चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दि समारोह में चीन के सर्वोच्च और एकमात्र नेता शी जिनफिंग ने जो भाषण दिया है, उसने सारी दुनिया को यह बता दिया है कि यह 19 वीं और 20 वीं सदी का चीन नहीं है। यह 21 वीं सदी का चीन है और यह 21 वीं सदी, चीन की सदी होनेवाली है। वे दिन लद गए, जब अफीम-युद्ध (1840) के बाद चीन लगभग गुलाम देश बन गया था, सारे देश में सामंती व्यवस्था छा गई थी और आम आदमी भूख के मारे दम तोड़ता रहता था। चीनी सभ्यता और संस्कृति को दरी के नीचे सरका दिया गया था। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के उदय ने चीन को अपना गौरव लौटाया, विदेशी शिकंजों से मुक्त किया और जनता को निर्भय बनाया। उ
न्होंने अपने एक घंटे के भाषण में जो सबसे तीखी बात कही, वह यह कि जो भी देश चीन को धमकाना चाह रहे हैं, वे समझ लें कि उनके सिर फूटते दिखेंगे और खून की नदियां बहेंगी। उनका स्पष्ट इशारा अमेरिका की तरफ था। अमेरिका आजकल चीन को लगभग हर क्षेत्र में चुनौती दे रहा है। इंडो-पेसिफिक याने प्रशांत-सागर क्षेत्र में वह भारत, जापान और आस्ट्रेलिया से मिलकर चीन को धमकाने की कोशिश करता है। एसियान देशों को पटाकर वह चीन के खिलाफ मोर्चा खड़ा कर रहा है। चीन भी कम नहीं है। वह दक्षिण और पश्चिम एशिया के देशों को एशियाई महापथ के नाम पर भारी कर्जों से दबा रहा है। अफ्रीकी देशों में भी पांव पसारने में उसने कोई कमी नहीं रखी है।
वह 21 वीं सदी को चीन की सदी बनाने पर उतारु है। वह अपनी फौजी शक्ति इतनी बढ़ा रहा है कि एशिया ही नहीं, वह सारे विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बन जाए। शी ने अपने भाषण में चीन की प्रसिद्ध दीवार को ‘इस्पात की दीवार’ कहकर सारे विश्व के आगे खम ठोक दिया है। मुझे याद नहीं पड़ता कि इतना आक्रामक भाषण कभी माओ त्से तुंग या चाऊ एन लाई ने भी दिया हो। शी ने पुराने कम्युनिस्ट ढांचे का जो आधुनिकीकरण किया, उसका जिक्र तो किया ही, यह भी कहा कि उनके कार्यकाल (2008 से अब तक) में गरीबी का उन्मूलन हुआ, फौज का आधुनिकीकरण हुआ और अब जब कम्युनिस्ट चीन की 2049 में सौवीं जयन्ति होगी, तब तक चीन सच्चे अर्थों में महान समाजवादी राष्ट्र बन जाएगा। उन्होंने हांगकांग और ताइवान पर भी पूर्ण कब्जे की घोषणा की है।
शी जिनफिंग का पूरा भाषण सुनकर मुझे यह बिल्कुल नहीं लगा कि यह किसी मार्क्स या एंजेल्स या लेनिन के अनुयायी का भाषण है। यह भी नहीं लगा कि यह माओ के समाजवादी विचारों को लागू करने के संकल्प का द्योतक है। मुझे यह समाजवाद तो क्या, उग्र राष्ट्रवाद का नगाड़ा पीटनेवाला भाषण लगा। चीनी नागरिकों को अपने दैनंदिन जीवन में अमेरिकी ढर्रे पर चलाने की योजना के अलावा इसमें कौनसा समाजवादी समतामूलक विचार प्रकट किया गया है ? शी के भाषण में पूंजीवादी, भोगवादी, अंध-राष्ट्रवादी ध्वनियों के अलावा क्या था ? चीन में समृद्धि जरुर आई है लेकिन वहाँ ऊँचे उठ रहे अमीरी के पहाड़ और नीचे खुद रही गरीबी की खाइयां देखकर दिल दहल जाता है। नया चीन बन रहा है, इसमें शक नहीं लेकिन चीन में क्या नया समाज बन रहा है ? चीन अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान रहा है लेकिन वह उसकी कॉर्बन कॉपी बनता जा रहा है। यदि वह अमेरिका से भी ज्यादा संपन्न और शक्तिशाली हो गया तो भी क्या वह मार्क्स और माओ के सपनों को साकार कर पाएगा ?