हम यहां बिहार को लेकर सुबह चार बजे देेखा हुआ सपना लिख रहे हैं. हमें नहीं मालूम कि हम जो सपना लिख रहे हैं, उसमें कितना सच है, कितना नहीं, लेकिन यह सपना इतना मजेदार है कि इससे जनता परिवार के मनोविज्ञान का, जनता परिवार के क़दमों का और जनता परिवार की सोच का पता चलता है. इसलिए हम जान-बूझ कर पहली बार सुबह चार बजे देखा हुआ सपना आपके सामने रख रहे हैं. आइए, देखते हैं कि सपने में हमने क्या देखा?
सात तारीख की शाम साढ़े चार बजे दिल्ली में श्री मुलायम सिंह के निवास स्थान पर बैठक शुरू हुई और उस बैठक में लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव और स्वयं मुलायम सिंह उपस्थित थे. उस बैठक में समाजवादी पार्टी के महामंत्री राम गोपाल यादव भी मौजूद थे. बैठक बहुत अच्छे वातावरण में शुरू हुई, लेकिन अचानक नीतीश कुमार कुछ उखड़ गए. नीतीश कुमार ने सख्त लहजे में कहा, मुझे न मुख्यमंत्री बनना है, न मुझे कुछ करना है. अब मैं चाहता हूं कि सारी बातचीत यहीं रोक दी जाए. उन्होंने राम गोपाल यादव से भी कहा कि आपने इस तरह के बयान अ़खबारों में क्यों दिए कि बिहार में गठबंधन होगा, एक पार्टी नहीं बनेगी. दरअसल, नीतीश कुमार चाहते थे कि एक पार्टी बने और मुलायम सिंह उसके नेता के नाते सीटों का बंटवारा करें और जो भी फैसला करें, उसे लालू यादव और वह (नीतीश) मान लें, ताकि लोगों के सामने एक पार्टी, जिसका अस्तित्व बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में होता, वह राष्ट्रीय पार्टी बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ती. श्री राम गोपाल यादव के एक बयान से यह प्रक्रिया समाप्त हो गई. इसके बाद नीतीश कुमार ने कहा, मैं जा रहा हूं, मुझे काम है और वह उस बैठक से बाहर निकल गए. सपने में हमने यह भी देखा कि लालू यादव नीतीश के बाहर जाने से दु:खी हुए और क्रोधित भी हुए. मुलायम सिंह को यह बात खराब लगी कि उस बैठक में जाने से पहले दिन में नीतीश कुमार क्यों राहुल गांधी से मिलने गए. बैठक वहीं पर रुक गई. नीतीश कुमार बिहार भवन चले गए. शरद यादव अपने घर चले गए और मुलायम सिंह जी एवं लालू यादव जी राम गोपाल जी के साथ वहां रह गए.
सपने में हम देखते हैं कि मुलायम सिंह ने लालू यादव को समझाया कि अगर बिहार में आप दोनों मिलकर नहीं लड़ेंगे, तो जीतना असंभव है और चुनाव एकतऱफा भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में चला जाएगा. शायद मुलायम सिंह को यह दिखाई दे रहा होगा कि बिहार की हार का नतीजा उन्हें उत्तर प्रदेश में भुगतना पड़ सकता है. मुलायम सिंह के समझाने के बाद न राम गोपाल जी को समझाने की ज़रूरत पड़ी और न लालू यादव को. श्री लालू यादव वहां से उठे और शरद यादव के घर चले गए.
