उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दिन जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे प्रदेश की सियासत का स्तर धराशाई होता जा रहा है. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह द्वारा बसपा सुप्रीमो मायावती पर विवादास्पद टिप्पणी करने से राजनीति गर्मा गई. भाजपा ने विवादित बोल बोलने वाले नेता को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. बसपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने अपशब्द का जवाब अपशब्द से देकर एक ही थैली के चट्टेबट्टे होने को प्रमाणित कर दिया है. बसपा की एकछत्र नेता मायावती को आखिर इस बात का एहसास हो ही गया कि अपमानजनक शब्दों के घाव कितने गहरे होते हैं.
राजनीति के अखाड़े में बयानबाजी के सहारे एक-दूसरे पर कीचड़ उछालना नेताओं की फितरत बन गई है. इस बार भाजपा फंसी और खस्ता हालत से जूझ रही बसपा को अवसर भुनाने का अवसर दे दिया. धरना-प्रदर्शन और नाराजगी के माहौल में मायावती ने खुद को देवी की उपाधि भी दे डाली. अपने जन्मदिन पर हीरों के जेवरात का उपहार लेने वाली इस दलित नेता के पास आज बेशुमार दौलत है. मतिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का नारा देने वाले कांशीराम की उत्तराधिकारिणी मायावती ने अपने गुरु का नारा, महाथी नहीं गणेश है, ब्रम्हा, विष्णु महेश है’, में बदल कर सोशल इंजीनियरिंग का दांव खेला था और 2007 के विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल किया था. मायावती ने पांच साल के राज में पार्क, स्मारक बनाने और दलित महापुरुषों के साथ अपनी मूर्ति लगाने में सारी सरकारी मशीनरी झोंक दी थी और सरकारी खजाने की लूट और भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित किए थे. जनता ने मायावती को ठुकरा दिया और सपा को मौका दिया. बसपा विलुप्तप्राय हो गई थी. लोग यह मानते हैं कि बसपा में सिद्धान्तों और आदर्शों की कोई जगह नहीं है. लेकिन भाजपा नेता दयाशंकर सिंह के बयान ने मरते दल को कुरामिन दे दिया.
हालांकि मायावती और उनकी पार्टी के कई अन्य नेता सवर्ण जातियों के विरुद्ध अतीत में जिस तरह की बातें किया करते थे वह भी मर्यादा का घोर उल्लंघन ही था. कांग्रेस में कुछ बरस बिताकर सपा में लौटे बेनी प्रसाद वर्मा की जुबान किस तरह बेलगाम है, यह सर्वविदित है. अखिलेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खां को भी अनर्गल प्रलाप करने की बीमारी है. राजनीति में विचारों की मतभिन्नता के बावजूद अभिव्यक्ति की स्वछंदता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए. बहरहाल, जिस बहुजन समाज पार्टी को पूरी तरह हतोत्साहित आंका जा रहा था, वही पार्टी अपशब्द सुन कर अचानक जाग्रत अवस्था में आ गई. उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच अपना स्थान प्रगाढ़ करने में कामयाब हो रही भाजपा को अचानक कुल्हाड़ी लग गई. निष्कासित नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह के मैदान में कूद पड़ने से भाजपा को थोड़ी राहत जरूर मिली और बसपा को अपने अपशब्दों के कारण बैकफुट पर जाना पड़ा.
गाली कांड के लाभ
जब से संसद का मानसून सत्र प्रारम्भ हुआ है तब से बसपा नेता मायावती गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र आदि भाजपा शासित राज्यों में दलितों पर हो रहे अत्याचार के मुददे उठाकर भाजपा को घेरने का असफल प्रयास कर रही थीं. लेकिन उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने मायावती के खिलाफ विवादास्पद शब्दों का इस्तेमाल कर उन्हें यह सुअवसर दे दिया.
