किरण बेदी को भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है. बेदी के आने के बाद सच मानिए तो लोगों की दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिलचस्पी बढ़ गई है. किरण बेदी का नाम दिल्लीवालों के लिए नया नहीं है. भाजपा के थिंक टैंक को इस बात का अनुमान हो गया था कि दिल्ली का चुनाव दूसरे राज्यों से अलग है और केजरीवाल के चेहरे के सामने अगर भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा था तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का था. ज़ाहिर सी बात थी कि मोदी यह चुनाव नहीं लड़ सकते थे, इसका केवल एक ही तोड़ था कि कोई ऐसा चेहरा हो जिसे दिल्ली वाले जानते हों, पहचानते हों, समझते हों और विश्वास करते हों. यही सोच-समझकर भाजपा ने देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. केजरीवाल से पहले पंद्रह साल तक दिल्ली की कमान शीला दीक्षित के हाथों में थी. ऐसे में क्या दिल्ली में एक बार फिर महिला मुख्यमंत्री देखने को मिलेगी. दिल्ली की महिलायें किरण बेदी के बारे में क्या सोचती हैं, क्या महसूस करती हैं. क्या किरण बेदी दिल्ली की जनता के बारे में खासकर महिलाओं के लिए कुछ कर पाएंगी. इस सिलसिले में दिल्ली की महिलाओं ने मिलीजुली राय रखी.
सबसे दिलचस्प, यह बात सामने आई कि अधिकतर शिक्षित महिलायें किरण बेदी के पक्ष में नज़र आईं. रोहिणी विधानसभा क्षेत्र में रहने वाली 60 वर्षीय मार्गरेट वाटर्स पेशे से शिक्षिका हैं, वह किरण बेदी पर बहुत भरोसा जताती हैं. उनका कहना है कि पुलिस में रहने के कारण वह महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को अच्छी तरह समझती हैं, वह अंदर तक की बुराईयों से परिचित हैं. उसी तरह पीतमपुरा की रहने वाली 34 वर्षीय टीचर गौरी शर्मा किरण बेदी को एक असाधारण क्षमताओं वाली महिला मानती हैं. उनके अनुसार किरण बेदी की पूरी जिंदगी ही सख्त अनुशासन और एक्शन लेते हुए गुज़रा है. जाफ़राबाद क्रीसेंट स्कूल की प्रिंसिपल नोशाबा का कहना है कि वह शोहरत की भूखी हैं, अवसरवादी हैं. सीलमपुर की रहने वाली 43 वर्षीय गीता शर्मा एनजीओ चलाती हैं, वह किरण बेदी को बिल्कुल पसंद नहीं करती हैं. उनके अनुसार पहले भी एक महिला ही दिल्ली की मुख्यमंत्री रही है, उससे क्या बदल गया? उनके विधायक जो हमारे क्षेत्र में 10 वर्ष हैं, उन्होंने हमारे क्षेत्र को गंदगी का ढ़ेर बना दिया है. हमारी बच्चियों को रास्ता चलते गुंडे पहले भी छेड़ते थे, अब क्या किरण बेदी स्वयं उनकी सुरक्षा के लिए आ जाएंगी? दिलशाद गार्डन में रहने वाली जयंती दीवान किरण बेदी पर विश्वास जताते हुए कहती हैं कि बेदी निश्चित तौर पर नौजवानों की सोच बदलने में सफल होंगी, जैसे उन्होंने नामांकन पत्र भरते जाते समय एक नौजवान को हेलमेट के न पहनने के लिए टोका था, इसी तरह उनकी छोटी-छोटी बात पर नज़र है.
मटियामहल मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, वहां की एक कांग्रेस कार्यकर्ता जुबैदा बेगम से जब किरण बेदी के बारे में पूछा गया तो वह भी किरण बेदी को भाजपा का चेहरा मानती हैं, लेकिन वह केजरीवाल की लोकप्रियता से भी इंकार नहीं कर रही हैं. उनका कहना है कि यदि किरण बेदी मुख्यमंत्री बन जाती हैं तो उन्हें पुरानी दिल्ली की महिलाओं की ख़राब हालत को बदलना होगा, जहां घरेलू हिंसा, यौन अपराध और बलात्कार की घटनाएं आम हैं.
