दस जनवरी को कंपकपाती ठंड की रात में बिहार के आरएसएस की कोर टीम ने एक सख्त फैसला लिया. फैसला यह था कि सूर्योदय होते-होते पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल के आस-पास लगी तमाम होर्डिंग्स को नोच दिया जाए, ये होर्डिंग्स, चाहे जिनकी भी हों, चाहे यह भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों की ही क्यों न हों.
11 जनवरी की सुबह होते ही वहां से तमाम होर्डिंग्स गायब थीं. अब ये कहना मुश्किल है कि ये होर्डिंग्स सूर्योदय से पहले नोच डाली गईं या सूर्योदय के बाद. पर पक्की बात यह है कि इन होर्डिंग्स में भाजपा के बिहार के तमाम केंद्रीय मंत्रियों समेत राधा मोहन सिंह का स्वागत मुद्रा में मुस्कुराता चेहरा था, जिन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशताब्दी समारोह में शामिल होने वालों का स्वागत किया जा रहा था.
इन होर्डिंग्स में भाजपा के अन्य कद्दावर नेताओं की तस्वीरें भी थीं. कृष्ण मेमोरियल हॉल का विशाल प्रांगण, जो अब से कुछ देर पहले तक मेहमानों के स्वागत में लगी होर्डिंग्स और बैनर्स के चमचमाते माहौल से सजा-धजा था, वीरान हो चुका था. फिर सुबह बीती. होर्डिंग्स के गायब होने पर सुगबुगाहट तो हुई, लेकिन ये सुगबुगाहट खुद ही दम तोड़ गयी. दोपहर हुआ और फिर हॉल के अंदर रौनक बढ़ी. देखते-देखते हॉल खचाखच भर गया. भाजपा के बिहार के तमाम केंद्रीय मंत्री एक-एक कर आते चले गये. राधामोहन सिंह, रविशंकर प्रसाद और राजीव प्रताप रूढ़ी.
इसी तरह बिहार के तमाम भाजपाई कद्दावर नेता- सुशील मोदी, प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय, विपक्ष के नेता प्रेम कुमार नवल, किशोर यादव, यहां तक कि भाजपा के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र यादव, सभी आए. सब सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गए. कार्यक्रम शुरू हुआ, लेकिन इनमें से एक भी नेता को मंच पर नहीं बुलाया गया. सारे के सारे कार्यक्रम शुरू होने से लेकर, समाप्त होने तक डिसिप्लिंड कार्यकर्ता की तरह बैठे रहे. कार्यक्रम का आयोजन एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एंव विकास प्रतिष्ठान और विति( प्रज्ञा प्रवाह) ने किया था. कहना न होगा कि इस आयोजन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की ताकत लगी थी.
अवसर था जनसंघ ( भाजपा का पुराना नाम) के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशती समारोह का और कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था उनके जीवन पर आधारित पुस्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्पूर्ण वांड्मय’ के लोकार्पण का. इस समारोह के उद्देश्यों पर चर्चा आगे होगी, लेकिन यहां यह निशानदेही करना जरूरी है कि आरएसएस जो भाजपा की मातृ संस्था है, ने भाजपा के कद्दावर नेताओं को इस आयोजन के मार्फत दो महत्वपूर्ण सबक सिखा दिया.
पहला- कार्यक्रम के स्वागत करने वाले कद्दावर केंद्रीय मंत्रियों को यह एहसास दिला दिया गया कि उसके कार्यक्रम में वे अपना चेहरा चमकाने की हिमाकत नहीं कर सकते. यही वजह रही कि केंद्रीय मंत्रियों की होर्डिंग्स और बैनर्स नोचवा डाले गए. दूसरा- आरएसएस के इस कार्यक्रम में भाजपा के तमाम नेताओं को मंच से नीचे बिठा कर उन्हें यह एहसास दिला दिया गया कि वे भले ही देश के नेता हैं, पर आरएसएस के समारोह में उनकी हैसियत महज श्रोता की है. मंच पर मुख्य अतिथि के बतौर अमित शाह विराजमान थे, वह भी इसलिए कि उनके हाथों पुस्तक का लोकार्पण होना था. मंच पर दीगर लोगों में चंद अति अनिवार्य और गिने-चुने चेहरे थे. एक महेश चंद्र शर्मा, जिन्होंने पुस्तक का सम्पादन किया है.
दूसरे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय, जो विशिष्ट अतिथि थे और तीसरे पुस्तक के प्रकाशक प्रभात कुमार. कहा जा रहा है कि प्रभात ने ही इस आयोजन को स्पॉन्सर किया था. चौथे व्यक्ति वह थे, जिन्होंने मंच का संचालन किया यानी संचालनकर्ता कृष्णकांत ओझा. ओझा आरएसएस के दशकों पुराने स्वयंसेवक हैं. साथ ही प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक रामाशीष सिंह भी मंच पर थे. इस मंच पर कोई छठा ना तो आया और न ही किसी और के लिए कोई कुर्सी लगी थी.
भाजपा के सत्ता में आने के बाद अक्सर यह चर्चा चलती है कि आरएसएस अपने विचारों को तेजी से फैलाने में जुटा है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का प्रसार, उसी का हिस्सा माना जा सकता है. केंद्र सरकार पंडित उपाध्याय के नाम पर अनेक सरकारी योजनाओं का नाम रख चुकी है (पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना व कौशल योजना आदि). आरएसएस व भाजपा पंडित उपाध्याय का जन्मशताब्दी समारोह इसी मकसद से मना रहे हैं.
