डिजिटल इंडिया मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. मोदी सरकार का मानना है कि डिजिटल इंडिया से बहुत सारे काम आसान हो जाएंगे. फिर चाहे संचार क्रांति की बात हो या कैशलेस इंडिया बनाने की बात. लेकिन, जिस देश में कॉल ड्रॉप की समस्या इतनी आम हो, वहां भला डिजिटल इंडिया की कल्पना भी कैसे की जा सकती है? ये बात हम नहीं बल्कि खुद सरकार की संस्थाएं कह रही है.
ये आंकड़े कुछ कहते है
आज तमाम कोशिशों के बाद भी कॉल ड्रॉप एक बड़ी समस्या बनी हुई है. सिटीजन प्लेटफार्म लोकल सर्किल द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक, भारत में 20 प्रतिशत मोबाइल फोन उपभोक्ता अपने पांच कॉल में से एक कॉल व्हाट्सएप, स्काईप या अन्य इन्टरनेट आधारित प्लेटफार्म से करते हैं. लोकल सर्किल ने कॉल ड्रॉप को लेकर देश के 200 जिलों में दो सर्वे करवाए. सर्वे के 21 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि उनके 50 प्रतिशत कॉल ड्रॉप हो जाते हैं या उनमें कनेक्शन की समस्या होती है. 35 प्रतिशत का कहना था कि उनके 20 से 50 प्रतिशत कॉल्स ड्रॉप होते हैं या उन्हें कनेक्शन की समस्या से जूझना पड़ता है. 30 प्रतिशत ने कहा कि उनके 20 प्रतिशत कॉल ड्रॉप होते हैं या कनेक्शन की समस्या होती है. जबकि केवल 11 प्रतिशत का कहना है कि उनके कॉल्स ड्रॉप नहीं होते. रेडमैंगो एनालिटिक्स द्वारा देश के 20 शहरों में कराए गए एक अन्य सर्वे के मुताबिक, भारत में कॉल ड्रॉप रेट ट्राई के 2 प्रतिशत के स्वीकार्य स्तर से काफी ऊपर है. इस सर्वे के मुताबिक, भारत में कॉल ड्रॉप की दर 4.73 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत दर 3 प्रतिशत से भी काफी ऊपर है.
प्रधानमंत्री और कॉल ड्रॉप की समस्या
जब प्रधानमंत्री की कॉल ड्रॉप हो रही हो, तो फिर आम लोगों की बात कौन करे. खबरों के मुताबिक, पिछले दिनों इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में हुई प्रगति की समीक्षा के लिए बुलाई गई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कॉल ड्रॉप के मुद्दे को उठाया था. उसके बाद संचार मंत्रालय की ओर से समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए दूरसंचार विभाग के अधिकारियों को तकनीकी समाधान ढूंढने के लिए कहा गया है.
टेलीकॉम कम्पनियों से अपने नेटवर्क की क्षमता बढ़ाने के लिए अधिक निवेश करने को कहा. इसके अलावा ट्राई ने मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कम्पनियों पर हर कॉल ड्रॉप पर एक रुपए दंड लगाने का प्रावधान रखा, जिसे इन कम्पनियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने दंड के प्रावधान को ख़ारिज कर दिया. लेकिन इन कम्पनियों को यह आदेश दिया कि वे अपनी गुणवत्ता में सुधार लाएं और ट्राई द्वारा स्थापित दो प्रतिशत के स्वीकार्य स्तर के ऊपर कॉल ड्रॉप की दर को न जाने दें. इस चीज़ से बचने के लिए कम्पनियों ने वीओएलटीई तकनीक का सहारा लिया. इस तकनीक में कॉल की गुणवत्ता चाहे जितनी खराब हो, मगर कभी ड्रॉप के रूप में दर्ज नहीं होती. अब फिर से ट्राई ने कॉल ड्रॉप्स की दर 2 प्रतिशत से ऊपर जाने की स्थिति में कम्पनियों पर 10 लाख रुपए के दंड का प्रस्ताव रखा है.
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है, वो है डिजिटल इंडिया का. इस कार्यक्रम के तहत सरकार ने अपने हर काम को डिजिटलाइज करने का फैसला किया है. यहां तक कि वो देश की अर्थव्यवस्था को कैशलेस अर्थव्यस्था में बदलना चाहती है. लेकिन जबतक मोबाइल नेटवर्क पर कॉल ड्रॉप का काला साया मंडराता रहेगा, डिजिटल इंडिया का सपना, सपना ही रहेगा.