अखिलेश यादव के सांसद भाई धर्मेंद्र यादव के साले पुष्पेंद्र यादव का बुंदेलखंड में अवैध खनन पर वर्चस्व है
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सांसद भाई धर्मेंद्र यादव के साले पुष्पेंद्र यादव के हाथ में बुंदेलखंड के अवैध खनन की बागडोर है. खनन क्षेत्र में मुख्यमंत्री अखिलेश नहीं बल्कि पुष्पेंद्र है. प्रशासन पुष्पेंद्र और उसके गिरोह के आगे नतमस्तक है. महोबा के गौरहारी में जिस अवैध खनन में खदान दरकने से पिछले दिनों पांच मजदूरों की मौत हुई, वह खदान भी पुष्पेंद्र यादव के ही कब्जे में है. यह मजदूरों की हादसे में मौत नहीं बल्कि हत्या है, लेकिन सरकार ने इसे इतने हल्के में लिया कि मौतों पर दस-दस और बीस-बीस लाख रुपये का मुआवजा रेबड़ियों की तरह बांटने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने संजीदगी का प्रदर्शन करते हुए दो-दो लाख रुपये परिजनों को थमा दिए और बस, धंधा फिर जारी है.
खादी, खाकी और खनन माफियाओं का भ्रष्ट गठजोड़ बुंदेलखंड में फिर पांच मजदूरों को लील गया. महोबा के गौरहारी में खदान दरकने से हुई इन मौतों ने इस गठजोड़ का नंगा सच सामने ला दिया. एक ऐसा सच जो इस कार्य से बावस्ता हर किसी को कठघरे में खड़ा करता है. घटना के तुरंत बाद हरकत में आए जिला प्रशासन ने जिस तत्परता के साथ प्यादों पर कार्रवाई की और जिस चतुराई के साथ खुद को तथा इस खेल के बड़े मोहरों को सुरक्षित किया, वह बेहद काबिले गौर है. चौबीस घंटे की कड़ी मशक्कत और मुख्यमंत्री द्वारा दो-दो लाख की मामूली आर्थिक सहायता के बाद मामला भले ही शांत हो गया हो, पर इस घटना से एक बात तो साफ हो गई कि बुंदेलखंड में हो रहे अवैध खनन के धंधे की डोर माफियाओं के हाथ से सरककर नेताओं के हाथों में पहुंच चुकी है.
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बुंदेलखंड में बेहद बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जा रहा है. यहां सत्ता की सरपरस्ती में नदियों की रेत, मिट्टी और मोरंग निकालकर खुलेआम बेची जा रही है. पर्यावरण विभाग की आपत्ति के बाद भी पहाड़ों का खनन जोरों पर है. खनन कार्य से जुड़े लोगों पर न्यायालय के आदेश तक बेअसर हैं. यहां इस मामले में अकेले खनिज विभाग को कसूरवार ठहराया जाना न्यायोचित नहीं है, क्योंकि खनन के इस अवैध खेल में सब शामिल हैं. चौकी के संत्री से लेकर सूबे के मंत्री तक कमोबेश सब इस काम में लिप्त हैं. ललितपुर से चित्रकूट तक फैले खनन के इस खेल में सभी की उसके पद और हैसियत के अनुसार हिस्सेदारी तथा भूमिका तय है. प्रशासनिक अफसरों, खाकी, खादी और खनन माफियों के इस गठजोड़ में यदि नुकसान पर कोई है तो वह हैं इस काम से जुड़े मजदूर! वह मजदूर जो चंद रुपये के लिए अपनी जान गंवा रहे हैं. मामूली दिहाड़ी के लिए ऐसा जोखिम उठाना इन श्रमिकों की मजबूरी भी है और जरूरत भी. यही वजह है कि बुंदेलखंड में प्रतिदिन खनन कार्य की चपेट में आकर किसी न किसी कामगार की मौत हो जाती है. आए दिन होने वाली इन मौतों में से ज्यादातर पैसा, पावर और पॉलीटिक्स के दम पर भ्रष्टाचार के इतिहास का