बुंदेलखंड की जनता तय नहीं कर पा रही है कि वह ख़ुश हो या दुखी. इस क्षेत्रके विकास के लिए राहुल गांधी की प्रतिबद्धता देख यहां के लोग ख़ुश थे. उन्हें अंतरराज्य स्वतंत्र बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन की उम्मीद बंधी ही थी कि मुख्यमंत्री मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्राधिकरण के विरोध में प्रस्ताव पारित करा दिया. इस दौरान बसपा के बुंदेलखंडीय विधायकों के मूकदर्शक बने रहने से लोगों में गहरा आक्रोश है. बुंदेलखंड राज्य की समर्थक बसपा के इस नए रुख़ से उसकी कलई खुल गई है. यहां के लोग बसपा द्वारा ठगा महसूस कर रहे हैं. ऐसा ही हाल बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश वाले हिस्से में देखने को मिल रहा है. छोटे राज्यों की समर्थक भाजपा द्वारा बुंदेलखंडीय अरमानों पर पानी फेरने की कोशिश भले ही सियासी जंग का हिस्सा हो, लेकिन नुक़सान तो यहां की जनता को ही हो रहा है.
बुंदेलखंड के वाशिंदे और प्रदेश के ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद बताते है कि बांदा, चित्रकूट, महोबा, ललितपुर, हमीरपुर, झांसी, जालौन जनपदों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (नरेगा) में उपलब्ध धनराशि से पारंपरिक व पुराने जलस्रोतों के पुनर्निर्माण के साथ-साथ नए तालाब, चैकडैम एवं बंधी निर्माण व निजी कृषि भूमि पर जल संचयन के लिए खेतु, तालाब के निर्माण को प्रथम वरीयता दी जाएगी. लेकिन मंत्री के वादों के आगे नौकरशाही के फरमान ज़्यादा ताक़तवर नज़र आ रहे हैं. बुंदेलखंड में नरेगा के नाम पर मज़दूरों के साथ जैसी लूट-खसोट हो रही है, मज़दूरों का पलायन उसी का परिणाम है. बुंदेलखंड की 48 प्रतिशत आबादी पलायन कर गई है. इसकी मुख्य वजह यहां व्याप्त सूखा, बेरोज़गारी और भुखमरी हैं. यह पलायन राज्य सरकार द्वारा पैकेज दिए जाने के बावजूद जारी है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और केंद्र में तीन अलग-अलग दलों की सरकारें होने के कारण बुंदेलखंड को पर्याप्त दानापानी नहीं मिल पा रहा है. बिजली की कमी, पानी का घोर संकट और सिंचाई सुविधा के कृत्रिम अभाव से बुंदेली धरा सूखी पड़ी है. इनमें दरारें पड़ गई हैं. पपड़ियां जम गई हैं. ताल तलैये सूख गए हैं.
ललितपुर जनपद के मडावरा ब्लाक की 51 ग्राम पंचायतों में लगभग 50 प्रतिशत दलित-आदिवासी ग़रीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं. एक तऱफ आजीविका के लिए स्थायी व्यवस्था न होने से ग़रीब पलायन को मजबूर हैं, वहीं इनके हक़-हुकूक भी सामंतशाही गठजोड़ के कारण नहीं मिल पा रहे हैं. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की लूट-खसोट का सिलसिला दलित नेतृत्व की लोकप्रिय सरकार में भी समाप्त नहीं हो सका. भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए जॉबकार्डों के पन्ने फाड़कर ग़ायब करने तथा अमीरों को बी.पी.एल. कार्ड बनाने के लिए दस्तावेज़ों में ख़ुदबुर्द करने में सरकारी मशीनरी पारंगत है. सरकारी नुमाइंदों के आश्वासनों से ग़रीब वर्षों तक इंतज़ार करता रह जाता है, उसे सुविधाएं कभी भी नहीं मिलती जिनका वह हक़दार है.