शरद यादव के घर पर अकेले लालू यादव गए. हमने सपने में देखा कि शरद यादव के ड्रॉइंग रूम में किसी का भी आना-जाना नहीं हो रहा है. शरद यादव और लालू यादव की बातचीत हो रही है. शरद यादव लालू यादव को बताते हैं, मुझे ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार बिहार में अकेले चुनाव लड़ेंगे और उन्होंने मुझे यह संकेत दे दिया है कि अगर कांग्रेस साथ आती है, जिसके बारे में राहुल गांधी ने उनसे वादा किया है, तो स़िर्फ हम और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगे. आप अपने लड़ने की तैयारी कीजिए. शरद यादव और लालू यादव का रिश्ता बहुत अच्छा है. शरद यादव ने तस्वीर का दूसरा रुख भी बताया कि इसका राजनीतिक परिणाम क्या हो सकता है. लालू यादव ने कहा, मैंने तो कभी मना नहीं किया. अब मेरे साथी कोई इम्प्रेशन दें, बयान दें, तो उससे मेरा क्या लेना-देना. शरद यादव ने लालू यादव से यह भी कहा कि नीतीश कुमार ने अपना दिमाग बना लिया है और वह इस चुनाव में देवेगौड़ा, ओम प्रकाश चौटाला और कमल मोरारका को अपने पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए बुलाएंगे. शरद यादव ने यह भी कहा कि इसका एक मतलब यह है कि फिर आरजेडी और समाजवादी पार्टी को छोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर नई एकता की शुरुआत हो जाएगी. लालू यादव ने शरद यादव से सा़फ कहा कि आप नीतीश कुमार को मुलायम सिंह जी के यहां फिर बुलाइए और हम लोग बातचीत करेंगे. जब नीतीश कुमार के पास शरद यादव की यह खबर गई, तो उन्होंने उस बैठक में जाने से मना कर दिया. नीतीश कुमार ने कहा, मैं किसी भी प्रकार की घोषणा के पक्ष में नहीं हूं, न बैठक के पक्ष में हूं. मैं चाहता हूं कि जिसे जितनी सीटों पर लड़ने का मन है, वह लड़े. मैं किसी चीज का दावेदार नहीं हूं. यह मेरे ऊपर ग़लत आरोप है कि मैं मुख्यमंत्री या गठबंधन का नेता बनना चाहता हूं.
सपने में हम देखते हैं कि शरद यादव बार-बार नीतीश कुमार के ऊपर दबाव डाल रहे हैं और नीतीश कुमार की पार्टी के कुछ लोग, जिनमें केसी त्यागी प्रमुख हैं, बार-बार नीतीश कुमार से कह रहे हैं कि जब सब लोग आप से कह रहे हैं कि रास्ता निकल रहा है, तो आप मुलायम सिंह के यहां क्यों नहीं जाते? अंतत: रात के साढ़े आठ बजे के आस-पास नीतीश कुमार फिर मुलायम सिंह के घर पहुंचते हैं और वहां पर नए सिरे से बैठक शुरू होती है. इस बार उस बैठक में सीधा फैसला होता है कि बिहार में दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार होंगे और लालू यादव इसकी घोषणा करेंगे. सीटों के बंटवारे पर पहले नीतीश कुमार का कहना था कि जब एक पार्टी रहेगी, तो कौन-सी सीट किसे दी जाए, इसका फैसला मुलायम सिंह करें और हम दोनों मानें. लेकिन अगर गठबंधन होगा, तो हम दोनों बराबर सीटों पर लड़ेंगे और बची हुई सीटों में हम कांग्रेस या अगर वामपंथी साथ आए, तो उन्हें समाहित करने की कोशिश करेंगे. लालू यादव ने कहा कि सीटों के ऊपर कोई मतभेद नहीं होगा. तीन-तीन लोगों की समिति इसके ऊपर बैठकर बात कर लेगी, जहां परेशानी होगी, वहां मैं और नीतीश कुमार मिलकर उसका फैसला कर लेंगे.
बिहार में टूट जाने वाला धागा अचानक मजबूत बनकर सपने में हमें दिखाई दिया. इसके बाद हम देखते हैं कि नीतीश कुमार और लालू यादव खुले मन से पटना चले गए. मुलायम सिंह यादव को बहुत देर बाद यह समझ में आया कि उनकी रणनीति में कहीं कोई चूक हो रही है. दरअसल, मुलायम सिंह यादव के सामने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश करने का यह आ़िखरी अवसर है.
