मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी पारी खेल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए लोकसभा चुनाव किसी रोेमांच से कम नहीं है. प्रदेश भाजपा नेताओं का दावा है कि विधानसभा चुनाव की तरह ही आम चुनाव में भी कांग्रेस का सफाया होना तय है.
मध्य प्रदेश में हालिया विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जबरदस्त जीत का असर प्रदेश की मौजूदा राजनीति में साफ़ देखा जा सकता है. यहां लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं. सियासी जानकारों का कहना है कि आम चुनाव में मुख्य मुक़ाबला भाजपा और कांग्रेस में होना तय है. विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार ऐतिहासिक जीत करने के बाद प्रदेश भाजपा इकाई का हौसला काफ़ी बुलंद है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और महामंत्री अरविंद मेनन इस कदर उत्साहित हैं कि उनकी ओर से राज्य की सभी 29 सीटों पर विजय पताका फहराने का दावा किया जा रहा है. वैसे कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी से पहले सूबे की 29 सीटों में से 22 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकर यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि टिकटों को लेकर पार्टी में कोई असंतोष नहीं है. हालांकि िंभंड से घोषित कांग्रेस प्रत्याशी भगीरथ प्रसाद ने ऐन मौ़के पर भाजपा का दामन थाम कर कांग्रेस के दावों की पोल खोल दी है. कांग्रेस को विधानसभा चुनाव से पहले भी उस समय झटका लगा, जब होशंगाबाद के सांसद राव उदय प्रताप सिंह नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे. उसके बाद कांग्रेस डैमेज कंट्रोल की भरपूर कोशिश कर रही है, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस इकाई में जिस तरह हलचल मची हुई है, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि आने वाले कुछ दिन कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं. पार्टी में अंदरूनी कलह ख़त्म करने के लिए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कई प्रयोग किए, लेकिन इसका कोई फ़ायदा मध्य प्रदेश कांग्रेस में नहीं दिख रहा है. सियासी जानकारों की मानें, तो अगर लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में जारी गुटबाज़ी समाप्त नहीं हुआ, तो कांग्रेस को गंभीर नुक़सान झेलना पड़ सकता है. वैसे शिवराज सरकार पर पिछले कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे, लेकिन आपसी गुटबाज़ी में घिरी कांग्रेस इसे भुनाने में भी नाक़ाम साबित हुई.
विधानसभा की कुछ सीटों को छोड़ दें, तो लोकसभा चुनाव में दूसरी पार्टियां विशेष सफलता हासिल नहीं कर सकी है. ग़ौरतलब है कि मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में पिछले दिनों बेमौसम बारिश हुई. इस वजह से किसानों को काफ़ी नुक़सान हुआ. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बाबत केंद्र सरकार से पीड़ित किसानों को मुआवजा देने की मांग की, लेकिन सरकार ने कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया. नतीजतन मुख्यमंत्री शिवराज ने किसानों के सवाल पर धरना भी दिया.
मध्य प्रदेश के मौजूदा राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी भी दंभ भर रही है. इस बीच अरविंद केजरीवाल ने प्रदेश की सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का ऐलान भी कर दिया है. पार्टी की ओर से अभी तक कुल चौदह उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. वैसे देखा जाए, तो मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार भी नहीं है. हालिया कुछ दिनों में आम आदमी पार्टी के भीतर टिकटों के बंटवारे को लेकर जिस तरह कलह उभरकर सामने आया है, उससे पार्टी को काफ़ी नुक़सान पहुंचा है. प्रदेश के मतदाताओं का कहना है कि अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह दिल्ली की सत्ता छोड़ी, उसे उचित नहीं कहा जा सकता. यही वजह है कि मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी का कोई ख़ास असर नहीं दिख रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़, समाजसेवी अन्ना हजारे के अलग होने से भी अरविंद केजरीवाल की छवि प्रभावित हुई है. ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी बुरी तरह नाक़ाम साबित होने वाली है. मध्य प्रदेश के सियासी माहौल की बात करें, तो यहां मुख्य मुक़ाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में ही रहा है. जानकारों की मानें, तो आचारसंहिता लागू होने की वजह से किसानों को फ़ौरी तौर पर भले ही राहत न मिल सके, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस गंभीरता के साथ किसानों के मुद्दे को उठाया, इसका फ़ायदा उन्हें लोकसभा चुनाव में ज़रूर मिलेगा. बात अगर कांग्रेस की करें, तो पार्टी में नेतृत्व का अभाव साफ दिख रहा है. सूबे में पार्टी का हर बड़ा नेता स्वयं को सर्वोपरि मानता है. इस वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है. विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग होता है. इस चुनाव में स्थानीय मुद्दे के अलावा राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी रहते हैं. चूंकि मौजूदा यूपीए सरकार महंगाई और भ्रष्टाचार के सवाल पर विपक्षी पार्टियों के निशाने पर रही है, लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे परेशानी की बात यह है कि जनता भी इसे लेकर कांग्रेस से काफ़ी नाराज है. सार्वजनिक रूप से कांग्रेसी नेता भले ही इसे स्वीकार न करें, लेकिन उन्हें यह बखूबी पता है कि महंगाई और भ्रष्टाचार उनकी हार के लिए काफ़ी है.