चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर बापू को लेकर राजनीतिक दलों की सियासत तेज हो गई है, पर उनके विचारों को आत्मसात करने के लिए कोई तैयार नहीं है. यहां तक कि गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करने वाले नेता और तथाकथित गांधीवादी भी सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर नजर नहीं आ रहे हैं. राज्य और केन्द्र सरकार ने भी शताब्दी वर्ष पर कुछ कार्यक्रमों का आयोजन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है. ऐसे में कुछ गैर राजनीतिक संगठनों ने गांधी के विचारों को यथासंभव फैलाने की मुहिम शुरू की है.
पत्रकारों ने पहल की सत्याग्रह शताब्दी समारोह की
प्रखर गांधीवादी और वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रभूषण पाण्डेय के नेतृत्व में चम्पारण प्रेस क्लब ने 10 अप्रैल को ‘वर्तमान परिवेश में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया था. सेमिनार में मुख्य अतिथि के तौर पर बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी मौजूद थे. चम्पारण प्रेस क्लब के इस कदम को सराहनीय बताते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकारों ने गांधी जी के विचारों को देश-दुनिया में फैलाने का बीड़ा उठाया है. इस दौरान कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने भी कार्यक्रम का आयोजन किया. इसके बाद सत्याग्रह या बापू से ज़ुडा कोई महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया, लेकिन चम्पारण प्रेस क्लब के इस कार्यक्रम ने पटना और दिल्ली तक एक महत्वपूर्ण संदेश अवश्य पहुंचाया. स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने पहल की और चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह मनाने का निर्णय लिया.
विशेष मौके पर ही याद आते हैं गांधी
बापू के नाम पर ब्रांडिंग करने वाले नेताओं को गांधी जी की याद विशेष मौके पर ही आती है. गांधी जयन्ती, पुण्यतिथि, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसी कुछ तिथियों पर ही नेतागण समारोह का आयोजन करते हैं. सरकारों और दलों ने भितिहरवा आश्रम से अपना अभियान शुरू करने की परम्परा बना ली है, लेकिन बापू की विरासत, भितिहरवा आश्रम और उस क्षेत्र के विकास के लिए कभी कोई काम शुरू नहीं हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए व्यक्तिगत तौर पर पहल की. 13 वर्षों तक बापू की पुण्यतिथि पर चन्द्रशेखर भितिहरवा आते रहे. इसी दौरान मोतिहारी के कुछ स्थानीय नेता और बुद्धिजीवी भी उनके इस अभियान से जुड़े. गांधी दर्शन से जुड़े चन्द्रभूषण पाण्डेय बताते हैं कि चन्द्रशेखर मोतिहारी में बैठक कर भितिहरवा के विकास के लिए व्यक्तिगत रूप से चंदा इकट्ठा करते थे. उनके आगमन पर आनन-फानन में राज्य सरकार सड़क निर्माण कराती थी, जो साल भर बाद पुन: टूट जाता था. इस दौरान राज्य सरकार ने भी कुछ योजनाएं शुरू कीं, जो आज खस्ताहाल हैं. ‘बा’ के नाम पर कस्तूरबा कन्या विद्यालय खोला गया, जो आज बंद होने के कगार पर है. यह हाल तब है, जब लगभग सभी बड़े नेता भितिहरवा जा चुके हैं.