बिहार में टूट जाने वाला धागा अचानक मजबूत बनकर सपने में हमें दिखाई दिया. इसके बाद हम देखते हैं कि नीतीश कुमार और लालू यादव खुले मन से पटना चले गए. मुलायम सिंह यादव को बहुत देर बाद यह समझ में आया कि उनकी रणनीति में कहीं कोई चूक हो रही है. दरअसल, मुलायम सिंह यादव के सामने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश करने का यह आ़िखरी अवसर है. आ़िखरी अवसर इसलिए, क्योंकि राजनीति में नए-नए लोग आते रहते हैं और पुराने लोगों को किनारे करते रहते हैं. मुलायम सिंह के सामने इतिहास ने एक नया अवसर दिया, जहां उन्हें देवगौड़ा, ओम प्रकाश चौटाला, नीतीश कुमार, लालू यादव एवं कमल मोरारका ने अपना नेता मान लिया, एक पार्टी का नेता मान लिया और जनता परिवार का मुखिया मान लिया. अगर इस गठबंधन की जगह एक पार्टी बनती, तो मुलायम सिंह नरेंद्र मोदी के सामने देश में एक विकल्प की तरह सामने आते और वे सारे लोग, जो भारतीय जनता पार्टी का समर्थन नहीं करते, जो कांग्रेस का भी समर्थन नहीं करते, इस पार्टी में शामिल होने की कतार में खड़े हो जाते. यानी गुजरात से प्रवीण सिंह जडेजा, ओडिशा से कांग्रेस का एक बड़ा तबका और पश्चिम बंगाल से वे सारे लोग, जो सीपीएम, कांग्रेस एवं ममता बनर्जी के साथ नहीं हैं. इन सबके संदेश दिल्ली में मुलायम सिंह के यहां पहुंच चुके थे. भूतपूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथी बार-बार मुलायम सिंह जी के यहां यह संदेश भेज रहे थे कि यदि पार्टी बने, तो हम सब भी उसमें शामिल होने के लिए तैयार हैं. एक बड़ा राजनीतिक संगठन विपक्ष का स्थान लेने के लिए सामने आ रहा था. हालांकि, कांग्रेस को यह बहुत अच्छा नहीं लगता, लेकिन कांग्रेस भी उसके साथ मिल सकती थी और देश में एक नया राजनीतिक समीकरण उभर सकता था.
अब मुलायम सिंह को लगा कि उनके साथियों की वजह से थोड़ी-सी चूक हो गई. अब मुलायम सिंह खुद इस दिमाग के हैं कि जल्द से जल्द एक पार्टी बन जानी चाहिए. इस सपने के एक हिस्से में हमने यह भी देखा कि मुलायम सिंह लखनऊ में अपने दस-बारह घनिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं. उस बातचीत में उन्होंने यह कहा, मैं दिल्ली में अपनी पार्टी में किसके साथ बात करूं? एक मेरा पोता है, एक मेरी बहू है, एक मेरा भतीजा है यानी जो पांच लोग हैं लोकसभा में, वे सब मुलायम सिंह के परिवार के हैं. मुलायम सिंह ने इस बात को लेकर अपने पुत्र एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से पूछा कि हमारी बहुमत की सरकार है, सारे प्रदेश में लोग हमारा समर्थन करते हैं, लेकिन हम स़िर्फ चार सीटों पर सिमट गए. पांचवीं सीट उपचुनाव में हमारे पास आई. इसका मैं क्या मतलब निकालूं? यह तो मेरी राजनीति के डगमगाने का संकेत है. उन्होंने कहा कि आप सारे लोग बैठे हुए हैं और प्रदेश में हम चुनाव हार जाते हैं. उन्होंने कई चीजों के बारे में उस बैठक में कहा. और, सबसे अपने दिल की बात कही कि आप लोग अगर काम नहीं करेंगे, तो कहीं न कहीं देश की राजनीति में हम हाशिये पर चले जाएंगे.
