क्या राष्ट्रसंत लोगों के दिलों में भी मर गए हैं…
भैय्यूजी महाराज की जिंदगी में उनकी बेटी कुहू, उनके नजदीक काम करने वाले साधारण लोग जिन्हें वे असाधारण बनाना चाहते थे, उनकी बहनें, उनके साथी, उनके शिष्य, उनके पास अपनी समस्याओं के हल तलाशने आने वाले उनके भक्त, सरकारी अधिकारी, राज्य और केंद्र के मंत्री तथा उनकी नई पत्नी आयुषी से जुड़े हुए वे तमाम तथ्य जिन्हें देखकर भैय्यूजी महाराज की आत्मा स्वर्ग में अपना सिर पीट रही होगी…
भैय्यूजी महाराज को इस दुनिया से विदा लिए अभी बमुश्किल चार महीने ही बीते हैं और लोगों ने उनको पूरी तरह भुला दिया है. इधर पुलिस ने भी जांच के नाम पर कुछ लोगों के बयान लेने के बाद, मामले को पारिवारिक झगड़े के कारण किया गया सुसाइड बताकर केस की फाइल ही बंद कर दी है. कमाल की बात यह है कि राष्ट्रसंत का दर्जा प्राप्त भैय्यूजी महाराज के लाखों फॉलोअर्स, उनकी बेटी, उनकी दूसरी पत्नी आयुषी या उनकी बहनों, किसी ने भी इस मामले में आगे जांच के लिए पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं की.
हद तो यह हो गई कि जब पुलिस ने शक के आधार पर इस घटना के लिए संभावित जिम्मेदार लोगों के खिलाफ गुरुजी के परिजनों से बयान देने और मामला दर्ज कराने के लिए कहा तो कोई आगे नहीं आया. अब पुलिस का कहना है कि हम किसकी शिकायत पर मामला आगे बढ़ाएं.
इस मामले में हमने गुरुजी के परिजनों से संपर्क साधा. हाल ही में 18 साल की हुई गुरुजी की बेटी कुहू ने इस मामले पर कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया. दरअसल, वह कुछ ऐसे लोगों से घिर गई है, जिनकी इजाजत के बिना न तो वो किसी से मिल सकती है और न बात कर सकती है. उसकी स्थिति तो बहुत ही चिंताजनक है. वहीं भैय्यूजी महाराज की दूसरी पत्नी आयुषी भी कुछ कहने से बच रही हैं. गुरुजी की बड़ी बहन मधुमति का कहना है कि वे और आयुषी मिलकर पुलिस से इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग करने वाली हैं.
अब सवाल यह है कि जिस व्यक्ति से मिलने के लिए देश के राष्ट्रपति, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री आतुर रहते थे और जिनके समर्थकों की तादाद लाखों में थी, उनकी संदेहजनक मृत्यु पर सभी ने कैसे चुप्पी साध ली? क्या भैय्यूजी महाराज की यादों पर भी लोगों ने मिट्टी डाल दी है? साथ ही भैय्यूजी महाराज के वो सपने भी मर गए हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी तक दांव पर लगा दी थी.
सूना पड़ गया है सूर्योदय आश्रम
गुरुजी के जाते ही सूर्योदय आश्रम सूना पड़ गया है. जहां गुरुजी के रहते हुए उनके समर्थकों, भक्तों की कतार लगी रहती थी, वहीं अब आश्रम में बचे हुए स्टाफ के 5-10 लोग किसी के आने के इंतजार में बैठे मक्खियां मारते रहते हैं. जिस आश्रम में हर दिन कम से कम सौ से डेढ़ सौ लोगों का खाना बनता था, वहां आज स्टाफ को मिलाकर 20 लोगों का खाना भी नहीं बनता. यदि कोई भूला-भटका समर्थक पहुंच भी जाए, तो आश्रम में बने मंदिर में दर्शन कर थोड़ी ही देर में लौट जाता है. गुरुजी के जाने के बाद, उनके समर्थकों की ओर से आने वाला दान भी अब नहीं आ रहा है.
