संघ के संस्थापकों ने भारत में हिंदूओ के संघठन बनाने के लिए, 1925 मे संघ की स्थापना की है ! और मुसलमानों को शत्रु क्रमांक एक मानकर, मुसलमान शासकों के समय के इतिहास को तोडमरोडकर, उन्होंने हिंदूओ के साथ अत्याचार किए, मंदिरों को ध्वस्त कर, मस्जिदों का निर्माण किया, तथा एक हाथ में तलवार, और दुसरे हाथ में कुरान लेकर, भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया ! जैसी बातो को बढाचढाकर, बोल कर ही संघ ने अपने संघठन को विस्तार देने की कोशिश की है !


लेकिन उसी इस्लाम धर्म के अंतर्गत अठारहवीं शताब्दी के शुरू में, ‘मुहम्मद – इब्न- अब्द – अल- वहाब’ नामके सुन्नी मौलाना ने (1703-1792) इस्लाम का शुध्दिकरण करने के नाम पर , सऊदी अरब में एक आंदोलन चलाया था ! जिसे वहाबी या सलाफी भी बोला जाता है ! आजकल भारत में बिल्कुल उसी कठमुल्लापन के रास्ते से संघ का सफर जारी है ! और नई शताब्दी में सत्ता का मद चढने की वजह से ! दिनदूना रात चौगुनी होकर दलित, आदिवासी, ओबीसी समाज मे भी ! तथाकथित हिंदूत्ववादी प्रतिको का इस्तेमाल करते हुए ! और एक दूसरे से लडाते हुए ! उन्होंने अपनी गति और तेज कर दी है !
पिछले रविवार 24 दिसंबर के दिन, रांची में जनजातीय सुरक्षा मंच के बैनर तले ( जो कि वनवासी कल्याण आश्रम और उसके मातृ संघठन आर. एस. एस. का ही अंग है ! ) संघ समुद्र के भीतर रहने वाले ऑक्टोपस के जैसे शेकडो अलग – अलग नामों से, समाज के हरेक क्षेत्र में, अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है ! यह ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ , और उसके द्वारा रांची में निकाली गई रैली की मुख्य मांग थी ! कि जिन आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन किया है ! उनके नाम आरक्षण की फेहरिश्त से हटाएं जाए !
संघ या उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा को अच्छी तरह मालूम है कि, (1893) मे शिकागो के विश्व धर्म सभा में शामिल होने के लिए, जाने के पहले, स्वामी विवेकानंद ने, अपने दक्षिणी भारत की यात्रा में, साफ – साफ कहा है ! कि “हमारे देश के विभिन्न समुदायों के लोगों ने, इस्लाम या ख्रिस्चन धर्म का स्विकार, किसी भी प्रकार के दबाव या जोर-जबरदस्ती, या तलवार – बंदूक के भय से नहीं स्वीकार किया ! उन्हें हमारे हिंदू धर्म में बराबर का दर्जा नही दिया जा रहा है ! और उनके साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है ! इसलिए उन्होंने धर्मपरिवर्तन किया है ! इसलिए सबसे पहले अपने धर्म में घुसी हुई उचनिच की भावना का त्याग करते हुए ! हमारे अपने ही धर्म के निम्नजाति के लोगों के साथ बराबरी का व्यवहार करना चाहिए ! तभी धर्मपरिवर्तन रुकेगा ! ” विवेकानंद को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल करते वक्त यह सब जानबूझकर भूलने का नाटक करते हैं !


और यह बात संघ की स्थापना के 32 साल पहले बोली गई है ! उसके बाद संघ की विधिवत स्थापना 1925 के दशहरे के दिन की गई है ! और आने वाले 2025 के दशहरे के दिन, सौ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं ! लेकिन इन सौ वर्ष का संघ का लेखा-जोखा देखा जाय, तो हमारे हिंदू धर्म में चल रही, उचनिच की परंपरा को मिटाने के लिए, संघ ने कौन सा प्रयास किया है ? उल्टा सामाजिक समरसता मंच मतलब आप जिस भी जाति में हो बने रहिए ! क्योंकि संघ ‘कर्मविपाक’ के सिद्धांत के “कर्मणा जायते जंतुःकर्मणैव विलीयते! सुख दुःखं भय क्षेम कर्मणैवा भिद्दते!!” अनुसार पालन करता है ! और समरस हो जाइए ! (क्योंकि आपके पूर्वजन्म के पापों की वजह से आप इस जन्म में निच जाती में पैदा हुए हैं ! अभी उसका प्रायश्चित किजिए ! तो शायद अगले जन्म में आप उच्च जाति में जन्म ले सकते ! जिसे ‘कर्मविपाक’ का सिद्धांत कहा जाता है !


