nitish-kumarशराब पर पूर्ण रोक का अभियान सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई है. वर्तमान सामाजिक विद्रूप को दूर कर बेहतर समाज स्थापित करना बड़ी चुनौती है. परिवर्तन की लड़ाई में आर्थिक पक्ष भी महत्वपूर्ण है, लेकिन शराब की आय को त्यज्य माना जाना चाहिए. यह नैतिक आय नहीं है. शराबबंदी को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि पांच हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा, उसकी भरपाई कहां से होगी? मैंने कहा कि इसे हम नुकसान नहीं मानते हैं. शराब का व्यापार कोई नैतिक व्यापार नहीं है. अनैतिक व्यापार से राजकोष में आमदनी हो, यह अच्छी बात नहीं है. अगर सरकार को शराब के व्यापार से पांच हजार करोड़ रुपये की आमदनी होती थी तो इसका मतलब था कि लोग कम से कम दस हजार करोड़ रुपये का शराब पी रहे थे. शराबबंदी लागू होने के बाद बिहार में हर साल दस हजार करोड़ रुपया बचेगा. जिसके पास पैसा बचेगा वो उसे खर्च भी करेगा. पैसा बाजार में ही जाएगा. किसी दूसरे काम में पैसा खर्च होगा. आदमी बेहतर खाना खाएगा, ढंग के कपड़े पहनेगा, बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देगा. इससे भी तो व्यवसाय और बाजार बढ़ेगा. इसका मतलब है कि दूसरे तरीके के टैक्स के जरिए सरकार के खजाने में पैसा आएगा. क्या शराब को छोड़कर धरती पर कोई दूसरा व्यापार नहीं है?
बिहार में गन्ना बहुत होता है, चीनी मिलें हैं. पहले लोग गन्ना से स्प्रीट बनाते थे. मैंने कहा कि अब इससे एथेनॉल बनाएं. भारत में पेट्रोल में दस प्रतिशत एथेनॉल मिलाने की अनुमति है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. हम बाहर से पेट्रोल मंगाते हैं, इसमें पैसा खर्च होता है. अगर एथेनॉल बनेगा और उसे पेट्रोल में मिलाया जाएगा, तो उतना पेट्रोल बचेगा. देश का पैसा बचेगा. स्प्रीट से बेहतर मूल्य एथेनॉल का मिलता है. चीनी मिल और डिस्टिलरी वालों ने कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है, बस हमारे एथेनॉल को खरीद लिया जाए. इसके बाद बायर कंपनी के साथ मीटिंग में मैंने कहा कि सरकारी पॅालिसी के मुताबिक उनके लिए एथेनॅाल खरीदना अनिवार्य है. मैंने यही बात यूपी में कही थी. बिहार से ज्यादा गन्ना उत्तर प्रदेश में उगता है. उत्तर प्रदेश में एथेनॅाल का कम उत्पादन हो रहा है, जबकि इसकी उत्पादन क्षमता कहीं ज्यादा है. देश में जितनी एथेनॉल की जरूरत है, उतना उत्पादन नहीं है. मैंने अपने पहले कार्यकाल में पूरी कोशिश की थी कि गन्ने से एथेनॉल बनाया जाए. लेकिन, इससे संबंधित केंद्रीय कानून की वजह से ऐसा नहीं हो सका था. यूपी में स्प्रीट की जगह एथेनॉल का उत्पादन किया जाए तो यूपी की आमदनी और बढ़ जाएगी. आज यूपी में 17,000 करोड़ रुपये की कमाई शराब से मिलने वाले टैक्स से है. लोग पूछते हैं कि उसका विकल्प क्या होगा. विकल्प तो है. बिहार में दस हजार करोड़ का शराब का व्यापार था, उत्तर प्रदेश में तो लोग 25 से 30 हजार करोड़ रुपये का शराब पी रहे हैं. अगर यूपी के लोग 25-30 हजार करोड़ रुपये की शराब पीना छोड़कर दूसरी चीजों पर खर्च करेंगे, तो ये आमदनी कहां जाएगी? क्या इससे बाजार में, व्यापार में गुणात्मक परिवर्तन नहीं आएगा? पैसा अगर बाजार में रोटेट करे तो वहां की इकोनॉमी ग्रो करेगी और टैक्स के रूप में आमदनी भी होगी.