आश्रम से जुड़े एक व्यक्ति बताते हैं कि गुरुजी की मौत के बाद डोनेशन के तौर पर एक रुपया भी नहीं आया है. इधर गुरुजी के समर्थक कहते हैं कि पहले हमारे पास आश्रम से एक फोन आ जाता था कि सब्जी नहीं है या अनाज नहीं है, तो हम तुरंत सामान पहुंचा देते थे, लेकिन अब किसके लिए ये सब काम करें. न तो वहां अब कोई आता-जाता है और न ही वहां अब पहले जैसा कुछ रहा है. कई स्टाफ मेंबर भी बाहर हो गए हैं. अब उन्हें जान-बूझकर बाहर किया गया है या वे खुद गए हैं, इसपर भी कई तरह के मत हैं. गुरुजी के समर्थक कहते हैं कि चूंकि वे लोग ईमानदार थे और आश्रम में किसी तरह की गड़बड़ी का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे, इसलिए उन्हें सैलरी ही नहीं दी गई और वहां से जाने के लिए मजबूर किया गया.
आश्रम में फिलहाल सक्रिय लोग अपने करीबियों को ही वहां लाकर इकट्ठा कर रहे हैं, ताकि आश्रम को अपनी मर्जी से चला सकें. इस मामले में सबसे ज्यादा आरोप आयुषी पर लग रहे हैं. आयुषी ने एक अनौपचारिक मुलाकात में कहा कि स्टाफ के लोग अपनी मर्जी से जॉब छोड़कर गए हैं, यदि मैंने जिम्मेदारी ली है, तो मैं उनकी सैलरी का भी इंतेजाम करती. हालांकि इसके लिए वे पैसे कहां से लातीं, इसका जवाब उनके पास नहीं था.
जो साए की तरह साथ रहते थे, अब नज़र भी नहीं आते
साए की तरह साथ रहने वाले गुरुजी के करीबी अब आश्रम में झांकते तक नहीं हैं. इतना ही नहीं, जो लोग भैय्यूजी महाराज की मां की जरा सी बीमारी की खबर सुनकर दौड़े चले आते थे, वे उनके बर्थडे तक पर बुलाने पर ही मुश्किल से आए. वो न तो आश्रम जा रहे हैं, न किसी से मिल-जुल रहे हैं. उन लोगों की अनुपस्थिति सबको खटक तो रही है, लेकिन कोई भी इसे लेकर अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं है. भैय्यूजी महाराज जिन कुछ लोगों से घिरे रहते थे, वो भी उनकी मौत के महीने भर बाद से ही गायब हैं. इसे लेकर कई अजीब बातें भी सुनने में आ रही हैं. जैसे, गुरुजी के रहते हुए जहां गाड़ियों की लाइन लगी रहती थी, वहीं अब वो गाड़ियां नदारद हैं.
कहा जाता है कि उनमें से ज्यादातर गाड़ियां रोहित सांघी के नाम पर थीं, लिहाजा भैय्यूजी महाराज की मौत के बाद वो सारी गाड़ियां लेकर चला गया. अब ये तो संभव नहीं है कि एक ही व्यक्ति इतनी सारी गाड़ियां अकेले महाराज की सेवा में लगा दे. उन गाड़ियों की खरीदारी में गुरुजी ने खुद भी कुछ तो पैसा लगाया होगा. लेकिन इस मामले को लेकर भी पुलिस ने जानने की कोशिश नहीं की कि सारी गाड़ियां क्यों और कैसे गायब कर दी गईं.
सुसाइड नोट में जिसे ज़िम्मेदारी सौंपी, वही ग़ायब है
पैसों और संपत्ति के मामले में सबसे पहला नाम आता है, विनायक दुधाड़े का, जिसके नाम भैय्यूजी महाराज चिट्ठी छोड़कर गए थे कि वो उनका विश्वस्त व्यक्ति है और उनके जाने के बाद परिवार, प्रॉपर्टी की जिम्मेदारी वही संभालेगा. लेकिन गुरुजी के सुसाइड करने के बाद विनायक जिस तेजी से चर्चा में आया था, उसी तेजी से गायब भी हो गया. गुरुजी के जाने के महीने भर बाद से ही विनायक आश्यचर्यजनक रूप से गायब है. अव्वल तो उसका फोन ही बंद आता है, यदि फोन चालू भी हो तो वो किसी का फोन रिसीव नहीं करता.
