आज भारत के पुनर्जागरण के पुरोधाओं में से एक राजा राम मोहन राय का 189 वा स्मृति दिवस, और कल 26 सितंबर पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की 202 वीं जयंती के अवसर पर !
1757 प्लासी की लड़ाई के बाद ! बंगाल में अंग्रेजी राज पूरी तरह से कायम होने के बाद ! भारत के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों ने अपने पैर पसारने की शुरुआत की ! और सौ साल पहले 1857 की लड़ाई के बाद 190 साल एकछत्र राज किया ! इसी दौरान राजा राम मोहन राय, 22 मई 1772, महात्मा ज्योतिबा फुले 1827, और पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर 26 सितंबर 1820 में पैदा हुए ! जिन्होने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के बाद, सामाजिक सुधार के कामों में अपना संपूर्ण जीवन खपा दिया !
उसमें राजा राम मोहन राय, प्लासी की लड़ाई के पंद्रह साल बाद पैदा हुए ! और सबसे हैरानी की बात राम मोहन राय के पूर्वज मुर्शिदाबाद के नवाबों की सेवा में थे ! महात्मा ज्योतिबा फुले 1857 के स्वातंत्र्य युद्ध के, तीस साल पहले पैदा हुए हैं ! और पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी 37 साल पहले ! राजा राम मोहन राय 61 साल की जिंदगी जिए ! ज्योतिबा फुले 63 साल की ! और पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर 69 साल !
इस दुनिया में रहते हुए, तीनों महानुभावों ने अपने शुरुआती जीवन के पंद्रह – बीस साल छोड़ दें, तो हिंदु धर्म में सदियों से प्रचलित, सडांध के खिलाफ ! जिसमें सति प्रथा, महिलाओं के शोषण, और जाति-प्रथा के खिलाफ, तीनों ने अपनी जिंदगी खफा दी है ! अन्यथा आज भी महीलाओ को चिता में जलाया गया होता ! और चुल्हा, चौका, और बच्चों को जन्म देने के अलावा, उनकी जिंदगी नही रही होती ! इसलिये भले ही दो सौ से अधिक सालों पस्चात भी ! उन्हें याद करना हमारा कर्तव्य है ! सिर्फ महिलाओं का नही ! हम पुरुषों का विशेष कर्तव्य है !
जिसमें से, आज राजा राम मोहन राय का 189 वा स्मृति दिवस है ! वह अप्रैल 1831 में इंग्लैंड गए थे ! और 27 सितंबर 1833 के दिन लंडन के करीब स्टॅपल्टन हील में, इस दुनिया से चल बसे !
इतिहास के एक सिरे पर, भारत का अतिविशाल भूतकाल ! और अमर्याद भविष्यकाल ! के बीच में राजा राम मोहन राय एक जिंदा सेतू के जैसे खडे थे ! एक तरफ सडी गली पुरातन जाति-व्यवस्था, अंधश्रध्दा, सरंजामशाही, रूढी परंपरा के अगणित पहाडो के बीच में ! विकास की पारंपरिक कल्पना, अनेकेश्वरवाद, तो दुसरी तरफ आधुनिक मानवतावाद, विज्ञानाभिमुखता, लोकतंत्र और एकेश्वरवाद को ! आगे बढ़ाने के इतिहासदत्त कार्य राजा राम मोहन राय ने किया है ! और इस कामके लिए, आजसे दो सौ साल पहले ! शुरूआत करने की एकला चलो की कृती ! करने के लिए तत्कालीन परंपरावादी, कर्मठ, कुपमंडुक लोगों के, प्रखर विरोधको सहन करते हुए ! देखकर आज भी मेरे शरीर पर रोंगटे खड़े हो रहे हैं ! 1818 में सति की प्रथा के खिलाफ पहला लेख लिखने के बाद ! तत्कालीन ब्रिटिश शासन का ध्यान आकर्षित किया है ! और पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड बेंटिक ने 1828 में सती की प्रथा के खिलाफ कानून बनाया ! और उसपर पाबंदी लगा दी ! यह राजा राम मोहन राय के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है ! और दुसरी उपलब्धि एकेश्वरवाद के लिए ब्रम्हो समाज की स्थापना 20 अगस्त 1820 के दिन 48 चितपूर रोड कलकत्ता इस जगह पर राजा राम मोहन राय ने ब्रम्हो समाज की स्थापना की है !