लिहाजा, जो यह कहता है कि शराब से होने वाली आमदनी का विकल्प नहीं है तो वह गलत बोल रहा है. यह सिर्फ लोगों के मन में भ्रम उत्पन्न करने वाली बात है, गुमराह करने वाली बात है. मैंने भी कहा कि बिहार जैसे राज्य के विकास के लिए बहुत पैसा चाहिए. एक-एक पाई का महत्व है. जैसा कि आप जानते हैं कि केंद्र सरकार ने अपनी स्कीम में पैसा घटा दिया है और राज्य का हिस्सा बढ़ा दिया है. अब मिड डे मील, आंगनबाड़ी केंद्र, आईसीडीएस आदि में राज्य का अधिक पैसा लग रहा है. इसके अलावा राज्य की अपनी भी योजनाएं हैं, उसके लिए भी पैसा चाहिए. इसलिए शराबबंदी का फैसला काफी सोच-समझ कर लिया गया है. मैंने यह फैसला किया है कि इस अनैतिक व्यापार को नहीं चलने दूंगा. कई लोग यह भी बोलते हैं कि शराब पीना उनकी खाने-पीने की आजादी से जुड़ी हुई है. खाने-पीने की आजादी का मैं भी पक्षधर हूं, लेकिन भारत के संविधान में शराब पीने की आजादी नहीं है. यह मौलिक अधिकार का अंग नहीं है. इस मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट का कई बार फैसला आ चुका है. डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी में इस बात का जिक्र है. शराब का व्यापार करना या शराब का सेवन करना मौलिक अधिकार नहीं है.
शराबबंदी अब अभियान है
देश के कई हिस्सों में शराबबंदी का अभियान चल रहा है. राजस्थान में स्वर्गीय गुरुशरण छाबड़ा जी ने एक-एक पंचायत में वोट करवा कर वहां शराबबंदी करवाने की प्रस्ताव पास करवाया था. लेकिन इस पर राज्य सरकार ने अमल नहीं किया. इसलिए शराबबंदी को ले कर 14वीं बार उन्होंने आमरण अनशन किया और अपने प्राण त्याग दिए. वर्धा में तो पहले से शराबबंदी थी. नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली और चंद्रपुर में महिलाओं ने आंदोलन कर पिछले साल से शराबबंदी लागू करा दी है. सरकार ने यहां शराबबंदी तो लागू की, लेकिन अभी भी शराब की बिक्री जारी है. चंद्रपुर, वर्धा से महिलाओं का एक जत्था मुझसे पटना में मिला. किसान मंच के विनोद सिंह जी, जो वीपी सिंह से जुड़े हुए लोग हैं, ने भी मुझे लखनऊ बुलाया. वहां भी शराबबंदी को ले कर चर्चा हुई. राजस्थान से लेकर हर प्रदेश की चर्चा हुई. झारखंड के धनबाद में महिलाएं काफी समय से शराबबंदी के लिए अभियान चला रही हैं. बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद उनका गुस्सा बाहर आया. झारखंड में अब महिलाएं इतनी सक्रिय हो चुकी हैं कि वे शराब की दुकानों को बंद करा देती हैं, तोड़ भी देती हैं. मैं तो अपने यहां ये आह्वान करता हूं कि जहां भी कोई शराब की भट्ठी चलाने की कोशिश करे, उसे तोड़ दीजिए. पूरी सरकार आपके साथ है.
पूरे देश में जो माहौल बन रहा है उसे कितने दिन तक रोक सकते हैं. मैं मानता हूं कि इससे एक सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद पड़ेगी. सामाजिक परिवर्तन किसे कहते हैं. लोगों के आचार, विचार, व्यवहार में परिवर्तन ही तो सामाजिक परिवर्तन है. महिलाएं कहती हैं कि पहले उनके पति जब शराब पीकर आते थे तो बड़े कुरूप दिखते थे, क्रूरता करते थे, लेकिन अब अच्छे दिखते हैं. यह सामाजिक परिवर्तन ही तो है. महिलाएं शराबबंदी की प्रणेता हैं. उनकी सभाओं में दस हजार से अधिक लोगों की उपस्थिति होती है. महिलाओं का स्वयं सहायता समूह भी काफी संगठित हो रहा है और बहुत सकारात्मक भूमिका निभा रहा है. एक घटना मैं बताता हूं. पूर्णिया में पोस्टमॉर्टम करने वाला बिना दारू पीए पोस्टमॉर्टम कर ही नहीं सकता था. लोग उसे ज्यादा पैसा देकर किसी तरह पोस्टमार्टम करवाते थे. अब शराब छूटने के बाद वह बिलकुल स्वस्थ हो गया है और आराम से पोस्टमॉर्टम का काम कर रहा है. बिहार की महिलाएं अब इतनी जागरूक हैं कि वे इस पर नजर रख रही हैं कि शराब छूटने के बाद लोग कहीं अफीम या ड्रग्स तो नहीं लेने लगे हैं.
