सोलहवीं लोकसभा के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों में चुनाव बेहद नज़दीक हैं. सभी राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर चुके हैं. अगर देखा जाए, तो पूर्वोत्तर शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. हालांकि, हर चुनाव के समय विभिन्न सियासी पार्टियां कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए पूरी ताकत झोंक देती हैं, लेकिन विपक्षी एकजुटता की कमी और ठोस रणनीति के अभाव में वे सफल नहीं हो पाती हैं. वैसे भी पूर्वोत्तर के विकास की दिशा में कांग्रेस नीत सरकारों ने कोई विशेष काम नहीं किया है, बावजूद इसके इन राज्यों में अधिकतर समय कांग्रेस की ही सरकार रही है. सियासी जानकारों की मानें, तो इस बार पूर्वोत्तर में बेहद दिलचस्प चुनावी मुक़ाबला होगा. अब तक विपक्षी पार्टियों की चुनौती से बेपरवाह रहने वाली कांग्रेस इस बार ज़्यादा परेशान दिख रही है. पूर्वोत्तर के राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का कोई ख़ास जनाधार नहीं रहा है, लेकिन बतौर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सक्रियता और पूर्वोत्तर में उनकी रैली होने से हालात काफी बदल चुके हैं. पूर्वोत्तर में मोदी की लहर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले जहां पार्टी का टिकट पाने के लिए मारामारी नहीं थी, वहीं इस बार नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में पूर्वोत्तर से आए टिकटार्थियों की लंबी कतार देखी गई.
भाजपा के शीर्ष नेताओं का मानना है कि पूर्वोत्तर में यह बदलाव नरेंद्र मोदी की वजह से आया है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो इस बार पूर्वोत्तर के चुनावी नतीज़े बेहद चौंकाने वाले होंगे. इस बार असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश एवं नगालैंड में भाजपा अच्छी स्थिति में दिख रही है. अगर ऐसे ही हालात बने रहे, तो यहां भाजपा को कुछ सीटों का फ़ायदा हो सकता है. भाजपा के स्थानीय नेताओं का कहना है कि पूर्वोत्तर में नरेंद्र मोदी की जनसभाओं से पार्टी कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं. ग़ौरतलब है कि पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय पार्टियों का कोई वजूद नहीं है, सिवाय नगालैंड के. प्रदेश के सियासी अतीत की बात करें, तो यहां शुरू से ही क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में कांग्रेस के सामने दूसरी पार्टियां बौनी दिखती हैं. मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, सिक्किम एवं असम की सत्ता पर अब तक कांग्रेस का दखल रहा है, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपना किला बचा पाएगी, यह कहना मुश्किल है. देशव्यापी भ्रष्टाचार एवं महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस चौतरफ़ा हमले की शिकार है. प्रदेश के पार्टी नेताओं की मानें, तो यही एक ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर कांग्रेस बैकफुट पर नज़र आ रही है.
त्रिपुरा में सभी पार्टियों ने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. वाममोर्चा ने भी पश्चिम त्रिपुरा एवं पूर्वी त्रिपुरा से अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार दिए हैं. वाममोर्चा ने पश्चिम त्रिपुरा से शंकर प्रसाद दत्त और पूर्वी त्रिपुरा से जीतेंद्र प्रसाद चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. वहीं तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम त्रिपुरा से रतन चक्रवर्ती और पूर्वी त्रिपुरा से भृगुराम रियांग को अपना प्रत्याशी बनाया है. पूर्वोत्तर के चुनावी समर में आम आदमी पार्टी भी शामिल है. पार्टी की ओर से कर्ण विजोय जमातिया एवं डॉ. सालिल साहा क्रमश: पूर्वी और पश्चिम त्रिपुरा से उम्मीदवार बनाए गए हैं. भाजपा ने यहां सुधींद्र सीएच दासगुप्ता और परीक्षित देव वर्मा को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस की ओर से प्रो. अरुणोदय साहा एवं सचित्रा देव वर्मा को पूर्वी और पश्चिमी त्रिपुरा से प्रत्याशी बनाया गया है. हालांकि, त्रिपुरा में वाममोर्चा की सरकार काफी मजबूत है. राज्य के चुनावी इतिहास पर नज़र दौड़ाएं, तो यहां वाममोर्चा का मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस से ही रहा है. सियासी जानकारों के मुताबिक़, इस बार कमोबेश यही स्थिति रहने वाली है. अगर त्रिपुरा के मतदाताओं की बात करें, तो यहां के मूल निवासी आदिवासी हैं, जो पहाड़ों पर रहते हैं, जबकि शहरी इलाक़ों में ग़ैर त्रिपुरा के लोग रहते हैं. त्रिपुरा के स्थानीय लोगों के साथ बरती जा रही ग़ैर-बराबरी के ख़िलाफ़ इंडिजीनस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा जैसे दल हमेशा आवाज़ उठाते रहे हैं. बहरहाल, आगामी लोकसभा चुनाव में यह तय माना जा रहा है कि त्रिपुरा में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहेंगे.