घटनाक्रम का पहला चरण निश्चय ही भाजपा के लिए बहुत भारी पड़ गया. केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली को राज्यसभा में माफी मांगनी पड़ी और भाजपा हाईकमान को दयाशंकर सिंह को छह वर्ष के लिए पार्टी से निकालना पड़ा. निश्चित तौर पर मायावती इस प्रकरण को चुनाव में भुनाने का प्रयास करेंगी. बिहार चुनाव के समय मोदी के नीतीश के लिए डीएनए वाले बयान और संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को जिस तरह विरोधियों ने भुनाया था. राजधानी लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर जिस प्रकार दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक शब्दों की बौछार की, वह लोकतंत्र का और भी अधिक शर्मनाक परिदृश्य पैदा कर रहा था. एक अपशब्द के मुकाबले बसपा कार्यकर्ताओं ने सभी मर्यादाओं को ताक पर रखकर मंच से हजारों गालियां उछालीं. मायावती को यह याद नहीं रहा कि समाजवादी सरकार के कार्यकाल में गेस्ट हाउस कांड के समय भाजपा ने ही उनकी प्रतिष्ठा बचाई थी. इस प्रकरण के बाद सवर्ण मतदाता बसपा से विमुख होता दिख रहा है. जबकि दलितों का एक खास समुदाय मायावती के प्रति प्रतिबद्ध है.
क्या मान-सम्मान सिर्फ मायावती का है?
आशा की जा रही थी कि लखनऊ के प्रदर्शन में बसपाइयों द्वारा प्रयोग की गई अभद्र भाषा पर मायावती अपनी पत्रकारवार्ता में खेद व्यक्त करेंगी और एक वरिष्ठ एवं जमीनी नेता की भांति समूचे अशांत प्रकरण को शांत कर देंगी. इससे उनका कद ऊंचा उठ जाता. लेकिन मायावती ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने उल्टा तर्क दिया कि बसपा के प्रदर्शन में जो वाक्य कहे गए, उनका गलत अर्थ निकाला गया. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भी उसी तरह के न समझ में आने वाले तर्क दिए.
दूसरी तरफ दयाशंकर सिंह ने स्वयं माफी मांग ली थी. भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने संसद में माफी मांगी थी. दयाशंकर को तुरंत न केवल पार्टी के उपाध्यक्ष पद से हटाया गया, बल्कि पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया. इन सबके बावजूद मायावती और उनके सिपहसालारों को दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं एवं बच्ची के प्रति अपशब्द उछालने से ही संतुष्टि मिली, यह बात प्रदेश के लोगों को हजम नहीं हुई. आम लोग भी कह रहे हैं कि गलती दयाशंकर सिंह ने की तो उनके घर की महिलाओं एवं बच्ची को इसमें क्यों घसीटा गया? मायावती ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहा कि वह उन्हें बुआ कहते हैं तो दयाशंकर सिंह को गिरफ्तार कराएं. इस पर लोगों का कहना है कि दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने भी नसीमुद्दीन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है, उस पर भी उनकी अविलम्ब गिरफ्तारी होनी चाहिए. स्वाति सिंह ने प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक से मिलकर मांग की है कि उनकी बच्ची के बारे में अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाले बसपा नेताओं के विरुद्ध बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के अंतर्गत कार्रवाई की जाए. राज्यपाल ने बसपा के प्रदर्शन की सीडी तलब की है. उन्होंने पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद से सीडी उपलब्ध कराने को कहा है.
अन्य महिलाओं की प्रतिष्ठा भी उतनी ही अहम है
किसी पार्टी को यह खुशफहमी नहीं होनी चाहिए उसके यहां विवादास्पद बयान देने वाले बात-बहादुरों का अभाव है. बसपा द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में दयाशंकर सिंह की पत्नी, बेटी, बहन आदि के संबंध में अश्लील बातें कह कर बसपाइयों ने दयाशंकर सिंह के बयानों के प्रति लोगों के आक्रोश और मायावती के लिए बन रहे सहानुभूति के भाव को धो कर रख दिया. यह साबित हो गया कि दयाशंकर सिंह द्वारा इस्तेमाल में लाए गए शब्द पर बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के अपशब्द भारी थे. भाजपा ने अधिकृत रूप से दयाशंकर सिंह के बयान को बेहद निन्दनीय बताया. प्रश्न मायावती से है कि दयाशंकर सिंह के घर की महिलाओं के लिए अपमानजनक बातें करने वाले बसपा नेताओं को उन्होंने निष्कासित क्यों नहीं किया? मायावती ने खुद को देवी बताया, लेकिन यह नहीं समझा कि निर्दोष महिलाओं का अपमान करना भी उतना ही तिरस्कार योग्य है. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाई कि गेस्ट हाउस कांड में कैसे भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती को बचाया था. मायावती को उस दिन की घटना भूलनी नहीं चाहिए, यह भी कि भाजपा की ही मदद से मायावती दो बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं.