पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. लोगों का कहना है कि नर्मदा मैया हम सब की आस्था की केंद्र औऱ जीवनदायिनी हैं और इसे किसी भी कीमत पर प्रदूषित नहीं होने देंगे और खेती बर्बाद नहीं होने देंगे.
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की बाबई तहसील में भाजपा सरकार मुहासा औद्योगिक क्षेत्र बना रही है, जिसमें सरकार की तरफ से कोका कोला कम्पनी को 110 एकड़ जमीन दे दी गई है. कोका कोला कम्पनी यहां नर्मदा से प्रतिदिन लाखों लीटर पानी निकालेगी और कोल्डड्रिंक बनाएगी. इससे न सिर्फ नर्मदा के पानी में कमी आएगी, बल्कि फैक्ट्री का अनुपयोगी पानी, कचरा व अन्य रासायनिक पदार्थ नर्मदा में जाएंगे, जिससे नर्मदा प्रदूषित होगी. इन सब से अविरल और निर्मल नर्मदा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही जल और भूमि दोनों बर्बाद होंगे और किसानी पर भयंकर संकट आएगा.
बाबई मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा कृषि फार्म है, जहां हजारों आम के पेड़ मौजूद हैं. मजे की बात यह है कि जब इसी बाबई को तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार के द्वारा रिलायंस कंपनी को सौंपे जाने की योजना बनाई जा रही थी, तो भाजपा के विधायकों और खासकर वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सीतासरन शर्मा के द्वारा विधानसभा में इसका कड़ा विरोध किया गया था. दिग्विजय सिंह सरकार के इस कदम के विरोध में भाजपा ने सड़क से लेकर सदन तक विरोध प्रदर्शन किया था. लेकिन अब जब भाजपा सत्ता में हैं, तो उसी बाबई के फार्म हाउस को औद्योगिक क्षेत्र बनाकर वहां कोका कोला का प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है.
कोका कोला प्लांट के शिलान्यास के करीब डेढ़ महीने बाद स्थानीय स्तर पर इसका विरोध शुरू हो गया है. सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय हुंका बताते हैं कि मोहासा और गुराडिया मोती पंचायत में कंपनी के विरोध में प्रस्ताव भी पारित किए गए हैं. मुहासा के 10 गांवों में लोगों का विरोध सामने आने लगा है. लोगों का तर्क है कि इसमें नर्मदा नदी से पानी लिया जाएगा और प्रतिदिन 18 लाख लीटर पानी का उपयोग किया जाएगा.
एक लीटर कोल्डड्रिंक बनाने में पांच लीटर पानी की बर्बादी होगी. बचे हुए रसायनिक पानी को बहा दिया जाएगा. इससे क्षेत्र की खेती और नर्मदा नदी दोनों प्रभावित होेंगे. इसके विरोध में हस्ताक्षर अभियान शुरू हो गया है. लोगों का कहना है कि सरकार का यह दावा सच्चाई से कोसो दूर है कि यहां फैक्ट्री लगाने से रोजगार मिलेगा. मण्डीदीप, मालनपुर और पीथमपुर जैसे कई उदाहरण हैं, जहां कहा तो गया कि स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
कई साल पहले भोपाल के पास पीलूखेड़ी में भी कोका कोला का प्लांट लगा था, वहां आज पार्वती नदी सूख चुकी है. किसान परेशान और खेती बर्बाद हो रहे हैं. अब मोहासा का भी हाल पीलूखेड़ी जैसा न हो इसके लिए स्थानीय नागरिकों अक्षय हुंका, विक्रांत राय, लक्ष्मी नारायण सोनी, मुकेश तिवारी, कुलभूषण पारासर, संजय मिश्रा आदि ने बीड़ा उठाया है. उनका कहना है कि कुछ भी हो जाए, कोका कोला की फैक्ट्री यहां नहीं लगने देंगे. अपनी जमीन और अपनी नमर्दा को बर्बाद नहीं होने देंगे. इस आंदोलन की शुरुआत 16 फरवरी 2017 को बन्द्रमान गांव से की गई. बन्द्रमान, सांगाखेडा, आरी और मुहसा गांव में जन संपर्क किया गया और लोगों को कोका कोला फैक्ट्री के दुष्परिणामों से अवगत कराया गया.
केंद्र सरकार के सेंटर ग्राउंड वॉटर बोर्ड के कई आंकड़े भी कोका कोला प्लांट के भूजल दोहन पर सवाल खड़े करते हैं. लेकिन सरकार का वरदहस्त प्राप्त इस कंपनी के खिलाफ आम लोगों की लड़ाई आसान नहीं है. इसमें एक ओर वंचित हैं और दूसरी ओर ताकतवर. प्लांट लगाने के लिए तैयार कंपनी किसी भी तरह से ये गारंटी नहीं दे रही है कि वह भूजल का दोहन नहीं करेगी और पानी की किल्लत नहीं होने देगी या उसके प्लांट से कोई स्लज (अपशिष्ट) नहीं निकलेगा. अगर ऐसा हुआ तो उससे होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी. कोला कंपनी ने मध्य प्रदेश में पहुंचकर एक तरह से अपने लिए भूजल का तो इंतजाम कर लिया, लेकिन उन लोगों का क्या होगा, जो नदी के पास रहते हैं, लेकिन उनके कंठ सूखे और खेत खाली हैं.
भूजल दोहन को लेकर विवादों में रहा है कोका कोला
केरल के प्लाचीमाड़ा प्लांट से लेकर उत्तरप्रदेश में वाराणसी के मेंहदीगंज तक कोका कोला कंपनी अपने प्लांटों को लेकर सवालों और विवादों में रही है. उस पर भू जल के अत्याधिक दोहन और स्थानीय पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी को भी असंतुलित करने के आरोप हैं. केरल का उसका इतिहास तो पारिस्थितिकी के क्षरण की दहलाने वाली दास्तान है. जहां कोका कोला ने स्थानीय पारिस्थितिकी और खेती को लगभग तबाह कर दिया.
इस मामले में हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा था, फिर कंपनी ने भारी मुआवजा दिया और प्लांट भी बंद करना पड़ा. लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था. कोका कोला ने वहां पानी की जो माइनिंग की उसमें 15 लाख लीटर पानी हर रोज अपने प्लांट के लिए निकालती थी. यह एक तरह से धरती को पानी से खाली कर देने जैसा था.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि पानी न तो कोका कोला का है और न ही राज्य सरकार का, जो कंपनी को प्लांट लगाने की मंजूरी देती है. जांच में यह भी सामने आया कि प्लांट से कई जानलेवा रसायनों का रिसाव होता था. क्रोमियम, लेड और कैडमियम जैसे पदार्थों की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई गई थी. वाराणसी के प्लांट में तो 1999 से ही विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, जब कोका कोला ने अपना प्लांट लगाया था.