हिस्सा बना दी जाती हैं. अधिकांश मामलों में मृतक परिवार को कुछ रुपये देकर शांत करा दिया जाता है और खनन माफियाओं के इस भ्रष्ट मंसूबों को अमली जामा पहनाती है खाकी. सत्ताई आकाओं के भय और माफियाओं से मिलने वाले हिस्से के लालच ने पुलिस को अवैध खनन पर कार्रवाई करने के मामले में नपुंसक और दलाल बना दिया है. पुलिस की इसी नपुंसक कार्यशैली के चलते अधिकांश मामले मैनेज हो जाते हैं या यूं कहें कि जबरन दबवा दिए जाते हैं. नतीजतन पत्थर व्यवसाय में श्रमिकों की मौत के विरले मामले ही सार्वजनिक हो पाते हैं. महोबा जनपद के गौरहारी में घटी घटना को ऐसी ही घटनाओं में से एक कह सकते हैं. डायसफोर गौरा पत्थर खदान की बहुतायत वाले इस गांव में बीते दिनों तब कोहराम मच गया जब एक अवैध ढंग से चलाई जा रही खदान में काम कर रहे आधा दर्जन मजदूरों पर चट्टान दरककर गिर पड़ी. घटना कितनी हृदय विदारक थी इसका अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि चट्टान की चपेट में आए मजदूरों में से मात्र एक को ही जीवित बचाया जा सका, जबकि पांच ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.
गौरहारी में खदान दरक जाने की सूचना मिलने के तुरन्त बाद पुलिस अधीक्षक गौरव सिंह के साथ जिलाधिकारी वीरेश्वर सिंह मौके पर पहुंच गए. इस घटना को हल्के में ले रहे आला अफसरों ने जब वहां पहुंचकर स्थिति देखी तो उनके होश उड़ गए. ग्रामीणों द्वारा निकाले जा चुके तीन मजदूरों के शव और उनके आस-पास बैठे परिवारीजनों की चीख पुकार ने अधिकारियों की घिग्गी बांध दी. अधिनस्थों को दिशा-निर्देश देने के बाद अधिकारी जब वहां से खिसकने लगे तो ग्रामीणों ने उनके वाहनों को घेर लिया. ग्रामीणों की मांग थी कि जो मजदूर खदान में फंसे हैं पहले उन्हें निकाला जाए और मृतकों के परिवारीजनों को उचित मुआवजा तथा खदान संचालकों पर कार्रवाई की जाए. प्रशासन ने पहले तो ग्रामीणों को बहलाने की कोशिश की लेकिन जब भीड़ उग्र हो गई तो अधिकारियों को बैकफुट पर जाना पड़ा. सूचना राजधानी तक पहुंची. मुख्यमंत्री ने दो-दो लाख मुआवजे का ऐलान कर दिया. इधर मौके की नजाकत को देखते हुए गैर जनपदों से सुरक्षाबल और पीएससी बुला ली गई. खबर पाकर चित्रकूट के डीआईजी और फिर इलाहाबाद जोन के आईजी भी घटना स्थल पर पहुंच गए. आला अफसरों के पहुंचते ही बचाव कार्य तेज कर दिया गया. तब जाकर कहीं चौबीस घंटे बाद मलबे में फंसे दो अन्य मजदूरों के शव बाहर निकाले जा सके. इस बीच ग्रामीणों के आक्रोश से बचने के लिए प्रशासन ने खदान के कथित सिगमी ठेकेदार गब्बर सिंह सहित उन आधा दर्जन लोगों पर कार्रवाई की खानापूर्ति भी कर डाली, जिनकी हैसियत इस खेल में एक मामूली प्यादे से अधिक और कुछ भी नहीं थी. बताते हैं कि अफसरों ने राजधानी में बैठे आकाओं के इशारे पर उस कद्दावर सफेदपोश को बचाने में पूरी ताकत झोंक दी, जो इस घटना के लिए असल कसूरवार है. अधिकारियों के बदलते बयान बता रहे थे कि मामला कहां से जुड़ा हुआ है. यदि ऐसा नहीं तो फिर भला 2012 में समयावधि समाप्त हो चुकी खदान को बिना रिन्युअल के कैसे चलाया जा रहा था.
