भारत में पांच लाख गांव हैं. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई तनाव नहीं है. दोनों भाइयों की तरह कंधे से कंधा मिलाकर रहते हैं. तनाव तो सांप्रदायिक दलों द्वारा उत्पन्न किया जाता है. भाजपा को यह समझना चाहिए कि शासन चाहे कांग्रेस करे या फिर वह स्वयं, शासन के प्रतिमान, शासन के नियम नहीं बदल सकते. संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, जिन्हें हमने 1950 में मंजूरी दी, काफी महत्वपूर्ण हैं. उनमें सब कुछ शामिल है. इसलिए किसी भी प्रधानमंत्री को, अगर वह प्रधानमंत्री बने रहना चाहता है तो, यह समझना चाहिए कि वह भले ही एक ऐसी पार्टी से आया हो, जो एक्स्ट्रीम (चरम) सोच की हो सकती है, लेकिन वह चीज ज़मीन पर लागू नहीं की जा सकती. जैसे ही आप ऐसा करेंगे, पल भर में अपनी ज़मीन खो देंगे. किए हैं.
सोलह सितंबर को उपचुनाव परिणाम एक झटके या आश्चर्य के रूप में सामने आए. पिछले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत के दो प्रमुख कारण थे. पहला, लोगों को यह लगा कि देश में एक बड़ी लूट चल रही है. इस लूट के आंकड़े बहुत बड़े हैं. घोटालों की संख्या कांग्रेस पार्टी की सरकार में बढ़ती जा रही थी. दूसरा कारण, नरेंद्र मोदी ने अपने पूरे अभियान के दौरान राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश नहीं की. इसकी जगह उन्होंने युवाओं के लिए विकास, अधिक कारखानों, अधिक रा़ेजगार और एक अच्छे भविष्य की बात कही. इन दोनों कारकों के संयोजन से उन्हें जीत मिली. लोगों ने उनके नेतृत्व में भरोसा जताया और इस तरह उनकी सरकार बन पाई. पिछले तीन से चार महीने में सरकार ने वास्तव में क्या काम किए, उनके क्या परिणाम आएंगे, यह सब देखने के लिए हमें इंतज़ार करना होगा.
लेकिन, एक काम निश्चित रूप से हुआ है. संघ परिवार की विभिन्न इकाइयां इतनी उत्साहित हो गई हैं कि वे कुछ ही समय के भीतर अपना रंग दिखाने लगी हैं. उनका हौसला बढ़ गया है. खुले रूप से हिंदू-मुस्लिम दुश्मनी, पुणे में हमला, महाराष्ट्र सदन में शिवसेना के सांसद द्वारा रमजान के दौरान रोजे पर रहे कैटरिंग वाले लड़के को जबरन रोटी खिलाना, लोगों का अपमान, मुजफ्फरनगर एवं मुरादाबाद आदि जैसी घटनाएं घटती रहीं. तीन महीने के भीतर इन लोगों ने दिखा दिया कि विकास जैसी बातें स़िर्फ मोदी तक ही सीमित हैं. बाकी की पार्टी और परिवार की सोच है कि उसे उन लोगों के ख़िलाफ़ कुछ भी करने का लाइसेंस मिल गया है, जो उनके साथ नहीं हैं. क्या जनता ने चुनाव में यही परिलक्षित किया था?
मतदान प्रतिशत नीचे चला जाता है. लोगों की कोई दिलचस्पी नहीं होती है. लेकिन, भाजपा इस परिणाम को इतनी आसानी से नहीं ले सकती. उसे समझना होगा कि वह केवल 31 प्रतिशत मतों के साथ सत्ता में आई है. अन्य राजनीतिक पार्टियों ने भी कम वोट प्रतिशत के साथ राज किया है, लेकिन उसे समझना होगा कि देश में उसका समर्थन आधार 31 प्रतिशत से अधिक नहीं है. वास्तविकता यह है कि 69 प्रतिशत लोग उसके विचारों से सहमति नहीं रखते. बेशक पांच सालों तक वह वैध तरीके से राज करेगी. इसमें कोई समस्या नहीं है. लेकिन, अगर वह लंबी अवधि तक शासन करना चाहती है, तो उसे 69 प्रतिशत लोगों की धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करना ही होगा. ये सामान्य लोग हैं. ये लोग सचमुच धर्मनिरपेक्ष हैं. ये लोग कोई भी संघर्ष, कोई भी ध्रुवीकरण, कोई कटुता नहीं चाहते हैं.
