चीन में आज  से सौ साल पहले शासन मुक्त, शोषणमुक्त समाज के लिए कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई थी !
यह है दो जुलै 2021 के दिन, तिअनमेन चौक बीजिंग का, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना के सौ साल का जश्न का फोटो है ! लगभग इसी महीने लेकिन सौ साल पहले चायना के शहर शंघाई में तेरह युवाओं ने मिलकर चायनिज कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की है , और स्थापना के बाद कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की तरफ से मास्को से जो लोग चायनिज कम्युनिस्ट पार्टी की मदद करने के लिए भेजे गए थे उसमे एक नाम भारत के एम एन राय का भी है !

1926 के नवंबर में मास्को में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की कार्यकारिणी की बैठक में एम एन राय ने खुद एक प्रस्ताव रखा ,क्योंकि पहले से ही चीन में बोरोडीन के आग्रही प्रतिपादित विचारों के कारण और लिओन ट्राट्स्की के अतिवादी विचारों से एक गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई थी तो कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के सचिव स्टालिन ने तुरंत एम एन राय को चीन जाने के लिए कहा और उनके चीन की यात्रा को गुप्त रखने की कोशिश की गई लेकिन ब्रिटेन के गुप्तचर विभाग को यह खबर मिली थी तो एम एन राय चीन आ रहे हैं यह बात पुरे चीन में आग की तरह फैल गई लेकिन ब्रिटेन के गुप्तचर विभाग को चकमा देकर राय रातमे चीन में चुपचाप दाखिल हो गए थे किन्तु कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के दूसरे प्रतिनिधि बोरोडीन के अडियल रवैये के कारण राय की सलाह को अनदेखा किया गया तो एम एन राय थक हार कर वापस रशियामे लौटने के लिए मजबूर हुए !

आज की बात है कि ,वर्तमान चीनी अर्थव्यवस्था को देखकर लगता है कि, वह एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को बढावा देने के लिए, दुनिया के मजदूरों एक हो के नारे को नजरअंदाज करते हुए, इस व्यवस्था को बढावा देने के लिए करोड़ों मजदूरों का शोषण जो कार्ल मार्क्स ने औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप अमेरिका में अठारह घंटे से भी ज्यादा काम,महिला एवं बाल मजदूरों का अमानवीय शोषण और कम मजदूरी और अन्य सुविधाओं के लिए अपने चिंतन और काम किया था !
और उसीके परिणाम स्वरूप रशिया मे लेनिन और उनके अन्य साथियों ने मिलकर 1917 में तत्कालीन सत्ताधारियों के खिलाफ क्रांति की है ! और सोवियत संघ के सत्तर साल के भीतर ही वह असफल होने के कारण 190-91 से (वहां कम्युनिस्ट पार्टी का अस्तित्व है,जो कि एक अल्पमत वाले दल के हैसियत से !) लेकिन सत्ता में बैठे हुए पुतिन कभी केजीबी के अफसर रहे व्यक्ति के हाथ में उनके जीवित रहने तक वह सत्ता में बने रहने की व्यवस्था कर के बैठे हैं ! और वह अपने आप को कम्युनिस्ट पार्टी के नही मानते हैं !

लेकिन चीन में लगभग रशियामे और समस्त पूर्वी यूरोप के कम्युनिस्ट किले धाराशाही हो रहे थे उसके भी पहले यानी 1976 में माओ की मृत्यु होने के बाद ही चायनिज कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों मे बदलाव करने की शुरुआत उनके बाद आये हुये और वर्तमान सत्ताप्रमुख कम्युनिस्ट पार्टी का नाम यथावत रखकर ही संपूर्ण कम्युनिस्ट दर्शन मे ढूंढ कर भी नही मिलेंगे ऐसे-ऐसे प्रयोग कर रहे जिससे समाजवाद, कम्युनिस्ट दर्शन को मानने वाले लोग दिग्भ्रमित हो कर सिर्फ दर्शकों की भुमिका मे देख रहे हैं !

स्थापना के बाद 1949 तक अट्ठाईस साल की क्रांति के लिए लांग मार्च से लेकर अन्य सभी सभी कोशिश की अलग कभी चर्चा होगी, फिलहाल माओ के मृत्यु के पस्चात लगभग अर्धशतकका सफर (45साल) के कारण वर्तमान चीनी अर्थव्यवस्था जीस तरह कम्युनिस्ट दर्शन को परे रखकर दुनिया के सबसे सस्ता मजदूरों का इस्तेमाल कर के और दुनिया के हर सामान की हूबहू नकल कर के जो उत्पादन करना शुरू कर दिया उसमें गहने, इलेक्ट्रॉनिक, खाने-पीनेका सामान, कपड़े, चमडे के उत्पादन, ऑटोमोबाइल, मशीनरीसे लेकर रक्षा के लिए लगने वाले हर तरह के हथियार और सबसे हैरानीकी बात जिस वुहान से निकला हुआ कोरोना, जिसमें संपूर्ण विश्व की स्वास्थ्य सेवा लगभग चरमरा गई है ! और औषधियों मे भी चायनिज उद्योग विश्व में दुसरे नंबर पर खड़ा है !

शायद ही वर्तमान चीनी उद्दोग जगत ने कोई ऐसा उत्पाद हो जिसे नही किया हो भारत जैसे धार्मिक और कर्मकांड करने के लिए मशहूर देश की पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाता है ऐसी मूर्तियों से लेकर उन्हें सजाने-सवारने के लिए लगने वाले हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक लाइटें, संगीत और मंत्र-तंत्र तक चायनिज उद्योगों की देन और सबसे हैरानीकी बात इतने सस्ते होते हैं कि भारत के सभी उत्पादों को मात दे रहे हैं और सुनने में आया कि अमेरिका खुद चायनिज उद्योगों के उत्पादन से परेशान है ! क्योंकि वर्तमान में वहां भी चायनिज सामान की भरमार चल रही है !

तथाकथित जागतिकिकरण का फायदा अमेरिका और अन्य औद्योगिक विकास के लिए मशहूर देशो को जो भी फायदा हुआ होगा वह अलग बात है लेकिन मेरे अनुमान से आंतरराष्ट्रीय मुक्तबाजार के सबसे लाभार्थियों की सूची तैयार करेंगे तो चायनिज उद्योगों के उत्पादन को सबसे उपर का स्थान देना होगा ! दो जुलाई को तिअनमेन चौक पर शानदार जुलुस और जो प्रदर्शन वर्तमान सत्ताधारियों ने किया है और वह भी कम्यूनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के आडमे ! यह समस्त विश्व के समता, न्याय और लोकतंत्र के लिए बहुत ही बडा चैलेंज है ! क्योंकि जो भी कोई चायनिज सामान खरीदने के लिए जाकर आया है और जो वर्णन मजदूरों के शोषण और कम मजदूरी और जेल जैसे ही उनके बरैक बनाकर रखे हुए और यूनियन का तो सवाल ही नहीं उठता है ? क्योंकि सरकार जब खुद मजदूरों की तानाशाही से ही बनी है तो यूनियन किस बात के लिए ?

कुछ साल पहले की खबर है कि चीन के किसी इलाके में कोयले की खदान में खदान धसकर कुछ हजार मजदूरों की मौत हो गई लेकिन चीन के किसी भी अखबार में एक लाइन की खबर नहीं छपी ! और मजदूरी तथा अन्य सुविधाओं की तो बात ही नहीं है ! क्योंकि मजदूरों की तानाशाही से ही बनी सरकार मे जो है ! शायद विश्व का एकमात्र देश है चीन जो पर्यावरण के किसी भी मापदंड को नही मानता है और इसकारण आप बीच-बीचमें सुनते होंगे कि चायनिज महानगरोमे दिन में भी औद्योगिक प्रदूषण के कारण विजिबिलिटी इतनी कम हो जाती है कि लोगों को लाइट लगाकर वाहनों का परिचालन करना पडता है और काफी लोगों ने अपने मुहपर ऑक्सिजन के लिए मास्क पहनकर चलने की आदत डाल ली है !

और जिन लोगों ने थोड़ा बहुत धन कमा लिया है वह अब महानगरों की नौकरी, काम धंधा छोड़ गाँव के तरफ जाने शुरू किए है ! लेकिन मुझे लगता है कि जब यह संख्या बढती हुई सरकार की नजरों में आयेगी तो सरकार सख्त कानूनों के द्वारा लोगों को जबरन शहरों में तथा औद्योगिक क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर कर सकती है !
आखिरकार मजदूरों की तानाशाही से ही बनी सरकार जो है !

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