सीबीआई की विवादों में रहने की एक प्रवृत्ति है और वर्तमान सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा उस समय विवादों को हवा देने में हिचकिचाते नहीं हैं, जब उन्हें महसूस होता है कि ऐसा करना सही है. सेबी के पूर्व चेयरमैन सी बी भावे और पूर्व सदस्य के एम अब्राहम के ख़िलाफ़ प्राथमिक जांच सीबीआई का हालिया निर्णय है. इन लोगों के ख़िलाफ़ एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज का अनुमोदन करने में अनियमितता बरतने का आरोप है. सीबीआई के इस निर्णय की वजह से शायद बहुत सारी समस्याएं खड़ी हो गईं. उसे प्रेक्षकों को वापस बुलाना पड़ा, क्योंकि उसके इस निर्णय को लेकर कई पूर्व प्रतिष्ठित नौकरशाहों ने विरोध दर्ज कराया. पूर्व सीवीसी ए विट्ठल और पूर्व सीएजी विनोद राय ने भावे एवं अब्राहम के कार्यों को बेहतरीन बताते हुए सीबीआई के इस क़दम पर सवाल खड़े किए. पूर्व नौकरशाहों के इस रुख के जवाब में रंजीत सिन्हा ने इस बात से इंकार किया कि सेबी के इन पूर्व अधिकारियों की जांच गलत जानकारी के आधार पर की जा रही थी. उन्होंने कहा कि जांच शुरू करने के लिए विश्वसनीय जानकारी थी, लेकिन सिन्हा के इस जवाब से पूर्व अधिकारी संतुष्ट नहीं हैं.
नेताओं और नौकरशाहों की जुगलबंदी
उत्तर प्रदेश में अधिकारियों और नेताओं की जुगलबंदी हमेशा ही ख़बरों में बनी रहती है. चाहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा बड़ी मात्रा में तबादलों का मामला हो या किसी नौकरशाह द्वारा की गई गड़बड़ियां, हमेशा ही यह सब ख़बरों में रहता है. कानपुर के एसएसपी यशस्वी यादव द्वारा शहर के जूनियर डॉक्टरों के साथ अत्याचार किया गया, जिसके बाद डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी. डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से समाजवादी पार्टी को आरोपों का सामना करना पड़ा. ऐसा तब हुआ, जब बीते दो सालों से राज्य में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति खराब चल रही है. मजेदार बात तो यह है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस अधिकारी की तारीफ़ कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि यशस्वी राज्य के सबसे बेहतरीन अधिकारियों में से एक हैं. इसके अलावा आईएएस वीक के दौरान मुख्यमंत्री ने एक और अजीब बात कही. उन्होंने कहा कि एक आईएएस अधिकारी को रिश्वत लौटाकर प्रोन्नत कर दिया गया. निश्चित रूप से वह आशा नहीं कर रहे थे कि इस बात के बाद उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा. अब एक्टिविस्ट कह रहे हैं कि सरकार को दोषी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए, अन्यथा मामले को न्यायपालिका के समक्ष लाया जाएगा.
नौकरशाहों की बेचैनी
दो राज्यों की राजधानी होने के कारण चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के अधिकारी सेवाएं देते हैं. उनके अलावा यहां संघीय प्रदेशों के अधिकारी भी सेवाएं देते हैं. सेवाएं देने का प्रतिशत 60 और 40 है. मतलब यह कि पंजाब के 60 प्रतिशत अधिकारी और हरियाणा के 40 प्रतिशत. लेकिन, हरियाणा के अधिकारियों में इस बात को लेकर बेचैनी है कि चंडीगढ़ में तैनाती के दौरान उनका कार्यकाल छोटा कर दिया जाता है. स्पष्ट रूप से इस बात को लेकर संघीय प्रदेशों के गृह सचिव अनिल कुमार पर दबाव बना हुआ है. अब वह इस मामले को केंद्रीय गृह मंत्रालय लेकर जाएंगे. यद्यपि यह मामला पहले भी कई बार उठ चुका है. हालिया स्थिति तब पैदा हुई, जब हरियाणा के अधिकारियों ने इस बात की मांग की कि संघीय प्रदेशों के सलाहकार का पद राज्य के ही अधिकारी को दिया जाए. यह क़दम बहुत सही समय पर उठाया गया है, क्योंकि वर्तमान सलाहकार के के शर्मा अगले महीने ही रिटायर होने वाले हैं. इसके अलावा हरियाणा के अधिकारी इस बात से भी खिन्न हैं कि चंडीगढ़ के तीन अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया गया है, जिसकी वजह से उन्हें वहां सेवा करने का मौक़ा नहीं मिल पाएगा.
सीबीआई की परेशानी
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