आम चुनाव होता तो इसकी सिफारिश, उसका दबाव, यहां वहां पड़ता झुकाव शायद काम कर भी जाता…! चुनाव कुछ खास है, चुनिंदा सीटों का है, प्रतिष्ठा और उससे भी ज्यादा जरूरत का है…! सिंहासन पर बैठे लोग भी फिक्रमंद हैं, सत्ता से छिटके हुए भी चिंतित हैं…! असर टिकट की माथापच्ची को लेकर दिखाई दे रहा है। सत्ताधीशों ने परिवारवाद को नकार दिया है, सद्भावना वोट से मोह त्याग दिया है और सशक्त और जिताऊ कैंडिडेट की तलाश के लिए सिर जोड़ शुरू कर दिया गया है…!

सत्ता की तरफ टकटकी लगाए लोगों ने संख्या रूपी ताकत बढ़ाने की मशक्कत का दिखावा शुरू कर दिया है…! दिखावा इसलिए कहा जा रहा है कि जो हाथ आई सत्ता को नहीं बचा पाए, वह चंद सीटों के ऐसी माथापच्ची में जुटे जैसे सब कुछ जीतकर ही मानेंगे…! इस मशक्कत में भी वही आपसी फुटव्वल हावी है, जिसकी वजह से लगातार तीन बार से सरकार नहीं बना पा रहे… हाथ आए सिंहासन को भी लात मारकर बैठे हैं…!

पुछल्ला
सद्भावना, स्वास्थ्य, सेवा
एक तरफ टिकट की माथापच्ची। दूसरी तरफ सेवा की रस्साकशी। पूरे लोकसभा क्षेत्र की दौड़ लगा चुके अरुण तमाम दिवंगतों के परिजनों को सांत्वना दे चुके। लिस्ट खत्म होने लगी तो स्वास्थ्य का अस्त्र उठा लिया। अभी चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं, उम्मीद की जाना चाहिए, इन बचे दिनों में क्षेत्र को कुछ और सौगातें मिल सकती हैं।

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