तकनीक और राजनीति का रिश्ता वैसे तो बहुत पुराना है, लेकिन हाल के दिनों में चुनावी राजनीति में उसका बेहतर प्रयोग कैसे हो, इसकी एक बानगी नरेंद्र मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में दिखाई थी. थ्री डी तकनीक के आधार पर देश भर के करोड़ों मतदाताओं को एक ही स्थान से संबोधित करके रूबरू होने का एहसास नरेंद्र मोदी ने देश को कराया था. फेसबुक और ट्वीटर जैसी सोशल मीडिया के साधनों का प्रयोग नेताओं ने वोटरों तक पहुंचने के लिए जोर-शोर से करना शुरू किया. आम आदमी पार्टी ने तो इसका पूरा फ़ायदा दिल्ली के चुनाव में उठाया. बिहार में भी इन दिनों लगभग सभी दलों ने सोशल मीडिया को अपने प्रचार का एक प्रमुख हथियार बना लिया है और कम से कम समय में बिना कोई खास खर्च वे अपने वोटरों तक पहुंचने में लगे हैं.
बात सत्तारूढ़ जदयू से शुरू करते हैं. जदयू कार्यालय में इधर-उधर की बात होते-होते हम फेसबुक-ट्वीटर की दुनिया में आ जाते हैं. बतकही का हिस्सा बन रहे तमाम नेता-कार्यकर्ता यह स्वीकारते हैं कि जदयू की तुलना में भाजपा सोशल मीडिया पर कहीं ज़्यादा सक्रिय है. कार्यालय सचिव बबलू के हाथ में महंगा एंड्रॉयड फोन होता है और रह-रहकर वह अपना फेसबुक अपडेट देखते हैं. बातचीत के दौरान ही हम उनसे कहते हैं कि आपको भाजपा ने सोशल मीडिया पर मात दे दी है. छूटते ही बबलू खुद सवाल करते हैं, आपको क्या लगता है कि बिहार भी दिल्ली या जापान है, जहां सोशल मीडिया का जादू चल जाएगा? हमें जहां एक्टिव रहना चाहिए, वहां हैं. वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का फेसबुक पेज दिखाते हुए कहते हैं, देखते हैं कभी कि यहां मुख्यमंत्री के पोस्ट पर लोग कैसे-कैसे कमेंट करते हैं? व्यक्तिगत खुन्नस निकालते हैं, गाली-गलौज तक करते हैं. हमने कहा कि जिन्हें सरकार से नाराज़गी होगी, वही ऐसा करते होंगे. इस पर बबलू कहते हैं, नहीं, भाजपा ने कुछ लोगों को हायर किया है अपने आईटी सेल में. यह सब उन्हीं का काम है. वे भाजपा को सोशल मीडिया पर प्रमोट करते हैं और सरकार का दुष्प्रचार करते हैं.
बबलू की बातें सही हों या गलत, लेकिन इतना तो तय है कि बिहार के राजनीतिक दल और नेता सोशल मीडिया की ताकत पहचान चुके हैं. यही वजह है कि खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ-साथ बिहार के लगभग सभी बड़े नेता फेसबुक-ट्वीटर पर सक्रिय नज़र आते हैं. वैसे मुख्यमंत्री नीतीश हाल-हाल तक सोशल मीडिया पर एक्टिव नेताओं पर व्यंग्य करते रहे हैं. किसी भी नेता के ट्वीटर अपडेट पर जब कोई नीतीश से उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहता, तो वह व्यंग्य करने में तनिक भी देरी नहीं करते थे. हाल में एक अख़बार के लोकार्पण के मौ़के पर उन्होंने परोक्ष रूप से लालू पर निशाना साधते हुए कहा था कि नए लोगों की तो छोड़िए, अब पुराने लोग भी चेंचियाने लगे हैं. बताते चलें कि उक्त समारोह से कुछ दिनों पहले यह ख़बर आई थी कि लालू अब ट्वीटर पर नज़र आएंगे. उसके कुछ दिनों बाद ही नीतीश खुद फेसबुक पर नज़र आने लगे. नीतीश ने फेसबुक पर स़िर्फ एकाउंट ही नहीं खोला है, वह लगातार इस माध्यम पर सक्रिय भी रहते हैं. अपनी तमाम गतिविधियों को अपडेट करते रहते हैं. फेसबुक पर उनके चाहने वालों की संख्या एक लाख से भी अधिक है. पिछले दिनों नीतीश ने अपने पेज पर फेडरल फ्रंट के आकार लेने और उससे जुड़ी बातों को फेसबुक पर अपडेट किया. मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं. कुछ लोगों ने आलोचना की, तो बहुतों ने नीतीश के इस क़दम को सराहा भी.
