2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद जब मोदी सरकार ने गंगा सफाई को लेकर एक अलग मंत्रालय बनाया, तब लगा था कि निर्मल गंगा का सपना सच होगा. लेकिन कैग की ताजा रिपोर्ट से यही लगता है कि सियासी वादों की बिसात पर बदलते इरादों ने निर्मल गंगा को भी एक कभी न पूरा होने वाला चुनावी जुमला बना दिया है. गंगा के नाम से शुरू हुए सियासी सफर ने नरेंद्र मोदी को गंगा का बेटा और उमा भारती को गंगा की बेटी बना दिया, लेकिन गंगा अपने निर्मल रूप के लिए अब भी किसी की राह देख रही है. कैग के खुलासे के अक्स में गंगा सफाई की वर्तमान दशा-दिशा की पड़ताल करती रिपोर्ट… Ganga19 दिसंबर को जब सरकार और विपक्ष के साथ-साथ पूरा देश गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम की खुमारी में डूबा हुआ था, उसी दिन संसद में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की एक ऐसी रिपोर्ट पेश हुई, जिसने सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना को लेकर उसकी मंशा पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया. हम बात कर रहे हैं गंगा की, जिसकी सफाई भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रमुख चुनावी वादों में थी.

लेकिन जिस गंगा को नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करते समय मां बताया, वह गंगा मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साढ़े तीन साल बाद भी लगभग उसी हाल में है. बदला है, तो सिर्फ यह कि अब गंगा के लिए अगल मंत्रालय बन गया है और गंगा सफाई के नाम पर आवंटित होने वाले पैसों की कोई कमी नहीं है. लेकिन असली मसला है आवंटित हुए पैसों के खर्च का. कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मोदी सरकार गंगा सफाई के लिए आवंटित 2600 करोड़ का उपयोग करने में नाकाम रही है, बीते साढ़े तीन सालों में केवल 25 फीसदी रकम का इस्तेमाल हो सका है.

संसद में पेश की गई कैग की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा सफाई की दिशा में राष्ट्रीय मिशन के लिए जारी 2133.76 करोड़, 422.13 करोड़ और 59.28 करोड़ रुपए सरकार खर्च ही नहीं कर पाई है. गंगा की सफाई के लिए आवंटित ये पूरी रकम 31 मार्च 2017 तक खर्च की जानी थी, लेकिन पूरा 2017 गुजर जाने के बाद भी इन पैसों का उपयोग नहीं हो सका है. कैग की यह रिपोर्ट कहती है कि नमामि गंगे योजना को लेकर 2015-16 में 6,705 करोड़ रुपए जारी हुए, लेकिन इनमें से खर्च हुए मात्र 1,645 करोड़ 41 लाख, वहीं 2017 में स्वच्छ गंगा कोष में 198 करोड़ 14 लाख रुपए आए और इसमें से अब तक एक भी पैसा खर्च नहीं हो सका है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि जमीन की कमी और ठेकेदारों द्वारा काम करने की धीमी गति को कारण बताकर 2,710 करोड़ रुपए की लागत वाली 26 परियोजनाओं में देरी की गई. खर्च ही नहीं, गंगा सफाई के मामले में योजनाओं की मंजूरी को लेकर भी हीलाहवाली बरती गई है.

हाल यह है कि 2014 से 2017 के बीच 154 विस्तृत परियोजनाओं में से सिर्फ 71 को मंजूरी मिली. प्रधानमंत्री से लेकर उमा भारती और अब गडकरी जी भी गंगा सफाई को लेकर तारीखों का ऐलान करते रहे हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मई 2017 तक नदी संरक्षण क्षेत्र की पहचान ही नहीं का जा सकी. वहीं उत्तराखंड को छोड़कर गंगा के किनारे बसे किसी भी राज्य के किसी भी गांव के हर घर में शौचालय बनाने का लक्ष्य अब तक पूरा नहीं हो सका है, जो मार्च 2017 तक पूरा हो जाना चाहिए था.

तारी़ख पर तारी़ख के मामले में उमा से भी आगे गडकरी

घोषित रूप से गंगा के बेटा और बेटी वाली केंद्र सरकार जब ढाई साल में गंगा सफाई को लेकर कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर सकी, तो फिर इसकी जिम्मेदारी मोदी मंत्रिमंडल के एक ऐसे मंत्री के कंधों पर लादी गई, जो प्रदर्शन के मामले में प्रशंसा के पात्र रहे हैं. सितंबर 2017 में मोदी मंत्रिमंडल में हुई फेरबदल में नितिन गडकरी को जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय सौंपा गया. लेकिन मंत्री बनने के बाद से अब तक गडकरी जी ने गंगा सफाई के लिए जो काम किए हैं, वो उसी ढर्रे पर है, जिसपर उनकी पूर्ववर्ती मंत्री उमा भारती जी चल रही थीं.

मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही गडकरी ने ऐलान किया कि वे नमामी गंगे योजना पर तीव्र अमल के लिए कार्यबल का गठन करेंगे. उस समय उन्होंने यह भी कहा था कि हम प्रयास करेंगे कि मंत्रालय उन सभी लक्ष्यों को पूरा करे, जो उमा जी ने निर्धारित किए हैं. इस लिहाज से देखें तो गंगा सफाई के लिए तारीख पर तारीख वाले लक्ष्य के मामले में गडकरी जी पूरी तरह से अपने विभाग की पूर्ववर्ती मंत्री के नक्से कदम पर चल रहे हैं. मंत्री बनने के पहले से मंत्री पद से हटने के बाद तक उमा भारती ने गंगा के पूर्णत: स्वच्छ होने के लिए जो डेड लाइन तय किए थे, गडकरी जी उसे ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

मंत्रालय संभालने के बाद गडकरी ने कहा था कि अगले एक सप्ताह में वे गंगा सफाई के लिए कार्यबल की घोषणा करेंगे. उस समय यह भी कहा गया कि अगले तीन महीने में कोलकात्ता, वाराणसी, कानपुर, इलाहाबाद, पटना, हावड़ा, हरिद्वार और भागलपुर सहित 10 शहरों में गंगा की सफाई का काम शुरू हो जाएगा. गौरतलब है कि गंगा को दूषित करने के लिए 70 फीसदी से ज्यादा जिम्मेदार यही 10 शहर हैं. मंत्री जी के इस बयान के तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन इन 10 शहरों में गंगा सफाई का काम शुरू होने को कोई खबर नहीं है.

अक्टूबर 2017 में गडकरी जी गंगा सफाई के लिए अपना पहला प्लान लेकर आए. 12 अक्टूबर 2017 को उन्होंने कहा था कि निर्मल गंगा के लिए 97 परियोजनाओं पर अगले साल मार्च से काम शुरू कर दिया जाएगा. इन योजनाओं के फलस्वरूप दिसम्बर 2018 तक गंगा के पानी में सुधार दिखने लगेगा. उस समय गडकरी जी ने गंगा सफाई के लिए आम लोगों और कॉर्पोरेट के सहयोग की अपील भी की थी. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि गंगा को निर्मल बनाने की दिशा में गडकरी जी भी उमा भारती की तरह तारीख पर तारीख की दिशा में ही आगे बढ़ रहे हैं.

नाले में तब्दील होने की राह पर गंगा!

कभी 800 मीटर की चौड़ाई में बहने वाली गंगा आज 400 मीटर में सिमट चुकी है, जहां कभी गर्मियों के मौसम में बच्चे डाइव मारा करते थे, वहां आज सर्दी के मौसम में भी बालू के टीले दिख रहे हैं, चंद साल पहले जिस किनारे पर लोग गंगा के पानी से कुल्ला करते थे, वहां से गंगा आज 25 फुट पीछे चली गई है और कुल्ला तो दूर अब गंगा का पानी आचमन के लायक भी नहीं रहा. यह सब बनारस में गंगा की दुर्दशा की स्थिति है. बाबा विश्वनाथ की इस नगरी की शोभा बढ़ाने वाली गंगा की मंद पड़ चुकी धारा देखने पर ऐसा प्रतित होता है कि पानी की कमी से गंगा कराह रही हो. पर अफसोस कि गंगा की यह कराह उन तक नहीं पहुंच पा रही, जो खुद को गंगा का बेटा होने का दंभ भरते हैं.

गंगा की इस दुर्दशा से शायद अब उस योगी आदित्यनाथ को भी फर्क नहीं पड़ता, जिनकी सियासी पहचान को मजबूती प्रदान करने मेंं गंगा के कायाकल्प के वादे ने महती भूमिका निभाई है और जिनकी राजनीतिक पहचान ही भारत के आध्यात्मिक विरासत से होकर निकली है. लेकिन भारतीय विरासत के रग-रग-नस-नस में रची बसी गंगा का निर्मलीकरण राजनीति की परिधी को पार नहीं कर पा रहा और यही वजह है कि गंगा सिमटती जा रही है.