ओखला दिल्ली का मुस्लिम-बहुल्य क्षेत्र है, वहां भी किरण बेदी का जादू चलता दिख रहा है. एक 35 वर्षीय घरेलू महिला तनवीर शाहिद तीन बच्चों की मां हैं, उनका कहना है कि किरण बेदी को वह एक उम्मीद की किरण की तरह देखती हैं. उनका कहना है कि मेरी 18 वर्षीय बेटी जब स्कूल जाती है तब से उसके घर वापस लौटने तक मैं परेशान रहती हूं. दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस की मैत्रेयी कॉलेज की डॉक्टर हरचरन कौर किरण बेदी के आक्रामक अंदाज़ को पसंद नहीं करती हैं. उनका कहना है कि नौकरशाह अच्छे राजनीतिज्ञ नहीं बन सकते, क्योंकि उनके यहां डिप्लोमेसी नहीं होती और यह भी एक सच्चाई है कि अफसरों की अफसरी कभी नहीं जाती. जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय की छात्रा आयशा के अनुसार उनके पुराने वीडियोज़ और ट्वीट देखिये तो लगता है कि मोदी को बुरा कहने वाली किरण बेदी ताकत के लिए किसी को भी भगवान बना लेंगी. जेएनयू की छात्रा शहला के अनुसार वह किरण बेदी और केजरीवाल दोनों में से किसी को भी पसंद नहीं करती हैं. उनका कहना है कि दोनों ही अन्ना के चेलेे हैं और दोनों को शोहरत की भूख है.
आर के पुरम की विधानसभा दिलशाद हमीदा एक हाउस वाइफ़ हैं, उनका सवाल है कि क्या किरण बेदी गैस सिलेंडर की सब्सिडी प्रत्यक्ष रूप से दिला पाएंगी? किरण बेदी की पार्टी के नेता कभी 10 बच्चों की, कभी 4 बच्चों की बात करते हैं. क्या महिलायें केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हैं? क्या किरण बेदी अपनी पार्टी के पास जाकर इस मुद्दे को उठा पाएंगी? 27 वर्षीय साक्षी फिजियोथेरेपिस्ट हैं. वह दिक्षिणी दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल में फिजियोथेरेपी विभाग में कार्यरत हैं. उनके ताऊ एमएम सचदेवा किरण बेदी के साथ पुलिस सब इंस्पेक्टर रहे हैं. साक्षी किरण बेदी के मुख्यमंत्री बनने से महिलाओं की सुरक्षा और दिल्ली की महिलाओं के हालात बेहतर होंगे. इसका कारण बताते हुए वह कहती हैं कि उनके ताऊ मिस्टर सचदेवा अक्सर उन्हें बताते थे कि वह एकमात्र पुलिस अधिकारी के साथ काम करते हैं जो बहुत निडर है. कहीं से भी फोन आता था, वह अंधेरे में भी अकेले ही निकल जाती थीं.
मटियामहल मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, वहां की एक कांग्रेस कार्यकर्ता जुबैदा बेगम से जब किरण बेदी के बारे में पूछा गया तो वह भी किरण बेदी को भाजपा का चेहरा मानती हैं, लेकिन वह केजरीवाल की लोकप्रियता से भी इंकार नहीं कर रही हैं. उनका कहना है कि यदि किरण बेदी मुख्यमंत्री बन जाती हैं तो उन्हें पुरानी दिल्ली की महिलाओं की ख़राब हालत को बदलना होगा, जहां घरेलू हिंसा, यौन अपराध और बलात्कार की घटनाएं आम हैं. तुर्कमान गेट में रहने वाली गुलशन सरताज किरण बेदी के राजनीति में आने से बहुत आशांवित नहीं हैं. उनके अनुसार किरण बेदी क़ानून व्यवस्था का अनुभव ज़रूर रखती हैं, लेकिन व्यवहारिक राजनीति का नहीं. इसलिये उन्हें पहले अनुभव की आवश्यकता है. हर नेता सुरक्षा का दावा करता आ रहा है, लेकिन सुरक्षा अच्छी होती तो निर्भया घटना कभी नहीं होती, फिर हम किरण बेदी से कैसे आशा कर सकते हैं कि जबकि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अंतर्गत नहीं आती है.
25 वर्षीय नूरैन अनवर पेशे से वकील हैं. वह बेदी की बड़ी प्रशंसक हैं. उनका कहना है कि केजरीवाल और बेदी का कोई मुक़ाबला नहीं है. क्षमता, अनुभव और प्रशासन का अनुभव किरण बेदी के पास कहीं अधिक है. महिलायें निश्चित ही उनकी उपस्थिति में स्वयं सुरक्षित महसूस करेंगी. वह महिलाओं के मामलों को बेहतर जानती-समझती हैं. महिलाओं से बातचीत करते हुए यह महसूस ज़रूर हुआ कि कांग्रेस पार्टी कहीं भी इस मुकाबले में नहीं है. इस बात का अहसास हर क्षेत्र की महिलाओं को ख़ूब है और सीधी टक्कर केजरीवाल और किरण बेदी के बीच है,लेकिन क्या किरण बेदी सच में मोदी से बड़ा चेहरा बन पाएंगी. भाजपा का चुनाव प्रचार तो खूब है और बेदी की वे लोग भी प्रशंसा कर रहे हैं जो भाजपा में नहीं हैं. इसके अलावा दिल्ली की महिलाओं का वोट किरण बेदी के खाते में कितने प्रतिशत जायेगा और दिल्ली का भविष्य क्या होगा, इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा.