नरेंद्र मोदी और मायावती कुछ मायनों में एक सिक्के के दो पहलू हैं । दोनों अपने जीते जी मंदिर और मूर्तियां बनवाने में परहेज नहीं करते । मोदी जी तो सत्ता का और आगे बढ़ कर उपभोग करते हैं मायावती अपने नाम पर पार्क बनवाती हैं तो मोदी जी का न केवल उनके नाम पर स्टेडियम बनता है बल्कि एक एंड का नाम बड़ी बेशर्मी के साथ अंबानी रखा जाता है और दूसरे एंड का नाम अडानी रखा जाता है । चुनाव के मौसम में गुजरात के मोदी स्टेडियम में गुजरात की टीम ‘टी-20’ की चैंपियन बनती है । स्टेडियम में अमित शाह सपत्नीक विराजमान हैं और भीड़ ‘मोदी मोदी’ के नारे लगाती है । यह सब एक संयोग कहा जाए या माना जाए कि ‘फिक्सिंग’ हुई है। राम जाने । मायावती और मोदी में कुछ और समानताएं हैं । स्कूली ज्ञान के मामले में दोनों एक जैसे हैं, दोनों में ‘अज्ञात’ तानाशाह के तत्व हैं और सबसे बड़ी समानता कि दोनों का वोटर एक ही जमात से आता है यहां मोदी जी कुछ फैलाव लिए हुए हैं । उन्होंने अपनी जमात समाज के सभी वर्गों में फैला ली है । और इसलिए उनके सामने आज की तारीख में ‘टीना’ फैक्टर बहुत मजबूती के साथ खड़ा है। आने वाले दिनों में सब कुछ पानी की तरह साफ है । विद्वान और राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ बताने लगे हैं । मायावती ढेर हो चुकी हैं पर मोदी मायावती नहीं हैं । उन्होंने वह करिष्मा कर दिखाया है जिसकी शायद कभी कोई राजनीतिक कल्पना भी नहीं कर सकता। मोदी जी की राजनीतिक उम्र क्या है यह तो भविष्य ही तय करेगा पर वर्तमान उनकी उंगलियों पर नाचता दीख रहा है । मोदी विरोध के स्वर भोथरे हो रहे हैं । सोशल मीडिया और यूट्यूब पर आने वाली सामग्री मजबूरी का दम भरती दिखती है । हम जानते हैं कि चौतरफा 2024 की बिसात बिछाई जा रही है ताकि इस बार की जीत हर मायने में बंपर दिखे । राजा की जान मेन मीडिया और आईटी सेल में है । पिक्चर कुछ ऐसी बनी है कि मोदी और जनता के बीच विपक्षी दल गायब हैं । एक अजब सा सन्नाटा है । हर कोई हर बात जानता है पर हर किसी के चाल – चरित्र से पुरुषार्थ गायब है । सड़कें खाली हैं, संसद चुप है । इस चुप या सड़कों के सन्नाटों की कीमत वे चुका रहे हैं जो क्षण भर को भी इस सरकार को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं।
पिछले हफ्ते तीन विद्वानों को सुना । योगेन्द्र यादव ,अपूर्वानंद और अभय कुमार दुबे। योगेन्द्र यादव से आशुतोष ने बातचीत की । गजब का विश्लेषण है योगेन्द्र भाई का । बार बार सुना जाना चाहिए । अभय दुबे से संतोष भारतीय और आलोक जोशी ने अलग अलग बातचीत की । मोदी सरकार के आठ सालों पर अभय जी ने जो विश्लेषण प्रस्तुत किया उसे भी बार बार सुना जाना चाहिए । (यहां एक बात स्पष्ट कर दूं ,कई लोगों के फोन आते हैं कि आप यह तो बताते हैं कि यह बढ़िया है पर उसमें क्या बढ़िया है यह नहीं बताते । मजेदार बात है पर मेरा जवाब यह है कि जब सुनता हूं तो कागज कलम लेकर नहीं बैठता । दिमाग में सिर्फ इतना अटक जाता है कि यह बढ़िया है और यह फालतू । योगेन्द्र