keralकेरल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैली में केरल के विकास की तुलना बदहाल अफ्रीकी देश सोमालिया से की थी. चुनाव परिणाम ने कांग्रेस को सोमालिया जैसी हालत में ही ला दिया. हालांकि चुनाव के बाद केरल में जिस तरह हिंसा हो रही है, उससे भी सोमालिया का ही एहसास हो रहा है. कांग्रेसनीत यूडीएफ गठबंधन को 140 में मात्र 47 सीटों पर ही सिमटना पड़ा जबकि वाम गठबंधन एलडीएफ को 83 सीटों के साथ भारी बहुमत मिला. भाजपा केवल?एक सीट हासिल कर पाई. पूर्व क्रिकेटर एस. श्रीसंत पर भाजपा का लगाया दांव बेकार चला गया और वह चुनाव हार गए. भाजपा का वोट शेयर 4 प्रतिशत से बढ़कर 10 प्रतिशत पर जा पहुंचा. भाजपा के लिए इतना ही सार्थक है. केरल में लेफ्ट और राइट के बीच जानलेवा लड़ाई आम बात रही है.

केरल विधानसभा की 140 सीटों के लिए इस बार 109 महिला उम्मीदवारों सहित कुल 1,203 उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में ताल ठोंकी थी. यहां हमेशा की तरह इस बार भी द्विकोणीय लड़ाई ही थी, जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ को वाम मोर्चे के नेतृत्व वाली एलडीएफ ने जबरदस्त पटखनी दी. वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व में एलडीएफ को सत्ता में वापसी की उम्मीद पहले से ही थी, जो कि अंततः सही साबित हुई. पश्चिम बंगाल में अपना अस्तित्व खो चुके वाम मोर्चा को केरल में 92 साल के अच्युतानंदन की रणनीति, जोश और चुनावी गणित का सहारा था, जो सटीक साबित हुआ. एलडीएफ गठबंधन के लिए चुनाव प्रचार में अच्युतानंदन ने पूरी ताकत झोंक दी थी.

रोजाना औसत 200 किलोमीटर की यात्रा करने वाले अच्युतानंदन ने करीब 70 रैलियों को संबोधित किया, जिसका परिणाम सामने है. केरल के चुनाव में सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा, क्योंकि सोलर घोटाला और शराब घूसकांड जैसे मामले कांग्रेस के गले की हड्डी बन गए. तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने चुनाव परिणामों पर कहा कि यह हार काफी निराशाजनक है और यह वक्त कांग्रेस के लिए पुनर्विचार और पुनर्निर्माण का है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कहा कि पार्टी को आत्मावलोकन की जरूरत है. केरल के बहुचर्चित जिशा बलात्कार और हत्याकांड का भी कांग्रेस गठबंधन को काफी नुकसान झेलना पड़ा.

केरल विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई थीं. यहां चुनाव इसलिए भी खास रहा क्योंकि इस चुनाव में भाजपा ने यूडीएफ को हराने में अहम भूमिका अदा की. केरल के इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 10 फीसदी यानी कुल  21,29,726 वोट हासिल किए. माना जा रहा है कि इसमें से अधिकतर वोट यूडीएफ के ही हिस्से के थे. भाजपा इस वोट शेयर को मात्र एक सीट में ही परिवर्तित कर पाई, लेकिन यह साफ है कि इस अदृश्य वोट बैंक ने एलडीएफ की सत्ता हासिल करने में परोक्ष मदद की. 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद केरल में सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था, वहीं एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई थी. वाम मोर्चा वाले एलडीएफ ने केरल में 88 सीटें हासिल कीं तो कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को 51 सीटें मिलीं.

भाजपा ने केरल में दोनों पार्टियों के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं. भाजपा ने नवगठित भारत धर्म जनसेना के साथ गठबंधन किया था. ईसाईयों की बहुलता वाले केरल में भाजपा ने राजशेखरन के नेतृत्व में आक्रामक तरीके से हिंदुत्व कार्ड का सहारा लिया था. राज्य में लगभग 45 फीसदी ईसाई और मुसलमान हैं. हिंदू करीब 55 फीसदी हैं और उन्होंने कभी एकजुट होकर वोट नहीं किया. गौरतलब है कि राजशेखरन ने राज्य में विश्व हिंदू परिषद को स्थापित करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

हालांकि नायर सेवा समाज द्वारा समर्थन देने से इंकार करने की वजह से भाजपा की इस योजना को बड़ा धक्का भी लगा. केरल विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्‌दा रहा. यूडीएफ के मुख्यमंत्री ओमन चांडी के कार्यकाल में एक के बाद एक कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. जहां तक मुख्य आरोपों की बात है तो तत्कालीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री अनूप जोसेफ पर सौर घोटाले का आरोप लगना प्रमुख है. सौर घोटाले की मुख्य आरोपी सरिता नायर ने तो चांडी पर उनका यौन शोषण करने का आरोप भी लगाया था. एक अन्य आरोप में बार रिश्वत घोटाले में भी सत्ताधारी दल का नाम जोड़ा गया. भ्रष्टाचार के कई पुराने मामले भी उठाए गए, जिसमें 1991 का पामोलिन तेल आयात मामला शामिल था, तब चांडी वित्त मंत्री थे.

केरल में हर पांच साल के अंतराल में सत्ता बारी बारी से यूडीएफ और एलडीएफ के हाथों में जाती रही है. केरल में 1977 को छोड़ दें, तो हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता रहा है. जाहिर है इस बार बारी एलडीफ की थी. सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई. केरल के आदिवासी इलाकों में गरीबी और अकाल से बच्चों की मौत के लिए भी तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमन चांडी के ढुलमुल रवैये को जिम्मेदार माना गया. केरल में क़ानून की पढ़ाई करने वाली एक दलित छात्रा के साथ बलात्कार और निर्मम हत्या के कुछ ही दिन बाद ही नर्सिंग की पढ़ाई करने वाली एक अन्य दलित छात्रा के साथ वारकला के अयांती में हुए बलात्कार कांड ने भी जनता को झकझोर कर रख दिया. केरल में कोल्लम के पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजी के दौरान आग लगने और विस्फोट से 100 से अधिक लोगों के मरने की वजह से चांडी सरकार की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठने लगे थे.

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