बिहार में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता सुशील कुमार मोदी हैं. बिहार में यह बात चल पड़ी है कि सुशील कुमार मोदी, अमित शाह और नरेंद्र मोदी तीनों एक वर्ग से आते हैं. सुशील कुमार मोदी को अगर बिहार में भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जाए, तो जीत मिल सकती है क्या? भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि उस स्थिति में उच्च जातियों, मसलन भूमिहारों एवं राजपूतों में उसके समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार की ओर चला जाएगा. इस बात को दिल्ली में बैठे नेता स्वीकार नहीं करते, लेकिन राजीव प्रताप रूडी और रविशंकर प्रसाद आपसी बातचीत में इस समझ को नकार भी नहीं रहे हैं.
हमने सपने में यह भी देखा कि दो दिन पहले मुलायम सिंह ने कुछ लोगों से कहा, मुझे समझ में आ गया है कि किसने-किसने इस काम को रोका यानी एक पार्टी बनने में किसने रोड़ा अटकाया और किसने ग़लतफहमियां फैलाईं, यह मेरी समझ में आ गया है. शायद मुलायम सिंह के पास ओम प्रकाश चौटाला की कही हुई यह बात पहुंची है कि मुलायम सिंह जी को हम सब प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, लेकिन मुलायम सिंह के आस-पास के लोग उन्हें प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहते. शायद इसी कसौटी पर मुलायम सिंह ने सारे क़दमों को कसा और देश की राजनीति को लेकर थोड़े ज़्यादा चिंतित हमें सपने में दिखाई दिए.
लालू यादव का रोल इस सारी चीज में सबसे पॉजिटिव रहा. हमने सपने में देखा कि चार महीने पहले जब लालू यादव के सामने यह बात रखी गई कि हमें एक पार्टी बनानी चाहिए, तो उसका समर्थन सबसे पहले लालू यादव ने किया. यह बात लालू यादव के सामने अन्य लोगों के अलावा सबसे पहले देवेगौड़ा जी ने रखी. हमने देखा कि लालू यादव देवेगौड़ा जी से कह रहे हैं, मैं इसमें पूरी तरह सहमत हूं और इसमें जो सैक्रिफाइस करना हो, वह मैं करने के लिए तैयार हूं. मैं पुराना लालू यादव नहीं हूं. मैं अब नए सिरे से, नई सच्चाइयों के साथ देश की स्थितियां देख रहा हूं. देश कहां जा रहा है, यह भी मैं समझ रहा हूं. और यह बात लालू यादव ने स़िर्फ देवेगौड़ा जी से ही नहीं कही, उन्होंने यह बात कई सारे लोगों से कही. लालू यादव दरअसल नए सिरे से एक बड़े परिवर्तन का गणित बनाने में लगे हुए हैं. लेकिन, लालू यादव के बारे में भी एक सोची-समझी योजना के तहत कई सारी खबरें अ़खबारों में आईं. आज बिहार में जीत का दारोमदार स़िर्फ और स़िर्फ लालू यादव की समझ, लालू यादव की रणनीति और लालू यादव के प्रचार अभियान की शैली के ऊपर निर्भर होता दिखाई दे रहा है. सपने में हमने यह भी देखा लालू यादव अपने सारे नज़दीकियों से बिल्कुल सा़फ कह रहे हैं कि हर हालत में बिहार का चुनाव नीतीश को सामने रखकर जीतना ही जीतना है. उसके बाद देश में कैंपेन करना है.