यादव और अभय दुबे के विश्लेषण बेहद तार्किक हैं । ) अपूर्वानंद मुकेश कुमार के कार्यक्रम में थे । उन्होंने अपने विश्लेषण में माना कि हमें जन विवेक जागृत करने की जरूरत है । यही बात योगेन्द्र जी ने भी कही । लेकिन सवाल है कि यह कब होगा । हमें तो नहीं लगता कि जिस व्यापकता में होना चाहिए उसकी कहीं कोई तैयारी है । दिखता तो नहीं कहीं कुछ ऐसा । संतोष भारतीय आजकल न जाने क्यों मौन पर हैं । मात्र रविवार को अभय दुबे शो करके पूरा हफ्ता मौन रहते हैं । उनका ‘मोनोलाग’ भी आना बंद हो गया । काफी दिनों से अन्य किसी से उनका लिया साक्षात्कार भी नहीं दिखा ।
गये हफ्ते रवीश कुमार के दो प्राइम टाइम ऐसे देखे कि जिससे चिपके तो चिपके ही रह गये । एक हैदराबाद में फर्जी एनकाउंटर पर था और दूसरा हिंदी उपन्यासकार गीतांजलि श्री की कृति ‘रेत समाधि’ को मिलने वाले ‘बुकर सम्मान’ पर था । दूसरे प्राइम टाइम ने तो ऐसा जकड़ लिया कि क्या बताएं । रवीश का आभार । बहुत दिनों बाद कसम से ताजगी का अहसास हुआ । जैसे कोई नयी तरह की खुशबू में तैर गया हो । कुछ इस अंदाज में शुरुआत हुई थी कार्यक्रम की । कहीं न कहीं रवीश में एक समान सी कचोट रही होगी । पुरस्कारों पर सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति के मौन से । रवीश को ‘रमन मैग्सेसे’ पुरस्कार प्राप्त करने पर जहां मोदी जी की कलम से दो शब्द न निकले । ठीक वैसा ही गीतांजलि श्री के साथ हुआ । वही मोदी जी हैं जो किसी के छक्के चौक्के पर बधाई के संदेश दे दिया करते हैं । बहरहाल, इस प्राइम टाइम से छूटे ही थे कि मुकेश कुमार के गीतांजलि श्री पर ही ‘डेली शो’ ने पकड़ लिया और फिर रविवार को ताना-बाना में । ‘डेली शो’ में अशोक वाजपेई ने खूब समां बांधा । एक नपुंसक सा विवाद भी छिड़ गया है कि पुरस्कार तो रचना के अनुवाद को मिला है। मूर्खतापूर्ण बात है । हिंदी में रचना न होती तो अनुवाद किसका होता । बेशक दमदार रचना का दमदार अनुवाद है ।
विजय त्रिवेदी ने बहुत दिनों बाद कुछ नया भेजा है । नये चैनल की शुरुआत में लगे रहे शायद । दिग्गज पत्रकार रहे सईद नकवी की अंग्रेजी पुस्तक ‘Muslim Vanishes’ पर उनसे एक दिलचस्प इंटरव्यू लिया । हालांकि नकवी से उनकी इस पुस्तक पर पहले आशुतोष और आलोक जोशी भी बातचीत कर चुके हैं । पर दोनों में अंतर दिखाई । यों भी विजय भाई का चुटीला अंदाज तो अब प्रसिद्ध हो ही चुका है । बाकी कुछ अब देखने को बचता भी नहीं और सच कहें तो मन भी नहीं करता । लेकिन मजबूरी होती है तो यह देख लेते हैं कि शीर्षक क्या है और पैनलिस्ट कौन हैं । एक सुझाव हमारी ओर से । क्यों न बहसें केवल एक दौर की ही हों । दूसरे दौर में न तो कुछ खास प्रश्न होते हैं और न बोलने वालों को के पास कुछ नया । अंत में जो कोई कुछ अतिरिक्त बोलना चाहे , बोले । बस बात इतनी सी है कि कुछ होने जाने वाला तो है नहीं, फिर भी चैनल तो चलाते रहना है ही । आशुतोष को धन्यवाद कि ‘दरअसल’ पर बैन लग गया है ।

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