बिहार सरकार के एक फरमान से गांधी जी के सच्चे उत्तराधिकारी विनोबा भावे के भूदानी किसान संकट में घिर गए हैं. ऐसा कर सरकार ने यह साबित करने की कोशिश की है कि गांधी जी के आम आदमी से उसका कोई मतलब नहीं है, खासकर उन भूदानी किसानों से तो एकदम नहीं जिनके लिए विनोबा भावे बिहार में वर्षों रहकर दान में जमीन मांगते रहे.
सरकार के राजस्व विभाग द्वारा जारी एक परिपत्र के मुताबिक, नीतीश सरकार ने उन जमीनों को अपनी बता कर विनोबा के समय से बसे भूदान किसानों को बेदखल करने की तैयारी शुरू कर दी है. भूदान किसान बिहार भूदान यज्ञ कमेटी के पर्चे के आधार पर प्रदत्त जमीन पर बसे थे. अब जबकि उनकी अगली पीढ़ियां भी आ गई हैं, ऐसे में साठ साल बाद उन्हें भूदान की जमीन से उजाड़कर गांधी, विनोबा और जयप्रकाश का माला जपनेवाली सरकार क्या मकसद हासिल करना चाहती है?
बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग से जारी इस परिपत्र से बिहार भूदान यज्ञ कमेटी हैरान है. भूदान कार्यकर्ता इस चिंता में डूबे हैं कि आखिर सरकार ने इस परिपत्र को साठ साल के बाद क्यों जारी किया? अगर करना ही था तो जमींदारी उन्मूलन के तत्काल बाद क्यों नहीं किया? उस समय परिपत्र पर अमल करना आसान भी होता, अब तो इससे अराजकता ही फैलेगी.
भूदान कार्यकर्ता भूदान किसानों की जमीन उनके हक में सुुनिश्चित करने के लिए किसी ऐसे अकाट्य तर्क की तलाश में जुट गए हैं, ताकि अदालत में सरकारी परिपत्र रद्द करवा सकें. अगर इस प्रयास में भूदान कार्यकर्ता नाकाम होते हैं तो भूदान किसानों के पास करो या मरो आंदोलन के सिवाय कोई चारा नहीं होगा. भूदान किसान इस परिपत्र को विनोबा जैसे संत की आत्मा पर कुठाराघात बता रहे हैं.
वे इससे इतने कुपित हैं कि वे मौजूदा सरकार और उनके अमले को बात-बात में जमकर कोसते हैं. वे उदाहरण देते हैं कि अतीत में जिस नेता ने भूदान किसानों के विरुद्ध कदम उठाने की कोशिश की, वह दुर्दिनों में ऐसा घिरा कि चाहकर भी चुनाव नहीं लड़ सका. कुछ ऐसा ही हाल इस परिपत्र को जारी करनेवाले सरकार से जुड़े नेताओं का भी होगा. भूदान किसान भूदान प्राप्ति और वितरण की प्रक्रिया को एक यज्ञ की तरह देखते हैं और इसके विरुद्ध कदम उठानेवाले अफसरों के खिलाफ आवाज उठाते हैं.
परिपत्र की बात भूदान किसानों के बीच आग की तरह फैल चुकी है. भूदान किसान असमंजस में हैं, आखिर वे करें तो क्या करें. उनकी तो कहीं सुनवाई नहीं होती. अफसर और उनके कारिन्दे भी नहीं सुनते. वे तो उन्हीं दबंग भ्रष्टाचारियों के पक्ष में खड़े रहते हैं जो उन्हें बेदखल करने का षड्यंत्र करते रहते हैं. हम भले विनोबा को मानें या न मानें, पर भूदान किसान उनको अपना उद्धारक मानते हैं. इन भूदान किसानों के हित में विनोबा ने जीते जी भूदान यज्ञ अधिनियम को खूब सोच विचारकर इतना सशक्त बनाया कि उसे देश का कोई कानून चुनौती नहीं दे सके.