इसिलिये संघ के लोग हमेशा यह तर्क देते हैं, कि हम शाखाओं में किसी की भी, जाती नही पुछते है ! इस तरह के हिंदू धर्म के पाखंड की वजह से ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने 13 अक्तुबर 1935 को नासिक जिले के, येवला नाम की जगह पर, आयोजित सभा में घोषित किया कि “मैं हिन्दू धर्म पैदा हुआ हूँ, लेकिन हिंदू धर्म में मरुंगा नही !” और इस घोषणा के इक्कीस साल के बाद ! और अपने मृत्यु के 53 दिन पहले ! नागपुर के दिक्षाभूमी पर अपने लाखों अनुयायियों के साथ, 14 अक्तुबर 1956 के दिन, बौद्ध धर्म का स्विकार किया है ! क्या इस धर्मांतरण की घटना से संघ के लोगो को, हिंदू धर्म में चल रही, उचनिच की परंपरा को, खत्म करने के लिए कोई भी प्रेरणा नही मिली ? जबकि संघ की स्थापना इसी नागपुर में 31 साल पहले हो चुकी थी ! उल्टा समरसता मंच जैसे जातियों को जैसे के वैसे ही रहते हुए समरस होने की चालाकी करना जारी है !


वैसे ही आदिवासीयो को लेकर भी संघठन बनाने की चालाकी की है ! वह सिर्फ वनों में रहने वाले वनवासी है ! क्योंकि आदिवासी कहने से संघ को भय है ! कि हम ब्राम्हण जिन्हें भारत के बाहर से आए हैं ! ऐसा प्रमाणित हो सकता है ! इसलिए मुल निवासी आदिवासियों को आदिवासी न बोलते हुए ! उन्होंने वनवासी शब्द का इस्तेमाल किया ! और उसमे भी वह निसर्गपूजक, किसी भी धर्म के नही रहते हुए ? उन्हे जबरदस्ती से हिंदू है ! यह पिछले 72 सालों से, वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से भटकाने की कोशिश की जा रही है ! हालांकि इस रैली में एक वक्ता ने कहा कि “वनवासी किसी धर्म विशेष के नही है ! वह तो निसर्ग पूजक होने की वजह से, उनमें से किसी न किसी अन्य धर्म को, स्वीकार करने वाले लोगों को, आरक्षण की फेहरिश्त से बाहर करना चाहिए ! फिर तो वनवासी कल्याण आश्रम जिन्हें हिंदू धर्म के अनुयायी मानते हैं ! वह और डाक्टर बाबासाहब आंबेडकर की प्रेरणा से जिन दलितों ने बौद्ध धर्म का स्विकार किया है ! उन्हें भी इस फेहरिश्त से हटाने का मुद्दा आ सकता है ! संघ का असली उद्देश्य, मुस्लिम और ख्रिस्ती धर्म के खिलाफ, पिछले सौ वर्षों से लगातार यह दोनों धर्म भारत के बाहर से आए हैं ! इसलिए उनका पुण्यभूमि और पितृभूमि जो सावरकर ने अपने 1917 में ‘हिंदूत्व’ नाम की किताब में लिखा है ! और बाद में गोलवलकर ने भी अपने ‘बंच अॉफ थॉट’ और ‘वुई अॉर अवर नेशनहूड डिफांइड’ में भी इस तरह का तर्क दिया है !


यह सब, देखकर लगता है कि, भारतमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अठारहवीं सदी के शुरू में (1803 – 1892 ) सौदी अरेबिया मे शुध्द इस्लाम के नाम पर जो मुहीम चलाई गई थी ! शायद गत सौ वर्ष से भारत में भी यही अनुकरण करते हुए, सबसे पहले 1925 में संघ की स्थापना ! और पहले स्थापना के समय उद्धेश्य था, कि हिंदू धर्म के लोगों का संघठन ! लेकिन 1925 – 2023 तक के 98 सालों के सफर में, संघ की गतिविधियों का आकलन करने से लगता है ! कि वह बिल्कुल वहाबी इस्लामी आंदोलन, जो अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत से उसके अंत तक चला था ! और फिर बीसवीं शताब्दी में वह पुनः नए रूप में पुनर्जीवित होकर कही मुस्लिम ब्रदरहुड, तो कहीं जमाते इस्लामी, तो कहीं तबलिगि जमात तो कहीं अल कायदा, इसीस, बोकोहराम, लष्करे तैयबा, जैसे विभिन्न नामों से तथाकथित शुध्द इस्लाम धर्म को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं !


(1703 – 1792 ) मुहम्मद बीन अब्द अल वहाबी ने तत्कालीन सौदी नेता मोहम्मद बीन सौद के साथ 1744 में एक राजनीतिक और धार्मिक सौदा किया था ! जिसमें तय किया गया, कि राजनीतिक गतिविधियों में वहाबी कुछ हस्तक्षेप नहीं करेंगे ! और सौदी नेता मोहम्मद बीन सौद धार्मिक मसलो में हस्तक्षेप नहीं करेंगे ! और लगभग डेढ़ सौ वर्ष तक सौदी अरेबिया मे वहाबीयो ने मुस्लिम समाज में फैली, सुफी उदारपंथी परंपरा तथा अन्य परंपराओं का इस्लाम धर्म के शुद्धिकरण के नाम पर जमकर विरोध किया है ! यहां तक कि मक्का मदिना के परिसर में पांचसौ से अधिक हजरत से संबंधित पूजनीय स्थलों पर बुलडोजर चला कर उन्हें नष्ट करने का प्रयास किया है !


बिल्कुल वैसे ही, बनारस में पिछले कई दिनों से शेकडो की संख्या में पुराने मंदीरो को बुलडोजर से ढहाने के समय, मुझे मक्का – मदिना के पुराने स्थलों को ढहाने के प्रसंग में काफी साम्य नजर आ रहा है ! वहां भी इस कारवाई के खिलाफ कोई विशेष विरोध, इस्लाम धर्म के अनुयायी के द्वारा होने की बात नहीं दिखाई दी है ! और भारत के सबसे पुराने धार्मिक स्थल, काशी या बनारस में जो शेकडो मंदिर तोडकर, काशी कॅरिडॉर का निर्माण कार्य किया गया ! उस समय भी कुछ चंद लोगों की सोशल मीडिया पर की पोस्ट छोड़कर ! लोगो के तरफ से कोई भी प्रतिकार किया गया है ! ऐसा नहीं दिखाई दिया है !
तेल की खोज की वजह से पुनः सौदी अरेबिक क्षेत्र में, युरोपीय और अमेरिका के तरफ से, पिछले सौ वर्षों से अधिक समय से ! संपूर्ण अरब भूभाग में, जबरदस्त आर्थिक गतिविधियों के वजह से ! और अरबों के जीवन शैली में परिवर्तन होने की वजह से ! पुनः वहाबीयो के आंदोलन ने जोर पकडा है ! लगभग भारत में भी 1925 में शुरू किया गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू में भले ही सिर्फ सवर्ण हिंदुओं को संघटित करने की बात करते हुए शुरुआत की थी ! लेकिन 1940 में संघ के प्रथम प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यु के पश्चात !

