गौधन पर सियासत चरम पर है. पशु बिक्री पर केंद्र सरकार की नई अधिसूचना आते ही कई राज्य सरकारों ने आस्तीनें चढ़ा ली हैं. अब सरकार बैक फुट पर है और अधिसूचना में संशोधन के लिए तैयार है. इन बेजान कानूनों की आड़ में बे़जुबान पशुओं व पशुपालकों की फरियाद कहीं दबकर रह गई है.
राजस्थान के बाड़मेर जिले में 11 जून को तमिलनाडु के कुछ पशुपालन अधिकारियों को 50 गौरक्षकों ने घेर लिया. तमिलनाडु के ये अधिकारी जैसलमेर से थापरकर नस्ल की गायों को खरीदकर बेहतर ब्रीडिंग के लिए ले जा रहे थे. 5 ट्रकों में 50 गाएं व 30 बछड़े लदे थे. ट्रकों पर बड़े-बड़े अक्षरों में स्पष्ट लिखा था ऑन ड्यूटी, गवर्नमेंट ऑफ तमिलनाडु. सभी जरूरी कागजात और परमिशन लेटर दिखाए गए, पर गौरक्षकों को भला इसकी परवाह कहां थी. उन्होंने अधिकारियों को जमकर पीटा और ट्रकों में आग लगा दी. पुलिस के आने के बाद किसी तरह अधिकारी जान बचाकर भागे. गौरक्षकों के हमलों को अगर गौर से देखें तो उनमें एक स्पष्ट पैटर्न नजर आता है. अक्सर दलित और एक खास समुदाय के लोग ही उनके निशाने पर होते हैं, अपवादस्वरूप ऊपर वर्णित कुछ ऐसे मामले भी सामने आ जाते हैं. सवाल ये है कि मानसिक गुलामों को इन गैरकानूनी कृत्यों के लिए ताकत कहां से मिलती है.
पशु क्रूरता अधिनियम 1960 में केंद्र सरकार ने हाल में पशु बिक्री के लिए कुछ नए नियम बनाए हैं. अब पशुपालकों को अपने मवेशियों को बाजार में बेचने से पहले यह लिखित आश्वासन देना होगा कि वे मवेशियों को मांस कारोबार के लिए नहीं बेच रहे हैं. इतना ही नहीं, मवेशी भी केवल उन्ही लोगों को बेचे जाएंगे, जो दस्तावेजी साक्ष्य दिखाकर यह साबित कर सकेंगे कि वे किसान हैं. इस अधिसूचना के आते ही कई राज्यों में विरोध शुरू हो गया. विरोध की यह आग उन राज्यों में भी भड़क उठी, जहां हाल में विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा सरकार के लिए बुरी खबर यह थी कि विरोध करने वाले अधिकतर राज्यों में बीफ बैन नहीं है.
इन राज्यों में सत्ताधारी दलों ने बीफ बैन को अपने फूड कल्चर पर हमले के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया. एक तरफ भाजपा का गौ प्रेम और दूसरी तरफ इन राज्यों में चुनाव जीतने की उत्कट इच्छा के बीच टकराव ने सरकार को मध्यम मार्ग अपनाने के लिए मजबूर किया. यही कारण है कि नॉर्थ ईस्ट के राज्यों, गोवा, केरल और पश्चिम बंगाल में भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता अब बीफ बैन के विरोध में खड़े दिख रहे हैं. कह सकते हैं कि बीफ बैन पर विपक्ष के हमलावर तेवर ने सरकार के लिए दुविधा की स्थिति खड़ी कर दी है. गौरक्षकों का भगवा प्रेम अब फीका पड़ने लगा है.
सियासी चाल पर भारी गौ चाल
बीफ बैन पर विपक्ष के हमलावर तेवर झेल रही भाजपा को मद्रास हाईकोर्ट के फैसले ने भी जबरदस्त पटखनी दी है. मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने पशु बिक्री के नए नियमों पर रोक लगा दी है. हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर चार सप्ताह में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. इधर, मेघालय सरकार ने भी पशुओं के खरीद-फरोख्त के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के विरोध में विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया है. मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने कहा कि केंद्र का यह नोटिफिकेशन नॉर्थ-ईस्ट के खिलाफ है. मेघालय की 80 फीसदी आबादी ईसाई है, जहां 89 फीसद लोग बीफ खाते हैं. मेघालय में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा को नॉर्थ-ईस्ट या बीफ खाने वाले राज्यों में आगामी चुनाव जीतने के लिए अलग रणनीति अपनानी पड़ रही है.
