आलमी तब्लीगी इज्तिमा का आगाज 26 नवंबर को हुआ था. तब्लीगी इज्तिमा में शरीक होने इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, फिलिपींस, सऊदी अरब, कुवैत, इंग्लैंड, रूस, फ्रांस व सोमालिया से लोग आए थे. शनिवार की सुबह फजिर की नमाज के साथ मजहबी तकरीरें शुरू हो गईं. इज्तिमा स्थल पर वजू के लिए 9 हजार टोंटियां लगाई गई थीं.
शुरुआती दो दिनों में करीब 4 लाख जमाती इज्तिमा स्थल पर मौजूद रहे. इज्तिमा कमेटी के प्रवक्ता अतीक अल इस्लाम ने बताया कि इज्तिमा स्थल पर एक महीने से तैयारियां चल रही थीं.
भोपाल में तीन दिनी आलमी तब्लीगी इज्तिमें का आगाज मजहबी तफरीशें और अल्लाह के बताये रास्ते पर चलने की नसीहत के साथ हुआ. इज्तिमे के कुछ समय पहले राजधानी में हुए जेल ब्रेक कांड और विदिशा में हुई सांप्रदायिक झड़प को देखते हुए प्रशासन ने इस वर्ष सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे.
क्लीन एंड ग्रीन की तर्ज पर हुआ इज्तिमा
आलमी तब्लीगी इज्तिमा के दौरान इज्तिमागाह क्लीन और ग्रीन की तर्ज पर संपन्न हुआ. आयोजन के दौरान कार्यक्रम स्थल पर पॉलीथिन के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी थी. यहां सिगरेट, बीड़ी, गुटका, पाउच का सेवन भी प्रतिबंधित था.
आलमी तब्लिगी इज्तिमा इन्तजामिया कमेटी के अतीत उल इस्लाम ने बताया कि इज्तिमागाह पर बड़ी तादाद में वालंंटियर पहुंचे और तैयारियों को पूरा करने में सहयोग दिया. उन्होंने बताया कि दुनिया भर से आने वाले जमाती यहां से बेहतर इंतजाम और सुखद वातावरण का संदेश अपने साथ लेकर गए. इसी मंशा के साथ इज्तिमागाह को पूरी तरह पॉलीथिन मुक्त जोन घोषित किया गया था.
26 नवंबर की सुबह एक आम सुबह की तरह ही थी, लेकिन भोपाल से 11 किलोेमीटर की दूरी पर ईंटखेड़ी के पास ग्राम घासीपुरा में नज़ारा कुछ अलग ही था. फज़िर यानी सुबह की पहली नमाज़ दुनिया भर से आए 50 से ज्यादा जमातों और अन्य इस्लामी धर्मावलंबियों सहित 10 लाख लोगों ने एक साथ अदा की. इससे पहले इज्तिमा स्थल पर 66 एकड़ में लगे पंडाल में जुमे की नमाज़ अदा की गई. इसमें लगभग डेढ़ लाख लोगों ने शिरकत की.
इस धार्मिक समागम में मुख्य रूप से दिल्ली मरकज़, मुम्बई, लखनऊ, अलीगढ़ आदि स्थानों के उलेमाओं के बयान हुए. बयान की शुरुआत दिल्ली के मौलाना जमशेद मोहम्मद से हुआ.
यहां होने वाले निकाह और अंतिम दिन की दुआ का भी खास महत्व है. निकाह असिर और मग़रिब के बीच यानी शाम 5 से 6 के बीच संपन्न हुआ तथा दुआ अंतिम दिन सुबह के बयान के बाद 12 बजे हुआ.
क्या है इज्तिमा
इज्तिमे का शाब्दिक अर्थ होता है, एक स्थान पर लोगों का जमा होना. इसे मज़मा, मजलिस, महफिल सभा या समागम भी कह सकते हैं. तब्लीगी यानी धार्मिक और आलमी मतलब विश्वस्तरीय.
इज्तिमा का मुख्य उद्देश्य इस्लाम की शिक्षा के साथ-साथ दुनिया भर में शांति और एकता का संदेश देना भी है. इसमें दिए जाने वाले बयान यानी प्रवचनों में लोगों को अपनी जिंदगी इंसानियत की राह पर चलकर गुजारने की सलाह दी जाती है.
इज्तिमे की शुरुआत 67 वर्ष पहले नवाबी दौर में 1946 में भोपाल स्थित मस्जिद शकूर खां में हुई थी. इसमें महज़ 14 लोगों ने शिरकत की थी. मौलाना मिस्कीन साहब ने इसकी नींव रखी थी.
कारवां चलना शुरू हुआ तो फिर लगातार चलता रहा, लोग जुड़ते रहे. 1949 में इस सालाना इज्तिमे को नया ठिकाना मिला मस्जिद ताजुल मस्जिद में. बाद में यह तादाद हजारों से होती हुई लाखों में पहुंची तो एशिया की यह सबसे बड़ी मस्जिद भी छोटी पड़ने लगी. इसे ग्यारह साल पहले शहर से 11 किलोमीटर दूर घासीपुरा में शिफ्ट करना पड़ा.
50 से ज्यादा जमातें, पाक-बांग्लादेश को आमंत्रण नहीं इसमें देश-विदेश से 50 से ज्यादा जमातें शरीक हुई थीं. आईएसआईएस के युद्ध के चलते सीरिया की जमात नहीं पहुंची, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश को बुलाया ही नहीं गया था.