गांधी जी की प्रथम पाठशाला बड़हरवा लखनसेन की भी हालत कुछ ऐसी ही है. ज्ञात हो कि गांधी जी ने 14 नवम्बर 1918 को बड़हरवा लखनसेन में बेसिक स्कूल की स्थापना की थी. स्थानीय रामलाल बख्शी नामक किसान ने विद्यालय के लिए जमीन और भवन दान में दिया था. इस स्कूल में बा रहकर बच्चों को शिक्षा और स्वच्छता का पाठ पढ़ाती थीं. जिस खपड़ैल मकान में बा रहती थीं, उसे भी हटा दिया गया है. चम्पारण के ढाका प्रखण्ड से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बड़हरवा लखनसेन स्थित बापू के प्रथम बेसिक विद्यालय के भग्नावशेष को भी संभालकर नहीं रखा गया. यहां महज खानापूर्ति के लिए गांधीजी की एक प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसका अनावरण गांधी जी के पौत्र राजगोपाल गांधी ने किया था. यहां पर वह चरखा भी था, जो विद्यालय के स्टोर में रखे-रखे कबाड़ बन गया. इस चरखे को गांधी जी और उनके बाद बा चलाती थीं. तकरीबन 5 साल पहले वरिष्ठ पत्रकार स्वयंप्रकाश बड़हरवा लखनसेन आए थे. उन्होंने विद्यालय प्रबंधन को फटकार लगाते हुए बापू की विरासत को संभालकर रखने की नसीहत दी थी.
वहीं 17 जनवरी 1918 को गांधी जी ने मधुबन में तीसरे बेसिक स्कूल की स्थापना की थी. मारवाड़ियों ने इस स्कूल के लिए जमीन दी थी. स्थानीय लोग बताते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्कूल बन्द कर दिया गया और उसमें कांग्रेस का कार्यालय बना दिया गया. कांग्रेस के नेताओं ने ही गांधी जी के तीसरे बेसिक स्कूल को हड़प लिया. आज भी वहां कांग्रेस का कार्यालय खुला है.
कह सकते हैं कि चम्पारण भले ही गांधी जी के सत्याग्रह की प्रयोगस्थली रही हो, लेकिन सत्ता में बैठे नेताओं ने बापू की विरासत को संजोने का काम नहीं किया. 2000 के दशक में तत्कालीन जिलाधिकारी अरुण कुमार और उनके बाद चंचल कुमार के दौरान गांधी संग्रहालय एवं स्मारक का निर्माण कराया गया. गांधी स्मारक के तत्कालीन सचिव चन्द्रभूषण पाण्डेय के अथक प्रयासों के बाद स्मारक बनकर तैयार हुआ. चन्द्रहिया में भी गांधी स्मारक की भूमि पर अतिक्रमण हो गया था, जिसे तत्कालीन डीएम नर्मदेश्वर लाल ने मुक्त कराकर चहारदीवारी का निर्माण कराया.
शताब्दी वर्ष पर भी कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. नीतीश कुमार ने शताब्दी वर्ष समारोह के तहत 18 अप्रैल को चन्द्रहिया से मोतिहारी गांधी उद्यान तक लगभग 8 किलोमीटर की पैदल यात्रा की. इस यात्रा में लोगों ने भागीदारी की, लेकिन इसमें ज्यादातर वैसे लोग थे, जो मुख्यमंत्री को अपना चेहरा दिखाना चाहते थे. जो गांधी भक्त थे वे काफिले में गुम हो गए थे. पैदल यात्रा के बाद आम सभा का भी आयोजन किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भाषण दिया. परंतु इस आयोजन का कोई लाभ क्षेत्र को या गांधी से जुड़े विरासत को नहीं मिला. राज्य सरकार अक्टूबर माह में एक बड़ा आयोजन मोतिहारी में करने वाली है. राज्य सरकार ने पटना में भी कई कार्यक्रम किए. इस दौरान पूरे राज्य में गांधी जी से जुड़ी फिल्में भी दिखाई गईं. महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने कुलपति डॉ. अरविन्द अग्रवाल के नेतृत्व में रन फॉर चम्पारण का आयोजन किया.