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घटना से जुड़े इस अहम सवाल का जबाब किसी ने नहीं दिया. पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने प्यादों पर कार्रवाई कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली तो खनिज विभाग के कर्मचारी यहां वहां छिपते नजर आए. घटना के समय लखनऊ में मौजूद जिला खान अधिकारी बीपी यादव जब महोबा पहुंचे तो उन्होंने ऑफ द रिकार्ड यह स्वीकार किया कि इस खदान को चलवाने का उन पर दबाव था लेकिन खबर छापने की बात पर वह पलटी मार गए. आधिकारिक बयान के रूप में उन्होंने जो बोला वह बेहद हास्यस्पद भी था और चौंकाने वाला भी. उनके मुताबिक खनिज नियमों में ऐसा प्रावधान है कि रिन्युअल का प्रार्थना-पत्र जमा हो जाने के बाद खदान चलाई जा सकती है. हालांकि आम आदमी के मामले में इस नियम का पालन क्यों नहीं होता, जैसे सवाल पर वह बगलें झांकते नजर आए.प
तूती बोलती है पुष्पेंद्र यादव की
बुंदेलखंड की बदहाली से परे नेताओं की नजर यहां की खनिज सम्पदा पर है. ग्राम पंचायत के मुखिया से लेकर सर्वोच्च सदन के मुख्तार तक सभी इसका दोहन कर रहे हैं. बात यदि खनिज के मामले में बुंदेलखंड की सबसे बड़ी मंडी कहे जाने वाले महोबा की करें तो यहां रसूखदारों ने लूट मचा रखी है. यहां इस कारोबार में हर दल के माननीयों की मजबूत दखल है पर सत्ताधारी दल के नेताओं की तो तूती बोल रही है. प्रत्यक्ष परोक्ष रूप में सत्ता से जुड़े प्रत्येक माननीय की यहां खदानें, घाट और क्रशर चल रहे हैं. बताते हैं कि अकेले कबरई में करीब तीन सैकड़ा क्रशर और कमोबेश इतनी ही पत्थर खदानें चलाई जा रही हैं. इनमें 90 प्रतिशत पर सत्ताधारी नेताओं का कब्जा है. ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, एमएलसी, विधायक, मंत्री से लेकर इस विभाग के मुखिया तक सबका अपने कदानुसार इस व्यापार में रुतबा है. इस लिस्ट में एक ऐसा भी नाम है जिसके आगे खनिज मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति भी शायद बौने साबित होंगे. यह नाम है मुख्यमंत्री के भाई और सांसद धर्मेन्द्र यादव के साले पुष्पेंद्र यादव का बुंदेलखंड में आज इसे खनिज किंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
सीधे तौर पर भले इस कारोबार में इनका दखल न दिखता हो पर अंदरखाने का सच यही है कि बिना इनकी मर्जी और सहमति के किसी का भी खनन किया जाना मुमकिन नहीं. इनके अलावा दूसरा सबसे बड़ा नाम सपा के पूर्व मंत्री और मौजूदा पार्टी अधिकृत प्रत्याशी सिद्धगोपाल साहू का है जिसने कबरई मंडी में अपना अधिपत्य कायम किया हुआ है. गौरहारी कांड को लेकर गर्म चर्चाओं को सच मानें तो जिस अवैध खदान में बीते रोज घटना घटी उसे चलाने का प्रशासन पर पुष्पेंद्र यादव ने दबाव बनाया था. सत्ता भय के चलते भले प्रशासन इस बात को कहने से कन्नी काट रहा हो, लेकिन विपक्षी दलों के नेता और आम लोग यह बात चीख-चीख कर कह रहे हैं. हमीरपुर जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष पति पुष्पेंद्र का रुतबा बुंदेलखंड में मुख्यमंत्री से कम नहीं है. सपा मुखिया के रिश्तेदार होने की वजह से इनके जो ठाठ-बाट हैं, वो तो जगजाहिर हैं ही, इनके करीबियों और गुर्गों की भी खूब चांदी है. महोबा जिला पंचायत अध्यक्ष के पति एवं जिला महासचिव रमेश यादव, पूर्व मंत्री बादशाह सिंह का भतीजा राजू सिंह, अब्दुल तारिक जैसे महोबा में कई ऐसे नाम हैं जो आज इस सफेदपोश माननीय के कृपापात्रों की फेहरिस्त में शुमार बताए जाते हैं. हमीरपुर से बैठकर अपने इन्हीं सेना नायकों के सहारे पुष्पेंद्र महोबा में अपनी हुकूमत चलाता है. इसकी हैसियत के आगे जिले के नेता ही फीके नहीं दिखते बल्कि प्रशासन की भी इनके आगे कोई हैसियत नहीं है. इसी हैसियत का नतीजा है कि प्रशासन ने गौरहारी कांड को कुछ चुटकियों में और शासन ने कुछ सिक्कों में निपटा डाला.
