आपको याद होगा कि स्टैचू ऑफ यूनिटी यानि सरदार पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए देशभर से लोहा एकत्र किया गया था, जिसके लिए बाकायदा अभियान चला था. लेकिन उसके बाद उन लौह उपकरणों का क्या हुआ, इसे लेकर कोई खबर सामने नहीं आई. गौर करने वाली बात यह भी है कि स्टैचू ऑफ यूनिटी की वेबसाइट पर भी इसे लेकर दावा किया गया है कि इस परियोजना के लिए देशभर के किसानों से 1 लाख 69 हजार लोहे के उपकरण एकत्र किए गए हैं. लेकिन इसके बारे में कोई खबर नहीं है कि उनका हुआ क्या. इधर, सीएजी ने स्टैचू ऑफ यूनिटी के निर्माण खर्च को लेकर सवाल उठा दिया है.

करीब तीन हजार करोड़ रुपए की लागत से बन रही सरदार पटेल की प्रतिमा पर होने वाले खर्च को लेकर सीएजी के सवाल बेहद गंभीर हैं. सरदार पटेल की 182 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा के निर्माण का ठेका अक्टूबर 2014 में लार्सन एंड टूब्रो को दिया गया था. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि इसके लिए सरकारी तेल कम्पनियों से सीएसआर फंड के तहत धन लिया गया है, जिसपर सीएजी ने सवाल खड़े किए हैं. 7 अगस्त 2018 को संसद में पेश सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 में पांच केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने सीएसआर के तहत 146.83 करोड़ रुपए की धन राशि स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परियोजना के निर्माण के लिए दी है. इनमें से तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने 50 करोड़, हिंदुस्तान पेट्रोलियम निगम लिमिटेड ने 25 करोड़, भारत पेट्रोलियम निगम लिमिटेड ने 25 करोड़, इंडियन ऑयल निगम लिमिटेड ने 21.83 करोड़ और ऑयल इंडिया लिमिटेड ने 25 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कम्पनियों ने सीएसआर की ऐतिहासिक परिसंपत्तियों, कला एवं संस्कृति के संरक्षण के प्रावधान के तहत यह राशि दी है. सीएसआर नियमों के तहत कोई भी सार्वजनिक कम्पनी किसी राष्ट्रीय धरोहर के संरक्षण और रखरखाव के लिए सीएसआर फंड का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन सरदार पटेल की निर्माणाधीन प्रतिमा राष्ट्रीय धरोहर के दायरे में नहीं आती है. इन कम्पनियों के योगदान को कम्पनी अधिनियम- 2013 की सातवीं अनुसूची के अनुसार सीएसआर नहीं माना जा सकता है. इसलिए सीएजी ने कहा है कि तेल कम्पनियों द्वारा इस प्रतिमा के लिए किसी भी तरह का योगदान नियमों के खिलाफ है.

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