1973 तक, उस पदपर बने, संघ प्रमुख श्री. माधव सदाशिव गोलवलकर ने अपने 33 सालों के कार्यकाल जो सबसे लंबे समय का होने की वजह से ! उनके ही कार्यकाल में वर्तमान संघ का उग्रवादी हिंदूत्ववादी स्वरूप देने की शुरुआत हुई हैं ! और आए दिन कट्टरपंथी हिंदूत्ववादी लगातार कुछ न कुछ खुराफात किए ही जा रहे हैं !
24 दिसंबर 2023 के डेक्कन हेरॉल्ड नामके अंग्रेजी अखबार में यह खबर छपी है ! कि वनवासी कल्याण आश्रम, की ईकाई, इस रैली के लिए ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ (आदिवासियों को संघ मुलनिवासी न मानते हुए, उन्होंने उनके भीतर पैठ बनाने के लिए वनवासी कल्याण आश्रम नाम से आजसे 72 साल पहले 1952 में रमाकांत उर्फ बालासाहब देशपांडे नाम के महाराष्ट्रियन ब्राम्हण ने इस संघठन की स्थापना की है ! ) उरांव जनजाति के छ बच्चों को दाखिल करने से, इस आश्रम की शुरुआत, 26 दिसंबर 1952 के दिन (71 साल हो चुके है !) वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना, छत्तीसगढ़ के जशपुरनगर नाम की जगह पर की गई है ! जशपुरनगर छत्तीसगढ़ और झारखंड के सिमापर बसा हुआ आदिवासि बहुल इलाके के, सिंहदेव नाम के राजपुत राजा की राजधानी थी ! और उन्होंने ही इस पहले छात्रावास के लिए अपनी खुद की इमारत बालासाहब देशपांडे को दान कर दी है ! जो आज अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का मुख्यालय है !
यह खबर आदिवासियों के ही तरफसे जिन आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन किया है ! उनके नाम आरक्षण की फेहरिश्त से हटाने की मांग करने वाली यह खबर है ! इसलिए उन्होंने जनजाति सुरक्षा मंच के बॅनर का इस्तेमाल किया है ! और जानबूझकर ख्रिसमस के पहले दिन को इस मांग को लेकर रांची के ‘मोराबादी’ मैदान पर हजारों आदिवासी समुदाय के लोग अपने पारंपरिक वेशभूषा में ! और हाथों में तिरकमान, भाले, तलवार और अन्य पारंपरिक हथियारों के साथ यह रैली निकाली गई ! रैली निकालने वाले लोगों का कहना है कि 1899 के 24 दिसंबर को बिरसा मुंडा ने उलगुलान (क्रांति) की मांग करते हुए रैली निकाली थी ! इसलिए हमने यह दिन तय किया !


‘क्रांति और संघ की ईकाई’ वनवासी कल्याण आश्रम ? 71 सालो में भारत की जनसंख्या में, नौ प्रतिशत की आबादी होने के बावजूद, आदिवासियों को विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण की वजह से 75% आबादी को विस्थापन का शिकार होना पडा है ! लेकिन इस ईकाई ने नहीं किसी परियोजना का विरोध किया ! और नही उससे हुए विस्थापित आदिवासियों का कोई आंदोलन ! लेकिन एक तरफ उन्हें निसर्ग पूजक किसी भी धर्म के नही है, बोलते हुए ! उन्हे हिंदू धर्म के हरावल दस्ते के रूप में इस्तेमाल गुजरात से लेकर ओरीसा, मध्य प्रदेश, और सबसे अधिक मात्रा में उत्तर पूर्वी प्रदेशों में वर्तमान समय में मणिपुर में गृहयुद्ध जैसा माहौल बना दिया है !
यह आदिवासियों के कल्याण के नामपर , वनवासी कल्याण आश्रम के आडमे, छ्द्म हिंदुत्व का घृणास्पद खेल जारी है ? यह कौन-सा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा रहा है ? और आए दिन हर तीन मिनट में एक दलित महिला के उपर अत्याचार की घटनाएं हो रही है ! किसी एक भी घटना को लेकर संघ के समरसता मंच के तरफ से कोई भी पहल कभी की गई है ?
70 के दशक में महाराष्ट्र में राष्ट्र सेवा दल की तरफसे ‘एक गांव एक कुंआ’ का आंदोलन चलाया गया था ! हर गांव में दलित तो को पिने योग्य पानी के लिए सवर्ण जातियों की मेहरबानी पर पानी नसीब होता है ! इसलिए डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने 1937 में महाड के तालाब में दलितों को भी पानी भरने की इजाजत मिलनी चाहिए, इसलिए महाड के तालाब का आंदोलन किया था ! और यही सनातनी संघी मानसिकता के लोगों ने उसका विरोध किया था !