ब्रम्हो समाज के उद्देश्य और भुमिका खुद राजा राम मोहन राय ने 5 जनवरी 1830 को तैयार किया है ” विश्वस्त मंडल को यह जगह, इमारत, परिसर इसमें का सामान सब कुछ लोगों के रहने तथा आमोद – प्रमोद के कार्यक्रम हेतू किसी भी तरह के भेद-भाव के बीना सभी को जिनका निर्गुण निराकार शाश्वत अनादी अनंत ऐसे इश्वर पर जिनका विश्वास है ऐसे किसी भी धर्म के लोग इकट्ठे होकर यहां अपने कार्यक्रम कर सकते हैं ! ऐसा राजा राम मोहन राय ने आग्रह किया है ! और आगे जाकर उन्होंने अपने एक मित्र को कहा कि मेरी मृत्यु के बाद हिंदुओ ने मेरे पार्थिव शरीर पर अपना हक जताया तो मुस्लिम या ख्रिश्चन धर्म के लोगों ने तो मुझे बहुत खुशी होगी क्योंकि मैं खुद को किसी भी धर्म का नहीं मानता हूँ ! मैं खुद विश्वधर्म का हिमायती हूँ ! यह देखकर एम जी रानडे ने कहा कि इस दस्तावेजों से अपने को असली अध्यात्मिकता तथा गहरी धार्मिकता और वैश्विक सहनशीलता का परिचय हो रहा है ! और इसका महत्व शायद कुछ शताब्दियों के बाद लोगों की समझ में आयेगा !
अठारहवीं शताब्दी के अंत में राजा राम मोहन राय और अठारहवीं शताब्दी के शुरू में महात्मा ज्योतिबा फुले और पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के समाजसुधारकोकी भुमिकाओ के उपर भी, कुछ लोग उंगलियाँ उठाने वाले हैं ! हिंदुत्ववादीयो के अलावा, अपने आप को सबसे अधिक क्रांतिकारी बदलाव के हिमायती कहने वाले ! लोगों का आरोप है “कि अंग्रेजों के खिलाफ इन लोगों ने क्या किया ?” बिल्कुल वाजिब सवाल है ! हालांकि राजा राम मोहन राय को राजा का खिताब, तत्कालीन दिल्ली के बादशाह अकबर द्वितीय ने ही दिया था ! और वह जिवन आखिर में अप्रेल 1930 में इंग्लैंड उनके प्रतिनिधियों की हैसियत से ही गयें थे ! और उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने ! उनकी तनख्वाह बढ़ाने की अर्जी दाखिल करने का काम किया था ! और उनके उस प्रयास से ! अकबर द्वितीय का मानदेय सालाना तीन लाख रुपये ! ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बढ़ाने की बात भी जगजाहिर है ! और जैसा कि मैंने पहले ही लिखा है कि वह उस परिवार में पैदा हुए थे जो कि मुर्शिदाबाद के नवाब के नौकरी में थे ! लेकिन कालसापेक्षता का एक सिध्दांत है ! और उसके अनुसार ही इंसानों के कामकाज का मुल्यांकन करना चाहिए !
जैसा कि महात्मा गांधी के उपर आरोप है कि ! “उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के निग्रो के सवाल पर क्यों ध्यान नहीं दिया !” जिस आदमी ने अपनी बॅरिस्टर की अच्छी खासी प्रॅक्टीस छोड़कर दक्षिण अफ्रीका में भारत से मजदूरों को ले जाकर उन्हें उनके मुलभूत, नागरिकों के अधिकारों से वंचित करने की कृती का ! विरोधी काम करने वाले गाँधी ! को खुद दक्षिण अफ्रीका के निग्रो के नेता नेल्सन मंडेला और अमेरिका के मार्टिन ल्युथर किंग जूनिअर उन्हें अपने आंदोलन के आदर्श के रूप में देखते हैं ! और हमारे अपने ही देश के कुछ लोगों को गांधी ने यह क्यों किया? वह क्यों नहीं किया ? जैसी बाल कि खाल निकालने के अलावा, और क्या योगदान दिया है ? फिर उनकी शारीरिक हत्या करने वाले लोगों में, और आप में क्या फर्क रह जाता है ?
