अहमद पटेल पर एक बड़ा आरोप है कि उन्होंने गुजरात में कांग्रेस को बढ़ने नहीं दिया. कांग्रेस के लोगों का कहना है कि पिछले 25 साल में उनका एक भी कदम, एक भी सुझाव ऐसा नहीं रहा, जो कांग्रेस पार्टी के प्रभाव में बढ़ोत्तरी करने वाला हो. सवाल है कि जो व्यक्ति देश भर की कांग्रेस को कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव के नाते चला रहा हो, उसके बारे में गुजरात में ऐसी राय क्यों है? 1989 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे, तब गुजरात में जनता दल की सरकार बनी.
वीपी सिंह के हटने के बाद कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने की संभावना थी, लेकिन श्री अहमद पटेल के फैसले के फलस्वरूप गुजरात जनता दल से कांग्रेस का समझौता हुआ, जिसके नेता चिमनभाई पटेल थे. कांग्रेस पर फिर ये इल्जाम लगा कि कांग्रेस तो भ्रष्ट लोगों को समर्थन देती है और इसमें भ्रष्ट लोग ही हैं. लोगों में ये भावना फैली कि कांग्रेस सिर्फ पावर के लिए है, लोगों के लिए नहीं है और भ्रष्ट लोगों को ही आगे बढ़ाती है.
इन लोगों ने शंकर सिंह वाघेला के साथ भी ऐसा ही किया. शंकर सिंह वाघेला को मुख्यमंत्री बनाया और शंकर सिंह वाघेला को मुख्यमंत्री पद से हटाया. इस सवाल के जवाब में कि यह गुजरात कांग्रेस ने किया या अहमद पटेल ने, कांग्रेस के लोगों का कहना था कि ये सारे फैसले अहमद पटेल ने लिए. अहमद पटेल का ही मतलब गुजरात कांग्रेस था और आज भी गुजरात कांग्रेस का मतलब अहमद पटेल ही हैं.
अभी गुजरात में कांग्रेस की जीत के लिए एक नई संभावना बनी है. लेकिन वहां के लोगों का कहना है कि इसमें कांग्रेस का कोई योगदान नहीं है. पिछले वर्षों में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में रहने के कारण, जो लोगों की नाराजगी है, उसकी वजह से कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं बन गई हैं. इस जीत की संभावना को कांग्रेस सत्यता में बदल पाएगी, इसे लेकर गुजरात कांग्रेस के नेताओं, वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनता के बीच बहुत बड़ा संदेह है.
अशोक गहलोत गुजरात कांग्रेस के प्रभारी हैं. वो गुजरात में समय दे रहे हैं. उन्होंने अहमदाबाद में घर भी ले लिया है. लेकिन नीचे के लोग, जिन्हें गुजरात में काम करना है, अशोक गहलोत के पास नहीं पहुंच पाते. अशोक गहलोत भी उन्हीं नेताओं से घिरे हुए हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये अहमद पटेल से जुड़े हुए हैं.