कश्मीर घाटी में 2016 में जब जन आंदोलन चरम सीमा पर था, तब पहली बार उत्तरी कश्मीर के बारामुला में प्रदर्शनकारियों ने चीनी झंडा लहराया. इस घटना ने न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों की नींदे उड़ा दीं, बल्कि यहां की स्थिति एवं घटनाओं पर पैनी निगाह रखने वाले विश्लेषक भी चकित रह गए क्योंकि इतिहास में यहां ऐसा दृश्य कभी देखने को नहीं मिला था. इसके बावजूद अधिकतर विश्लेषकों ने कश्मीर में चीनी झंडा लहराए जाने की घटना को यह कहकर एक मामूली घटना घोषित किया कि दरअसल प्रदर्शनकारियों का चीनी झंडा लहराने का उद्देश्य नई दिल्ली के प्रति अत्यंत क्रोध व्यक्त करना था. हालांकि उस समय भी कुछ लोगों ने यह सवाल उठाया था कि एक ऐसे समय में जब आंदोलन के कारण कश्मीर घाटी के अधिकतर क्षेत्रों में दूध और रोटी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की चीजें भी प्राप्त नहीं हो रही हैं, तो चीनी झंडा कहां से आ गया.
इस घटना के कुछ माह बाद 15 जुलाई 2017 को मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्य की सुरक्षा स्थिति को लेकर नई दिल्ली में गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ एक मीटिंग की. इस मीटिंग के तुरंत बाद महबूबा ने पत्रकारों को बताया कि चीन कश्मीर में स्थिति खराब करवा रहा है. गृहमंत्री के साथ हुई मीटिंग के तुरंत बाद मुख्यमंत्री के इस तरह के बयान ने एक बार फिर विश्लेषकों को हक्का-बक्का कर दिया. कुछ लोगों ने इससे यह राय बनाई कि कश्मीर में चीन के हस्तक्षेप के बारे में शायद राजनाथ सिंह ने ही महबूबा मुफ्ती को सूचनाएं दी होंगी. जबकि अन्य विश्लेषकों का विचार था कि शायद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने स्वयं ये बात राज्य के इंटेलिजेंस संस्थाओं से मिली सूचनाओं के आधार पर कही होगी.
दिलचस्प बात यह है कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के कुछ ही दिनों बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी चीन पर पश्चिम बंगाल में हस्तक्षेप का आरोप लगाया. ममता बनर्जी ने केंन्द्रीय गृहमंत्री को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने उन्हें सूचित किया कि चीन पश्चिम बंगाल में ‘चिकननेक’ पुकारे जाने वाले स्ट्रेटेजिक महत्व वाले क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है. ये क्षेत्र चीन को उत्तरी पूर्वी राज्यों के साथ मिलाता है.
चीनी हस्तक्षेप के हवाले से महबूबा और ममता के इन कथनों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संसद में इस समस्या पर बहस की मांग की. इन्होंने सोशल मीडिया टि्वटर पर लिखा कि दो मुख्यमंत्रियों ने चीन के हस्तक्षेप की बात की है. संसद को चाहिए कि इस मामले पर बहस करे एवं सरकार संदेहों को दूर करे. हैरान करने वाली बात यह है कि केन्द्रीय सरकार ने इस मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली.
ठीक उसी तरह की खामोशी जिस तरह केन्द्रीय सरकार ने लद्दाख क्षेत्र में चीन द्वारा जमीन हड़पने के इल्जाम पर अख्तियार किया था. ये बात उल्लेखनीय है कि चंद वर्षों में कई बार अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लद्दाख क्षेत्र में चीन की पेशकदमी के बारे में रिपोर्टें छपी हैं. इसके बावजूद केन्द्र सरकार ने हर बार इस मामले में ये बताने की कोशिश की है कि लद्दाख में चीन के साथ लगने वाली सरहद की सीमाएं तय नहीं होने के कारण गलतफहमी से चीनी सेना भीतर दाखिल हो जाती है.
बहरहाल इन दिनों कश्मीर में चीन के हस्तक्षेप का मामला एक बार फिर बहस का मुद्दा बना हुआ है. दरअसल महबूबा मुफ्ती की करीबी नईम अख्तर ने पिछले सप्ताह नई दिल्ली के एक अखबार को विशेष इंटरव्यू में बताया कि ‘चीन जम्मू और कश्मीर की समस्या के हवाले से अपने लिए एक बड़ी भूमिका के लिए रास्ता ढूंढ रहा है.’ नईम अख्तर ने यह बात जोरदार अंदाज में कही कि ‘चीन कश्मीर में हस्तक्षेप’ कर रहा है.
उन्होंने कहा कि ‘जम्मू व कश्मीर में हाल में बड़े आतंकवादी हमला करने वाले संगठन जैश मोहम्मद को बीजिंग ने व्यावहारिक रूप से गोद ले लिया है. इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘इस बार कश्मीर में एक बड़ा खेल खेला जा रहा है. अब कश्मीर की समस्या केवल भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं रही, बल्कि अब इसके और भी कई पहलू हैं. अब मात्र पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन भी हस्तक्षेप कर रहा है.’
नईम अख्तर ने अपने इंटरव्यू में सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के इस बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि सेना दोनों फ्रंटों पर लड़ने के लिए तैयार है, का वर्णन करते हुए कहा कि अब दो फ्रंट नहीं हैं, बल्कि एक ही फ्रंट है जो भूटान से अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख से वादी एवं वादी से जम्मू, श्रीलंका और मालदीव से होकर गुजरता है. पाकिस्तान और चीन अलग-अलग नहीं है.
मोदी सरकार को इसका जवाब जरूर देना चाहिए कि इसने गत तीन वर्षों के दौरान कश्मीर को लेकर जो कठोर पॉलिसी अपना रखी है, उसके अबतक क्या लाभ हुए हैं.
कश्मीर में हुर्रियत नेताओं को कैद करने एवं बातचीत की प्रक्रिया को शुरू करने से इंकार करने के नतीजे में न ही कश्मीर में हालात ठीक हुए और न ही इसके आसार जल्द दिखाई दे रहे हैं. कहीं ऐसा न हो कि कश्मीर के बारे में मोदी सरकार की कठोर पॉलिसी कश्मीर की समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाने का कारण न बन जाए. यह बात नजरअंदाज नहीं की जानी चाहिए कि दक्षिण एशिया में बदलती हुई राजनीति स्थिति के कारण शक्ति का बैलेंस बिगड़ गया है.
जम्मू कश्मीर का राज्य भौगोलिक लिहाज से इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण है. अगर इस क्षेत्र को युद्ध के मैदान में बदलने की चेष्टाएं की गईं, तो राज्य तबाह हो जाएगा, मगर भारत न चाहते हुए भी एक सैन्य झगड़े में फंस जाएगा. वैसे भी जम्मू कश्मीर में लाखों की तादाद में तैनात फौज गत तीस वर्षों से मिलिटेंसी को समाप्त करने में पूर्ण रूप से नाकाम साबित हुई है. अगर चीन जैसे देश ने हिन्दुस्तान के विरुद्ध जम्मू और कश्मीर को प्रॉक्सी युद्ध के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की, तो नई दिल्ली के लिए स्थिति और ज्यादा मुश्किलें पैदा करने वाली हो सकती है.