उसके बाद संघ ने अपनी इकाई समरसता मंच की स्थापना 1983 मे की है ! तो आजतक इस मंच के द्वारा दलितों की मुख्य समस्या, जो कि छुआछूत तथा गैरबराबरी के जैसे, अमानवीय प्रथाओं को लेकर, कोई पहल करने का प्रयास का एकाधा भी उदाहरण संघ बता दे ? उन्होंने महाराष्ट्र के खैरलांजी से लेकर, गुजरात के उना, उत्तर प्रदेश के वुलगढी या सहारनपुर जैसे जगहों पर, कई दलितों के साथ अत्याचार की घटनाएं हुईं ! उन घटनाओं में एक भी जगह जाकर उस घटना का सज्ञान तक लिया नही है !
तो समरसता मंच या वनवासी कल्याण आश्रम नाम देकर दलितों तथा आदिवासी समुदाय की मुल समस्याओं की अनदेखी करना, और आदिवासियों के मुलनिवासी के जगह वनवासी कल्याण आश्रम जैसे पाखंड करने का मतलब क्या है ? सिर्फ उन्हे तुम भी हिंदू हो, और उन्हें बरगलाकर , हिंदूत्ववादी घोर सांप्रदायिक दल को वोट देने के लिए यह सब जारी है ?
इससे संबंधित सिर्फ एक व्यक्तिगत संस्मरण मुझे याद आ रहा है ! 2004 में अॉल इंडिया सेक्युलर फोरम की तरफसे मै, डॉक्टर राम पुनियानी, इरफान इंजिनिअर, अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार दिगंत ओझा और गुजरात में कई वर्षों से अधिक समय से काम कर रहे, फादर सेड्रिक प्रकाश, मिलकर गुजरात के महाराष्ट्र सिमासे सटे हुए, डांग जिले में ! संघ के द्वारा शबरी कुंभ का आयोजन होने के पहले, वहां की स्थिति का जायजा लेने के लिए, हम लोगों ने एक फॅक्ट फाइंडिग कमिटी बनाकर इस क्षेत्र में गए थे !


उस समय डांग की कुल जनसंख्या एक लाख से भी कम थी ! और दो सौ साल के अंग्रेजी राज में, अबतक दो प्रतिशत आदिवासी ख्रिस्चन धर्म के दिखाई दिए ! डांग की नब्बे प्रतिशत भूमि जंगल से ढकी हुई दिखाई दि ! लेकिन प्रस्तावित शबरी कुंभ के लिए, लाखों लोग आएंगे, इसलिए काफी बडी संख्या में पेड़ों की कटाई हो रही थी ! जिसके खिलाफ गुजरात के मानवाधिकार संगठन, शायद पीयूसीएल ने अहमदाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी ! लेकिन हायकोर्ट ने रिजेक्ट कर दी थी !


वर्तमान प्रधानमंत्री, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे ! उन्होंने डांग के कलेक्टर तथा वनविभाग के अधिकारियों को, शबरी कुंभ के लिए, हरसंभव मदद देने की हिदायत दे रखी थी ! इसलिए युध्दस्तर पर तैयारी चल रही थी ! हम लोग शबरी कुंभ के लिए बनाए गए, तैयारी स्थल पर भी गए ! और वहां पर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के परभणी के सुरेश कुलकर्णी नाम के प्रचारक की देखरेख में काम चल रहा था ! हमने कुलकर्णी को पुछा की हिंदू धर्म में शेकडो वर्षों से नासिक, हरिद्वार तथा प्रयागराज के कुंभ सुनें है ! यह चौथा शबरी कुंभ अचानक कहाँ से आ गया ? और इस तरह अचानक हिंदू धर्म में कुंभ का आयोजन करना कहा तक धर्मसंगत है ? तो कुलकर्णी बगले झांकने लगे !


इस सबके पिछे 1991 में बंगाल से आए हुए स्वामी आसिमानंद ( मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस, हैदराबाद की मक्का मस्जिद तथा और अधिक जगहों पर बमब्लास्ट में के प्रमुख आरोपीयो मेसे एक ! ) हम उन्हें ही मिलने के लिए कुंभ के आयोजन के लिए बनाया गया, तैयारी कार्यालय में मुख्य रूप से गए थे ! लेकिन हमें बताया गया कि “वह शबरी ने राम को जिस जगह पर झुठे बेर खिलाएँ थे वहां पर गए हैं !” तो हम लोग वहां पर भी गए ! पर आसिमानंद नही मिला !
यह जगह उस क्षेत्र की सातपुडा पर्वतशृखंला की सब से ऊंची जगह थी ! और वहां पर चढकर, चारो तरफ नजर दौड़ाने से, सिमावर्ति महाराष्ट्र के नासिक, धुलिया – नंदुरबार जिले के काफी बडा हिस्सा दिखाई देता है ! और गुजरात के भी काफी क्षेत्र को देख सकते ! तो उस जगह पर हम लोगों ने राम लक्ष्मण के छोटे आकार के दो सिमेंट या मट्टी के बनी हुई मुर्तियां देखी ! और एक बडा पत्थर था, उसपर राम ने बैठकर शबरी के हाथों झुठे बेर खाएं ! ऐसा लिखा हुआ बोर्ड था ! और यह शबरी के झुठे बेर खाने वाली कहानी के निर्माता, रामकथाकार मुरारीबापु है ! जिन्होंने उस क्षेत्र में अपने रामकथा के कार्यक्रमों के द्वारा यह प्रचार- प्रसार करने का प्रयास किया है ! जैसे अन्य बाबाओं के द्वारा तथाकथित हिंदूत्वका प्रचार- प्रसार करने के लिए, इन में से ज्यादातर बाबा और बाबीओ ने बहुत बडा योगदान दिया है ! यह वास्तव स्विकार करना चाहिए !