सत्ता के आगे मज़दूर की क्या औकात!
गौरहारी में चल रही अवैध खदान में दबकर मजदूरों के मरने की यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पूर्व 2009 में भी चार मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं. वर्ष 2009 में इसी तरह काम करते समय खदान धंसने के कारण जयसिंह, रामकिशन, टेकचन्द्र और रवि की मौत हो गई थी. तब भी इसी तरह कोहराम मचा था लेकिन कुछ दिन हो-हल्ला मचने के बाद सब शांत हो गया. इस अवैध कारोबार ने एक बार फिर बारेलाल, मकुंदलाल, भागीरथ, भानुप्रताप और राजू नामक कामगारों को अपना शिकार बना डाला. मौतें होती रहेंगी, लेकिन मानक को ताक पर रख कर चलाई जा रही अवैध खदानों का धंधा कम नहीं होगा, क्योंकि जब धंधे की डोर सीधे सत्ता से बंधी हो तो मजदूर की जान की क्या कीमत है!
खीरी को खा रहे खनन माफिया
लखीमपुर खीरी जनपद विविध ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासतें संजोये हुए है, लेकिन ऐतिहासिक विरासतों पर भी खनन माफियाओं की गिद्ध दृष्टि है. जनपद की अतिविख्यात तहसील गोला गोकर्णनाथ जिसे छोटी काशी के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाता रहा है, आज खनन माफियाओं की वजह से होने की कगार पर है. यह धार्मिक स्थान चारों तरफ से वन आच्छादित था लेकिन आज प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन से इस धार्मिक नगरी का वजूद ही खतरे में है. वर्तमान समय में यह प्राचीन धार्मिक नगरी अपने आसपास की हरियाली और प्राचीन धरोहरों को खोती जा रही है. गोला नगरी के ग्राम कोटवारा व भूगर्भ में समाई सरस्वती नदी पर नजर डालने पर भूमाफियाओं के कृत्य साफ दिखाई पड़ते हैं. नदी के वजूद को बचाए रखने के लिए प्राकृतिक रूप से नदी के आसपास बालू के ऊंचे-ऊंचे टीले बने हुए थे, जिन्हें भूमाफियाओं ने प्रशासन से साठगांठ कर खोद डाला, जिससे आज नदी का वजूद ही समाप्त होने पर है. जिले में खनन का कारोबार स्थानीय प्रशासन के संरक्षण में दिन-रात फलफुल रहा है. इसमें नेता और माफिया साथ शरीक हैं. खनन का धंधा सुबह से देर रात तक पुलिस व प्रशासन की नाक के नीचे खुलेआम चलता रहता है. क्षेत्र की जनता मूक गवाह है. संस्कृति नष्ट हो रही है, समाज चिंतित है, लेकिन सत्ता को इस चिंता से कोई मतलब नहीं.