सूत्र बताते हैं कि नीतीश का यह पेज उनके एक सचिव देखते हैं और नीतीश हर रोज आ रही प्रतिक्रियाओं से अवगत होते हैं. जदयू के एक नेता कहते हैं कि अब तो हम लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे हुए हैं, जनता के बीच जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर अभी ध्यान देने का वक्त नहीं है. लेकिन उनकी बातों से लगता है कि उन्हें इसका मलाल है कि समय रहते हुए जदयू ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. जदयू में फिलहाल आईटी सेल भी नहीं है. जदयू की जो आधिकारिक वेबसाइट है, वह दिल्ली से संचालित होती है और वह भी अपडेट नहीं है. वहीं बिहार जदयू की अलग से कोई वेबसाइट नहीं है और न वह सोशल मीडिया पर है. पिछले कुछ दिनों से जदयू के प्रदेश प्रवक्ता नवल शर्मा पार्टी की गतिविधियां बेहतर तरीके से सोशल मीडिया पर रखने का काम कर रहे हैं. हम नवल से कहते हैं कि आपको यह काम कुछ और पहले से शुरू कर देना चाहिए था. इस पर नवल कहते हैं कि यह काम एक प्रवक्ता का नहीं है, हमने खुद ही आगे बढ़कर इसकी ज़िम्मेदारी ली है. हमारा उद्देश्य है नीतीश के कामों को जन-जन तक पहुंचाना.
भाजपा इस दौड़ में अन्य सभी दलों से आगे है. भाजपा का प्रदेश कार्यालय वाई-फाई है और वहां बाकायदा आईटी सेल और संवाद सेल हैं. पार्टी के तमाम बड़े-छोटे नेता सोशल मीडिया पर जबरदस्त रूप से सक्रिय नज़र आ जाते हैं. भाजपा के एक नेता हैं अरविंद कुमार सिंह, जो लोक सेवा अधिकार मंच के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. वह अपने तमाम लाइक्स, फ्रेंड और फॉलोअर गिनाते हुए कहते हैं कि बताइए, अब इतने सारे लोग हैं, जो हमसे जुड़े हुए हैं और जिन तक हम अपनी बात पहुंचा रहे हैं. कहीं न कहीं यह सब भाजपा के लिए ही तो है. उनका समर्थन करते हुए संजय मयूख कहते हैं कि हम नई-नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं. हर पंचायत का अध्यक्ष हमसे जुड़ा हुआ है. मयूख जानकारी देते हैं कि पिछले दिनों उनके यहां इस बात की ट्रेनिंग दी गई थी कि कैसे फेसबुक का इस्तेमाल लोकसभा को ध्यान में रखकर किया जाए. नेशनल मीडिया में कई बार यह ख़बर आई कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी की सोशल मीडिया पर ब्रांडिंग के लिए प्रोफेशनल्स और पीआर एजेंसी का सहारा लिया जा रहा है. सूत्र बताते हैं कि बिहार भाजपा की गतिविधियां सोशल मीडिया तक जोरदार तरीके से पहुंचाने के लिए यहां भी कुछ आईटी प्रोफेशनल्स को रखा गया है, लेकिन भाजपा संवाद सेल के अध्यक्ष संजय चौधरी इस बात को स्वीकारते नहीं हैं.