वहाँ एक गांव में गुजरात कांग्रेस के विधानसभा के विरोधी पार्टी के नेता ! और आदिवासी विधायक के घर भी गए थे ! तो उनके बैठक के कमरे में, मुरारीबापु का फ्रेम किया हुआ, बहुत बडे आकार का फोटो भी देखा ! और विधायक महोदय ने कहा कि “यह शबरी कुंभ की कल्पना मुरारीबापु के रामकथा की देन है !” और स्वामी आसिमानंद 1991 से इस क्षेत्र में वनवासी कल्याण आश्रम के द्वारा, आदिवासियों को आप लोग शबरी के वंशज हो यह प्रचार – प्रसार कर रहा है ! और शबरी कुंभ का आयोजन भी संघ तथा भाजपा की कल्पना से आयोजित किया जा रहा है ! और इसिलिये गुजरात सरकारी तरफसे हरतरह की मदद देकर यह तैयारी चल रही है !”
विधायकजी को हमनें पुछा की आप आदिवासी तो निसर्गपूजक और किसी भी स्थापित धर्म के अनुयायी नही हो ना ? तो विधायकजी गडबडाए और वह भी बगले झांकने लगे ! इसतरह कुछ चंद ख्रिस्चन धर्म का स्वीकार किए हुए, आदिवासियों के भी घरो में जाकर उनसे बात की है ! ऐसे ही एक पहाड़ी पर धर्मांतरण किए हुए एक आदिवासी परिवार के साथ बातचीत करते हुए, अचानक हमारे सुमो गाडी का ड्रायव्हर हाफते हूए घबराट मे आकर कहने लगा कि “अपनी गाड़ी के सामने रस्ते पर कुछ आदिवासियों ने बडे-बडे पत्थरों से रास्ता रोक दिया है !” हमनें कहा कि तुम आगे बढो और गाडी के पास ठहरो हम लोग इनसे बातचीत पूरी करने के बाद पहुंच रहे हैं ! हम लोग पहाड से उतरकर देखा कि हमारे गाड़ी के सामने पत्थरों से रास्ता बंद कर दिया है ! और गाड़ी में पहले से ही दिगंत ओझा दमा के मरीज होने की वजह से बैठे हुए थे ! और उन्हें कंपनी देने के लिए फादर सेड्रिक प्रकाश भी बैठे थे ! और मै, राम और इरफान तीन उस पहाड़ी क्षेत्र से लौटे थे ! तो मैंने दूर से ही देखते हुए राम और इरफान को कहा कि “तुम दोनो भी गाड़ी में जाकर बैठो ! मैं इन लोगों से बातचीत करता हूँ ! क्योंकि मेरा जन्म डांग के बगल के महाराष्ट्र के धुलिया जिले के साक्री तहसील का, होने की वजह से, मेरी मातृभाषा अहिराणी है ! तो मैं इन लोगों से अहिराणी में बात करने की कोशिश करता हूँ ! तो उस हिसाब से मैने देखा कि छह-सात लंगोटी लगाएं हुए, दारू पिकर तर्र, सभी बार- बार आपस में भिलारी में बोल रहे थे ! कि “गाडीमा फादर शे त्याले आज मारी टाकू ! ” मै पास में जाकर, उनके साथ अहिराणी में बोलते हुए, कहा कि फादर तो मै भी हूँ ! मुझे भी एक लडका है ! और जिसको लडका – लडकी होता है ! उसे अंग्रेजी में फादर बोलते हैं ! क्या मुझे मारोगे ?
मेरी अहिराणी सुनते ही वह खुशी से बोलने लगे !” कि हाउ आपला अण्णा शे, आपला अण्णा शे ! इस मौके का फायदा उठाकर मैंने कहा कि” मेहमानों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है ? चाय – पानी की जगह, उनकी गाड़ी के सामने पत्थरों से रास्ता बंद कर दिया आप लोगों ने ?” तो वह हडबडाकर पत्थरों को हटाने लगे ! और एक-दूसरे को कह रहे थे, कि “चहा बनाएंगे, तो मैंने कहा कि चाय रहने दो, हमें देर हो रही है ! फिर कभी चाय पियेंगे ! और मैं भी गाड़ी में बैठ कर, ड्रायवर को कहा कि “अभी तुम जीतनी जोर से गाड़ी को दौडा सकते हो दौडाओ !
इस तरह हम लोग एक संकट से निकल कर, अहवा के गेस्ट हाउस में पहुंच कर चाय पिते – पिते हमारे पूरे फॅक्ट फाइंडिग के बारे में चर्चा करने लगे ! तो मैंने कहा कि” अपनी गाड़ी के सामने पत्थरों से रास्ता बंद करने की घटना के बारे में आप लोगों को क्या लगता है ?” तो कोई कुछ बोल रहा, तो कोई कुछ ! तो मैंने कहा कि, “सुबह से आसिमानंद अपने को चकमा दे रहा है ! और शायद वह उस कुंभ के तैयारी वाले जगह पर भी छुपा हुआ हो सकता है ! या और कही, लेकिन वह अपने को देखा है ! और साथमे फादर सेड्रिक प्रकाश को देखकर, उसने उन आदिवासियों को खुब शराब पिलाकर अपनी गाडी को रोकने के लिए उन्हें उकसा कर भेजा है ! और शायद फादर सेड्रिक प्रकाश को मारने के लिए कहां होगा ! और उन आदिवासियों को अपने में से कौन फादर सेड्रिक प्रकाश है ! इसकी जानकारी नहीं होने की वजह से ! और मेरी मातृभाषा अहिराणी की कृपा से बाल – बाल बच गए ! ” आसिमानंद के मालेगांव बमब्लास्ट के हादसे होने के पहले की बात है ! और कंधमाल के फादर स्टेन्स और उनके दोनो मासूम बच्चों को, जिंदा जलाने के भी पहले की यह बात है !
आदिवासी क्षेत्रो में, हमारे काफी मित्र बहुत लंबे समय से, कोई विस्थापन के सवाल पर, तो कोई उन्हें उनकी जमीन के पट्टे दिलाने के लिए, या कोई जंगल के उपजपर अधिकार दिलाने के लिए, बरसों से काम कर रहे हैं ! लेकिन सवाल आस्था का है ! इस मुद्दे पर सिर्फ आर. एस. एस. वनवासी कल्याण आश्रमो के माध्यम से, 1952 से लगातार कोशिश कर रहा है ! और आज हमारे सामने जो संकट आया था, वह उसीका परिणाम है !


