आज महान आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा का जन्म-दिन है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में रानी कमलापति स्टेशन का उद्घाटन किया और आदिवासियों के भले के लिए कई नई योजनाएं शुरु कीं। मध्यप्रदेश में आदिवासियों की संख्या सारे प्रदेशों से ज्यादा है। वे भारतीय जनता के सबसे ज्यादा गरीब और उपेक्षित लोग हैं। अंग्रेजों के ज़माने में उन्होंने अनेक अत्याचार सहे, धर्म-परिवर्तन की आंधियों से वे गुजरे और आजादी के बाद भी उनकी दशा में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन मध्यप्रदेश की सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के उत्थान के लिए कई ऐसी पहल की हैं, जिनका अनुकरण लगभग सभी प्रदेश करें, यह जरुरी है। जैसे अब आदिवासियों को अपना राशन लेने के लिए अपने गांवों से शहरों तक पैदल या अन्य साधनों से जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। अब उन्हें घर बैठे राशन मिला करेगा। मध्यप्रदेश में ऐसे-ऐसे आदिवासी इलाके हैं, जिनमें कई बूढ़े लोगों ने मुझे बताया कि वे अपने ‘पाताल लोक’ से कभी सड़क पर गए ही नहीं। उन्हें पता ही नहीं कि कोई गांव या शहर कैसे होता है? वे अपने जंगल में ही पैदा होनेवाले अनाज, फूल-पत्तों, सब्जियों, फलों और जानवरों के मांस से अपनी भूख मिटाते हैं। कई इलाकों में स्त्री-पुरुष लगभग नग्न ही रहते हैं। बीमार पड़ने पर वे अपना इलाज जंगली जड़ी-बूटियों से ही करते हैं। उन्हें पता ही नहीं कि बिजली के बल्ब का प्रकाश और नल का पानी कैसा होता है। अब उन्हें एक चिकित्सा कार्ड भी मिलेगा ताकि वे अपना इलाज करवा सकें। पूरे देश में आज से 50 एकलव्य आदर्श विद्यालय भी स्थापित किए जाएंगे, जिनमें आदिवासी बच्चों को शिक्षा, निवास और खान-पान की मुफ्त सुविधा दी जाएगी। आज भोपाल में जन जातीय लोगों द्वारा रचित उपयोगी वस्तुओं और कलाकृतियों का प्रदर्शन भी हो रहा है। यदि भारत सरकार इन आदिवासी वस्तुओं का व्यापार बड़े पैमाने पर शुरु करवा दे तो करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा और उनके जीवन-स्तर अपने आप ऊँचा उठेगा। देश के आदिवासियों के कल्याण के लिए मप्र की सरकार ने यह दिन इसीलिए चुना है कि यह दिन (15 नवंबर) महान आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा का जन्म-दिवस है। बिरसा मुंडा मुश्किल से 25 साल जिए लेकिन इस अल्प अवधि में ही आदिवासी जनता के लिए उन्होंने ऐसा जबर्दस्त संघर्ष किया था कि उससे लंदन का तख्त हिल गया था। बिरसा 1875 में पैदा हुए और 1900 में उनका देहांत हुआ। उन्होंने अंग्रेजों के धर्म-परिवर्तन अभियान का डटकर विरोध किया। उनका कहना था कि अंग्रेज सरकार ईसाइयत के नाम पर भारत में गुलामी को मजबूत कर रही है। आदिवासियों को लालच, भय, ठगी आदि के जरिए अंग्रेज अपने जाल में फंसाकर गुलामी बढ़ा रहे हैं। बिरसा ने अपना ही आदिवासी धर्म चला दिया। अंग्रेज ने युवा बिरसा को जेल कर दी और बाद में जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई। बिरसा मुंडा पर कई फिल्में बनी हैं, उपन्यास लिखे गए हैं और उन्हें आदिवासी लोग भगवान की तरह मानते हैं। उनके जन्म दिन को जनजाति कल्याण दिवस के रुप में मनाना सही है।
बिरसा मुंडाः आदिवासी—कल्याण
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