अपराध में भी कमी आई है
मैंने ग्राउंड लेवल पर एक सर्वे करवाया कि कौन लोग शराब पीते हैं? महिलाएं अपने घर की तो निगरानी कर ही रही हैं, साथ ही पड़ोसियों पर भी नजर रख रही हैं. उन्हें सरकार का पूरा सहयोग मिल रहा है. बिहार में शांति का माहौल सृजित हो रहा है. मैंने शराबबंदी लागू होने के बाद अपराध का आंकड़ा निकलवाया. 1 अप्रैल से 25 जून 2015 तक का आंकड़ा और 1 अप्रैल से लेकर 25 जून 2016 तक का आंकड़ा निकलवा कर इसकी तुलना करवाई. पता चला कि संज्ञेय अपराध में साढ़े चौदह प्रतिशत, हत्या में 38 प्रतिशत, डकैती में 24 प्रतिशत, दंगा-फसाद में 56 प्रतिशत, फिरौती के लिए अपहरण जैसे मामलों में 70 प्रतिशत, बलात्कार के मामलों में 22 प्रतिशत, एससी-एसटी उत्पीड़न के मामले में 23 प्रतिशत की कमी आई है. सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात है कि शराब पीने के बाद होने वाली सड़क दुर्घटना में 30 प्रतिशत की कमी आई है. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जी रोड एक्सीडेंट में कमी लाने की बात सोच ही रहे थे कि मैंने कहा कि गडकरी जी पूरे देश में शराबबंदी लागू कर दीजिए तो सड़क दुर्घटना में 30 प्रतिशत की कमी खुद ही आ जाएगी. सबसे अधिक मौतें शराब पीने के बाद होने वाले रोड एक्सीडेंट से होती हैं. बिहार में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में भी 33 प्रतिशत की कमी आ गई. इसके क्या लाभ हैं? एक महत्वपूर्ण लाभ तो यह भी है कि पहले बिहार में जहां दरवाजे तक बारात पहुंचने में घंटों लगते थे, अब कम समय लगता है. पहले बारात में चलने वाले लोग शराब पी लेते थे. एक ही जगह नाच रहे हैं तो नाच रहे हैं. लड़की पक्ष वाला कुछ बोल नहीं पाता था. अब, दरवाजे तक पहुंचने में देर नहीं लगती. तुरंत ढोल-बाजा बजाया और लग गया दरवाजा. मैं अभी झारखंड में अपनी पार्टी के प्रेसिडेंट, जो पहले मिनिस्टर थे, की बेटी की शादी में गया था. हम सारे लोग डेढ़ घंटे से इंतजार कर रहे थे. बारात आ ही नहीं रही थी. पूछने पर बताया जाता था कि बस दस मिनट में बारात लग जाएगी. मुझे सवा ग्यारह बजे धनबाद से पटना ट्रेन से लौटना था. मैंने उनसे कहा कि देखिए, 200 मीटर दूर से आने वाली बारात को इतना समय लग रहा है, झारखंड में भी शराबबंदी लागू करवा दीजिए तो पांच मिनट में बारात लग जाएगी. यानी, शराबबंदी का एक ये भी लाभ तो है ही. अब तो जो पीने वाले लोग थे, वो भी आज मेरी तारीफ कर रहे हैं. तीन महीने के बाद अब उनकी आदत भी छूट गई है. लोग खुश हैं कि आने वाली पीढ़ी का भविष्य तो संवर गया. यानी, शराबबंदी के दूरगामी फायदे भी हैं.