पुलिस और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत के चलते खनन माफिया कोटद्वार ग्राम व भूगर्भ में समाई सरस्वती नदी के किनारे बने टीलों को जेसीबी मशीनों से खोद कर लूट रहे हैं. सुबह से लेकर देर रात तक जेसीबी मशीनें गरजती रहती हैं. टीलों को काटकर निकाली जा रही मिट्टी ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर खुलेआम ले जाई जा रही हैं. कोटद्वारा के टीले गहरे खड्ड में तब्दील हो गए हैं. भूगर्भ में समाई सरस्वती नदी के टीले जो कि बांकेगंज से ग्राम इमलिया कोठी तक रेलवे लाइन के किनारे कभी प्राचीन सभ्यता व संस्कृति की मिसाल बने हुए थे, अब वहां भी ऊबड़खाबड़ गड्ढे और खाई बन गई है. मिट्टी खोद-खोद कर ईंट-भट्ठे का धंधा करने वाले मौज कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ठेंगा दिखा रहे हैं. पुलिस-प्रशासन चवन्नी चाटने में व्यस्त है. हाल यह है कि गोला आरक्षित वन क्षेत्र के गोला-अलीगंज मार्ग पर ईंट भट्ठों की कतारें व गोला बांकेगंज मार्ग एवं मोहम्मदी वन रेंज और मैलानी वन रेंज के जंगलों के निकट लगभग दो किलोमीटर की परिधि में ही तमाम ईंट भट्ठे सरकार और सरकारी तंत्र के नाकारेपन का ढोल पीटते हैं. ईंट भट्ठे नेताओं और दबंगों के हैं, आम आदमी क्या करे. धार्मिक नगरी छोटी काशी गोला गोकर्णनाथ में नगर के चारों तरफ ईंट भट्ठों द्वारा किए जा रहे खनन के चलते अधिकतर भूमि खड्डों का रूप ले चुकी है. -अजय गुप्ता
मज़दूरों की मौत पर फेंक रहे सियासत के सिक्के
बुंदेलखंड में सूखा है तो बना रहे. किसान आत्महत्याएं करते हैं तो करते रहें. लोग रोजगार के अभाव में परदेस जाते रहें और क्षेत्र में गरीबी और भुखमरी बढ़ती रहे. सियासतदानों को इससे क्या लेना देना. उन्हें तो मुद्दा चाहिए.फिर लाश पड़ी हो नेताओं के लिए इससे अच्छा मुद्दा और क्या है. सत्ताधारी नेताओं और खनन माफियाओं के गठजोड़ ने गौरहारी में पांच मजदूरों की जान ले ली, तो भाजपा नेताओं ने परिजनों को दस-दस हजार रुपये थमाकर अपनी राजनीति की रोटी सेंक ली. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के निर्देश पर गौरहारी पहुंची पांच सदस्यीय टीम ने हादसे के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार को खूब कोसा. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष करन सिंह पटेल, अकबरपुर सांसद देवेन्द्र सिंह भोले,जालौन सांसद भानू प्रताप वर्मा, महोबा सांसद पुष्पेंद्र चंदेल और महोबा के पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत भाजपा की टीम में शामिल थे. राजनीति में चाल, चरित्र और चेहरा बदलने का चलन कोई नई बात नहीं है. महोबा जनपद की कुछ घटनाएं नेताओं के इसी फेरबदलकी सनद देते हैं. गौरहारी खनन कांड की घटना में सत्ताधारी दल से लेकर विपक्षी दल सबके दावपेंच सामने खोल कर रख दिए. सत्ताधारी पार्टी ने दो लाख का मुआवजा देकर निपटा दिया तो विपक्षी दल भाजपा ने दस-दस हजार रुपये देकर अपनी संजीदगी प्रदर्शित करने की कोशिश की. कांग्रेस ने मौखिक मातमपुर्सी की तो बसपा ने मातमपुर्सी कार्ड पर एक लाख रुपया रख कर फेंका. लेकिन बसपा की लाख टके की मातमपुर्सी कोई असर नहीं दिखा पाई, क्योंकि कीरत सागर तट पर हुई बंटी अहिरवार की हत्या में बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे कद्दावर नेता मृतक दलित के परिवार को पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद दे आए. अब पूरे क्षेत्र में लोग बसपा के एक लाख बनाम पांच लाख रुपये के सर्वजनसुखाय का भेद समझने में लगे हैं. जब गौरहारी में पांच मजदूर अवैध खनन के शिकार हुए थे, उसी दिन कबरई में भी आत्माराम नामक मजदूर की ब्लास्टिंग पत्थर लगने से मौत हो गई थी, लेकिन आत्माराम के परिवार की सुध किसी ने नहीं ली, न सत्तापक्ष ने ली और न विपक्ष ने.