यह है डोम्नीक लेपियर की भाषा मे सिटी ऑफ़ जॉय !कलकत्ता !! जो सोलवी शताब्दि मे सुतानटी,नारायणपुर और काली क्षेत्र नाम के तिन छोटे छोटे कस्बो से जॉब चोर्नोक नाम के एक ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियो मेसे एक की कोशिश का कमाल वर्तमान कलकत्ता शहर जो आज भारत का सबसे बड़ी आबादी वाले शहर मे शुमार होता है !
हुगली नदी के किनारे पर आसीन होने के कारण अन्ग्रेज व्यापार करने वाली कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगालके उपसागार के साथ इसको जोड़कर सम्पूर्ण पूर्व भारत के लिए दुनिया के साथ जोड़ा और तिन छोटे छोटे गाओं को जोड़कर बनाया हुआ कलकत्ता भारत के तरुण शहरो में एक के रूप में स्थापित हो गया !
तब तक अन्ग्रेज व्यापार करने वाली कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी से आगे निकल कर उस समय प्रथम फोर्ट विलियम की स्थापना आजकल जिसमे जी पी ओ और अन्य सरकारी प्रतिष्ठान की जगह अपने राजा विल्यम जॉर्ज के नाम पर किला बनाया था और नवाब सिराजुद्दौला ने इटसे इट बजा दिया था ! लेकिन अन्ग्रेज व्यापार करने वाली कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत जैसी सोनेके अण्डा देनेवाली मुर्गी को कब्जेमे करने का मोह हुआ था और वह जिपिओ से तिन चार किलो मीटर की दूरी पर प्रिंसेफ़ घाट के लगकर ज़मीन पर दुसरा फोर्ट विलियम का निर्माण 1656-57 में किया था और प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराजुद्दौला को पराजित कर के भारत में अपने राज की निव डाली गई वह पहली इमारत फोर्ट विलियम जिसमे हम लोग श्रीमती खैरनार की केंद्रीय विद्यालय की नोकरी के कारण 1982अक्तूबर से 1997जून तक लगभग पन्द्रह साल रहे हैं और हमारे हिस्से में ईस्टर्न कमाण्ड हमारे देश के छ सात कमाण्ड में से एक जिसने आजसे 50साल पहले बंगला देश बनने मे मददगार की भुमिका की है! तो सेन्ट जॉर्ज नामके पस्चिम दिशा में प्रिंसेफ़ घाट के लगकर एक क़्वारटर सेना ने दिया था और उसी के भीतर जिसमे हम लोगो ने किचन बनाया था ऊसी किचन मे दीवार मे एक पथ्थर लगा हुआ था और वह उस किले की स्थापना आजकल तारीख हमे रोज़ याद दिलाने का काम किया है और वह तारीख 1656-57 की थी !
हम लोग 1982 के नवरात्र के पहले ही दिन हावड़ा स्टेशन पर उतरे थे तब मै 30साल पार करने वाला था और 45 साल की उम्र का होने के बाद निकले हैं ! तो एक तरह से मेरी ज़िन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण समय में मुझे कलकत्ता वासी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और वह मैने मेरे हाऊस हज्बंड की ड्यूटी निभाते हुए अन्य समय में कलकत्ता के फुटपाथ पर की रेकोर्ड,केसेट और किताबो की दुकानो की धुल छाटकर बड़े गुलाम अली साहब,हिराबाई बड़ोदेकर,ओंकार नाथ ठाकुरजी से लेकर उस्ताद विलायत खाँ,गुलाम अली,जगजीत सिंह,कुमार गन्धर्व,मल्लिकार्जुन मन्सूर,अलि अकबर,रवी शंकर,अम्जद अली,बेगम अख्तर की रोकोर्ड या केसेट और कितबोमे जे कृष्ण मुर्ती से लेकर ऋषी अरविंद,रवीद्र नाथ टैगोर,ताराशंकर बन्दोपध्यय,सुनिल गांगुली,राही मासूम रज़ा,श्रीलाल शुक्ल,अमृत लाल नागर,अमृता प्रीतम,यशपाल,प्रेमचंद ,फनिश्वर नाथ रेणु अज्ञेय,धर्मविर भारती इत्यादि लेखक कवियो की कृतिया कलकत्ता विश्वविद्यालय के फुटपाथ और मेरे पहुँच ने के साथ ही कलकत्ता बुक फेयर की शुरुआत हुई थी और फिर क्या था कम्सेकम हर साल पांच हज़ार रुपये मेरे एक मात्र व्यसन किताबे और संगीत का आनंद लेने के लिए खर्च होता था और सबसे बड़ी बात महाराष्ट्र मंडल,डोवर लेन म्यूजिक कोंफ्रेंस जोजनवरी के अंतिम सप्ताह में होल नाईट होती थी और इसके अलावा कला मंदिर के कॉन्सर्ट जो हमारे घर से पैदल चलने के अंतरपर होने के कारण मैं उनका भी खुब आनंद उठाया हूँ ! एक तरह से मेरी सांस्कृतिक भुक भगाने के लिए कलकत्ता का विषेश योगदान है !और वह सब कम लग रहा था कि क्या मालूम नहीं है 1985 या 86