अब बात करते हैं मणिपुर की. यहां क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति बेहद कमजोर रही है. आज़ादी से लकर आज तक सूबे की सत्ता पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत बनी हुई है. हालांकि, वर्षों तक कांग्रेसी शासन रहने के बाद भी मणिपुर की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. इससे तकलीफ़देह बात और क्या होगी कि आज़ादी के 66 वर्षों बाद भी मणिपुर की जनता बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. राज्य की लाइफ लाइन कहे जाने वाले नेशनल हाईवे 39 की हालत बेहद खराब है. यहां बिजली और पानी की भी गंभीर समस्या है. राज्य के ग्रामीण इलाकों में महज दो घंटे के लिए ही बिजली आती है. मणिपुर में अफसपा, भारत-म्यांमार सीमा फेंसिंग एवं इनर लाइन परमिट आदि कई समस्याओं का हल अबतक नहीं हो पाया है. मणिपुर में आम आदमी पार्टी भी सक्रियता दिखा रही है, लेकिन चुनाव में उसे किसी तरह की सफलता नहीं मिलने वाली है. आम आदमी पार्टी ने यहां से डॉ. केएच इबोमचा सिंह और एम खामचिनपौ जऊ को अपना उम्मीदवार बनाया है.
कांग्रेस पार्टी ने अपने मौजूदा सांसदों टी मैन्य और थांगसो बाइते को ही उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने डॉ. आरके रंजन एवं प्रो गांगुमै कामै को इनर और आउटर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने यहां से एस मनाउबी सिंह और किम गांते को प्रत्याशी बनाया है. मणिपुर डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट की ओर से डॉ. जी तोनसना शर्मा और नगा पीपुल्स फ्रंट की ओर से सोरो लोरहो मैदान में हैं. जेडीयू ने लीन गांते, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने लामललमोइ, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ने चूंगखोकाई दौंगेल को अपना उम्मीदवार बनाया है.
अरुणाचल प्रदेश की बात करें, तो यहां हाबुंग पायेंग आम आदमी पार्टी के बड़े नेता हैं. माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस को कड़ी चुनौती देंगे. कांग्रेस ने इस बार अरुणाचल प्रदेश से सात नए चेहरों को टिकट दिया है, जिसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मुकुल मिथि का पुत्र भी शामिल है. हालांकि, कांग्रेस के वर्तमान विधायक अतुम वेल्ली पिछले दिनों भाजपा में शामिल हो गए. ख़बरों के मुताबिक, वह पाक्के केस्सांग संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे. नगालैंड में क्षेत्रीय पार्टी सबसे मजबूत है. नगा पीपुल्स फ्रंट यहां की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी है. यह पार्टी नगालैंड में कई वर्षों से सत्ता में है. यहां लोकसभा की महज एक सीट है. वर्तमान मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो भाजपा से गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरेंगे. हालांकि, रियो पर सांप्रदायिकता के गंभीर आरोप भी लगते रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि भाजपा से गठबंधन होने के बाद यहां का चुनाव परिणाम बदल सकता है. पंद्रहवीं लोकसभा में पूर्वोत्तर से भाजपा के कुल चार सांसद थे, लेकिन इस बार यह संख्या बढ़ सकती है, जैसा कि पार्टी नेताओं का मानना है.
बहरहाल, सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव पर देश भर की निगाह लगी हुई है. पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस समेत सभी स्थानीय पार्टियां चुनाव प्रचार में जुटी हैं. भाजपा ने भी यहां पूरी ताकत लगा दी है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वोत्तर का चुनाव परिणाम इस बार किस पार्टी के पक्ष में जाता है.
चौंकाने वाले होंगे चुनाव परिणाम
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