वहीं बात महात्मा ज्योतिबा फुले 1857 के युद्ध के समय गिनकर तीस साल की उम्र के थे ! और उन्होंने 1957 की, लडाई लडने वाले पुणे के पेशवा की ! 1818 पेशवाई समाप्त होने की, भीमा – कोरेगांव की लड़ाई में, अंग्रेजों की जित होने पर खुशी जाहिर की है ! और डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने तो, उसे महार रेजिमेंट के शौर्य दिवस के रूप मे मनाने की शुरुआत की है ! क्योंकि पुणे के पेशवाई में दलित, महिला एवं पिछड़ी जातियों के लोगों के उपर, जो अत्याचार शुरू थे ! उनसे मुक्ति के रूप में अंग्रेजों के राज का समर्थन किया है ! और कम – अधिक प्रमाणमे हजारों सालों से, भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों के आक्रमण को ! तथाकथित हिंदु कट्टरपंथियों के तरफसे चलाए जा रही ! सडी – गली छुआछूत तथा जाति – प्रथा के कारण ! बहुसंख्यक आबादी को लगता होगा कि! “यह वर्तमान सत्ताधारियों के बनिस्बत ! नया जो भी कोई आक्रमणकारी होगा, शायद बेहतर होगा !
इस आशा में मुकदर्शक बने होंगे !” और यह बात कुछ हदतक मुस्लिम और अंग्रेजी राज में सही भी है ! जिसके बारे मे स्वामी विवेकानंद ने भी भारत में इस्लाम और ख्रिश्चन धर्म के आगमन के कारणों के बारे में कहा है कि ” हमारे समाज में चली आ रही उचनिच की,और छुआछूत जैसे, जाति – प्रथा के कारण हिंदू धर्म के कुछ लोगों ने मुक्ति के रूप में इन धर्मों का स्विकार किया है !” और इसीलिये राजा राम मोहन राय, पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर और महात्मा फुले को देखते हुए ! मै समझ सकता हूँ कि उन्होंने कौन सी बात को प्राथमिकता दी है ! हालांकि इन सभी महानुभावों ने अपने जीवनकाल में कुछ तो कृति कार्य किए हैं ! लेकिन जो अनाम मूकदर्शक, या कुछ मिरजाफर जैसे बेईमानी करने वाले, लोगों के बारे में आलोचकों की क्या राय है ? आज से तीन सौ, या दो सौ साल पहले, इन लोगों ने अपनी व्यक्तिगत जिंदगी जीने के बजाय ! समाज सुधार के कारण, आज स्त्री शिक्षा से लेकर उनके सति जाने की बात रोकने के लिए इन्हें याद करे ! या इन्होंने अंग्रेजी राज का समर्थन किया ! यह बोलते – लिखने की बात कहाँ तक उचित है ?
सर सैयद अहमद ने, (जन्म 17 अक्तुबर 1817 – मृत्यु 27 मार्च 1898 ) अपनी आंखों से 1857 का युद्ध अपने उम्र के चालीस साल में ! देखा था ! और उसके बाद अंग्रेजों के मुसलमानों के खिलाफ जुल्मों को भी ! और उन्हें लगा कि इससे अंग्रेज संपूर्ण रूप से मुसलमानों का खात्मा कर सकते है ! तो वह खुद अंग्रेजी राज में जज की नौकरी में थे ! और साथ ही अलिगढ स्कूल की स्थापना 1875 में करके, अपनी कौम को आधुनिक शिक्षा तथा वैज्ञानिकता के लिए ! विशेष रूप से कोशिश किऐ ! और कुछ हदतक उन्हें अपने उद्देश्यों में सफलता हासिल हुई है ! आज वही अलिगढ स्कूल एशिया में बेहतरीन शिक्षा का केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है ! उस समय के कट्टरपंथी मौलवियों ने हमेशा सर सैयद अहमद को अंग्रेजों के दलाल के रूप में देखते हुए उनका विरोध किया है !
क्या राजा राम मोहन राय या पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महात्मा फुले, महात्मा गांधी को ! हिंदुत्ववादी कट्टरपंथी लोगों की आलोचना नहीं सहनी पडी ? यहां तक कि एक कट्टरपंथी ने 30 जनवरी 1948 के दिन ! महात्मा गाँधी जी की शारीरिक हत्या के बाद ! अब वैचारिक हत्या का प्रयास जारी है ! और हम उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के निग्रो के लिए क्या किया ? यही सवाल करते रहेंगे ? सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया इसी तरह से चलते रहती है ! यह तारतम्यता की आवश्यकता है ! आज राजा राम मोहन राय कि स्मृति और कल 26 सितंबर पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जयंती दोनों बंगाल के पुनर्जागरण के पुरोधाओं की स्मृति को विनम्र अभिवादन
डॉ सुरेश खैरनार 27, सितंबर 2022, नागपुर