पिछले दो-तीन महीनों में जिन भी दो-चार लोगों से वो मिला या फोन पर बात की, उनसे उसने हर बार यही तर्क दिया कि उसकी मां की तबियत खराब है, लिहाजा वो गांव में है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यदि उसकी मां वाकई इतनी बीमार हैं कि तीन महीने से विनायक गांव में रहकर उनकी सेवा कर रहा है, तो फिर उसके पिता को यह क्यों नहीं मालूम कि उसकी मां को क्या बीमारी है. हम जब इंदौर स्थित विनायक के घर पहुंचे तो उसके पिता ने वही रटा-रटाया जबाव दिया कि विनायक अपनी बीमार मां के पास है.
लेकिन उन्हें कौन सी बीमारी है, इस बारे में वे कोई ठीक जवाब ही नहीं दे सके. इधर, विनायक की पत्नी को भी सख्ती से मना किया गया है कि वो किसी से बात न करे. यहां तक कि उसका मोबाइल भी बंद करा दिया गया है. ये सब बातें संदेह के घेरे में आती हैं कि आखिर क्यों विनायक और उसका परिवार इस तरह सामने आने से बच रहा है. विनायक के पिताजी ने तो यहां तक कहा कि उन्होंने आज तक आश्रम में कदम भी नहीं रखा है, जबकि हर गुरुवार को उनका आश्रम जाने का सिलसिला सालों पुराना है.
भैय्यूजी महाराज और आश्रम से लंबे समय से जुड़े रहे लोग बताते हैं कि विनायक ने आर्थिक मामलों में गड़बड़ियां की है. पुलिस के पास अब तक जो जानकारी है, उसके मुताबिक विनायक ने गुरुजी की मौत के बाद बड़ी मात्रा में कैश, ज्वैलरी आदि गायब किया है. कुछ सूत्र उस ज्वैलरी और रकम का कुल हिसाब साढ़े तीन करोड़ रुपए के ऊपर बताते हैं, वहीं पुलिस के सूत्र भी इस बात की पुष्टि करते हैं.
अब सवाल यह उठता है कि यदि यह बात इतने लोग जानते हैं और पुलिस की जानकारी में भी यह बात है, तो फिर विनायक के खिलाफ कोई भी एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा है. इस बारे में यह तर्क दिया जा रहा है कि चूंकि ये नगद रकम और ज्वैलरी डिक्लेयर्ड नहीं थी, ऐसे में यदि पुलिस के पास जाएं, तो क्या कहें कि इतनी बड़ी रकम कहां से आई. कहा जाता है कि गुरुजी की मौत के बाद तीन-चार सूटकेसों में ये रकम, ज्वैलरी और महंगी घड़ियां विनायक ने पार कर दी.
सभी जानते हैं कि गुरुजी को घड़ियों का बहुत शौक था और उनके पास कई देशों की लग्जरी घड़ियां भी थीं. इनमें से कई घड़ियां उन्हें अपने समर्थकों से तोहफों में भी मिली थीं और कुछ उन्होंने खरीदी थी. लिहाजा, इसकी जांच होनी चाहिए कि गुरुजी के पास कितनी ज्वैलरी और घड़ियां थीं, हादसे के वक्त उनके पास कितना कैश था, उन सब में से कितना अभी बचा है और कितना गायब है.
संदेह के घेरे में कई अन्य लोग भी आते हैं, जैसे मनमीत अरोरा, राजा बड़जात्या, संजय यादव और मनोहर आदि. इनमें से ज्यादातर लोग जब कई साल पहले गुरुजी के संपर्क में आए थे, तब उनकी आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं थी, लेकिन अब बताया जाता है कि मनमीत अरोरा के बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट चल रहे हैं, वहीं संजय यादव इंदौर में करीब ढाई करोड़ की लागत से मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बना रहे हैं.