सपने में हमने एक और चीज देखी. हमने देखा कि नीतीश कुमार ने दिल्ली की बैठक से पहले अपना यह दिमाग बना लिया था कि वह अकेले चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस का सहयोग लेंगे. देवेगौड़ा, ओम प्रकाश चौटाला और कमल मोरारका का सहयोग लेंगे. उन्होंने नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान में लगे बिहार के लड़कों को तोड़ा और उन्हें बिहार में प्रचार करने की नई ज़िम्मेदारी सौंप दी. उस टीम के नेता प्रशांत कुमार ने नरेंद्र मोदी की शैली में ही नीतीश कुमार के प्रचार अभियान की शुरुआत की. इस प्रचार अभियान में पहले ही दिन से पैसे का रोल दिखाई दे रहा है. प्रचार सामग्री, थ्री-डी यानी वे सारे क़दम, जो नरेंद्र मोदी ने आजमाए थे, बिहार में नीतीश कुमार ने आजमाने की तैयारी कर ली और उनकी टीम ने आठ तारीख को बिहार में यह पोस्टर लगवा दिए कि एक बार फिर नीतीश कुमार. यानी प्रचार अभियान का तरीका दिल्ली में केजरीवाल की तरह का उन्होंने डिजायन किया. नीतीश कुमार की रणनीति का एक छोटा शिफ्ट. पहले नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी का म़ुकाबला करने की बात सोचते थे, लेकिन अब वह नरेंद्र मोदी स्टाइल में राजनीति के साथ घनघोर प्रचार अभियान की शैली को अपना समर्थन दे चुके हैं.
राहुल गांधी पशोपेश में थे कि बिहार में वह किस तरह से चुनाव लड़ें. वह लालू यादव के साथ गठबंधन कर चुनाव में नहीं जाना चाहते थे. नीतीश कुमार उनकी पहली पसंद थे, लेकिन नीतीश कुमार के साथ भी वह अकेले जाने में थोड़े हिचक रहे थे. इसलिए उनकी तऱफ से संदेशवाहकों ने यह सा़फ कर दिया कि अगर लालू यादव और नीतीश कुमार मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो उनका उस गठबंधन में शामिल होना ज़्यादा आसान है. अगर दोनों अलग-अलग लड़ते हैं, तो कांग्रेस फिर क्या फैसला करेगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता. इस संकेत को लालू यादव एवं नीतीश कुमार ने समझा और उन्हें लगा कि इस स्थिति में छह-सात प्रतिशत वोटों का बहुत मतलब है. लालू यादव को भी लगा कि स़िर्फ 29 प्रतिशत वोटों से सरकार नहीं बनती. नीतीश कुमार को भी लगा कि स़िर्फ 12-14 प्रतिशत से सरकार नहीं बनती और कांग्रेस के सामने सा़फ था. इसलिए अगर मुक़ाबला करना है, तो मिलकर मुक़ाबला करना चाहिए.
सपने में हमने एक चीज और देखी कि देवेगौड़ा अपने साथियों से कह रहे हैं कि बिहार में अगर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाता है, जैसा लालू यादव ने उन्हें इशारे में कहा था, तभी वह चुनाव प्रचार में जाएंगे. हालांकि, देवेगौड़ा जी का कोई रोल बिहार में नहीं है, लेकिन भूतपूर्व प्रधानमंत्री आ़िखरकार भूतपूर्व प्रधानमंत्री होता है. जो प्रधानमंत्री रह चुका होता है, उसकी एक आभा होती है. देवेगौड़ा देश में किसानों के नेता माने जाते हैं. देवेगौड़ा और चौटाला की इस सोच ने कि इस सबकी ज़िम्मेदारी मुलायम सिंह की है, अगर वह इसे नहीं बना पाते हैं, तो फिर देश में एक डिजास्टर होगा, बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार को न केवल एक साथ आने के लिए मजबूर किया, बल्कि ईमानदारी के साथ उन्हें एक साथ रहने के लिए दबाव में भी ले लिया.
यह सुबह का सपना है चार बजे का. सपना सच है या नहीं, मैं नहीं जानता. लेकिन, सपने में इतने रंग हैं, इतनी घटनाएं हैं कि मुझे लगा कि यह सपना आपके साथ साझा करूं. अब इस सपने का एक टेल पीस है, आ़िखरी हिस्सा. वह भी मैं आपसे साझा करना चाहता हूं. मैं यह देख रहा हूं कि अगले पच्चीस दिनों में यानी बिहार चुनाव का शंखनाद होने से पहले इस देश में एक नई राष्ट्रीय पार्टी का अभ्युदय हो सकता है. उस पार्टी का नाम समाजवादी दल हो सकता है, समाजवादी जनता दल हो सकता है, समाजवादी पार्टी हो सकता है. और, इस बात के लिए मुलायम सिंह मुझे सोचते-विचारते भी दिखाई दिए और मुलायम सिंह मुझे आगे बढ़ते हुए भी दिखाई दिए.