फिर ये चुनाव क्या यह ट्रेंड दिखाते हैं कि अगर आज चुनाव होते, तो मोदी जीत नहीं पाते. नहीं, बिल्कुल नहीं. ऐसा सोचना गलत होगा. ये चुनाव सरकार नहीं बदल सकते. इसलिए लोग कम उत्साह में रहते हैं. मतदान प्रतिशत नीचे चला जाता है. लोगों की कोई दिलचस्पी नहीं होती है. लेकिन, भाजपा इस परिणाम को इतनी आसानी से नहीं ले सकती. उसे समझना होगा कि वह केवल 31 प्रतिशत मतों के साथ सत्ता में आई है. अन्य राजनीतिक पार्टियों ने भी कम वोट प्रतिशत के साथ राज किया है, लेकिन उसे समझना होगा कि देश में उसका समर्थन आधार 31 प्रतिशत से अधिक नहीं है. वास्तविकता यह है कि 69 प्रतिशत लोग उसके विचारों से सहमति नहीं रखते. बेशक पांच सालों तक वह वैध तरीके से राज करेगी. इसमें कोई समस्या नहीं है. लेकिन, अगर वह लंबी अवधि तक शासन करना चाहती है, तो उसे 69 प्रतिशत लोगों की धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करना ही होगा. ये सामान्य लोग हैं. ये लोग सचमुच धर्मनिरपेक्ष हैं. ये लोग कोई भी संघर्ष, कोई भी ध्रुवीकरण, कोई कटुता नहीं चाहते हैं.
भारत में पांच लाख गांव हैं. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई तनाव नहीं है. दोनों भाइयों की तरह कंधे से कंधा मिलाकर रहते हैं. तनाव तो सांप्रदायिक दलों द्वारा उत्पन्न किया जाता है. भाजपा को यह समझना चाहिए कि शासन चाहे कांग्रेस करे या फिर वह स्वयं, शासन के प्रतिमान, शासन के नियम नहीं बदल सकते. संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, जिन्हें हमने 1950 में मंजूरी दी, काफी महत्वपूर्ण हैं. उनमें सब कुछ शामिल है. इसलिए किसी भी प्रधानमंत्री को, अगर वह प्रधानमंत्री बने रहना चाहता है तो, यह समझना चाहिए कि वह भले ही एक ऐसी पार्टी से आया हो, जो एक्स्ट्रीम (चरम) सोच की हो सकती है, लेकिन वह चीज ज़मीन पर लागू नहीं की जा सकती. जैसे ही आप ऐसा करेंगे, पल भर में अपनी ज़मीन खो देंगे. संघ परिवार यह समझ नहीं पा रहा है कि जिन विभिन्न मुद्दों के नाम पर वह अपने एजेंडे को लागू करने की कोशिश कर रहा है, उससे नरेंद्र मोदी की स्थिति ही कमज़ोर हो रही है. मोदी प्रधानमंत्री बन गए हैं, उन्हें पांच साल के लिए अपना काम करने दें. उन वादों को पूरा करने दें, जो उन्होंने लोगों से किए हैं.
संघ का एजेंडा आगे बढ़ाने के भी लायक नहीं है. फिर भी वे इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत है. तब जाकर वे हिंदू राष्ट्र, अपने मन मुताबिक कश्मीर का समाधान, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता एवं अयोध्या के बारे में बात कर सकते हैं. जैसे ही भाजपा सत्ता में आई, नरेंद्र मोदी सरकार में पीएमओ में राज्यमंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. एक अशिक्षित, बेतुका बयान ऐसे उच्च स्थान से आता है, तो उससे नुक़सान होता है. उनसे फिर कहा गया कि वह इस विषय पर बात न करें. देश बाकी सबसे ऊपर है, यह समझना चाहिए. बेशक संघ का सूत्र है कि राष्ट्र पहले, दल उसके बाद और व्यक्ति उसके बाद. लेकिन, सत्ता में आते ही मोदी ने इसे उलट दिया. व्यक्ति पहले, दल उसके बाद और राष्ट्र, मैं आशा करता हूं कि तीसरे नंबर पर.
बुद्धिमान लोगों ने भारत का संविधान बनाया. 1947 में 33 करोड़ की आबादी में 10-15 प्रतिशत मुसलमान थे, सिख थे, पारसी, ईसाई आदि थे. उन्होंने एक फॉर्मूला दिया, हमें नीति निर्देशक सिद्धांत दिया, मौलिक अधिकार दिए, ताकि संवैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ देश को सुचारू रूप से चलाया जा सके. यह देश वैसे ही चला भी, लेकिन 1992 तक. इसके बाद जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, समस्या शुरू हो गई. ये चुनाव परिणाम वास्तविकता की जांच कर रहे हैं. मुझे यकीन है कि समझदार लोग, जो नागपुर में बैठे हैं या कहीं और हैं, इस पर सोच रहे हैं या सोचेंगे. मैं आशा करता हूं कि यह बुद्धिमानी बनी रहेगी और देश की समरसता को ऩुकसान नहीं होगा.