मडावरा में पांच सौ परिवारों को आवास सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से महामाया आवास के लिए दो करोड़ रुपये गत वर्ष दिए गए थे. लेकिन वह योजना भी अधर में है. कई गांवों में आवास के लाभार्थियों से 5000 रुपये तक का कमीशन लिया गया है. दिदौनियां, पारौल, धौरीसागर, सकरा, बम्हौरीखुर्द, कुर्रट जैसे कुछ गांवों से शिकायतें आईं तो उच्चाधिकारियों ने मामला रफा-दफा कर दिया. डी.डी.ओ. ने स्थानीय कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई की चेतवानी दी है, पर कहीं कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
भूमि माप और क़ब्ज़ा दिलाओ अभियान चला. इसमें कुछ लोगों को क़ब्ज़ा मिला, पर सैकड़ों दलित-आदिवासी परिवार दबंगों के सामने, चालाक लेखपालों की कुटिल चाल में फंस क़ब्ज़े से वंचित रह गए. शासन की मंशा के अनुरूप ललितपुर में पट्टेदारों को क़ब्ज़ा नहीं मिल सका है. उकौना ग्राम पंचायत के 15 सहरिया अधिवासी कलुवा, लाले, मोती, खिलान, गेदिया, रूपन, कोमल आदि क़ब्ज़े से वंचित रह गए हैं. अगर इन 15 परिवारों को 30 एकड़ ज़मीन पर क़ब्ज़ा मिल जाता तो ग़रीबी रेखा से ऊपर उठाने का क्रम प्रारंभ हो जाता.
नरेगा के तहत गरीबों की जिदंगी में परिवर्तन लाने तथा पेट भर रोटी की प्राथमिक व्यवस्था करने के लिए ग्राम पंचायतों में एक काम चलते रहना अनिवार्य है, किंतु गांव की गुटबंदी और सरकारी पेशबंदी के बीच बंदरबांट जारी है. ब्लॉक मडावरा के सौंरई गांव में हरप्रसाद प्रधान के खेत में कूप निर्माण कार्य कराया गया है. इसमें लगभग चार दर्जन मज़दूरों ने काम किया, जिनमें से नन्ने भाई अहिरवार 15 दिन, रामा अहिरवार 25 दिन, चिमना अहिरवार 15 दिन, गेंदारानी अहिवार 24 दिन, ननुवा अहिरवार 15 दिन, बालकिशन 15 दिन, श्यामबाई 25 दिन, गनपत 35 दिन, प्यारी बहू 40 दिन, शिवकुमारी 45 दिन, शुगर 10 दिन, नन्ने भाई 20 दिन की कुल 28, 400 रुपये की मज़दूरी का आज तक भुगतान नहीं किया गया है. ग्राम विकास अधिकारी मज़दूरी का सारा पैसा हड़प रहा है. 10 फर्ज़ी लोगों के नाम काम में शामिल कर जितना बजट था, वह पूरा पैसा भी निकाला जा चुका है.
इसी तरह वन विभाग मडावरा रेंज द्वारा पिसनारी एवं गोरा एवं पिसनारी बीट में वृक्षारोपण के तहत लगभग 50 मज़दूरों ने काम किया है. उन्हें एक माह बीतने के बाद भी मज़दूरी नहीं दी गई है. मजदूर मल्लन, रेखा, गयादीन, सुखलाल, श्रीराम, लक्ष्मण, जंडू, राजू, रामा, रामलाल, मंझली बहू, लल्लू, रामचरन, बारेलाल, गरई बहू, तंसू, नरेश, गुड्डी, हरपाल, गोकल, सरू, रामदयाल, देवी, बलीराम, घनश्याम, सीताराम, मुल्ला, महेंद्र, महेश सभी सहरिया जाति और राजूसिंह लोधी सहित लगभग 32 लोगों की लगभग 29,800 रुपये की मज़दूरी शेष है.