भारतीय जनता पार्टी की बिहार में एक अजीब स्थिति हो गई है. भारतीय जनता पार्टी यह मान बैठी थी कि लालू और नीतीश कुमार का गठबंधन नहीं होगा तथा उसके यहां बिहार चुनाव में जीतने के बाद कौन मुख्यमंत्री होगा, इसकी लड़ाई शुरू हो गई थी. लेकिन, जैसे ही इस गठबंधन की घोषणा हुई, हमने सपने में देखा कि सारे नेताओं के चेहरे बुझ गए. हमने देखा बिहार के बड़े नेता बातचीत करते दिखाई दे रहे हैं कि स़िर्फ दो समूह ऐसे हैं, जिनके समर्थन के बगैर बिहार में भारतीय जनता पार्टी को कोई लाभ नहीं होने वाला. इनमें एक हैं मुसलमान और दूसरे हैं यादव. लेकिन, मुसलमानों और यादवों के नेता भी सपने में बातचीत करते हुए दिखाई दिए कि भारतीय जनता पार्टी उन्हें आगे करेगी नहीं और भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने के दावे से बहुत दूर खड़ी दिखाई देगी. शाहनवाज हुसैन मुसलमानों के नेता हैं और नंद किशोर यादव यादवों के नेता हैं. भारतीय जनता पार्टी इन दोनों के नामों के ऊपर विचार ही नहीं कर रही है. जबकि ये दोनों लोग भारतीय जनता पार्टी में अपने आपको बिहार के मुख्यमंत्री पद का सबसे सुयोग्य उम्मीदवार साबित करने में लगे हैं. नीतीश कुमार और लालू यादव के गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी की संभावनाओं को धूमिल कर दिया है.
बिहार में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता सुशील कुमार मोदी हैं. बिहार में यह बात चल पड़ी है कि सुशील कुमार मोदी, अमित शाह और नरेंद्र मोदी तीनों एक वर्ग से आते हैं. सुशील कुमार मोदी को अगर बिहार में भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जाए, तो जीत मिल सकती है क्या? भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि उस स्थिति में उच्च जातियों, मसलन भूमिहारों एवं राजपूतों में उसके समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार की ओर चला जाएगा. इस बात को दिल्ली में बैठे नेता स्वीकार नहीं करते, लेकिन राजीव प्रताप रूडी और रविशंकर प्रसाद आपसी बातचीत में इस समझ को नकार भी नहीं रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी अब बिहार में पैसे का खुला खेल खेलना चाहती है. ठीक वैसे ही, जैसे देश के चुनाव में उसने पैसे के दम पर देश के लोगों को एक सपना दिखाया था, लेकिन चूंकि इस मामले में नीतीश कुमार ने बढ़त ले ली है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी के सामने अब उसी प्रकार का प्रचार अभियान चलाने के अलावा कोई रास्ता है नहीं.
मुख्य प्रश्न भारतीय जनता पार्टी के सामने यह है कि क्या वह नरेंद्र मोदी के नाम पर बिहार का चुनाव लड़े? संशय यह भी है कि यदि भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर बिहार का चुनाव लड़ती है और चुनाव हार जाती है, तो देश में अगले प्रधानमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का नाम सबसे ऊंचा दिखाई देने लगेगा. यह संशय या भ्रम भारतीय जनता पार्टी के लिए थोड़ा-सा ही सही, लेकिन फैसले लेने में दिक्कत पैदा कर रहा है. सुबह का सपना है. सच होता है, तो बहुत अच्छा. नहीं सच होता है, तो सपना तो आ़िखर सपना ही होता है. सपने में कही हुई संपूर्ण घटनाओं का मजा लीजिए और बिहार चुनाव में किस तरह के रंग दिखाई देते हैं, उनका मजा लीजिए.