अब अगर इतना सशक्त अधिनियम सरकार के एक परिपत्र के आगे हार जाता है, तो इससे न सिर्फ भूदान किसान उजड़ेंगे, बल्कि गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की विरासत और उनके योगदानों पर भी आंच आएगी. दुनिया भर में प्रसिद्ध मानवीय आधार पर अवतरित एक स्वयंस्फूर्त अहिंसक क्रांति की स्मृतियों, प्रतिमानों और उसके कारण बने-संवरे भूदान किसानों के छोटे-छोटे संसार भी तबाह हो जाएंगे. भूदान किसानों को एक उम्मीद उनके लिए जीवनदान देनेवाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन के योद्धाओं से थी, लेकिन न जाने किस कारण वे भी चुप्पी साधे हुए हैं.
परिपत्र बिहार भूदान यज्ञ अधिानियम 1954 की धारा 12 के प्रावधानों के अनुकूल नहीं है. अधिनियम की धारा 12 में स्पष्ट है कि यदि किसी सत्वधारी में जिसका स्टेट या भूमिसुधार अधिनियम 1950 के अधीन राज्य में निहित हो चुकी हो. इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले लिखित रूप से घोषणा की हो ऐसे स्टेट या भूधृति में समाविष्ट किसी भूमि को उसने आचार्य विनोबा भावे को दान कर दिया है और राज्य सरकार से यह लिखित प्रतिज्ञा की हो कि इस अधिनियम के अधीन ऐसी भूमि के संबध में भुगतानी मुआवजा छोड़ देगा तो राज्य सरकार ऐसी भूमि को भूदान यज्ञ के प्रयोजनार्थ भूदान यज्ञ समिति को हस्तांतरित कर देगी.
वह भूमि भूदान यज्ञ समिति में निहित हो जाएगी. इसके बावजूद परिपत्र के मुताबिक, जमींदारी उन्मूलन के बाद यदि भूतपूर्व जमींदारों द्वारा गैरमजरूआ खास जमीन बिहार भूूदान यज्ञ समिति अथवा विनोबा भावे को दान स्वरूप दिया गया है, तो ऐसे दानपत्रों की वैधानिक मान्यता नहीं होगी, क्योंकि जमींदारी उन्मूलन के बाद गैरमजरूआ खास जमीन सरकार में निहित हो चुकी है. परिपत्र को प्रभावी किया जाएगा तो करीब चार लाख भूदान किसानों को भूदान यज्ञ समिति द्वारा प्रदत्त जमीन से बेदखल होना होगा.
भूदान से प्राप्त कुल भूमि 6,48,593.14 एकड़ में से 3,46,494.95 एकड़ भूमि संपुष्ट की गई है. अभी तक 2,56,392.39 एकड़ भूमि वितरित की जा चुकी है. वितरण के योग्य बची हुई 5990.03 एकड़ भूमि के वितरण का काम भूदान यज्ञ कमेटी द्वारा किया ही जा रहा था कि अब उसके रास्ते यह परिपत्र अड़चन बन गया है. सरकार वितरण के काम को सुनिश्चित करने के बजाय अब परिपत्र को बाकायदा क्रियान्वित करने में जुट गई है. इससे काफी संख्या में भूदान किसान प्रभावित हो रहे हैं. इन किसानों को भूदान यज्ञ कमेटी में वैध तरीके से निहित गैर मजरूआ खास जमीन दी गई थी.
अगर सरकार जमींदारी उन्मूलन के तुरंत बाद गैर मजरूआ खास जमीन को भूदान में निहित नहीं करती तो आज यह नौबत नहीं आती. अधिकारी परिपत्र के आधार पर अलग-अलग जिलों में भूदान किसानों को नोटिस भी भेज रहे हैं. हालांकि भूमि वितरण का काम बिहार और झारखंड में एक साथ हुआ. वहां भी सरकार द्वारा संपुष्ट गैरमजरूआ खास जमीन भूमिहीनों को दी गई, लेकिन वहां की सरकार भूदान किसानों पर इस तरह के परिपत्र लाकर परेशान नहीं कर रही है.