इसके पहले, इसी गुजरात के दंगों के पहले आदिवासी क्षेत्रों में ख्रिस्चन निवासी पाठशालाओं को जलाने की घटनाएं हुईं हैं ! आदिवासियों को आप शबरी के वंशज हो, यह एहसास दिलाने में वनवासी कल्याण आश्रम कामयाब हूआ है ! हमारे अपने ही, कई लोगों के जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा, आदिवासियों के जल जंगल और जमीन की लड़ाई के लिए जा रहा है ! लेकिन सांस्कृतिक रुप से संघ बगैर कोई अन्य सवालों को लेकर, कुछ भी नहीं करते हुए संघ, आदिवासियों का हिंदूकरण करने में कामयाब हुआ हैं ! रांची की रैली भी उसी का परिणाम है ! क्योंकि गुजरात दंगों के दौरान आदिवासी तथा दलितों ने भी हिस्सा लिया है ! और भागलपुर के दंगे में, दलित तथा पिछड़ी जातियों के लोगों ने भी भाग लिया है ! यह वास्तव को स्वीकार करते हुए, हमें आदिवासि, दलित तथा पिछडी जातियों के लोगों के साथ, सांस्कृतिक,स्तर पर आदान-प्रदान के बारे में, बहुत ही गंभीर रूप से जुडकर काम करने की आवश्यकता है !

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