शराब के साथ योग नहीं हो सकता
शराबबंदी के पक्ष में तो सारे धर्म हैं. कौन सा धर्म है जो शराबबंदी के पक्ष में नहीं है? विभिन्न धर्म को मानने वाले लोग और जनांदोलनों से जुड़े समूह भी इसके समर्थन में हैं. मेधा पाटेकर जी भी शराबबंदी के हक में हैं. ये लोग देश के अन्य राज्यों में भी शराबबंदी लागू करने के लिए बैठकें कर रहे हैं. आज तक देश में जितने विचारक हुए, गांधी जी, अंबेडकर साहब, जेपी, लोहिया, वीपी सिंह, मोरारजी भाई देसाई, सब शराबबंदी के पक्षधर थे. ये कौन लोग हैं जो शराब चाहते हैं, शराब के पक्षधर हैं? गुजरात में तो स्थापना काल से ही शराबबंदी लागू है. आदरणीय प्रधानमंत्री जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने भी शराबबंदी को जारी रखा था. मेरी अपनी समझ है कि प्रधानमंत्री जी भी शराबबंदी के पक्षधर हैं. मैं उनसे एक विनम्र आग्रह करना चाहता हूं. मैं बताना चाहता हूं कि हमलोग भी वर्षों से योग करते हैं. बिहार के मुंगेर में योग का इंटरनेशनल स्कूल है लेकिन शराब के साथ योग कभी पूर्ण नहीं हो सकता है. प्रधानमंत्री जी, अगर आप सचमुच योग के हिमायती हैं तो शराबबंदी करवाइए. देशभर में नहीं तो कम से कम भाजपा शासित राज्यों में ही शराबबंदी लागू करवा दीजिए.
1917 में गांधी जी ने निलहों पर अत्याचार के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह किया था. चंपारण सत्याग्रह की सफलता के बाद ही इस देश में आजादी की लड़ाई ने जन आंदोलन का रूप लिया था. चंपारण सत्याग्रह का सौवां साल शुरू हो गया है. मैंने सोचा कि चंपारण सत्याग्रह के सौवें साल में शराबबंदी लागू कर गांधीजी के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहिए. देशभर के लोगों को शराबबंदी के सत्याग्रह से जुड़ना चाहिए. मैं समझता हूं कि देशवासियों का भी दायित्व है कि वे एक वातावरण बनाएं. इस काम में जो भी स्वयंसेवी संगठन, आंदोलनकारी संगठन, महिलाओं का समूह लगा है, मैं उन सबको हृदय से बधाई देता हूं. लोग लगातार मुझसे मिलने आ रहे हैं. वे अपने क्षेत्र में, अपने राज्य में शराबबंदी के लिए मुहिम चलाना चाहते हैं. मैं व्यक्तिगत तौर पर उन सबलोगों के साथ हूं, जो शराब के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. पिछले दिनों मैं उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के जेवर क्षेत्र में गया था. वहां शराबबंदी के लिए मुहिम चलाई जा रही है. लोगों ने मुझसे कहा कि जेवर तो छोटी जगह है, वहां क्या करने जाएंगे? मैंने कहा कि जेवर तो फिर भी एक कस्बा है, शराबबंदी के लिए अगर किसी गांव में भी जाना पड़ा तो मैं जाने के लिए तैयार हूं. इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.
वैकल्पिक आय और रोज़गार की संभावना
यह सब काम मैं सम्मान पाने के लिए नहीं कर रहा हूं. यह तो एक वैचारिक प्रतिबद्धता है. पूर्ण शराबबंदी से ही भारत की तरक्की हो सकती है. बिहार से शुरू हुआ कारवां अब थमेगा नहीं. शराब के व्यवसाय से जुड़े लोगों को समय रहते अच्छे व्यवसाय की ओर शिफ्ट कर लेना चाहिए. शराब बेकार की चीज है. लोगों के जीवन को बरबाद करने वाला व्यवसाय है और कुछ लोग इसे रोजगार से जोड़ कर देखते हैं. बिहार में भी कुछ लोगों ने शुरुआत में जुलूस निकाला और कहा कि शराब की दुकान बंद होगी तो रोजगार छीन जाएगा. मैंने कहा कि बिहार में सुधा दूध का काउंटर खोल लीजिए. मैं पूर्णिया कमिश्नरी एक कान्फ्रेंस में गया था. महिलाएं मुझे वहां एक गांव में ले गईं. इस गांव में पहले लोग शराब बनाते थे. उस गांव के कई परिवार बेरोजगार होने से डरे हुए थे. ऐसे सभी परिवारों को गाय खरीदने के लिए सरकार की तरफ से पैसा दिया गया. उनसे कहा गया कि अब दूध का काम कीजिए. नौ परिवार की महिलाओं को गाय खरीदने के लिए खुद मैंने अपने हाथ से चेक दिए. उन लोगों ने खुशी-खुशी दूध का धंधा शुरू कर दिया है. आज वे सब खुश हैं. शराबबंदी के बाद भी वैकल्पिक आय और रोजगार की बड़ी संभावनाएं हैं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here