भगवान शिव के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे पाप दूर जाते हैं और उसे मुक्ति प्राप्त हो जाती है. भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं, जो स्वयंभू हैं और दुनिया में अनेक नामों से विख्यात इन ज्योतिर्लिंगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं. यदि इन बारह ज्योतिर्लिंगों का केवल एक बार दर्शन कर लिया जाए, तो मानव जीवन सफल हो जाता है. भगवान के ज्योतिर्लिंग स्वरूप के दर्शन मात्र से मनुष्य अकाल मृत्यु जैसे संकट से मुक्ति पा लेता है. हमने पिछले अंक में प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बारे में जानकारी दी थी. इस बार हम आपको श्री मल्लिकार्जुन के बारे में बता रहे हैं:-
श्री मल्लिकार्जुन
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर बारह ज्योतिर्लिंगों में दूसरा स्थान रखने वाले श्री मल्लिकार्जुन स्वयभूं विराजमान हैं. इसे दक्षिण का कैलाश कहा जाता है. सभी धर्मग्रंथों में इसकी अलग-अलग मान्यताएं बताई गई हैं. महाभारत में कहा गया है कि श्री शैल पर्वत पर विराजमान स्वयंभू भगवान मल्लिकार्जुन के दर्शन और पूजन मात्र से अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है. मान्यता है कि केवल श्री शैल पर्वत के दर्शन मात्र से शिवभक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, उसे अनंत सुखों की प्राप्ति होती है और वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति पा लेता है.
मान्यता है कि श्री शैल पर्वत के समीप चंद्रगुप्त नामक राजा की राजधानी थी. उनकी पुत्री किसी संकट में घिर गई और उसने बच निकलने के लिए कई उपाय किए, लेकिन असफल रही. इसके बाद वह अपने पिता के राजमहल से भागकर पर्वतराज की शरण में जा पहुंची और वहीं रहने लगी. वह ग्वालों के साथ कंदमूल खाती और दूध पीती थी. इस प्रकार उस कन्या का जीवनयापन पर्वत पर होने लगा. राजा की इस पुत्री के पास एक श्यामा गाय थी, जिसकी देखभाल वह स्वयं करती थी. एक दिन उसने देखा कि उस गाय का दूध किसी ने निकाल लिया. फिर यह लगातार कई दिनों तक होता रहा. कन्या सोचती कि कोई मनुष्य उसकी गाय का दूध निकाल ले रहा है. वह एक दिन छिपकर देखती है कि कोई उसकी गाय का दूध निकाल रहा है. वह क्रोध में दौड़ते हुए गाय के पास पहुंची, तो हैरान रह गई. उसने देखा कि वहां कोई मनुष्य नहीं है, बल्कि एक शिवलिंग है और दूर तक शिवलिंग के अलावा कोई नहीं है. उसी दिन से कन्या उस शिवलिंग की पूजा करने लगी और वहीं पर कुछ दिनों बाद उसने मंदिर बनवा दिया. वही प्राचीन शिवलिंग आज मल्लिकार्जुन के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध है. इस मंदिर का निर्माण लगभग दो हजार वर्ष पहले किया गया था.
मल्लिकार्जुन मंदिर के बारे में दूसरी प्रचलित कथा यह है कि एक बार श्रीगणेश और कार्तिकेय ने अपने माता-पिता गौरी-शंकर से अपना विवाह करने को कहा. तब भगवान शंकर ने कहा, जो पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर आएगा, उसका विवाह पहले होगा. यह सुनकर कार्तिकेय तुरंत पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल गए, लेकिन भगवान गणेश सोच में पड़ गए, क्योंकि उनकी सवारी मूषक था और उनके लिए यह कार्य कठिन था. उन्होंने कुछ देर सोचने के पश्चात शिव-पार्वती की पूजा करके उनके सात चक्कर लगाए. उनकी यह चतुरता देखकर शंकर-पार्वती बहुत खुश हुए और उन्होंने गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों ऋद्धि एवं सिद्धि से करा दिया. जब कार्तिकेय परिक्रमा करके वापस लौटे, तो गणेश जी को क्षेम और लाभ नामक दो पुत्र हो चुके थे. यह सब देखकर कार्तिकेय क्रोधित हो उठे और शिव-पार्वती को प्रणाम करके शैल पर्वत पर रहने चले गए. अपने पुत्र को नाराज देखकर माता पार्वती उन्हें मनाकर वापस लाने के लिए शैल पर्वत पर गईं. पीछे से भगवान शिव भी वहां जाकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए. माता पार्वती को मल्लिका कहा जाता है और भगवान शंकर को अर्जुन, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम मल्लिकार्जुन पड़ा.
कैसे जाएं
आप श्री मल्लिकार्जुन के दर्शनार्थ सड़क, रेल एवं हवाई मार्ग से जा सकते हैं. अगर ट्रेन से जाना चाहते हैं, तो देश के किसी भी प्रमुख स्टेशन से यहां के नजदीकी स्टेशन मरकापुर जाएं और फिर वहां से टैक्सी, ऑटो या बस द्वारा श्रीशैलम पहुंच सकते हैं. यदि आप हवाई रास्ते से जाना चाहते हैं, तो आपको पहले हैदराबाद जाना होगा, वहां से श्रीशैलम की दूरी 232 किलोमीटर है. वहां आप आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग की बस से जा सकते हैं या फिर टैक्सी अथवा ट्रेन से.
भक्तों के कष्ट दूर करते हैं स्वयंभू
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