प्रस्तुत हैं किताबों पर केंद्रित अलग अलग दृष्टि की कविताएं।ये कविताएं चर्चित कवयित्री सोनू चौधरी ने लिखीं हैं-ब्रज श्रीवास्तव
” किताबों के साथ “
किताबें कभी नहीं पूछती
तुम्हारे दुनियावी रिश्तों का गणित
नही तोलती नातेदारों की तरह
तुम्हें अर्थ के तराजू में
और तो और मानती हैं तुम्हें साधु
न जात पूछती हैं
न ही रखती हैं
स्त्री पुरुष के खाँचे में
ये जिल्द वाली और
बिना जिल्द वाली किताबें
कभी नहीं बंधी सामाजिक दायरे में
फिर भी बांधती है अपने मोहपाश में
किताबों के साथ
अकेला कहाँ होता है आदमी !!
“किताबें और आदमी “
मैंने देखा कई बार
शीशे वाली दीवार के पार
किताबों की दुकान पर बैठा आदमी
अकेले में बतियाता है
मैंने भी की हैं
मैक्सिम गोर्की और अमृता प्रीतम से बातें
कितनी बार शमशेर बहादुर और
महादेवी के साथ मौन जिया है
निर्मल वर्मा से चला बरसों एकालाप
इतिहास से जीवित होती भारतेंदु की मल्लिका
और कितने प्रिय लेखकों के पात्रों के
संग – साथ अनगढ़ जीवन जिया मैंने
पात्र और घटनाएं सजीव होती रही
यात्राओं में भी साथ साथ
परदेस गए पति के इंतजार में
रविन्द्र की नायिकाएं वास्तव में थी
हमारे ही आसपास
जैसे हर तारीख गवाह हो
ऐसे गवाक्ष बने अज्ञेय के पात्र
चेखव और ब्रेख्त भी जिंदा रहे
बहुतों के साथ कॉफी हाउस के प्यालों में
शेक्सपियर के नाटक
सरहद पार कर पहुँचे
बाँटने अकेलापन
गाँव के सारे बैल, होरी
और कमली जैसी छोरी
लगते रहे दूर दराज के
शहर भी अपने से
किताबों की बदौलत
ये अपनी यायावरी के किस्से सुनाती रही
तुम्हारे मन की फितरत को पनाह देती
किताबें अनजाने प्रेमपत्रों सी होती हैं
कभी पता नही बदलती
“ किताब “
मेरे हाथ में किताब है
जो पढ़ रही है मेरा मन
जैसे कोई पढ़ता है
आँखों को बिना बोले बिना तोले
जब मैं मुस्कुराते हुए पढ़ रही हूँ किताब
ठीक उसी वक्त एक लड़की के भविष्य के बारे में
उसके पिता ने सुना दिया है
उसे किताबों से दूर ले जाता हुआ एक फैसला
कहीं किसी शहर में एक पिता ने बेच दी हैं
अपने लडके की प्रिय किताबें
अपनी शाम का इंतजाम करने के लिए
एक सौतेली माँ ने रख दी हैं परछत्ती पर किताबें
और सो रही देर तक
सुबह के पानी की फ़िक्र किये बिना
एक परिवार ने बनाने शुरू कर दिए हैं,
किताबों से थोक के भाव में लिफ़ाफे
परदेस गए अपने पति के प्रिय लेखक की
कुछ किताबें रद्दी में दी हैं
एक पतिव्रता स्त्री ने अभी-अभी
मेरे अपने गाँव में
चूल्हे को समर्पित की हैं
काकी ने कुछ किताबें
मेरे आसपड़ोस की दुनिया में
किताबें कम होती जा रहीं हैं
और मुस्कुराहटें भी
किताबें होती हैं एक जिंदा शै
देखा नहीं कैसे फड़फड़ातें हैं पन्नें
झपट्टा मारते हैं बाज की तरह
शब्द तुम्हारी आँखों में ,औ‘ कौंधतें हैं मन में विचार
किताब साथ होने के मायने जानता है
कल साइकिल चलाते पैर तुड़वा बैठा एक लड़का
और तीन महीने बाद काम पर निकले उसके अभिभावक .
बगल में रहने वाला उसका खिलंदड़ दोस्त ,स्मार्ट टीवी और फोन
ये सब उस अकेले लड़के का
दुःख नही उठा पाएंगे ,तब वो उठाएगा किताबें
बचपन की एलबम वाली किताबों से
अब तक की साइंस फिक्शन वाली किताबें
अजनबियों से भी बदलेगा खिड़की से किताबें
स्कूल छुड़ा दी गयी महावर रची लड़की
नुक्कड़ की दुकान से पढ़ेगी
कृष्णा सोबती, ममता कालिया की कहानियों की किताबें
वो पढ़ेगी दीवार फांदना मुश्किल है तो क्यों न
खिड़की पर पाँव धर लिए जाएं
किताब के बने लिफाफों को पढ़ता
हाथ फिराता दसवीं फेल लड़का
पिता की परचूनी की दुकान पर बैठा
अब इनसे प्रेम कर बैठेगा
घर से भागा लड़का स्टेशन पर भेलपुरी रखे कागज में
तलाशेगा अपनी किताबें
उधर उसकी माँ कथाकार सत्यनारायण की डायरी पढ़
जानना चाहेगी उसका मन
और इधर रैक में रखी उदास किताबों को देख
सोच रहें होंगे नगर के तमाम लाइब्रेरियन
महामारी में देनी थी चार किताबें ज्यादा
मेरे हाथ में अब भी किताब है
और मैं मुस्करा रही हूँ
“गैर जरूरी”
औंधे मुँह गिरती थी सोफे पर
कभी सीने पर आँखें मूंदे
सपनों में भी चल देती थी साथ
आज शेल्फ में सजी किताबें
अधिकतर घरों में सबसे गैर जरूरी शै है
क्या करें वक्त नहीं है पढ़ने का
कभी फुर्सत से पढ़ेंगे
अपना स्मार्ट फोन पल-पल देखते
गैर जरूरी ज्ञान में गोते लगा रहे हैं
पर आज भी संतुलन बनाना हो
तो अपने सर पर किताबें रख
पैयां पैयां चलते हैं
मोबाइल पर लाइव,विडियो,मूवी
चलाते ही लेते
किसी मोटी किताब का सहारा
एक जिंदा शै है कोई अच्छी किताब
जिंदगी में संतुलन रच देती है किताब
इंतजार करती हैं तुम्हारा
कि शामिल कर लो
आत्मा के भोजन को
अपनी रोज़ाना की आदत में
पूछो अपनों से ,अपने मेहमानों से
एक कप चाय और हो जाए की तरह
मनुहार कर
लो अब ये किताब पढ़ो
आज देखना गौर से
शेल्फ में सजी बंद किताबों को
वे खुली तो
खिलेगा ये जहां
” किताबों में जिन्दगी “
लड़की किताबें ज्यादा पढ़ती थी
लड़का दीन दुनिया की ख़बर
लड़की जब किताब बंद करती तो किरदारों को खोजती
उसे बाहरी दुनिया में साम्यता दिखती
बेशक अक्सर नही भी
पर लड़की को मालूम था किताबें झूठ नही बोलती
और लड़के को मालूम था
किताबों से बाहर भी होती है
एक और दुनिया
लड़की परीकथाएं नहीं पढ़ती थी
न ही मनोहर कहानियां
पर लड़की पढ़ती थी
ऐसा जो विराट कर दे उसकी दुनिया
तिरोहित करदे भीतर बैठा अनजान डर
और मानती थी
मुश्किलों तकलीफों के बावजूद
ज़िन्दगीं फिर भी खूबसूरत है
-सोनू चौधरी
चोरी
म्यूजियम, बैंक या किसी शानदार पार्टी से कड़ी सुरक्षा के बीच हीरा चोरी की रोमांचक न्यूज
हर कोई सुनता है
ठिठक कर
हर कालखण्ड में धूम
मचती रहती ऐसी फिल्मों की
मैं चाहती हूँ
दुनिया की तमाम लाइब्रेरियों से चोरी हो जाएं किताबें
गली के शोहदों के कारण नही जा पा रही शाम की लाइब्रेरी में मंजुला, नीमा, अरुणिमा
चोरी की गयी कुछ किताबें भिजवा दी जाएं उनके घर
ताकि उनका घर ही बन जाए दुनिया
कुछ किताबें अनाथालयों ,वृद्धाश्रमों की चौखट पर भी छोड़ दी जाएं चुपचाप
ताकि वहाँ बीसियों बार पढ़ी जर्जर किताबें मुक्ति पा सकें
कुछ किताबें भिजवा दी जाएं जेल के भीतर
ताकि सजायाफ्ता कैदी सोच सके इतनी भी बुरी नही है ये दुनिया
कुछ किताबें गाँवों की स्कूल लाइब्रेरियों में भी भिजवाई जाएं
आप तो जानते ही हैं उन्हें जगह भी आवंटित है और रैक भी
कुछ किताबों को पहाड़ ,खेत में भी छितरा देना चाहिए
गडरिये के किस्से खत्म होने को हैं और खेतों की मुंडेर पर बैठे बच्चों की टोली को चाहिए
अपने सपनों के लिए कोई
नई कहानी
कुछ किताबें उस दर पर
क्यों न पहुंचे
जहाँ आते हैं सिर्फ रूप के ग्राहक
कुछ किताबों को ठेले पर, गलियों में ले जाकर देनी चाहिए हाँक
ताकि लोग जान- मान सकें किताब को रोजमर्रा की सबसे ज़रूरी चीज
ये हीरे जैसी किताबें कब तक प्रतीक्षा करेंगी
लाइब्रेरियों में हमारी
इनके पास पंख हैं
इन्हें उड़ कर जाना चाहिए
हर जगह
सोनू चौधरी