संजय कहते हैं कि हमारे यहां आईटी सेल है और संवाद सेल भी है, यही दोनों मिलकर सोशल मीडिया का सारा काम देखती हैं. वह कहते हैं कि हमारे यहां कुछ प्रोफेशनल्स तो हैं, लेकिन हमने किसी को हायर नहीं किया है. ये वे लोग हैं, जिन्हें नमो से लगाव है, हम इन्हें कोई मानदेय या भत्ता नहीं देते. ये पार्टी के लोग हैं और नमो को पीएम बनाने के लिए काम कर रहे हैं. संजय कहते हैं कि यह एक दिन में नहीं हुआ है, हम सोशल मीडिया को लेकर बहुत पहले से सजग हैं. नमो की हुंकार रैली से पहले पटना में बिहार भाजपा ने एक वर्कशॉप का आयोजन किया था. उस दौरान पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि भाजपा के सारे कार्यकर्ताओं के पास ईमेल होना अनिवार्य है. उन्होंने सलाह दी थी कि सभी लोग स्मार्ट फोन और थ्री जी कनेक्शन ज़रूर लें. भाजपा नई तकनीक का बखूबी इस्तेमाल कर रही है. हाल में टेली विजिंग टेक्नोलॉजी के जरिये पंचायत स्तर के कार्यकर्ताओं से प्रदेश के पदाधिकारी ने सीधे संवाद किया था. समय-समय पर पार्टी वीडियो कांफ्रेंसिंग कराती रहती है, चाय पर चर्चा उसी का एक उदाहरण है. बिहार भाजपा के सुशील मोदी, मंगल पांडेय, नंदकिशोर यादव सहित कई नेता फेसबुक पर जोरदार तरीके से सक्रिय नज़र आते हैं. हर रोज उनका फेसबुक पेज और एकाउंट अपडेट नज़र आता है.
वैसे राजद भी इस मामले में पीछे नहीं है, लेकिन वहां भी पार्टी के अंदर आईटी सेल जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. लालू के दोनों पुत्र तेजप्रताप और तेजस्वी फेसबुक पर काफी सक्रिय नज़र आते हैं. खुद राजद प्रमुख लालू प्रसाद भी ट्वीटर पर आ चुके हैं. बीते फरवरी माह में तेजस्वी ने फेसबुक के साथियों के साथ एक चाय पार्टी का आयोजन किया था, जिसमें सौ से अधिक लोग इकट्ठा हुए थे. सोशल जस्टिस से सोशल मीडिया की ओर बढ़ रहे इस क़दम को लोग तेजस्वी के दिमाग की उपज बताते हैं. बैठक के दौरान तेजस्वी ने सोशल मीडिया की महत्ता को स्वीकारा भी. तेजस्वी ने कहा कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का लक्ष्य हासिल करने के लिए सोशल मीडिया कारगर हथियार है. बिहार प्रदेश कांग्रेस भी सोशल मीडिया पर सक्रिय नज़र आती है. प्रदेश कांग्रेस का मीडिया एंड कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट इस गतिविधि को देखता है. प्रदेश कांग्रेस की अपनी वेबसाइट है और सोशल मीडिया पर उसके पेज भी हैं. खुद बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी और प्रदेश प्रवक्ता प्रेमचंद्र मिश्रा भी फेसबुक पर खूब नज़र आते हैं. प्रेमचंद्र कहते हैं कि युवाओं पर पकड़ बनाने के लिए यह एक बेहतर जरिया है और इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता.
ट्राई की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की टेली डेंसिटी 48.90 है, वहीं इसकी रूरल टेली डेंसिटी सबसे कम 27.5 है. इंटरनेट एक्सेस करने के मामले में बिहार देश का बारहवां राज्य है. एक जानकारी यह भी है कि स़िर्फ राजधानी पटना में 11 लाख लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं. आज बिहार की तमाम पार्टियां और छोटे-बड़े नेता सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. पटना में कई ऐसी पीआर एजेंसियां काम कर रही हैं, जो कुछ नेताओं के प्रोफाइल का संचालन करती हैं. लोकसभा चुनाव में बिहार में भी सोशल मीडिया का असर दिखेगा, भले थोड़ा कम ही सही. हमारी बात को वरिष्ठ पत्रकार एवं सोशल मीडिया के जानकार ज्ञानेश्वर भी पुष्ट करते हैं. ज्ञानेश्वर कहते हैं कि आज जो भी सोशल मीडिया की पहुंच को नकारेगा, वह पीछे छूट जाएगा. इससे तेज माध्यम तो है ही नहीं लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए. ज्ञानेश्वर के अनुसार, देश के 340 चुनाव क्षेत्र ऐसे हैं, जहां सोशल मीडिया का प्रभाव दिखेगा. बिहार में भी पटना, बक्सर, आरा, पूर्णियां, कटिहार, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और शिवहर ऐसे ज़िले हैं, जहां का लोकसभा चुनाव सोशल मीडिया भी प्रभावित करेगा. वह कहते हैं कि हाल के दिनों में जितने भी परिवर्तन हुए हैं, उनमें सोशल मीडिया का अहम योगदान है.
बिहार : सोशल मीडिया बना प्रचार का हथियार
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