उत्तराखण्ड के टिहरी बांध से विस्थापितों के पुनर्वास की दास्तान काफी लम्बी है. टिहरी बांध के निर्माण के समय जो दावे किये गए थे, उतनी बिजली आज तक पैदा नहीं हो पाई है. टिहरी बांध से जो लाभ मिलने की बात थी, वह भी नहीं मिल पाई. टिहरी बांध में दस पुल डूबे थे, 12 साल बांध को चालू हुए हो गए. अभी तक जो बदले में पुल बनने थे, वे सभी नहीं बन पाए. डोबरा चांटी पुल व चिंयाली सौड़ के पुल नहीं बन पाए. लोगों को आर-पार आने-जाने में बहुत परेशानी होती है. बांध बनने के बाद आलम यह है कि कुछ किलोमीटर का रास्ता अब दिन भर का हो गया. फिर बांध बनने के बाद सरकारी आंकड़ों के अनुसार झील के आस-पास के लगभग 40 आंशिक प्रभावित गांव नीचे धसक रहे हैं. अब धीरे-धीरे नुकसान झेल रहे हैं. उनकी अब कोई सुनवाई नहीं. बांध के सामने ही मदन नेगी गांव में मकान लगभग 7 साल पहले धसक गए थे, किन्तु आज तक उनका मुआवजा नहीं मिल पाया है. देवेगौड़ा सरकार ने पुनर्वास के लिये डॉ. हनुमंता राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. डॉ. हनुमंता राव समिति ने जो सुझाव दिये, सरकार ने उनके 10 प्रतिशत सुझावों कोे ही माना. उसमें भी अब तक 10 प्रतिशत भी पूरी तरह से अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. 1998 में इन सुझावों को पुनर्वास नीति में जोड़ा गया, किन्तु इसके बाद भी पुनर्वास का काम बहुत धीमी गति से ही चला. हकीकत तो यह थी कि टिहरी बांध के वक्त कोई पुनर्वास नीति बनी ही नहीं थी. सन 1978 से ही लोगों का विस्थापन शुरू हो गया था.
वहीं आज उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में प्रस्तावित पंचेश्वर बांध के मामले को तो आज पंचेश्वर बांध व रुपालीगाड़ बांध परियोजनाओं में कानूनों का पालन नहीं हो रहा है. सन 2014 से पहले कई कानून बने हैं, उनमें पर्यावरण जन-सुनवाई कानून, सामाजिक आकलन जन-सुनवाई कानून, वन अधिकार 2006 कानून शामिल हैं. पंचेश्वर के बांधों की पुनर्वास नीति भी गलत आंकड़ों के आधार पर बनाई गई. टिहरी में भी डूब क्षेत्र के काफी गलत सर्वे किये गए थे. टिहरी बांध चालू होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर हुए सर्वे में 1000 नए विस्थापित सामने आये, जिनमें से आधे तो आज भी पुनर्वास का इन्तजार कर रहे हैं. टिहरी बांध की गौरव गाथा गाकर बांध कम्पनी टिहरी जलविद्युत निगम, (टीएचडीसी) उसे और भी कई नए बांधों के ठेके मिल गए. किन्तु पथरी भाग 1, 2, 3 व 4 हरिद्वार के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले टिहरी बांध विस्थापितों के मामले 35 वर्षों से लम्बित हैं. यहां लगभग 40 गांवों के लोगों को पुनर्वासित किया गया है. यहां 70 प्रतिशत विस्थापितों को भूमिधर अधिकार भी नहीं मिल पाया है. मुफ्त बिजली, पीने और सिंचाई का पानी, यातायात, स्वास्थ्य, बैंक, डाकघर, राशन की दुकान, पंचायत घर, मन्दिर, सड़क, गुल, नालियां आदि भी व्यवस्थित नहीं बन सकी हैं.