वहीं भाजपा की इस दोहरी चाल को बेनकाब करने के लिए विपक्षी भी मैदान में खम ठोके हैं. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि सरकार लोगों के खाने की चीजें तय कर रही है. यह सही नहीं है. पशु बिक्री पर नोटिफिकेशन जारी करने से पहले सरकार को राज्य सरकारों से सलाह लेनी चाहिए थी. कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा कि किसी को क्या खाना है, क्या नहीं, यह केंद्र सरकार का एजेंडा नहीं है. इसे राज्य सरकार पर छोड़ देना चाहिए. वहीं, केंद्र सरकार ने संकेत दिए हैं कि बूचड़खानों में बिकने वाले मवेशियों की लिस्ट में से भैंस को हटाया जा सकता है. पर्यावरण मंत्रालय के सचिव एएनझा कहते हैं कि हमें बैन लिस्ट में संशोधन के लिए कुछ प्रस्ताव मिले हैं, जिन पर विचार किया जा रहा है.
केंद्र-राज्यों में संवैधानिक गतिरोध
पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना से देश में संवैधानिक गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई है. पशुपालन व कृषि मूल रूप से राज्यों के विषय हैं, जिस पर केंद्र को कानून बनाने का अधिकार नहीं है. वहीं पशु क्रूरता रोकने का विषय समवर्ती सूची में आता है, जिसपर केंद्र सरकार कानून बना सकती है. अपने इसी अधिकार के तहत केंद्र सरकार ने नई अधिसूचना जारी की है. हालांकि इसमें बीफ बैन के बारे में कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर मकसद कुछ वैसा ही था. इसके तहत कत्ल के लिए पशुओं की बिक्री पर रोक लगाई गई है, जो पशुओं पर क्रूरता के दायरे में आता है. केरल के मुख्यमंत्री विजयन इसे संघीय ढांचे और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति की बुनियाद पर चोट मानते हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री सहित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार कानून की आड़ में राज्य सरकार के अधिकारों का हनन कर रही है. यह नागरिकों के स्वतंत्र व्यापार करने के अधिकार और मनपसंद भोजन करने की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन है.
इन राज्यों में बीफ बैन नहीं
केरल, वेस्ट बंगाल, अरुणाचल, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम में गोहत्या पर बैन नहीं है. वहीं, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़ीशा, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में गोहत्या पर बैन लगा है.
ममता-केंद्र की रार से पशु तस्करों की मौज
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पशु व्यापार के नए कानून को मानने से इंकार कर दिया है. ममता के इस रूख से पशु तस्कर राहत की सांस ले रहे हैं. अनुमान है कि सीमावर्ती इलाकों से रोजाना 40 हजार पशुओं को तस्कर बांग्लादेश भेजते हैं. हर साल पांच-दस करोड़ रुपए मूल्य के पशु जब्त भी किए जाते हैं, लेकिन सरकारी नीलामी के दौरान पशु तस्कर फिर इन पशुओं को खरीद लेते हैं. बांग्लादेश में पशुओं की कीमत 10 गुनी ज्यादा होने से तस्कर मोटा मुनाफा कमा लेते हैं. भारत-बांग्लादेश सीमा पर पांच पशु हाट संचालित हो रहे हैं. बीएसएफ अधिकारी बताते हैं कि इन हाटों में बिकने वाले पशुओं को देर-सबेर नदी मार्ग से सीमा पार भेज दिया जाता है. पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सीमा के पास चलने वाले पशु बाजारों को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन ममता बनर्जी इस पर चुप्पी साधे हैं.
