इसमें कोई शक नहीं कि देश की जनता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विषय में अच्छी राय नहीं रखती. इस दुनिया में कई लोग कम बोलते हैं, उनमें से एक हमारे प्रधानमंत्री भी हैं. जनता को इससे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश की सेवा करने की बजाय सोनिया और राहुल गांधी के आदेशों का पालन करें, यह उन्हें शोभा नहीं देता. पिछले दस वर्षों में मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को जिस तरह धूमिल किया है, उसे भुला पाना शायद संभव नहीं होगा.
बचपन में एक कहानी सुनी थी. किसी गांव में बरगद का एक पुराना वृक्ष था, जिसके नीचे एक सांप रहता था. वह सांप गांव में रहने वाले लोगों और जानवरों को डंसता था. गांव वाले उस सांप से काफी परेशान थे. एक दिन उस गांव में एक साधु आया. गांव वालों ने साधु से मिलकर अपनी समस्या बताई. वह साधु सांप से मिलने पहुंचा. साधु ने सांप से कहा, तुमसे लोग भयभीत हैं, इसलिए तुम किसी को मत डंसो. सांप ने साधु की बात मान ली और उसने लोगों को डंसना छोड़ दिया. कई महीने बाद वह साधु फिर उसी गांव में पहुंचा, तो उसने देखा कि बरगद के उस वृक्ष के नीचे काफी भीड़ लगी है और वह सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ है. साधु ने उस सांप से पूछा, तुम्हारी यह हालत किसने बनाई? सांप ने कहा, महात्मन, आपने ही तो मुझे डंसने से मना किया था. साधु ने कहा, हां, मैंने डंसने से मना किया था, लेकिन फुंफकारने से नहीं. डंसना हिंसा है, लेकिन फुंफकारना अपने रक्षार्थ ज़रूरी है. अगर तुमने ऐसा किया होता, तो तुम्हारी हालत ऐसी नहीं होती.
आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हालत उसी सांप की तरह है, जिसने फुंफकारना भी छोड़ दिया है. प्रधानमंत्री मनमोहन को देखकर अब जनता को आक्रोश नहीं आता, बल्कि उनके ऊपर लोगों को दया आने लगी है. देश की जनता ने मनमोहन सिंह के कई उपनाम भी रखे हैं. कोई उन्हें हुक्म का ग़ुलाम कहता है, तो कोई रोबोट, कोई मोम का पुतला, तो कोई उन्हें बेजुबान कहता है. हालांकि जनता का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है, जो मनमोहन सिंह के लिए इससे भी तल्ख बातें कहता है. निश्चित रूप से किसी व्यक्ति के विषय में ऐसी टिप्पणियां करना अभद्रता माना जाता है. वह भी उस व्यक्ति के बारे में, जो पिछले दस वर्षों से इस देश का प्रधानमंत्री है.
वैसे यहां सवाल यह उठता है कि आख़िर देश की करोड़ों जनता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विषय में ऐसी नकारात्मक राय क्यों रखती है. इसका सीधा जवाब है कि प्रधानमंत्री जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतर सके. पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जुड़ीं दो किताबें प्रकाशित हुईं. एक किताब संजय बारू ने लिखी है, जो संप्रग प्रथम सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रह चुके हैं. दूसरी किताब पूर्व कोयला सचिव पी सी पारख ने लिखी है. इन किताबों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की लाचारी और नाकामियों के बारे में तफ्सील से लिखा गया है. प्रधानमंत्री के बारे में इतनी बातें लिखी गईं, लेकिन खुद मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इस बारे में कोई बयान नहीं दिया. हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी ने उनका बचाव करते हुए कहा कि पिछले दस वर्षों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश ने उम्मीद से कहीं ज़्यादा प्रगति की है. मनमोहन सिंह को मौन प्रधानमंत्री कहने वालों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अपने दस वर्षों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने एक हज़ार से अधिक भाषण दिए हैं. मनमोहन की न बोलने वाली छवि के लिए उन्होंने मीडिया को ज़िम्मेदार ठहराया. पचौरी के अनुसार, पिछले दस वर्षों में भारत ने जिस तरह प्रगति की है, वैसा विकास किसी अन्य लोकतांत्रिक देश में नहीं हुआ है. यूपीए सरकार की तारीफ़ करते हुए उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार में ग़रीबी उन्मूलन के साथ-साथ ग्रामीण विकास और रोज़गार की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं.
पंकज पचौरी ने भले ही प्रधानमंत्री का बचाव किया हो, लेकिन उनकी बातों से देश की जनता कतई इत्तेफाक नहीं रखती. दरअसल, प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार ने जिस भाषा में प्रधानमंत्री का बचाव किया है, वह विशुद्ध सरकारी भाषा है. वैसे भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार पंकज पचौरी से यही उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि वह प्रधानमंत्री कार्यालय में नौकरी करते हैं. प्रधानमंत्री बेशक निकम्मे और लाचार हों, इससे उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता. उनका काम है अपने प्रधानमंत्री का बचाव करना, क्योंकि इसीलिए उन्हें अच्छी-ख़ासी तनख्वाह मिलती है. चौथी दुनिया के पाठकों को हम यह जानकारी देना चाहेंगे कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी एनडीटीवी न्यूज चैनल में पत्रकार रह चुके हैं. एनडीटीवी में रहते हुए पंकज पचौरी ने कांग्रेस और गांधी परिवार की हिमायत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. गांधी परिवार की कृपा से उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मीडिया सलाहकार बनाया गया. इसकी एवज़ में पंकज पचौरी को लालबत्ती युक्त सरकारी गाड़ी, आठ स्टॉफ, लुटियंस जोन में एक बंगला और लाखों रुपये महीने की सैलरी मिलने लगी. कहने का आशय यह कि पंकज पचौरी ने जिस तरह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बचाव किया है, उसमें कोई नई बात नहीं है, क्योंकि वह भी नौकरी कर रहे हैं. वही नौकरी, जो मनमोहन सिंह पिछले दस वर्षों से कर रहे हैं.
हालांकि पंकज पचौरी की एक बात, जिसमें उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह ने पिछले दस वर्षों में एक हज़ार भाषण दिए हैं, उसी तरह हास्यास्पद है, जैसे कोई यह कहे कि रेगिस्तान में पिछले कई दिनों से भारी बारिश हो रही है और वहां चारों तरफ़ हरियाली देखी जा सकती है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक हज़ार भाषण दिए या दो हज़ार, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि देश की जनता को उनके भाषणों का एक भी अंश याद नहीं है. पंकज पचौरी के इस दावे का लोग मजाक उड़ा रहे हैं. पंकज पचौरी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक अच्छा वक्ता और मीडिया फ्रेंडली बताने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस की किसी जनसभा को मनमोहन सिंह संबोधित नहीं कर रहे हैं. इतना ही नहीं, मनमोहन सिंह की एक अदद पोस्टकार्ड आकार की तस्वीर भी किसी पोस्टर या होर्डिंग में कांग्रेसी उम्मीदवार नहीं लगा रहे हैं, जबकि नई सरकार चुने जाने तक वह देश के प्रधानमंत्री हैं. यह लिखते हुए मुझे भी तकलीफ़ हो रही है, क्योंकि इस देश में दिवंगत नेताओं की तस्वीर भी लगाने की परंपरा रही है, लेकिन कांग्रेस ने तो मनमोहन सिंह को ज़िंदा रहते हुए उन्हें भुला दिया. ख़ैर, इसे कांग्रेस पार्टी की मजबूरी भी कह सकते हैं, क्योंकि पार्टी नेताओं को यह बखूबी पता है कि अगर किसी रैली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौजूद रहेंगे और कोई भाषण देंगे, तो इससे कांग्रेस का वोट बढ़ेगा नहीं, बल्कि उसमें गिरावट आ जाएगी.
मनमोहन सिंह अपनी इस दुर्दशा के लिए स्वयं ज़िम्मेदार हैं. बेशक सोनिया गांधी की कृपा से वह प्रधानमंत्री बने, लेकिन उन्हें कम से कम इस बात का भान होना चाहिए था कि देश की जनता की नज़रों में प्रधानमंत्री का पद काफ़ी बड़ा होता है. देश की जनता अपने प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा करती है कि इस पद पर बैठा शख्स गंभीर ़फैसले लेने में सक्षम हो, वह जनता से रूबरू हो, लेकिन अफसोस! पिछले दस वर्षों में मनमोहन न तो देश के बेहतर प्रधानमंत्री बन सके और न एक अच्छे अर्थशास्त्री.
बेबस प्रधानमंत्री की व्यथा
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