ज्यादातर ग्रामीण पुनर्वास स्थलों पर जैसे सुमननगर और शिवालिक नगर में बहुत कम लोग बचे हैं. सुमननगर में पानी की समस्या है, जबकि टिहरी बांध से दिल्ली की ओर जा रही नहर 500 मीटर दूर है. शिवालिक नगर के विस्थापितों ने अपनी सारी जमीनें बेच दी हैं, चूंकि मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं. पंचेश्वर बांध क्षेत्र में वैसी ही स्थिति जौलजीवी और झूलाघाट बाजारों की है. यहां के बाजार स्थानीय गांवों के ग्राहकों से ज्यादा नेपाल से आने-जाने वाले ग्राहकों से ज्यादा चलते हैं. मगर सामाजिक आकलन रिपोर्ट में इनका कोई जिक्र नहीं है.
शहरी विस्थापन के लिये, जो टिहरी शहर बसाया गया, वहां पर भी 40 प्रतिशत ही पुरानी टिहरी शहर के लोग हैं. शहरी पुनर्वास का आलम यह है कि यहां भी प्रभावितों ने ग्रामीण विस्थापितों की ही तरह किसी तरीके से बसाने की कोशिश की है. दस साल बाद जमीन मिली. अब मुआवजे तो खत्म हो गए थे. टिहरी शहर के मुआवजे की सूची देखें तो 5 रुपए से लेकर 35 रुपए तक भी मकानों के मुआवजे मिले थे.
पंचेश्वर में तो सर्वे बिल्कुल ही गलत है. टिहरी बांध में प्रभावितों को जमीन देना बहुत ही मुश्किल हो गया था. सरकार ने अपने हिसाब से बार-बार नीतियां बदलीं. जैसे ऋृषिकेश के पशुलोक क्षेत्र में 1100 एकड़ जमीन को शहर के पास माना गया और पुनर्वास नीति में दो एकड़ होने के बावजूद आधा एकड़ जमीन स्वीकार करने के लिये लोगों को मजबूर किया गया. क्योंकि बांध सामने था और लोगों की भी अपनी मजबूरी थी, इसलिये उन्हें लगा जो मिले
वही ले लेना चाहिए. सरकारी अधिकारियों व बांध कम्पनी की मिली-भगत से गांव-गांव के अन्दर दलाल खड़े हो गए थे. लोगों ने रिश्वत देकर, दया आधार पर, किसी तरीके से मुआवजे लिये. मतलब अपनी जो जमीन, सम्पत्ति पीढ़ियों से जो संचित की हुई है, वो डूब रही है और उसके बदले में जो मिल रहा है, उसे लेने के लिये लोगों को आपसी लड़ना-झगड़ना, धरना-प्रदर्शन करना पड़ा. भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ा. उसके बाद भी सभी टिहरी बांध प्रभावितों को समुचित मुआवजा मिल पाया हो, ऐसा नहीं हो पाया. हजारों केस विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं.
गौरतलब है कि अभी भी राज्य सरकार ने टिहरी बांध कम्पनी को टिहरी बांध पूरा भरने की इजाजत नहीं दी है. यह भी तथ्य है कि सुन्दरलाल बहुगुणा के आन्दोलन और केस के दवाब से पर्यावरण व पुनर्वास की शर्तें मजबूत हो पाईं और लोगों का पुनर्वास सम्भव हो पाया. पंचेश्वर के बांधों के आंशिक डूब के गांवों में भी धसकने की स्थिति आएगी. अब पंचेश्वर के बांधों के सन्दर्भ में सरकार कह सकती है कि पहले ही पुनर्वास की जन-सुनवाइयां हो रही हैं. यदि सरकार सब सुनिश्चित कर भी दें तो जमीन कहां है उतनी? क्या वो जमीन खेती लायक है? खेती कैसे हो पाएगी? क्या वो जमीन बसने लायक हैं? जंगल मिलेगा? ऐसे तमाम प्रश्न इसमें उलझे पड़े हैं.