मे बाबा आमटे जी की भारत जोड़ो यात्रा के एझ्वाल से ओखा पूर्व से पश्चिम की यात्रा के पहले यदुनाथ थत्ते जो मेरे सार्वजनिक जीवन के पिताजीने मुझे हमेशा के जैसा एक पोस्टकार्ड लिखा था कि बाबा आमटे जी नोर्थ ईस्ट जाने के लिए कलकत्ता एयरपोर्ट पर एक दिन पहले आकर दुसरे दिन की सुबह की फ्लाईट से जायेंगे तो तुम उन्हे कंपनी देने के लिए जाओ ! अब मेरे राष्ट्र सेवा दल के पूर्व अध्यक्ष और साधना जैसे साप्ताहिक के संपादक और जिन्होंने बाबा आमटे जी कौन हैं? यह प्रकाश में लाने का एतिहासिक भुमिका निभाई है ! उनका पत्र मै भला कैसे अनदेखी करता ? तो मै जीवन में प्रथम बार एयरपोर्ट पर पहूंचा तो वी आई पी लोण्ज के एक कमरे में बाबा कॉट पर लेटे हुए थे और एक टिपिकल बंगाली भद्र लोक के प्रतिनिधि धोती-कुर्ता धोती का सौगा कुर्ते की जेब में और मुहपर आकर्षक व्यक्तित्व बढाने में मददगार मूँछे और इनटलेक्चुअल दिखने वाले चश्मा और हाथ में उनके व्यक्तित्वको बढावा देने वाली काठी लिए एक 65- 70 साल के सज्जन बैठे हुए थे और मैने जैसे ही प्रवेश किया तो बाबा एकदम उठकर मुझे बैठे बैठे ही गले लगाते हुए उस महाशय को बोले मिस्टर घोष मिट माय यंग फ्रेंड डॉ सुरेश खैरनार! और बाबा ने कहा कि सुरेश यह आनंद बाजार पत्रिका के वरिष्ठ संपादक और बंगला भाषा के साहित्यकार गौर किशोर घोष ! बाबा से मुलाकात के बाद हम दोनों ने एक साथ ही वह कमरा छोड़ दिया क्यौंकि कुछ और लोग आ गए थे और वहा उन्हे बैठ ने के लिए जगह नहीं थी तो हम जैसे ही बाहर निकले तो गौरदाने पुछा तुम कहा रहते हो? तो मैने कहा मै फोर्ट विलियम के आर्मी क़्वार्टर में रहता हूँ तो उन्होने कहा कि मेरा ऑफिस उधर ही है और उसके पहले मेरा घर पड़ता है तो तुम मेरे साथ गाड़ी है उसमे चलो पहले घर होकर फिर मै तुम्हे छोड़ दूंगा बोलकर हम दोनों उनकी गाड़ी मे बैठने के बाद मैने कहा कि आप ने आपात्काल में अपने बेटे के नाम जो चिठ्ठी जेल से लिखी थी उसका मराठी भाषा में अनुवाद शायद अशोक शहाणे ने किया था और हम लोगो ने उसको सायक्लोस्टायल करके बाटा है !
फिर वह बोले तुम कबसे हो कलकत्ता में शायद तब हमे तिन चार साल पूरे हो गये थे तो वह बोले की अगर तुम मुझे पहले से जानते थे तो मिले क्यो नही ? तो मैने कहा कि आप बँगला भाषा के इतने बड़े साहित्यकार पहले मेग्से से अवार्ड मिले हुये भारत के पत्रकार और सगीना महतो जैसे उपन्यास के लेखक मै ठहरा एक मामूली हाऊस हज्बंड ! तो तब तक उनका घर आ गया था तो वह मुझे घर में लेकर घर के सभी लोगों को बुलाकर मेरा परिचय कराये और चाय पीने के बाद जब आनंद बाजार पत्रिका के पास पहुंचे तो वह बोले यह है मेरा ऑफिस दोपहर के दो बजे के बाद तुम कभि भि अड्डा जमाने के लिए आ सकते हो और यह ड्रायवर तुम्हे छौड़ आएगा !
फिर अड्डेकी शुरुआत हुई तो वह पैरोंलिसिस के शिकार होने के पहले तक वह सिलसिला चलता रहा उस दर्मियान उन्होने बंगला साहित्य मे जितने भी कवी,कहानीकार,नाटककार और चिदानंद दासगुप्ता जैसे दिग्गज लोगों के साथ मेरा परिचय कराने के लिए निमित्त हुए !