परिपत्र को लेकर बिहार भूदान यज्ञ कमेटी के अध्यक्ष कुमार शुभमूर्ति का कहना है कि परिपत्र सरकार की भूमिसुधार नीति के अनुकूल नहीं है और न ही विधिसम्मत है. सरकार ने एक परिपत्र जारी कर कहा है कि जमींदारों ने जो गैरमजरूआ खास जमीन दान में दिया था, वह दान अवैद्य है. राजस्व और भूमि सुधार विभाग का कहना है कि दान अवैध इसलिए है कि गैरमजरूआ खास जमीन जमींदारों की नहीं थी. राज्य की सभी गैरमजरूआ खास जमीन जमींदारी उन्मूलन होते ही सरकार की हो गई थी.
शुभमूर्ति सवाल करते हैं कि 1950 में जमींदारी उन्मूलन के बाद जब ये जमीन सरकार की हो गई तो 1954, 1955, 1956 के वर्षों में जमींदारों ने ये जमीन कैसे दान में दे दी. अगर यह सर्कुलर 1960 तक निकल जाता तब भी यह बात मानने लायक होती. लेकिन सरकार को खुद उस समय ध्यान नहीं था. सरकार ने अपनी ही जमीन को संपुष्ट करके भूदान के खाते में निहित कर दी. ऐसे में अब यह सर्कुलर जारी करना सरासर गलत है.
उन्होंने कहा कि अब तक तीन लाख से अधिक भूमिहीनों को भूदान की ओर से जमीन दी गई है. इसमें करीब डेढ़ लाख भूमिहीनों को जो जमीन दी गई, वह गैर मजरूआ खास जमीन ही है. इन डेढ़ लाख भूमिहीनों को बाकायदा कानूनी तरीके से प्रमाण पत्र देकर बसाया गया, उसे अब सरकार कैसे बेदखल कर सकती है? फिर उनका कैसे बंदोबस्त करेंगे? इस सर्कुलर के जारी होने से ऐसे भूदानी किसान चिंता में डूब गए हैं और इस आशंका से त्रस्त हैं कि अब अधिकारी आएंगे और उन्हें तरह-तरह की नोटिस देंगे. फिर उन्हें भूदान की जमीन से खदेड़ देंगे.
सर्कुलर से भारी अराकजकता फैल रही है, सरकार इसे वापस ले. अगर भूदानी जमीन के वितरण के शुरुआती दौर में ही सरकार ऐसे परिपत्र जारी करती तो उस समय उनकी मंशा आसानी से पूरी हो जाती, लेकिन आज इस सर्कुलर के प्रभावी होने से मामला बिगड़ सकता है. यह परिपत्र राज्य के सभी प्रमंडलीय आयुक्तों और जिला पदाधिकारियों को प्रेषित किया गया है.
इस बारे में राजस्व और भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव को लिखे एक पत्र में शुभमूर्ति ने कहा है कि उक्त परिपत्र के निर्गत होने की वजह से लाखों भूदान किसान प्रभावित हो रहे हैं. जो भूदान किसान वर्षों से भूदान की जमीन पर बसे हैं या जोत आबाद कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं और रसीद कटाते आ रहे हैं, उनका रसीद अब राजस्व कर्मचारियों द्वारा नहीं काटा जा रहा है. नए भूदान किसानों का भी रसीद उक्त परिपत्र के आधार पर काटा जाना बंद कर दिया गया है, जिससे काफी संख्या में दलित गरीब भूमिहीन भूदान किसान अपनी भूमि के दाखिल-खारिज के लिए भटक रहे हैं और बड़ी संख्या में भूदान किसान बेदखल हो रहे हैं.
इस परिपत्र की वजह से भूमि सुधार उपसमाहर्ता न्यायालय में सैकड़ों एकड़ भूमि से संबंधित दाखिल दानपत्रों की संपुष्टि नहीं की जा रही है या फिर उन दानपत्रों को खारिज किया जा रहा है, जिसकी वजह से भूमि वितरण कार्य प्रभावित हो रहा है और राज्य में माहौल बुरी तरह से बिगड़ रहा है.