फेब्रिकेशन का बिजनेस करने वाले संजय यादव के एक बार 8 लाख रुपए डूब गए थे, तब वे परेशानी की अवस्था में गुरुजी के पास आए थे और उसके बाद वे गुरुजी से जुड़ गए. धीरे-धीरे उनका कद आश्रम में इस तरह बढ़ा कि वे कई साल तक ट्रस्ट में सचिव रहे. ट्रस्ट से जुड़े सारे लेन-देन और आर्थिक मामले वे ही देखते थे.
ट्रस्ट से जुड़े लोग बताते हैं कि धार में किसानों की मदद के लिए चलाए जा रहे एक प्रोजेक्ट का जिम्मा उन्हें सौंपा गया था और उसमें आर्थिक गड़बड़ियां सामने आने के बाद उनको साइडलाइन कर दिया गया था. फिर उसके बाद वे ट्रस्ट से बाहर हो गए थे. बताया जाता है कि राजा बड़जात्या के पास करीब 200 एकड़ जमीन है. मनोहर और शेखर पंडित भी मीडिया समेत गुरुजी के समर्थकों से बात करने से बच रहे हैं.
आयुषी ने की थी गुरुजी की गद्दी पर बैठने की कोशिश
जुलाई के आखिर में आश्रम में गुरु पूर्णिमा का आयोजन रखा गया था. भैय्यूजी महाराज के कई समर्थक भी इस कार्यक्रम में पहुंचे थे. इस दौरान आयुषी भी आश्रम गईं. जहां तक जानकारी मिली है, भैय्यूजी महाराज की मौत के बाद आयुषी उस दिन पहली बार आश्रम गई थीं. कार्यक्रम शुरू होने से कुछ मिनट पहले ही वो आश्रम पहुंचीं और ड्राइवर से गाड़ी बंद न करने को कहा. भैय्यूजी महाराज की फोटो पर फूल चढ़ाने के कुछ मिनट बाद ही उन्होंने उनकी गद्दी पर बैठने की कोशिश की.
मौके पर उपस्थित लोग बताते हैं कि उस वाकये पर समर्थकोंे ने नाराजगी जाहिर की और आयुषी को गद्दी पर नहीं बैठने दिया, उसके बाद वो एक पल भी वहां नहीं रूकीं और तुरंत निकल गईं. शायद वो पहले से जानती थीं कि उनके इस कदम का इस तरह विरोध हो सकता है, लिहाजा उन्होंने ड्राइवर को गाड़ी बंद न करने को कहा था. हाल ही में खामगांव में पारधी बच्चों के लिए एक आश्रम का लोकार्पण किया गया.
भैय्यूजी महाराज इस प्रोजेक्ट पर लंबे समय से काम कर रहे थे. इस कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहुंचे. हालांकि प्रोग्राम को मीडिया में वैसी कवरेज नहीं मिली, जैसी मिला करती थी और न ही उतनी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे, जैसी उम्मीद थी. यह कार्यक्रम 15 दिन पहले ही विवादों में घिर गया था. दरअसल, इस कार्यक्रम के लिए जो आमंत्रण पत्रिकाएं छपी थीं, उनमें भैय्यूजी महाराज की फोटो नहीं थी.
साथ ही पूरे कार्यक्रम का क्रेडिट कुछ लोगों ने ले लिया था. जब ये आमंत्रण पत्र इंदौर से लेकर खामगांव तक भैय्यूजी महाराज के समर्थकों तक पहुंचे, तो उन्होंने हंगामा कर दिया कि कैसे भैय्यूजी महाराज द्वारा शुरू किए गए प्रोजेक्ट से उन्हें ही साइडलाइन किया जा रहा है. बाद में आयुषी ने कहा कि ये डमी आमंत्रण-पत्र थे, बाद में ये गलती सुधार ली गई. इस बात की सच्चाई में संदेह है, क्योंकि केवल डमी के लिए एक बैग भरकर आमंत्रण पत्र तो नहीं छपवाए जा सकते.
