आगामी लोकसभा चुनाव में झारखंड की सभी 14 सीटों पर स्थानीय उम्मीदवार की मांग जोर पकड़ने लगी है. भाजपा के कई नेता व पार्टी कार्यकर्ता भी जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप इसका समर्थन कर रहे हैं. भाजपा के अंदर लोकसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण में बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा भी अभी से ही गरमाने लगा है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, झारखंड में भाजपा के कई शीर्ष नेताओं ने भी केन्द्रीय नेतृत्व को झारखंडी जनमानस की इस भावना से अवगत करा दिया है. पार्टी के कई कद्दावर नेता भी दबी जुबान से झारखंड की जनता की इस भावना का समर्थन कर रहे हैं.
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जानकारी के मुताबिक, सभी संसदीय क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के लिए स्थानीय प्रत्याशियों की तलाश भी शुरू हो गई है. गौरतलब है कि झारखंड की कुल 14 सीटों में से 12 सीट पर भाजपा का कब्जा है. इनमें छह लोकसभा सीटों पर ऐसे सांसद चुने गए हैं, जिनका पैतृक आवास बिहार में है. इनका कार्यक्षेत्र झारखंड में है और भाजपा के टिकट पर ये लोकसभा की दहलीज लांघने में सफल रहे हैं. मूल रुप से बिहार के निवासी और झारखंड से लोकसभा पहुंचने वालों में हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से जयंत सिन्हा, गोड्डा संसदीय क्षेत्र से निशिकांत दूबे, गिरिडीह से रवीन्द्र पांडेय, पलामू से विष्णु दयाल राम, चतरा से सुनील कुमार सिंह और धनबाद से पशुपतिनाथ सिंह है.
अगर स्थानीय जन मानस के अनुरूप पार्टी ने फैसला लिया, तो इन सभी सांसदों का टिकट कटना तय है. हालांकि पार्टी का मानना है कि सभी सांसद अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं. जनहित के कार्यों को बखूबी अंजाम देते रहे हैं. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि जनमानस की भावनाओं और उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप खरा उतरने में उक्त सांसद पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं. नतीजतन, बाहरी बनाम स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा उठने लगा है. हालांकि इस मुद्दे पर प्रदेश भाजपा के पदाधिकारी कुछ भी प्रतिक्रिया देने से परहेज कर रहे हैं.
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बता दें कि झारखंड में चतरा संसदीय सीट पर किसी भी दल ने अब तक एक भी स्थानीय उम्मीदवार नहीं दिया है. वहां से जो भी सांसद चुने गए, सभी झारखंड से बाहर के रहे हैं. चतरा की जनता का मानना है कि यहां स्थानीय सांसद नहीं होने से क्षेत्र का अपेक्षित विकास नहीं हो सका है. वहां की अधिकतर जनता के मुताबिक, इस बार भी यदि भाजपा की ओर से किसी बाहरी उम्मीदवार को उतारा गया तो भाजपा के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है. बहरहाल, प्रदेश भाजपा व पार्टी आलाकमान इस मामले पर क्या निर्णय लेती है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन वर्तमान में जो हालात उभरकर सामने आ रहे हैं, इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.