सरकार और सियासत के लिए गंगा भले ही सियासी स्वार्थसिद्धि का माध्यम हो, लेकिन इसके जरिए समाज और संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित होते देखने वालों से गंगा की यह दशा देखी नहीं जा रही. राजनीतिक दौरों के रूप में गंगा मैया का दर्शन करने आने वालों तक भले ही गंगा के इस हाल की खबर नहीं पहुंच पा रही हो, लेकिन वाराणसी वासियों में यह डर व्याप्त हो गया है कि कहीं गंगा की भी वही दशा न हो जाय, जो वरुणा की हो गई. जिन वरुणा और असी नदियों के नाम पर वाराणसी का नामकरण हुआ, उन दोनों नदियों का अस्तित्व आज खत्म होने के कगार पर है. घाट से दूर हो रही गंगा को अगर समय रहते अविरल नहीं किया गया, तो इसके अस्तित्व पर भी खतरा महसूस किया जा सकता है, क्योंकि स्थानीय लोगों का कहना है कि गंगा की यह स्थिति पिछले 55 सालों में नहीं हुई. अस्सी घाट से लेकर आदिकेशव घाट तक गंगा कहीं 30 तो कहीं 60 फुट दूर बह रही है.

पतंजलि भी प्रदूषित करती है गंगा को

सीएजी द्वारा संसद में पेश की गई रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि गंगा के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कम्पनियों में बाबा रामदेव की पतंजलि भी शामिल है. गौरतलब है कि पतंजति शान से खुद को स्वदेशी और राष्ट्रवादी कम्पनी के रूप में प्रचारित करती है, लेकिन अब यह कम्पनी भी गंगा में अवशिष्ट डालने वाली कम्पनियों में शामिल हो गई है. पतंजलि का इस काम में लिप्त होना इसलिए भी अजीब लगता है, क्योंकि बाबा रामदेव खुद गंगा सफाई के लिए आवाज उठाते रहे हें और खुद भी इसके लिए आगे आते रहे हैं.

सीएजी की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली जानकारी भी सामने आई है कि हरिद्वार में गंगा के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार जिन 9 कम्पनियों को बंद करने का आदेश दिया गया था, उनमें से 7 कम्पनियां अभी भी चल रही हैं. गौरतलब है कि उत्तराखंड इनवायरन्मेंट प्रोटेक्शन एंड पॉल्यूशन कॉन्ट्रोल बोर्ड (यूईपीपीसीबी) ने गंगा के प्रदूषण के लिए दोषी 180 उद्योगों को नोटिस जारी किया था, लेकिन इनमें से 42 ने नोटिस का कोई संज्ञान ही नहीं लिया और पूर्ववत गंगा को गंदा करने के अपने काम में लगे हैं. लेकिन इन सब के बावजूद सरकार इसे लेकर पूरी तरह से उदासीन है.

कम्पनियों और कारखानों के जरिए गंगा को प्रदूषित करने का यह खुला खेल केवल हरिद्वार में ही नहीं चल रहा, पूरे देश में कानून और मानकों की धज्जियां उड़ाकर निर्मल गंगा को दूषित और बदबूदार करने का कुप्रयास जारी है. प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस की ही बात करें, तो यहां अब भी गंगा में हर दिन तकरीबन 300 सीवेज का गंदा पानी सीधे तौर पर डाला जा रहा है और यही कारण है कि यहां गंगा के जल की गुणवत्ता घोषित मानकों से काफी नीचे है. बनारस में गंगा के जल में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए, लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक यहां हर जगह यह मात्रा काफी ज्यादा है.

जैसे, तुलसी घाट पर 6.8 मिलीग्राम, शिवाला घाट पर 6.4 मिलीग्राम, राजेंद्र प्रसाद घाट पर 5.2 मिलीग्राम, त्रिलोचन घाट पर 6 मिलीग्राम और वरुणा नदी के पास गंगा के पानी में 52 मिलीग्राम प्रति लिटर बोओडी पाया गया. फोकल कोलीफॉम काउन्ट पानी में उपस्थित बैक्टीरिया की जांच करता है. सामान्य तौर पर नदियों के पानी में इसकी मात्रा 500 से कम होनी चाहिए, लेकिन बनारस में हर जगह गंगा के पानी में यह मात्रा सौ गुना से भी ज्यादा है. तुलसी घाट पर 70,000, शिवाला घाट पर 63,000, आरपी घाट पर 41,000 और त्रिलोचन घाट पर फोकल कोलीफॉम काउन्ट की मात्रा 57,000 प्रति लिटर है.

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