उस कार्यक्रम में एक और बात कमाल की रही कि भैय्यूजी महाराज के साथ पूरे समय रहने वाले चार-छह लोग, जो अब आश्रम जाने तक से बच रहे हैं, वो उस कार्यक्रम में बिन बुलाए मेहमान की तरह पहुंचे थे. अब सवाल यह है कि क्या वो लोग आरएसएस प्रमुख को अपना मुंह दिखाने के लिए गए थे, ताकि उनकी नजरों में आकर समय पड़ने पर अपने काम निकाल सकें? भैय्यूजी महाराज से लोगों को मिलवाने का काम यही लोग किया करते थे, जिसके कारण हाईप्रोफाइल लोगों से इनके सम्बन्ध बन गए थे और इसका फायदा इन लोगों ने अपने निजी कामों के लिए जमकर उठाया था. अब चूंकि भैय्यूजी महाराज नहीं हैं, तो उनके हित भी सध नहीं पाएंगे, ऐसे में ये लोग सोच रहे होंगे कि फिर मुफ्त का पसीना क्यों बहाया जाए.
ट्यूशन पढ़ाती थीं आयुषी
अब जरा बात करते हैं, भैय्यूजी महाराज की दूसरी पत्नी आयुषी की. आयुषी ग्वालियर के पास शिवपुरी जिले की खनियाधाना कस्बे की रहने वाली हैं. उनके पिता सरकारी टीचर हैं, घर में उनकी मां और एक भाई-एक बहन हैं. कुछ साल पहले आयुषी पढ़ाई के लिए इंदौर आ गई थीं. वो इंदौर के भंवरकुआं स्थित एक हॉस्टल में रहती थीं.
उन्होंने इंदौर की देवी अहिल्या बाई यूनिवर्सिटी से डिजिटल मार्केटिंग में पीएचडी की है. पढ़ाई के दौरान वो पार्ट टाइम काम करती थीं और होम ट्यूटर नाम की एक संस्था के जरिए इंदौर के एक पंजाबी परिवार में 10-12 बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं. करीब एक से डेढ़ साल तक उन्होंने ये काम किया. इस दौरान उनकी ग्वालियर में शादी तय हुई और लड़के वालों ने स्कॉर्पियो की मांग कर दी. जाहिर है, उनका परिवार ये मांग पूरी करने में अक्षम था, इसलिए शादी टूट गई.
इस घटना के कुछ ही दिन बाद एक अन्य संस्था के जरिए उन्हें भैय्यूजी महाराज का सोशल मीडिया मैनेजमेंट देखने का काम मिला. करीब आठ-दस लोगों की टीम के साथ उन्होंने ये नई जॉब ज्वॉइन कर ली. हालांकि वो काम शुरू कर पातीं इसी दौरान भैय्यूजी महाराज पर अटैक हो गया और वो उसमें गंभीर रूप से घायल हो गए. आयुषी उनके घर जाती रहीं. भैय्यूजी महाराज की मां और बहन मधुमती से उनकी नजदीकी बढ़ी.
कुछ लोग कहते हैं कि भैय्यूजी महाराज को चोटें आई थीं और आयुषी उनकी मसाज करती थीं. इसी कारण जब भैय्यूजी महाराज के साथ शादी के बाद जब वो चर्चा में आईं तो यही कहा गया कि वो भैय्यूजी महाराज की फिजियोथैरेपिस्ट थीं. खैर, कुछ ही महीनों में उनकी भैय्यूजी से नजदीकी बढ़ी और जनवरी में सांगोला में उनकी रजिस्टर्ड मैरिज भैय्यूजी महाराज से हो गई.
इस शादी को लेकर यह बयान जारी हुआ था कि बहन मधुमती के भारी दबाव के चलते ये शादी हुई थी, क्योंकि उनकी मां और बेटी कुहू की देख-रेख के लिए घर में जिम्मेदार औरत की जरूरत थी. जिस वक्त आयुषी की शादी हुई, उनकी उम्र 25 साल थी. उम्र में अपने से इतने बड़े शख्स के साथ शादी के लिए वे कैसे राजी हुईं, ये तो वही बता सकती हैं.