लेकिन सबसे बड़ी उप्लब्धि प्रो अम्लान दत्ता,शिवनारयण राय,गौरी अयूब,बानी सिन्हा,श्यामली खस्तगीर,पन्नालाल दासगुप्ता,बादल सरकार जैसे लोगों के साथ घनिस्ट दोस्ती से मेरा बौद्धिक जीवन और सम्रद्ध हूआ है ! और सबसे बड़ी बात मै यह पोस्ट लिख रहा हूँ अक्तूबर के 26तारीख को बराबर आजसे 31साल पहले भागलपुर बिहार में भारत के स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा दंगा के बाद की स्तिथी को देखने के लिए उन्होने ही ज्यादा आग्रह किया था और मैंने 79 के जनवरी में अपने सहजीवन की शुरुआत करने के बाद लगभग सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र से अपने आप को अलग कर लिया था यहा तक कि मैंने पत्र व्यव्हार,न्यूजपेपर भी पढना बंद कर दिया था लेकिन गौरदा मई 1990 मे जब मेडम खैरनार के स्कूल की छुट्टी शूरू होने के दूसरे दिन मै गौरदा और उनके शांतीनिकेतन के कुछ विद्यार्थी जिसमे मुख्यतः लडकियोंकि संख्या ज्यादा थी और उनकी टीचर वीणा आलासे और श्यामली खस्तगिर और वाणी सिह्ना इत्यादि के साथ हम लोगो ने लगभग एक सप्ताह विभिन्न गाव देहात के दंगाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया था और वापसिके ट्रेन में जब गौरदा ने देखा कि मै साईड की बर्थ पर बैठे बैठे कुछ अन्धेरेमे देख रहा हूँ और यह देख कर वह इन साईड बर्थ से उठकर मेरे पास आकर बैठ गए उनके ऊपर वाले बर्थ पर मनीषा बनर्जी थी वह भी उतरकर निचे की बर्थ पर आकर बैठ गई थी और हम लोग रातभर आगे के लिए क्या करेंगे ?
इस विषयपर बात की और उसमे यही तय किया था कि भागलपुर के क्षेत्र में हिंदू मुस्लमान में अविश्वसनीयता इतनी बढ गई थी कि मुस्लीम रिक्सा वाले की रिक्शा में हिंदू नहीं बैठ रहा है और यही हिंदू रिक्शा वाले कि रिक्शा में कोई मुस्लमान नहीं बैठ रहा है और यही वजह है कि दूकानदार,डॉक्टर याने एक तरह से पुरा समाज विभाजित हो गया था और एक दूसरे के साथ के सभी व्यव्हार ठप्प हो गये हैं तो हम लोगो ने अपने तरफ से सिर्फ और सिर्फ इस फासले को कम करने के लिए विशेष रूप से संवाद स्थापित करने के लिए बार बार आना चाहिए क्यौंकि रिलीफ के काम करने के लिए काफी एन जी ओ लगे हुए हैं हम अपने तरफ से रिलीफ के काम करने के बजाय संवाद स्थापित करने के लिए विशेष रूप से कोशिश करेंगे ! और यह काम आज भी जारी है और अब हमारे स्थानीय साथी मुख्य रूप से राम शरण,उदय,ललन,प्रवीर,राहुल,सुषमा,राम पूजन,राम किशोर,शंकर,बाबुलाल,और मुन्ना सिह जैसे साथियोने काफी मेहनत की है और यही कारण है कि आज भी भागलपुर में 31साल मे कोई भी दंगा नहीं हुआ है ! 6 दिसम्बर 1992के दिन मै खुद भागलपुर में एक सप्ताह से भी अधिक समय केम्प करके बैठा था ! और हमारे स्थानीय स्तर पर के साथियोने बाद में 115 मोहल्ला कमिटीयोके द्वारा भागलपुर में शांती सद्भाव के लिए इन सब के प्रयासों से काफी मदद मिली है !
पिछले साल के दिसंबर महीनेमे 14और ,15 तारीखों को डॉ राम मनोहर लोहिया जी की स्म्रतियों को लेकर एक कार्यक्रम के लिए जाते हुए यह कलकत्ता की लेनिन सारणी का इलाका है ! जिसने 375 साल के जीवन में क्या क्या नहीं देखा होगा ?
डॉ राम मनोहर लोहिया जी की कोलेजकी शिक्षा इसी शहर में हुई है और उनका कलकत्ता से विषेश लगाव भी रहा है ! हीरालाल लोहिया उनके पिताजी ने कलकत्ता कोन्ग्रेस के काम में अपना धंदे कि अनदेखी की है और पूरा समय स्वतंत्र भारत का सपना पूरा करने के लिए विशेष रूप से लगे थे और राम मनोहर लोहिया जी तो उन्हि की संतान! फिर बापसे बेटा सवाई नहीं निकला तो क्या विषेश बात है ?