bjpउत्तर प्रदेश में चाय बेचने वाले को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाने की लाइन हजम नहीं हो पा रही है. भाजपा को लगता है कि नरेंद्र मोदी की तरह चाय बेचने वाला फार्मूला हर जगह पर फिट किया जा सकता है, यह पूरी तरह गलत है, क्योंकि चाय बेचने वाले फार्मूले पर केशव प्रसाद मौर्य को फिट किए जाने से यूपी के लोग बिदक पड़े हैं. यूपी के लोगों को पता है कि तथाकथित चाय बेचने वाले मौर्य की आर्थिक औकात क्या है. लिहाजा, प्रदेश के लोगों को झांसा पट्‌टी देने की नीयत के साथ जिस राजनीति की शुरुआत की जा रही हो उसे लोग गलत मान कर चल रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार इस बात पर सवाल भी उठाते हैं कि जब मौर्य को ही प्रदेश अध्यक्ष चुनना था तो भाजपा आलाकमान इतनी देर क्यों लगा रहा था. जब इतनी जद्दोजहद के बाद भी भाजपा को मौर्य ही चुनना था, तो उससे भविष्य के राजनीतिक-गांभीर्य की अपेक्षा कैसे की जा सकती है. इसपर सवाल उठना स्वाभाविक ही है. हर जगह जातीय समीकरण ही फिट नहीं बैठता.

बिहार के विधानसभा चुनाव में संगठनात्मक कार्य कर चुके यूपी भाजपा के एक मंझोले दर्जे के नेता ने कहा कि बिहार में तो जातीय समीकरण बैठाने के चक्कर में दलितों और यादवों को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया, उसका क्या फायदा मिला? अभी उत्तर प्रदेश के लोगों को एक प्रभावशाली व्यक्तित्व और बेदाग छवि वाले नेता को भाजपा के अध्यक्ष के रूप में देखने की इच्छा थी, लेकिन मिला कौन? एक विवादास्पद और दागी छवि वाला व्यक्ति. भाजपा आलाकमान के इस फैसले से ही उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा की क्या छवि और स्थिति बनने वाली है, इसके बारे में अभी से समीक्षा की जाने लगी है.

उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा आलाकमान ने पांच राज्यों के अध्यक्ष बदले हैं. कर्नाटक में भी भ्रष्टाचार के आरोपी येदियुरप्पा ही भाजपा को एकमात्र विकल्प के रूप में दिखाई पड़े. इसी तरह उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य. पंजाब, अरुणाचल प्रदेश और तेलंगाना के लिए चुने गए अध्यक्षों पर अधिक विवाद नहीं है. लेकिन उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के अध्यक्ष के चयन को लेकर पार्टी की नैतिक प्रतिबद्धता और प्राथमिकता पर सवाल जरूर खड़े हो रहे हैं. एक अध्यक्ष (कर्नाटक) पर भ्रष्टाचार के गहरे दाग हैं तो दूसरे अध्यक्ष (यूपी) पर हत्या, दंगा फैलाने, धोखाधड़ी करने और सरकारी कर्मचारियों को धमकी देने जैसे गंभीर मामले हैं.

साफ है कि पवित्र और चरित्र की राजनीति का भाजपाई दावा यथार्थ में फिसड्‌डी ही है. सत्ता पाने की अभिलाषा में भाजपा भी अन्य पार्टियों की तरह किसी भी स्तर पर उतर सकती है. पिछड़ी जाति से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश की कमान सौंप कर भाजपा ने अपनी यही मंशा जाहिर की है. मोदी लहर में मौर्य भी फुलपुर से सांसद चुने गए थे.

उन्होंने मशहूर क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को हराकर इस सीट को कब्जे में लिया था. मौर्य के चयन के बाद यूपी के लोग आम तौर पर यह सवाल उठा रहे हैं कि भाजपा जातीय समीकरण साधना चाहती है या हिंदूवादी समीकरण? जातीय समीकरण की रेस में क्या भाजपा मुलायम या मायावती का मुकाबला कर पाएगी? मायावती दलित वोट पर अपना एकाधिकार समझती हैं तो मुलायम पिछड़ों, मुसलमानों और अगड़ी जाति के राजपूतों और भूमिहारों पर अपना अधिकार मानते हैं. ऐसे में मौर्य कहां टिकते हैं, यह देखना है.

केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ी जाति से आते हैं, लेकिन उनके पास किसी जाति विशेष का कोई बड़ा समर्थन नहीं है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौर्य की पहचान ही तब दर्ज हुई जब उनका नाम अध्यक्ष पद के लिए नामित किया गया.

पहले पासे में मात खाने के बाद अब भाजपा के पास दूसरा कार्ड बचा है चुनावी-चेहरा. यह चेहरा कौन होगा, इसी पर अब केवल प्रदेश क्या देशभर के लोगों की निगाहें लगी हैं. भारतीय जनता पार्टी मिशन-2017 के लिए पार्टी का चेहरा किसे बनाए, इसे लेकर उहापोह में है. भाजपा आलाकमान ऐसे किसी करिश्माई चेहरे की तलाश में है, जिसके साथ उसकी सांगठनिक क्षमता के साथ-साथ ग्लैमर भी हो.

पहले तो चुनावी चेहरे के बतौर योगी आदित्यनाथ का नाम खूब चला, लेकिन धीरे-धीरे योगी का नाम पीछे चला गया और इसमें स्मृति ईरानी और वरुण गांधी का नाम ऊपर चलने लगा. भाजपा आलाकमान को इंतजार है कि कांग्रेस शायद प्रियंका गांधी को अपना चुनावी चेहरा बनाए तो भाजपा स्मृति ईरानी पर दांव खेल देगी. अन्यथा कोई अन्य चेहरा सामने लाएगी. पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का नाम भी चला था, लेकिन उनका खराब स्वास्थ्य खुद इस नाम को दूर तक लेकर नहीं चल पाया.

पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने खुद को इस प्रतियोगिता से दूर खड़ा कर लिया. उमा भारती भी इस दांव में नहीं पड़ना चाहतीं. बिहार चुनाव में भाजपा की दुर्गति के बाद कोई भी कद्दावर नेता गरम दूध में हाथ डालने से हिचक रहा है. लिहाजा, भाजपा आलाकमान के पास गिने-चुने विकल्प हैं, लेकिन इस पर भी मंथन और गुंथन जारी है.

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