हो सकता है कि भैय्यूजी महाराज के आभामंडल और उनके सेलिब्रिटी वाली जिंदगी से वे आकर्षित हो गई हों. खैर, इसे लेकर मधुमती कहती हैं कि ये बात सच है कि मैंने अपने भाई से दूसरी शादी करने के लिए कहा था, लेकिन वो आयुषी से ही शादी करें, ऐसा मैंने नहीं कहा था. बाद में अप्रैल में दुनिया को दिखाने के लिए दोबारा शादी हुई. कुछ ही समय बाद उनकी एक बेटी हुई, जिसका नाम धारा है. वो जन्म से विकृती का शिकार है और हाल ही में उसकी मुंबई में सर्जरी हुई है.
विनायक को ही पता है प्रॉपर्टी का सारा हिसाब-किताब
आश्रम के आर्थिक व्यवहार संजय यादव संभालते थे और भैय्यूजी महाराज के घर और निजी जीवन के आर्थिक मामले विनायक संभालता था. शायद इसीलिए वे विनायक पर अटूट भरोसा करके उसके नाम चिट्ठी छोड़ गए थे. विनायक को इस बात की सारी जानकारी है कि भैय्यूजी महाराज की प्रॉपर्टी कहां-कहां है या कितना पैसा और ज्वैलरी आदि है. भैय्यूजी की बहन मधुमती कहती हैं कि केवल विनायक को ही सारे हिसाब-किताब, प्रॉपर्टी आदि की जानकारी है.
हमने कई बार कोशिश की उससे ये सारी बातें पूछें, लेकिन वो कुछ बताना तो दूर, बात करने तक के लिए तैयार नहीं है. मैं उसे फोन कर-करके थक गई हूं और अब तो मैंने उसे फोन करना ही बंद कर दिया है. पुलिस ने इस मामले को न केवल ठंडे बस्ते में डाल दिया है, बल्कि केस बंद करने की तैयारी भी कर ली है. मधुमती का यह भी कहना है कि पुलिस की जांच से वो संतुष्ट नहीं हैं और उन्होंने आयुषी से इस बारे में चर्चा की है कि वो इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग करें.
आख़िर पुलिस क्यों पीछे हट रही है
इतने बड़े आदमी द्वारा इस तरह मौत को गले लगाने के पीछे क्या कारण और स्थितियां रहीं इसकी गहरी छानबीन करने के बजाए पुलिस ने इसे पारिवारिक झगड़ा करार देकर केस ही बंद कर दिया. भैय्यूजी महाराज के सुसाइड के बाद जिन 27 लोगों के बयान दर्ज हुए थे, उनके अलावा किसी अन्य से बात करना तो दूर पुलिस ने सत्यता जांचने के लिए दोबारा उन सबका ही बयान लेना जरूरी नहीं समझा. इतना ही नहीं, पुलिस का बयान लेने का तरीका भी उसे संदेह के घेरे में लाता है. पुलिस ने सभी लोगों के बयान थाने में न लेकर भैय्यूजी महाराज के घर और आश्रम में ही लिए. अब ऐसे में उनसे सच उगलवाने के लिए पुलिस ने कितनी सख्ती बरती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
कई सवाल हैं, जिनका जवाब जरूरी है. क्या पुलिस को उन लोगों के बयान लेते हुए सख्ती नहीं बरतनी चाहिए थी? ऐसे लोग जो भैय्यूजी महाराज के बहुत नजदीक थे, वो अब आश्रम से कटे हुए क्यों हैं? भैय्यूजी महाराज के सुसाइड के पीछे कहीं अन्य कारण या किसी की साजिश तो नहीं है, जिसने उन्हें ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर किया हो? उनके जाने के बाद प्रॉपर्टी, कीमती चीजें, कारें, कैश आदि का क्या हुआ? और सबसे बड़ा सवाल कि यदि उन्हें मरना ही था तो क्या वे एक घंटा रूककर अपनी बेटी कुहू से मिलने के बाद खुद को गोली नहीं मार सकते थे, जिसके आने का इंतजार वे कई घंटो से कर रहे थे?
