संयुक्त राज्य अमेरिका के एक नर्सिंग होम में बीते 29 सितंबर को हुई मौत से 30 साल पहले वॉरेन एंडरसन को सात दिसंबर, 1984 को मध्य प्रदेश के भोपाल में दोपहर दो बजे गिरफ्तार किया गया था. एंडरसन भोपाल स्थित यूसीसी की सहायक कंपनी का सर्वोच्च अधिकारी था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के पांचवें दिन यानी बीते 30 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की. यह साफ़ नहीं है कि जब प्रधानमंत्री मोदी ओबामा से मिले, उस वक्त उन्हें एंडरसन की मौत के बारे में पता था या नहीं, लेकिन यह तो साफ़ है कि अमेरिकी अधिकारियों ने उसकी मौत की ख़बर गोपनीय बनाए रखी, क्योंकि उससे मोदी और ओबामा की मुलाकात पर असर पड़ सकता था.
भोपाल संयंत्र की ज़िम्मेदारी सीधे-सीधे यूसीसी के एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स डिवीजन के वाइस प्रेसिडेंट की थी, जो एंडरसन को सीधे रिपोर्ट करता था. डिजाइन, सुरक्षा मानकों और संचालन के लिए दोहरे मानदंड को एंडरसन ने ही मंजूरी दी थी. इसके बाद ही यूसीसी ने भोपाल संयंत्र उसी हिसाब से बनाया था, जबकि इसी तरह के काम के लिए अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया कारखाना अलग ढंग से बनाया गया था. एंडरसन पर हत्या, उत्पीड़न, मनुष्यों एवं जानवरों में ज़हर फैलाने का आरोप था. अब वह किस रोग से पीड़ित था, ज्ञात नहीं है. यह तभी पता चलेगा, जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को उसका मृत्यु प्रमाण-पत्र हासिल करने में सफलता मिलेगी. सीबीआई ने एक दिसंबर, 1987 को एंडरसन के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया था. इंटरपोल के माध्यम से एंडरसन के ख़िलाफ़ कई समन जारी हुए थे. सीजीएम भोपाल ने समन की बार-बार अनदेखी के बाद नौ फरवरी, 1989 को एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया और 31 मार्च, 1989 को अपनी अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया.
अपनी मौत तक एंडरसन का भोपाल की अदालत में पेश न होना यह दिखाता है कि अमेरिकी सरकार ने पारस्परिक क़ानूनी सहायता (एमएलए) पर अमेरिका-भारत संधि के तहत अपने दायित्वों का पालन नहीं किया और न यह सुनिश्चित करने में मदद की कि डॉओ केमिकल्स और यूसीसी सीजीएम भोपाल द्वारा जारी किए गए समन का अनुपालन करें. भारत और अमेरिका की सरकारों ने भोपाल गैस आपदा के लिए दायित्व (जवाबदेही) तय करने के मामले में दोहरा मापदंड अपनाया. उक्त संयंत्र से 40 टन घातक मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और अन्य अज्ञात गैसों का रिसाव हुआ था. 23,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी, लाखों लोग विकलांग हुए थे और इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ा. सरकारें इस सबके प्रति संवेदनहीन बनी रहीं.
सात जून, 2010 को भोपाल गैस कांड पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने जो निर्णय दिया, उसमें साफ़ लिखा है कि श्री वॉरेन एंडरसन पुत्र श्री जॉन मार्टिन एंडरसन, पूर्व अध्यक्ष-कार्बाइड कारपोरेशन, 39, ओल्ड रिजबरी रोड, डैनबरी, यूएसए-06817 (फरार). सीजेएम के फैसले के अंतिम पैराग्राफ, नंबर 226 में लिखा है कि श्री वॉरेन एंडरसन, यूसीसी यूएसए और यूसीसी हांगकांग अभी भी फरार हैं और इसलिए इस मामले (आपराधिक फाइल) के हर हिस्से को उनकी उपस्थिति तक सुरक्षित हिरासत में रखा जाए. उधर, अमेरिकी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि एंडरसन भारत और भोपाल की अदालत में कभी न पहुंचे. एंडरसन को एक बेल बांड पर छोड़ा गया था. सात दिसंबर, 1984 को उसने लिखा था कि मैं वारेन एंडरसन पुत्र जॉन मार्टिन एंडरसन, 63/54 ग्रीनिज हिल्स ड्राइव, ग्रीनिज, कनेक्टिकट, संयुक्त राज्य अमेरिका का निवासी हूं. मैं यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन, अमेरिका का अध्यक्ष हूं. मुझे आपराधिक धारा 304 ए, 304, 120 बी, 278, 429, 426 व 92 के तहत हनुमानगंज पुलिस स्टेशन,भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत द्वारा गिरफ्तार किया गया. मैं पच्चीस हज़ार रुपये के इस बांड पर हस्ताक्षर कर रहा हूं और यह अंडरटेकिंग देता हूं कि पुलिस या न्यायालय द्वारा जब कहीं या जब कभी भी उपस्थित होने के लिए निर्देश मिलेगा, मैं उपस्थित रहूंगा. इस बांड को अंग्रेजी में अनुवाद किया गया, एंडरसन को पढ़ाया गया और तब उसके हस्ताक्षर हुए. उल्लेखनीय है कि एमएलए संधि के तहत भोपाल न्यायालय से एंडरसन के लिए जारी समन संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग को भेजा गया था. इसकी संभावना नहीं है कि उक्त विभाग ने एमएलए संधि के तहत अपने दायित्वों का अनुपालन करते हुए एंडरसन को समन भेजा हो. आठ दिसंबर, 1984 को आंशिक रूप से अवर्गीकृत सीआईए दस्तावेज़ बताता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असंवैधानिक तरीके से एंडरसन की रिहाई का आदेश दिया था और राज्य सरकार के एक विमान से पहले दिल्ली और फिर वहां से भारतीय राष्ट्रपति एवं अन्य लोगों से मुलाकात के बाद अमेरिका भेजने की व्यवस्था की थी. भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता क्रमश: अरुण जेटली एवं अभिषेक मनु सिंघवी के हस्ताक्षर वाला पत्र, जिसमें डाओ केमिकल्स को भोपाल आपदा के लिए किसी भी दायित्व से मुक्त करने की बात है, यह दिखाता है कि सरकार या कहें कि राजनीतिक दल कॉरपोरेट जगत के हितों की रक्षा के लिए किस तरह एक हो जाते हैं.
