बिहार में पूर्ण शराबबंदी से बेचैन बिहारी पियक्कड़ों के लिए यूपी की सीमा मधुशाला के बजाय मधु-नाला बन गई है. बिहार से लोग आते हैं, बॉर्डर पर छक कर पीते हैं और साथ में ढेर सारी शराब छुपा कर ले भी जाते हैं. उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार में वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भले ही अपने राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर रखी हो, लेकिन शराब के शौकीनों ने इसका तोड़ ढूंढ़ निकाला है. इसके लिए उन्हें पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की सीमाएं काफी मुफीद लग रही हैं जहां आकर वे अपना गला भी तर कर रहे हैं और अपने साथ स्टॉक भी ले जा रहे हैं. कभी यह हाल था कि बिहार निर्मित पाउच वाली शराब से यूपी के शराब कारोबार पर बुरा असर पड़ रहा था. अब वह बिल्कुल उल्टा हो गया है. अब बिहार में लागू शराबबंदी से उत्तर प्रदेश के शराब कारोबार में इजाफा होने लगा है. उत्तर प्रदेश के बिहार से लगने वाले सीमाई क्षेत्रों में यूपी की शराब की खपत अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है. शराब की तस्करी बेतहाशा बढ़ गई है.
बिहार की नीतीश सरकार ने बिहार विधानसभा चुनाव के पहले ही बिहार में शराब पर रोक लगाने की बात कही थी और चुनाव सम्पन्न होने के बाद पुनः सत्ता में आने पर एक अप्रैल 2016 से बिहार में शराब पर पूर्ण पाबंदी का ऐलान कर दिया. महिलाओं ने खास तौर पर इस फैसले का जोरदार स्वागत किया. शराबबंदी से सरकारी राजस्व को भले ही नुकसान पहुंचा, लेकिन लोगों का जीवन बचाने की राह आसान हो गई. लेकिन पियक्कड़ों ने इसकी भी काट निकाल ली. अब वे यूपी के बॉर्डर का रुख करने लगे हैं.
बिहार के पियक्कड़ों के लिए बिहार से लगने वाले उत्तर प्रदेश के जिले सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, कुशीनगर वगैरह शराब पाने का बेहतर जरिया बन रहे हैं. बिहारी पियक्कड़ों की भीड़ यूपी की ओर आती देख यूपी के शराब ठेकेदारों, आबकारी और पुलिस अधिकारियों की तो चांदी हो गई है. यूपी के आबकारी विभाग के ही अफसर बताते हैं कि पेटियां भर-भर कर शराब सड़क मार्ग या सीमावर्ती क्षेत्रों के ग्रामीण रास्तों से बिहार जा रही हैं. गाजीपुर जिले का गहमर, देवल, सायर भदौरा जैसा इलाका शराब के इस अवैध कारोबार का अड्डा बन गया है. गाजीपुर के ही भांवरकोल और करीमुद्दीनपुर में भी शराब की खपत काफी बढ़ गई और शराब की तस्करी भी खूब हो रही है.
चंदौली जिले के इलिया, बरहुआं, कुशहां, महंजी जिगना, सैयदराजा, चिरईगांव, मानिकपुर, नौबतपुर आदि इलाकों से भी कर्मनाशा नदी को पार कर शराब की तस्करी की जा रही है. बलिया जिले के भरौली, नरही, गोलंबर इलाके शराब कारोबार से गुलजार हैं, जहां से गंगा नदी के पार बिहार में शराब पहुंचाई जा रही है. सोनभद्र जिले से लगने वाले बिहार की सीमा वाले क्षेत्र में भी शराब का धंधा करने वालों की लॉटरी खुल गई है. बिहार के शराब माफिया यूपी के लाइसेंसी शराब के ठेकेदारों और दुकानदारों से साठगांठ कर लग्जरी वाहनों से शराब की तस्करी करा रहे हैं. यूपी की शराब को महंगे दामों पर बिहार में बेचा जा रहा है.
बिहार और यूपी को जोड़ने वाली पैसेंजर ट्रेनें भी यूपी की शराब की बिहार में तस्करी का जरिया बन रही हैं. बिहार की तरफ से पियक्कड़ों की टोलियां यूपी आती हैं और अपने बैगों-अटैचियों में भर कर शराब ले जाती हैं. बिहार के बक्सर के रास्ते पियक्कड़ों की टोलियों को गाजीपुर के भरौरा, गहमर, दिलदारनगर, जमानियां आदि स्टेशनों पर उतरते आराम से देखा जा सकता है. वे यूपी आकर शराब पीते हैं और साथ में ले जाते हैं. रघुनाथपुर, चौसा, डुमरांव, बरूना, टुड़ीगंज कारीसाथ, बिहिया, बनाही आदि स्टेशनों से उत्तर प्रदेश पहुंचने वाले कुछ खास किस्म के लोगों को स्थानीय लोग बहुत आराम से पहचान रहे हैं.
यूपी सरकार को फायदा ही फायदा
बिहार में शराबबंदी से पियक्कड़ों में बेचैनी है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार और शराब के कारोबारी बड़े चैन में हैं. वे खूब मुनाफा कमा रहे हैं. यूपी सरकार ने शराब बिक्री से अर्जित होने वाले राजस्व का लक्ष्य चालू वित्तीय वर्ष में बढ़ा दिया है. पिछले वित्तीय वर्ष में यह लक्ष्य 127 करोड़ था, लेकिन इस वर्ष (2016-17)राजस्व लक्ष्य बढ़ा कर 140 करोड़ कर दिया गया है. यूपी के सीमाई जिलों में बीयर और देसी-विदेशी शराब विक्रय के जो लक्ष्य रखे जाते थे उसे पूरा करने में पहले जद्दोजहद करनी पड़ती थी, अब वह बात नहीं रही, अब तो माल ही कम पड़ने लगा है. अब तो शराब कारोबारी भी प्रसन्न हैं और अधिकारी भी खुश हैं.