खैर, अब भैय्यूजी महाराज तो हमारे बीच नहीं रहे लेकिन अब क्या उनकी आत्मा ये देखकर तड़पती न होगी कि उनकी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और वो हजारों लोग, जिनकी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया था, वो इस तरह बेसहारा हो जाएंगे. इस घटना को दबाने के लिए कौन जिम्मेदार है?
क्या पुलिस को ये मामला खत्म करने के लिए राजनैतिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है या कोई अन्य कारण है? ये बातें दिल को कचोटती हैं और जबाव चाहती हैं.यह कहा जा सकता है कि भैय्यूजी महाराज की आत्महत्या या हत्या की कहानी और उनके सपनों को दफन करने वाले लोगों की हिस्सेदारी का अगला अध्याय शायद अब कभी न लिखा जाए.
कुहू की स्थिति नज़रबंद क़ैदी की तरह हो गई है
गुरुजी के जाने के बाद सबसे चिंताजनक स्थिति है, उनकी बेटी कुहू की, जो हाल ही में बालिग हुई है और भैय्यूजी के समर्थक उनकी जगह पर उसे देखना चाहते हैं. ताकि वो उनके सपनों को पूरा कर सके. इसके लिए उसके बालिग होते ही ट्रस्ट का मेंबर बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की बात भी जोर-शोर से की गई. लेकिन भैय्यूजी महाराज के सपनों को पूरा करना या उनके प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाना तो दूर, अभी तो कुहू का खुद का भविष्य ही साफ नजर नहीं आ रहा.
भैय्यूजी महाराज के जाने के बाद कुहू दो-तीन बार ही इंदौर आई है. पुणे में रहते हुए भी उसका संपर्क किसी से नहीं है. ऐसा लगता है भैय्यूजी महाराज के साथ-साथ उनकी निशानी, उनकी प्यारी बेटी को भी लोग भूल गए हैं. उसकी सगी बुआ के पास उसका मोबाइल नंबर तक नहीं है. समर्थकों ने उसकी खोज-खबर लेने की कोई कोशिश नहीं की है.
इसका परिणाम यह हुआ कि कुहू पुणे में कुछ ऐसे लोगों से घिर गई है, जिन्होंने उसपर अघोषित तौर पर अपना हक जमा लिया है. उनकी इजाजत के बिना न तो कुहू किसी से मिल सकती है और न बात कर सकती है. उसकी स्थिति नजरबंद कैदी की तरह है. आलम यह है कि वे लोग कुहू को किसी बात की जानकारी तक नहीं लगने दे रहे हैं कि उसके पिता द्वारा स्थापित आश्रम और ट्रस्ट में क्या चल रहा है, उनकी संपत्ति को कौन कैसे लूट रहा है, या पुलिस की जांच में कोई तरक्की हुई या नहीं.
कुहू को इस तरह बेखबर रखने और किसी से न मिलने देने में बड़ा रोल उसकी वकील चारुशीला शाह का है. उन्होंने इसे लेकर कुहू को भ्रम में रखा है कि पुलिस इन्वेस्टिगेशन ठीक चल रही है और वे कोर्ट में केस जीत जाएंगी. अब किसके खिलाफ ये कौन सा केस लड़ रहे हैं या लड़ने वाले हैं, ये बात कोई नहीं जानता. लेकिन इस वकील की कुहू पर दादागिरी ऐसी है कि बिना उनकी अनुमति के कुहू न तो किसी से बात करती है और ना मिलती है. गुरुजी के कुछ समर्थकों ने कुहू से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्हें भी निराशा ही हाथ लगी. अब सवाल यह है कि कुहू को इस तरह अंधेरे में रखने और उसे उसके शुभचिंतकों से दूर रखने का क्या कारण है?