वहीं स्थानीय सांसद सह केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के नेतृत्व में भी सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह 13 से 19 अप्रैल तक मनाया गया. हालांकि पहली बार मंत्री राधामोहन सिंह द्वारा मोतिहारी में जिले के सभी स्वतंत्रता सेनानियों और उनके उत्तराधिकारियों को सम्मानित किया गया. इस सात दिवसीय कार्यक्रम के दौरान कृषि मेला, कौशल विकास, रोजगार मेला, खादी मेला, पूसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को नई तकनीक और परामर्श, बागवानी मिशन और कोऑपरेटिव द्वारा मेला लगाया गया. उक्त अवसर पर केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूढ़ी, अनन्त कुमार के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, सुशील मोदी और राम कृपाल यादव भी मौजूद थे. वहीं गांधी जी की पौत्री तारा गांधी सहित कई गांधीवादी भी आए थे.
भावविभोर हुईं बापू की पौत्री तारा गांधी
तारा गांधी ने चन्द्रहिया में महिलाओं की सभा में भी भाग लिया. वहां की ग्रामीण महिलाओं ने उन्हें छूकर देखने की कोशिश की, तो उनकी आंखें नम हो गईं. उन्होंने कहा कि हममें बापू जैसा कुछ भी नहीं, मैं आप जैसी ही हूं. आप लोग महान हैं, जिन्होंने अपने दिलों में बापू को आज भी जिन्दा रखा है. चन्द्रहिया गांव की महिलाएं खादी ग्रामोद्योग द्वारा संचालित कार्य करती थीं. वे चरखा चलाने, सूत कातने और रंगाई का काम करती थीं. यही उनकी जीविका थी, पर 1970 के दशक में खादी ग्रामोद्योग का यह कार्यक्रम बन्द कर दिया गया. सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर सांसद राधा मोहन सिंह ने चन्द्रहियां को गोद लिया है. इसके बाद यहां सोलर लैम्प लगे और घर-घर विद्युत कनेक्शन दिया गया है. पेयजल और शौचालय की व्यवस्था भी की गई है.
बेसहारा हैं बापू के सहयोगी के परिजन
इसे विडम्बना ही कहेंगे कि गांधी जी के साथ उनके आन्दोलन में भाग लेने वाले और अंग्रेजों की गोली से शहीद हुए चन्द्रहिया निवासी भिखारी राय के परिजनों की स्थिति आज भी दयनीय बनी हुई है. गांधी स्मारक के सचिव चन्द्रभूषण पाण्डेय ने उनको सरकारी लाभ दिलाने का प्रयास किया, लेकिन वे इसमें सफल नहीं रहे.
8 और 9 जुलाई को चम्पारण प्रेस क्लब ने एक सेमिनार का आयोजन किया, जिसमें देश के हर प्रान्त से पत्रकारों ने भाग लिया. मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात पत्रकार संतोष भारतीय, एशिया टीवी के राजीव मिश्र, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और लेखक आनन्द वर्धन भी मौजूद थे. उक्त समारोह में केन्द्रीय मंत्री राधामोहन सिंह और बिहार विधान सभा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी भी बतौर मु़ख्य अतिथि मौजूद थे. राधाकृष्ण सिकारिया बीएड कॉलेज में आयोजित सेमिनार के मंच से वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने यह प्रश्न उठाया कि गांधी जी ने जिन क्षेत्रों को चुना था, इस मौके पर उसके विकास के लिए क्या किया गया? उन्होंने विधानसभाध्यक्ष के माध्यम से सरकार को भी यह संदेश दिया कि उन क्षेत्रों में गांधी जी के विचारों के अनुरूप शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई आदि पर काम करना चाहिए. इसके अलावा उनके विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने पर जोर देना चाहिए. इस सेमिनार का उद्देश्य भी यही था कि देश भर के पत्रकारों को गांधी के सत्याग्रह की प्रयोगस्थली को नजदीक से देखने और समझने का मौका मिल सके. अगर गांधी जी के विरासत को संभालकर रखा जाता, तो आज चंपारण विश्व स्तर पर गांधीवादियों के लिए एक पर्यटक स्थल जरूर बन जाता.