पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर इलाके में भाजपा अध्यक्ष जगत नड्डा और भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के काफिले पर जो हमला हुआ, उसमें ऐसा कुछ भी हो सकता था, जिसके कारण ममता बनर्जी की सरकार को भंग करने की नौबत भी आ सकती थी। यदि नड्डा की कार सुरक्षित नहीं होती तो यह हमला जानलेवा ही सिद्ध होता। कैलाश विजयवर्गीय की कार विशेष सुरक्षित नहीं थी तो उनको काफी चोटें लगीं। क्या इस तरह की घटनाओं से ममता सरकार की इज्जत या लोकप्रियता बढ़ती है ? यह ठीक है कि भाजपा के काफिले पर यह हमला ममता ने नहीं करवाया होगा। शायद इसका उन्हें पहले से पता भी न हो लेकिन उनके कार्यकर्ताओं द्वारा यह हमला किए जाने के बाद उन्होंने न तो उसकी कड़ी भर्त्सना की और न ही अपने कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की। बंगाल की पुलिस ने जो प्रतिक्रिया ट्वीट की, वह यह थी कि घटना-स्थल पर ‘‘खास कुछ हुआ ही नहीं’’। पुलिस ने यह भी कहा कि ‘‘कुछ लोगों ने पत्थर जरुर फेंके लेकिन सभी लोग सुरक्षित हैं। सारी स्थिति शांतिपूर्ण है।’’ जरा सोचिए कि पुलिसवाले इस तरह का रवैया आखिर क्यों रख रहे हैं ? क्योंकि वे आंख मींचकर ममता सरकार के इशारों पर थिरक रहे हैं। सरकार ने उन्हें यदि यह कहने के लिए प्रेरित नहीं किया हो तो भी उनका यह रवैया सरकार की मंशा के प्रति शक पैदा करता है। यह शक इसलिए भी पैदा होता है कि ममता-राज में दर्जनों भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है और उक्त घटना के बाद कल भी एक और हत्याकांड हुआ है। प. बंगाल के चुनाव सिर पर हैं। यदि हत्या और हिंसा का यह सिलसिला नहीं रुका तो चुनाव तक अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है। केंद्र और राज्य में इतनी ज्यादा ठन सकती है कि ममता सरकार को भंग करने की नौबत भी आ सकती है। उसका एक संकेत तो अभी-अभी आ चुका है। पुलिस के तीन बड़े केंद्रीय अफसर, जो बंगाल में नियुक्त थे और जो नड्डा-काफिले की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे, उन्हें गृहमंत्री अमित शाह ने वापस दिल्ली बुला लिया है। ममता इससे सहमत नहीं है। लेकिन इस तरह के कई मामलों में अदालत ने केंद्र को सही ठहराया है। ममता को आखिरकार झुकना ही पड़ेगा। राज्यपाल जगदीप धनखड़ और ममता के बीच रस्साकशी की खबरें प्रायः आती ही रहती हैं। भाजपा की केंद्र सरकार और ममता सरकार को जरा संयम से काम लेना होगा, वरना बंगाल की राजनीति को रक्तरंजित होने से कोई रोक नहीं पाएगा।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

Adv from Sponsors