एक वर्ष तक चलने वाले इस कार्यक्रम में अभी तक दीनदयाल पर संग्रहित पुस्तक का लोकार्पण जयपुर, रायपुर और लखनऊ में किया जा चुका है. पटना आयोजन उसी कड़ी का अगला हिस्सा था. इस पुस्तक में दीनदयाल के विचारों, लेखों, भाषणों आदि का संग्रह है. कार्यक्रम के संचालक कृष्णकांत ओझा ने इन पंक्तियों के लेखक को कार्यक्रम के बाद बताया कि पंडितजी का दर्शन एकात्म मानववाद का दर्शन है.
वह पश्चिम की प्रकृति के शोषण के दर्शन के विपरीत प्रकृति के दोहन और उसके संतुलन पर जोर देते हैं. वह मानवीयता पर आधारित दर्शन है, जिसमें विश्व और पर्यावरण का कल्याण संभव है. कृष्णकांत ओझा के इन तर्कों का अपना एक पक्ष है, पर आरएसएस के इस मकसद से वे इत्तेफाक रखते हैं कि पंडितजी के दर्शन को गांव-गांव तक पहुंचाना उनका मकसद है. इसलिए पुस्तक के लोकार्पण की यह श्रृंखला जारी है और आने वाले दिनों में देश के तमाम राजधानियों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते रहेंगे.
पटना के कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार दीनदयाल उपाध्याय को जनसंघ के संस्थापक के रूप में याद किया. इस क्रम में श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जिक्र उन्होंने नहीं किया. मुखर्जी को 1951 में जनसंघ के संस्थापक के रूप में याद किया जाता है. पंडित दीनदयाल, मुखर्जी के बाद दूसरे स्थान पर थे. वह मुखर्जी के देहांत के बाद जनसंघ के नेता के रूप में उभरे. लेकिन अमितशाह ने इस सच्चाई को रेखांकित करने से गुरेज करना ही मुनासिब समझा.
अमितशाह ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि पंडित दीनदयाल के दर्शन मौजूदा दौर में और भी महत्वपूर्ण हो चुके हैं. शाह ने दीनदयाल के अंत्योदय के सिद्धांत का उल्लेख किया और कहा कि भाजपा इसी सिद्धांत को लेकर आगे बढ़ रही है. इसी क्रम में उन्होंने नोटबंदी के फैसलों को भी उनसे जोड़ा और कहा कि यह फैसला देश के 80 करोड़ गरीबों के हक में लिया गया है. उनके अनुसार नोटबंदी से टैक्स संग्रह बढ़ेगा, जिससे गरीबों के कल्याण की योजनायें शुरू की जाएंगी.
शाह ने यह भी कहा कि भाजपा आज उनके सिद्धांतों पर ही अमल कर देश की सबसे बड़ी पार्टी बन कर अपनी सेवा दे रही है. उन्होंने भाजपा को जनसंघ का अवतार बताया. याद रहे कि जन संघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक संगठन के रूप में सामने आया था, जो बदलते समय और हालात के साथ फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने है. इस तरह संघ के राजनीतिक दर्शन की विरासत जनसंघ से ही आगे बढ़ी है. ऐसे में आरएसएस द्वारा जनसंघ के संस्थापक के विचारों का प्रसार करना स्वाभाविक रूप से उसकी रणनीति का हिस्सा है.
इस आयोजन से आरएसएस के सूत्रधारों में काफी उत्साह है. आरएसएस से जुड़े एक नीतिकार का दावा है कि पटना का आयोजन, जयपुर, रायपुर और लखनऊ के पिछले तीनों आयोजनों से ज्यादा कामयाब रहा. जब वह पटना के कार्यक्रम की सफलता की बात कर रहे थे, तो स्वाभाविक तौर पर उनका इशारा बिहार में आरएसएस की बेहतर संभावनाओं की तरफ था. इस आयोजन से आरएसएस को बिहार में अपने विचारों और कैडर के विस्तार में सहायता मिलेगी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर लिखी पुस्तक इन विचारों के विस्तार का वाहक बनेगी. शायद यही वजह है कि जब इस आयोजन में राम बहादुर राय ने अपनी बात रखी, तो उन्होंने इस पुस्तक को 21वीं सदी का कुरआन तक घोषित कर दिया. राय यहीं नहीं रुके और उन्होंने यह भी कह दिया कि पंडित दीनदयाल के विचार बारूदी राजनीति में एक चिंगारी की हैसियत रखते हैं.
भले ही भाजपा आरएसएस की राजनीतिक इकाई के रूप में जानी जाती है, लेकिन देश की सत्ता पर उसका कब्जा होने के कारण आरएसएस को इस बात की सुविधा है कि वह उसके सहारे अपने संगठनात्मक और वैचारिक विस्तार को आगे बढ़ा सकती है. पिछले दिनों बिहार से यह खबर आयी थी कि भाजपा ने नोटबंदी के ऐलान के ठीक पहले राज्य के दर्जन भर से ज्यादा जिलों में जमीनें खरीदी थी. तब यह विवाद बढ़ा था कि उसने पुराने नोटों को ठिकाने लगाने के लिए अपने पैसे जमीन में निवेश किए थे. यह विवाद अपनी जगह है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि इन जमीनों पर भाजपा के क्षेत्रीय और जिला कार्यालयों का निर्माण कराया जाएगा.
भाजपा के एक करीबी सूत्र का कहना है कि भाजपा के कार्यालय भले ही राजनीतिक उद्देश्यों के लिए हों, पर इनका एक हिस्सा आरएसएस की गतिविधियों के लिए होता है. इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं कि आने वाले दिनों में इन कार्यालयों का जब निर्माण हो चुका होगा तो आरएसएस उनका उपयोग अपने संगठनात्मक और वैचारिक विस्तार के लिए करेगी. आरएसएस बिहार में लम्बी अवधि की योजना पर काम कर रहा है और पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर हुआ यह आयोजन उसी का हिस्सा माना जा रहा है.