किसानों के गले की फांस बना कानून
देश में करीब 70 प्रतिशत पशुपालक खेती-बाड़ी पर आश्रित हैं. सरकार के पशु बिक्री कानून की मार इन पशुपालक छोटे किसानों पर पड़ी है. गाय, बैल या भैंस की ज्यादातर बिक्री छोटे किसान ही करते हैं. सूखे व अकाल की स्थिति में पशुओं को चारा-पानी का प्रबंध करने में असमर्थ होने पर ये पशुओं को बेच देते हैं. इस पैसे से ही वे दुर्दिन, सूखा या अकाल में अपना गुजर-बसर करते हैं. अनुत्पादक पशुओं को पालने या उनके लिए चारा-पानी का प्रबंध करने में किसानों की कमर टूट जाती है. गौमांस पर प्रतिबंध लगने से अब बैलों और सांड़ों के मूल्य में 60 प्रतिशत तक की गिरावट देखी जा रही है. कभी कृषि व्यवस्था का आधार माने जाने वाले बैल भी अब ट्रैक्टर व कृषि में उन्नत टेक्नोलॉजी आने के बाद अनुत्पादक हो गए हैं. ऐसे में इन पशुओं को खुले में छोड़ देने के अलावा किसानों के पास कोई चारा नहीं है. इससे किसानों को अब वो पैसा भी नहीं मिल रहा है, जो पशुधन को बेचकर मिलता था. ऐसे में गौ की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना दम तोड़ रहे किसानों के गले में एक और फांस लगाने जैसा कदम है.
गाय की खाल पर आधारित चमड़ा उद्योग का व्यापार लगभग 11 अरब डॉलर का है. यहां तक कि 95 प्रतिशत जूता उद्योग भी इसी कच्चे माल पर निर्भर है. पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों का एक बहुसंख्यक तबका चमड़ा उद्योग से ज़ुडा है.
पशु हाट में पसरा सन्नाटा
पशुओं के रंभाने से गुलजार रहने वाले पशु हाटों में आज सन्नाटा पसरा है. किसान राममूर्ति बताते हैं कि इन दिनों गाय व भैंस को बाजार तक लाने का काम काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है. कहीं भी बजरंग दल व गौरक्षक पशुपालकों को घेरकर उनके साथ मारपीट करते हैं. अगर किसी तरह वहां से बच निकले तो अगले नाके पर पुलिस वाले घेर लेते हैं. हाट तक पशुओं को लाने के बाद किसानों की हिम्मत नहीं होती कि वे बिना बिके पशुओं को वापस लेकर जाएं. ऐसे में वे औने-पौने दाम पर ही पशुओं को बेच देते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, बाजार में पशुओं की कीमत में 50 फीसद तक गिरावट आई है. मेवात के फिरोजपुर झिरका में पशु हाट लगता है. यहां 6 माह पहले करीब एक हजार पशु बिकने के लिए आते थे, जो अब घटकर 50-60 पशु तक रह गए हैं. इस पशु व्यापार से मेवात के करीब पांच हजार लोग जुड़े थे. इन पशु मेले के ठीकेदारों को भी तीन लाख रुपए प्रति सप्ताह घाटा हो रहा है. ठेकेदार नूर शाह का कहना है कि कई ठेकेदार मिलकर इस पशु मेले को 15 साल से ठेके पर लेते रहे हैं. सभी को हर साल 10 से 20 लाख रुपए मुनाफा हो जाता था. अब मुनाफा तो दूर की बात, एक करोड़ का घाटा उठाना पड़ सकता है.
गौ बिक्री पर नियंत्रण कर बीफ बैन लागू करने का ख्वाब देख रही सरकार को गौरक्षकों की गतिविधियों पर भी नियंत्रण रखना होगा. देश में पशुक्रूरता निवारण कानून पहले से ही है, जिससे पशुओं पर हो रहे अत्याचारों व क्रूरता पर दंड का प्रावधान है. अगर उन कानूनों का ही क्रियान्वयन सही ढंग से किया जाए, तो इन मूक, बेबस प्राणियों की जीवन रक्षा हो सकती है. गौ की रक्षा से ज्यादा गायों की खरीद-फरोख्त करने वालों को आतंकित कर गौरक्षक सरकारी योजना को ही पलीता लगा रहे हैं.