पिसनारी गांव में भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए पंचायत मित्र द्वारा जॉबकार्डों के पेज फाड़ने की जानकारी ग्रामीणों ने इस संवाददाता को दी है. आरोप है कि गांव के ही रघुराज पुत्र बलवंत सिंह (कार्ड नं.-219), रामसिंह पुत्र मुलायम (कार्ड नं.- 443), हन्दू पुत्र तिजई (कार्ड नं0- 262), दलीपा पुत्र दौलता सहरिया (कार्ड नं0- 229) सहित लगभग 15 जॉबकार्डों के पेज पंचायत मित्र द्वारा फाड़ दिए गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इन जॉबकार्डों में सौ दिनों के काम पूरे हो चुके थे और ये एक साल उपयोग में नहीं लाए जा सकते थे, इसलिए पेज फाड़कर पुन: उपयोग में लाने की नियत से ऐसा किया गया. ग्रामीणों की शिकायत पर बी.डी.ओ. ने मौक़े पर पहुंचकर सारे मामले की जांच की और फाड़े गए जॉबकार्ड अपने पास ले लिए. उन्होंने दोषी के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज़ कराने के निर्देश दिए हैं. मडावरा के पिसनारी गांव में एक दर्जन से अधिक जॉबकार्डों के पन्ने फाड़ जाने की जानकारी राज्य रोज़गार गारंटी परिषद सदस्य वासुदेव ने भी दी है.
उधर, ग्राम पंचायत जलंधर में नरेगा के तहत दो कूप बनाए गए. 50-50 मज़दूरों ने 20-20 दिन काम किया है, पर अभी तक मज़दूरी नहीं दी गई है. मज़दूर वंशीलाल, करनलाल, जीराबल, जालम, विनोद कुमार आदि ने बताया कि कार्य की धनरशि सचिव एवं प्रधान ने मिलकर निकाल ली है. कुआं भी अधूरा पड़ा है. मडावरा ब्लाक के प्राइमरी एवं जूनियर विद्यालयों की स्थिति सबसे ख़राब है. विद्यालयों में बच्चों के अनुपात में शिक्षक नहीं हैं बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है. भौंती गांव के जूनियर हाईस्कूल में ताला लटक रहा है. आज़ादी के 60 सालों में मडावरा ब्लॉक स़िर्फ 40 प्रतिशत ही साक्षरता दर प्राप्त कर सका है. मिड-डे मील में प्रधानों ने बच्चों के मुंह का कौर छीन लिया. अधिकांश स्कूलों के गैस सिलेंडर प्रधानों के घरों में रखे हैं. बेशिक शिक्षा अधिकारी ने दो दर्जन से अधिक ग्राम प्रधानों की रिकबरी के आदेश दिए हैं.
उल्लेखनीय है कि 2001 की जनगणना के अनुसार बुंदेलखंड (उप्र व मप्र मिला कर) के 21 ज़िलों की आबादी दो करोड़ 81 लाख, 14 हज़ार 972 थी. पिछले चार वर्षों में यह घटकर एक करोड़, 34 लाख, 73 हज़ार 37 हो गई है. सबसे अधिक प्रभावित छतरपुर पर पड़ा है. इस ज़िले की कुल आबादी 14 लाख 74 हज़ार 633 में से सात लाख 66 हज़ार 807 लोग ग़ायब हैं. हालत यह है कि कई गांव उजड़ गए हैं. जो लोग बचे हैं, उनमें अधिकतर बुज़ुर्ग हैं. टीकमगढ़ के 12 लाख तीन हज़ार 533 में से पांच लाख 89 हज़ार 731 एवं बांदा के 15 लाख 37 हज़ार 334 में से सात लाख 37 एवं बांदा के 15 लाख 37 हज़ार 334 में से सात लाख 37 हज़ार 920 व्यक्ति गांव छोड़ गए हैं. गांव छोड़ने वालों की सबसे कम संख्या दमोह की है. यहां के 25 प्रतिशत लोगों ने पलायन किया है. गुना के 26, मुरैना के 27, शिवपुरी व ग्वालियर के 28 प्रतिशत लोगों ने दूसरे शहरों का रुख़ किया हैं
बुंदेलखंड में नरेगा भी नही रोक पा रहा म़जदुरों को
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