26 जून, 2012 को अपने फैसले में जेएफ कीनन, संयुक्त राज्य अमेरिका के ज़िला न्यायालय के जज ने जानकी बाई साहू बनाम यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन और वारेन एंडरसन के मामले में जो निर्णय दिया, वह पीड़ितों के घावों पर नमक लगाने जैसा है. सवालों के घेरे में आए न्यायाधीश ने असंवेदनशीलता दिखाते हुए न्याय की आस लगाए पीड़ितों के संघर्ष की तुलना वास्को डी गामा के खोज अभियान से की. 12 जुलाई, 1989 को अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने एक अंतिम नियम जारी किया. इसमें ज़्यादातर एस्बेस्टस युक्त उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. दस मिलियन डॉलर खर्च करने और दस सालों के अध्ययन के बाद यूएसईपीए ने एक लाख पृष्ठों का एक प्रशासनिक रिकॉर्ड तैयार किया और बताया कि कई चरणों में एस्बेस्टस युक्त लगभग सभी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. यह प्रतिबंध एस्बेस्टस के निर्माण, आयात, प्रसंस्करण और वितरण पर लागू किया गया था. यूएसईपीए के मुताबिक, एस्बेस्टस कैंसर पैदा करता है और यह व्यवसायिक और ग़ैर-व्यवसायिक गतिविधियों से मानव के लिए सबसे ख़तरनाक पदार्थों में से एक है. लेकिन, एस्बेस्टस पर प्रतिबंध का आदेश 18 अक्टूबर, 1991 के अपने निर्णय में पांचवें सर्किट यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स, न्यू आर्लियंस ने उलट दिया. ग़ौरतलब है कि अमेरिकी न्याय पालिका की प्रतिष्ठा को झटका देते हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और 50 से अधिक देशों ने कहा कि यूएसईपीए का निर्णय सही था.
विडंबना यह है कि अमेरिका में डाओ केमिकल्स कंपनी ने यूसीसी के अधिग्रहण के दौरान भविष्य में एस्बेस्टस संबंधित देनदारियों के लिए 2.2 बिलियन डॉलर का इंतजाम किया है. यूसीसी पूर्व में एस्बेस्टस युक्त उत्पाद बेचता था, उसका खनन करता था. 1985 में यूसीसी की खदान बिकी. 1999 में डाओ ने जब यूसीसी का अधिग्रहण किया, तब उसने भोपाल गैस आपदा के लिए किसी भी दायित्व को मानने से इंकार कर दिया. जब डाओ संयुक्त राज्य अमेरिका में एस्बेस्टस पीड़ितों के लिए अपनी ज़िम्मेदारी मान सकता है, तो भोपाल के मामले में उसकी ज़िम्मेदारी क्यों नहीं? यह दोहरा मापदंड क्यों? भोपाल आपदा के शिकार लोग आर्थिक मुआवजा, एंडरसन द्वारा उत्पादित ख़तरनाक कचरे से प्रदूषित मिट्टी और पेयजल के लिए अगर चिकित्सा सुविधा चाहते हैं, तो इसमें गलत क्या है?
एंडरसन को जीते जी तो सजा नहीं मिल सकी, लेकिन उसकी मौत के बाद भी भोपाल के पीड़ितों की कई पीढ़ियों को पहुंचे नुक़सान और लगातार जारी प्रदूषण के ख़िलाफ़ न्याय की तलाश ख़त्म नहीं हुई है. उसकी मौत के बाद भी यूसीसी अमेरिका और यूसीसी हांगकांग के ख़िलाफ़ मामला बरकरार है, लेकिन यूएस और भारत की संबंधित संस्थाएं इस पूरे मामले को लटकाए रखना चाहती हैं. इसी बीच नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्य 18 जीओएम (मंत्री समूह) के साथ-साथ एक जीओएम भोपाल आपदा पर भी बनाया है. उधर, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यूसीसी की मूल कंपनी डॉओ केमिकल्स को एक मामले में दूषित साइट की साफ़-सफाई के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है.
भोपाल त्रासदी : न्याय के लिए अंतहीन प्रयास जारी है
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