क्या लिखें, क्या कहें, किसे चकरघिन्नी बनाएं, बड़ा कंफ्यूजन है भैया…! देश की सबसे बड़ी पार्टी के लिए जिम्मेदार तलाशी अभियान आगे बढ़ जाने पर चर्चा करें, या मप्र में अपनों के ही उखड़े स्वर से शराब दुकानों को लेकर आगे बढ़ते कदम थम जाने की बात की जाए…! शोषण का शिकार हुई पीड़िता का गुनाहगार की तरह दुनिया से रुख्सत हो जाने को लेकर अफसोस करें या सारे शहर को सिर पर उठा लेने वाले जमीन विवाद के वकील साहब को धमकिया दिए जाने की कहानी पर ताज्जुब जाहिर करें…! सियासत से लेकर सरकार तक और प्रशासन से लेकर आमजन तक सबकी कश्ती डगमग, सबके सब कश्मकश में, सभी कंफ्यूजन के शिकार…!

दिल्ली के दो-ढ़ाई माह के हो चले किसान आंदोलन की लपटें अब मप्र की तरफ भी चहलकदमी करने लगी हैं, को जिक्र में लाएं या शहर, प्रदेश और देश में बने सियासी समीकरणों को लेकर कोई बहस शुरू करें, बड़ा कंफ्यूजन है भैया…! तबादला गाज के दौर में अफसरों की आमद-रवानगी शुरू हो गई है, अब बाबुओं और उससे निचले लोगों के बदले जाने का कर्मकांड शुरू होने वाला है…! ये हो रहा, वह हो रहा, ये हो चुका, वह होने वाला है… हालात जो भी हैं, ठीक नहीं कहे जा सकते… हालात के मद्देनजर कंफ्यूजन बरकरार है, जल्दी खत्म हो पाएगा, इसकी उम्मीद फिलहाल नहीं है…!

पुछल्ला
हम करें तो भला, वह करते तो गुनाह

शराब को लेकर बवाल, तबादलों पर भी नाराजगी, अत्याचारों को लेकर घेराबंदी तो विकास न होने पर उलाहने। हालात तब थे, जब सत्ता से विमुख थे। बाजी पलटी तो वह सब करने की नीयत, जिसको लेकर एतराज था। लेकिन आवाज उठाने वाले विकास के दुश्मन, देश को विपरीत दिशा में ले जाने वाले विद्रोही और चढ़ती बेल को नीचे गिराने वाले करार दिए जाते हैं।

खान अशु

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