जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे प्रदेश की राजनीति में नित नए-नए समीकरण, दलबदल व दिलबदल के खेल और अनाप-शनाप राजनीतिक बयानबाजियों का दौर तेज होता जा रहा है. इस समय प्रदेश की राजनीति में दलबदल के खेल में पहले चरण में तो भाजपा ही आगे निकलती दिखाई पड़ रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों के पूर्व भाजपा ने दूसरे दलों के नेताओें को अपनी पार्टी में शामिल करने का अभियान चलाया था उसी प्रकार की राजनीति भाजपा एक बार फिर दोहरा रही है. अभी फिलहाल भाजपा के रणनीतिकारों की नजर में बसपा एक सॉफ्ट टारगेट बनी हुई है. विगत सप्ताह भाजपा में शामिल होने वाले लोगों के कारण सपा, बसपा व कांग्रेस में बेचैनी व भगदड़ का वातावरण उत्पन्न हो गया है. इस भगदड़ में कई अफसर भी भाजपा का दामन थाम रहे हैं. कई दलों के नेता विधायक, सांसद व कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए. इस पर भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का दावा है कि जिस प्रकार से दूसरे दलों के नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं उससे साफ संकेत मिल रहा है कि 2017 में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी. कहा जा रहा है कि भाजपा की प्रदेश में लोकप्रियता का ग्राफ तो बढ़ रहा है लेकिन क्या यह मतदान में परिवर्तित हो सकेगा? बाराबंकी के पूर्व सांसद केदारनाथ रावत सहित रेल भूमि विकास प्राधिकरण के पूर्व महाप्रबंधक देवमणि दुबे ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी, शिव गणेश लोधी सहित कई नेता लगातार भाजपा में शामिल हो रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में अभी भाजपा में कई चौंकाने वाले चेहरे दिखाई पड़ेंगे.
पिछले दिनों बसपा ने आगरा में एक बड़ी रैली का आयोजन किया था, जिसमें बसपा नेता मायावती ने पीएम मोदी व केंद्र की भाजपा सरकार को जमकर लताड़ा था. लेकिन रैली के चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे कि बसपा के बड़े ब्राह्मण नेता ब्रजेश पाठक भाजपा में शरीक हो गए. यह बसपा के लिए तगड़ा झटका था. बसपा में ब्रजेश पाठक काफी दमदार नेता माने जाते थे. स्वामी प्रसाद मौर्य व आरके चौधरी के बाद यह बसपा की एक और बड़ी बगावत मानी जा रही है. पाठक की बगावत पर राजनीतिक चर्चा का बाजार गर्म होना स्वाभाविक ही है. पाठक की बगावत के बाद यह प्रश्न चर्चा में आया कि क्या अब भाजपा दूसरे दलों के नेताओं के सहारे ही मिशन-2017 पूरा करेगा? क्या भाजपा दूसरे दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके अपने लिए कोई भारी मुसीबत तो नहीं खड़ी करने जा रही है? क्या सपा-बसपा के नेताओं को भाजपा में शामिल करके प्रदेश को सपा-बसपा मुक्त बनाया जा सकता है? ब्रजेश पाठक उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले की राजनीति करते हैं तथा विगत लोकसभा चुनावों में भाजपा के उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज ब्रजेश पाठक को पूरे क्षेत्र में गुंडा कहकर उनके अपराधों की लम्बी फेहरिस्त लेकर घूमा करते थे. आज वही पाठक कमल के फूल के सिपाही हो गए हैं. क्या भाजपा हाईकमान अपने सांसदों व स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही इन नेताओं को पार्टी में शामिल कर रहा है? कहीं इस तरह से नेताओं को शामिल करने से दिल्ली वाली गलती तो भाजपा नहीं दोहराने जा रही है?
उधर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक दावा कर रहे हैं कि अभी दूसरे दलों के कई और बड़े नेता व कई अन्य चेहरे भाजपा में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं. बस समय का इंतजार है. यह सभी नेता पीएम मोदी व उनकी कार्यप्रणाली से प्रभावित हो रहे हैं. माना जा रहा है कि ब्रजेश पाठक की बगावत के बाद से बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को गहरा आघात लगा है. छात्र राजनीति के दौर से निकलकर आए ब्रजेश पाठक की पहचान पूर्वी व मध्य क्षेत्र में ब्राह्मण नेता के रूप में रही है. ब्रजेश को दो बार राज्यसभा में भी भेजा जा चुका है और उनकी पत्नी नम्रता पाठक भी पिछला विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. पाठक का बसपा छोड़ना उसकी सोशल इजीनिंयरिग और दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ को झटका है.