पंजाब कांग्रेस में जारी कलह के बीच पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह जल्द ही एक नई पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पंजाब में जारी सियासी खींचतान के बीच सूत्रों ने कहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अगले एक पखवाड़े (15 दिन) के भीतर एक नई राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं। माना जा रहा है कि उनके संपर्क में दर्जनभर कांग्रेस नेता हैं, जो उनकी तरह ही कांग्रेस आलाकमान से नाराज चल रहे हैं।
इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से कहा कि करीब एक दर्जन कांग्रेस नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के संपर्क में हैं। फिलहाल, अगले कदम को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने समर्थकों से भी विचार-विमर्श कर रहे हैं। अमरिंदर सिंह के पंजाब के कुछ किसान नेताओं से भी मिलने की संभावना है। बता दें कि बुधवार को अमरिंदर सिंह ने अमित शाह से मुलाकात की थी, जिसके बाद भाजपा में उनके जाने की अटकलों को हवा मिली थी।
पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से ही जारी कई तरह की अटकलों पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट किया कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल नहीं हो रहे हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि वह कांग्रेस छोड़ रहे हैं क्योंकि उनसे इतना अपमान सहा नहीं जा रहा है। अमित शाह के साथ बुधवार को मुलाकात के बाद कैप्टन ने कहा था कि गृहमंत्री के साथ उनकी किसान कानूनों को लेकर बातचीत हुई थी।
डांवाडोल पार्टी में फूंकी थी जान
राजिंदर कौर भट्ठल के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब कांग्रेस की कमान संभाली थी तो पार्टी की स्थिति डांवाडोल थी। 1997 में तो कांग्रेस के सिर्फ 14 विधायक ही जीते थे और भाजपा-अकाली दल का पूरा वर्चस्व था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी में जान फूंकी और 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी को सत्ता में ले आए और 14 से सीधे 61 विधायक कांग्रेस के जीते। कैप्टन ने सबसे अधिक झटका भाजपा को दिया, जिनके सिर्फ तीन विधायक रह गए। 2007 में कांग्रेस का प्रदर्शन भी निराशाजनक नहीं रहा, कैप्टन के नेतृत्व में 44 विधायक कांग्रेस के जीते थे। इसके बाद कांग्रेस की कमान मोहिंदर सिंह केपी को मिली और बाद में प्रताप बाजवा को लेकिन दोनों कांग्रेस को सत्ता तक नहीं ला सके। 2012 में कांग्रेस के 46 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे लेकिन सत्ता नहीं मिली।
सरकार और संगठन में हमेशा रखा तालमेल
हाईकमान ने दोबारा कैप्टन को कांग्रेस का प्रधान बनाया और 2017 में कैप्टन दोबारा कांग्रेस को सत्ता में ले आए और 77 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सत्ता संभाली तो प्रदेश की प्रधानगी सुनील जाखड़ को मिली। संगठन और सरकार के बीच लगातार तालमेल रहा। हालांकि प्रताप बाजवा, अश्वनी सेखड़ी, सांसद शमशेर सिंह दूलो समेत कई नेता कैप्टन विरोधी रहे लेकिन सरकार व संगठन के बीच संतुलन बना रहा।
अफसरशाही पर है मजबूत पकड़
कैप्टन की अफसरशाही में पकड़ बेशक उनको मजबूत बनाती रही लेकिन आम कार्यकर्ताओं व नेताओं से उनकी दूरी बढ़ती चली गई। अब स्थिति बिल्कुल उलट है। सिद्धू प्रदेश प्रधान बनने के बाद सुनील जाखड़, प्रताप सिंह बाजवा, शमशेर सिंह दूलो, अश्वनी सेखड़ी समेत कई नेता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सिद्धू व चन्नी की ताजपोशी के बाद जिस तेजी से वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया गया है, उसको पूरी तरह से कैप्टन भुनाने की तैयारी में है।
कैप्टन ने कांग्रेस आलाकमान के कहने पर 18 सितंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की जिससे यह अटकलें तेज हो गई कि संभवतः वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। इस बीच नवजोत सिंह सिद्धू ने भी पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस की मुसीबत और बढ़ा दी।